Sunday, September 30, 2007

भीनमाल का इतिहास

भीनमाल शहर प्राचीनकाल मे गुजरात राज्य की राजधानी था । पुरातनकाल मे यह भिल्लमाल के नाम से भी जाना जाता था। ईस्वी सन् 641 मे चीनी यात्री ह्वैंसान्ग यहा आया था,उसके अनुसार यह क्षेत्र गुर्जर रियासत थी। यहा का राजा क्षत्रिय था। वह बेहद बुध्धिमान एवँ युवा था। इस शहर मे ब्राह्मण,बौद्ध एवँ जैन धर्मावल्म्बी रहते थे। चीनी यात्री ह्वैंसान्ग के यात्रा वर्णन के अनुसार तत्कालीन समय मे भीनमाल पश्चिमी भारत का एक वैभवमय महत्वपुर्ण शहर था। इस शहर के 84 दरवाजे थे। उस समय मे यहा ब्राह्मण वर्ग का यहा बहुल्य था, तथा जैनबौद्ध धर्म का प्रसार भी काफी था। यहा जैनो व बोद्धो की अनेक पौषाले थी।
इस शहर के वैभव के कारण यहा मुगल आक्रांताओँ ने कई बार आक्रमण किये। इस्वी सन् 1310 मे मुगल शाशक अल्लाउद्दिन खीलजी द्वारा यह शहर लुंटा गया। पन्द्रहवी शताब्दि मे लिखित "खान्देद प्रबंध" मे इस शहर के वैभव का सम्पुर्ण वर्णन मिलता है जिसके मुतबिक वर्गाकार क्षेत्र मे बसा हुए भीनमाल के 84 दरवाजे थे तथा यहा पर कई इस्लामिक आक्रमण हुए।
प्राचीनकाल से यहा अनेक जैन तीर्थंकरहिंदु दैवी-देवताओ यथा गणपति, शिवलिंग(शंकर), चण्डिका देवी, अम्बे माता, क्षेमंकरी माता, वराहश्याम आदि के मंदिर है। वर्तमान मे अनेको जैन मंदिर है जिनमे तैबीसवे जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ एवँ अंतिम जैन तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का मंदिर काफी विख्यात है। बुद्ध-वास मे बने हुए महावीर स्वामी मंदिर का निर्माण गुर्जर शाशक "कुमारपाल महाराजा" द्वारा करवाऐ जाने का उल्लेख है। इसकी प्रतिष्टा व अंजंनशलाका जैनाचार्य हैमचंद्राचार्य द्वारा की गई थी। उस समय यहा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। कलांतर मे हुए विभिन्न जिर्णोद्वार मे वर्तमान मुलनायक महावीर स्वामी जी हो गये।
भीनमाल विद्वानो व साहित्य मनीषीयो का गढ था, जिनकी विद्वता एवँ ज्ञान की किर्ति पताका का बोलबाला सुदुर पुर्व तक फैला हुआ था। सम्राट भोजदेव के समकालीन रहे संस्कृत सहित्य के प्रकाण्ड विद्वान महाकवि माघ का जन्म यही हुआ था। इस्वी सन 680 मे उंन्होने "शिशुपाल वध्" नामक काव्य ग्रंथ की रचना यहा की थी। इस्वी सन 598 मे राजा हर्षवर्धन के समकालीन रहे गणितज्ञ व सुविख्यात खगोल विज्ञानी ब्रह्मगुप्त का यहा जन्म हुआ था। जिन्होने 628 मे "ब्रह्म स्फुट सिद्धांत" तथा 665 मे 'खण्ड्-खण्डकव्य' की रचना की थी। जैन धर्म के कई प्राचीनतम ग्रंथो की रचना स्थली भीनमाल है। इनमे यहाँ जन्मे सुविख्यात जैन आचार्य सिद्धऋषी गणि की इस्वी सन् 905 मै संस्कृत सहित्य की महत्वपुर्ण रचना 'उपमिति भव प्रप्रंच कथा' , जैनाचार्य विजय गणि कि 'जैन रामायण्' (1595), एवँ आचार्य उध्योतन सुरी कृत "कुवयलमाला" आदि प्रमुख है।अनेक ऐतिहासिक उतार चढावो का गवाह भीनमाल शहर जैन धर्म का एक महत्वपुर्ण तीर्थ स्थल पुरातनकाल से रहा है। ईस्वी सन् 1277 ( विक्रम सम्वत-1333) के एक पुरातन शिलालेख पर जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी जी के जीवंत स्वामी स्वरुप मे यहा पधारने के उल्लेख है।
भीनमाल शहर व समुचे उपखंड क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि जन्य उत्पादो,पशुपालन व डैरी उत्पाद पर निर्भर है। ईसबगौल,तिलहनसरसों इस क्षेत्र के मुख्य कृषि उत्पाद है,तथा जीरा,बाजरा,गेहूँ,मूँग,सरसों,ज्वार व शीशम आदि खरीफ की फसल भी बहुतायात मे होती है। कृषि उत्पादो के सुमुचित क्रय-विक्रय के लिये यहा "कृषि उपज मन्डी समिति" नामक सहकारि संस्थान सरकारी दिशा निर्देशो के साथ कार्यरत है।
भारत सरकार का "फूड कार्पोरेशन आफ इंडिया (FCI)" का अनाज भण्डारण कार्यालय भी यहा कार्यरत है।
शहरी क्षेत्र मे उद्धोगीकरण को बढावा देने के लिए राजस्थान राज्य औधोगिक विकास एवँ वित्त निगम(रिको) द्वारा औधोगिक क्षेत्रो का निर्माण किया गया है। वर्तमान मे इन क्षेत्रो मे मार्बल, ग्रेनाइट, सरसो तेल, बर्फ जैसे उत्पादो के तथा कुछ अन्य उद्धोग कार्यरत है।
भीनमाल मेँ चमडा उधोग भी काफी फैला हुआ है। यहा चमडे की श्रेष्टतम जुतियोँ (मोजडी) का ह्स्तकला आधारित निर्माण एवँ करोबार होता है।
इसके अतिरिक्त सभी बजारभूत उपभोक्ता सामान के खरीद- बेचान का मुख्य स्थल भी है। आधारभूत सुविधाएँ

[संपादित करें] यातायात
रेल सेवा-भीनमाल उत्तर-पश्चिम रेलवे के समदडी-भीलडी रेल खंड से जुडा एक महत्वपुर्ण रेलवे स्थानक(स्टेशन)है तथा स्थानक का औपचारिक नाम "मारवाड भीनमाल" है। वर्तमान मे यह मीटर गेज स्थानक होने की वजह से यहा रेलवे कि आवाजाही न्युनतम है। रेलवे द्वारा आमान परिवर्तन(गेज कनवर्जन) का कार्य शुरु है।
सडक परिवहन- सडक मार्ग द्वारा भीनमाल देश भर के सभी स्थलो से जुडा हुआ है। राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम ( राज्य सरकार संचालित बस सेवा) सभी महत्वपुर्ण स्थलो से बस सेवा का परिचालन करता है। नई दिल्ली, जयपुर, उदयपुर जोधपुर,अहमदाबाद मुम्बई आदि से भीनमाल तक सीधी बस सेवाऍ उपलब्ध है।

[संपादित करें] बिजली
भीनमाल शहर एवँ भीनमाल उपखण्ड क्षेत्र (उप जिला क्षेत्र) के सभी ग़ावँ बिजली सेवा से जुडे हुए है। राजस्थान सरकार के बिजली विभाग द्वारा का 220 के.वी. क्षमता का एक "सब ग्रिड स्टेशन" यहा वर्तमान मे कार्यरत है। "पावर ग्रिड कर्पोरेशन आँफ इण्डिया" यहा दुसरा 400 के.वी. क्षमता का एक ग्रिड स्टेशन का निर्माण कर रहा है, जिससे समुचे मारवाड क्षेत्र मे भीनमाल से बिजली प्रदान की जायेगी।

[संपादित करें] पेयजल
भीनमाल नगर की पेयजल व्यवस्था राजस्थान सरकार का जन स्वास्थ्य आभियांत्रिकि विभाग(PHED) करता है। निकटवर्ति धनवाडा,साविदर व राजपुरा गावँ पेय जल के मुख्य स्रोत है। ग्रामिण क्षेत्र मे सिचाँइ तथा पेय जल व्यस्था कुएँ व टयुब वेल जैसे पारम्परिक जल स्रोतो पर निर्भर है।

[संपादित करें] शिक्षा
भीनमाल शहर मे प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के विविध संस्थान मौजुद है। यहा राजस्थान सरकार संचालित जी.के.गोवाणी राजकीय महाविधालय मेँ कला, वाणिज्य और विज्ञान संकाय मे स्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा है। यह महाविधालय महर्षि दयानंद सरस्वति विश्वविधालय,अजमेर से सम्बद्ध है। राजस्थान शासन के शिक्षा विभाग द्वारा संचालित तीन उच्च माध्यमिक सहित अनेक प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विधालय तथा तकरिबन 50 निजि शिक्षण संस्थान यहा कार्यरत है।

[संपादित करें] संचार सुविधाएँ
भीनमाल शहर मे बेसिक टेलिफोन, मोबाइल सेवा, फेक्स व इंटरनेट आदि सभी संचार सेवाएँ मौजुद है। सरकारी संचार सेवा प्रदाता भारत संचार निगम लिमिटेड (बी.एस.एन.एल.) के अतिरिक्त सभी निजि संचार कम्पनियो की सेवाएँ यहा उपलब्ध है। नगर मे तीन पोस्ट आफिस कार्यरत है,जिनमे मुख्य पोस्ट आफिस मे तार (टेलिग्राम) सेवा व विविध डाक सेवाए उपलब्ध है।

[संपादित करें] चिकित्सा
शहर मे सभी प्रकार की चिकित्सा सुविधाएँ है। राज्य सरकार के चिकित्सा विभाग के अधीन एक सुविधा सम्पन्न रेफरल अस्पताल तथा एक आयुर्वैदिक चिकित्सालय का परिचालन होता है। इसके अतिरिक्त कई निजि चिकित्सालय व नर्सिंग होम भी कार्यरत है।

खैल-कुद
शहर मे खेल-कूद की श्रेष्टतम सुविधाएँ है। यहा शिवराज स्टेडियम नामक एक क्रिकेट स्टेडियम है;जिसमे सभी इनडोर व आउटडोर खेल सुविधाए है। दिसम्बर 1985 मे प्रथम श्रेणी क्रिकेट स्पर्धा "रनजी ट्राफी" के आयोजन से इसका उदघाट्न हुआ था। वर्तमान मे प्रतिवर्ष राज्य स्तर का बेडमिंटन टुर्नामेंट यहा आयोजित होता है।

बेंकिंग
भीनमाल शहर मे श्रेष्ट बेंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध है। यहा पर दो राष्ट्रियकृत बेंक क्रमशः स्टेट बेंक आँफ बीकानेर एंड जयपुरपंजाब नेशनल बेंक की शाखाएँ कार्यरत है। यह दोनो बेंक पुर्णतः संगणिकृत(कम्पुटराइज्ड) व ए.टी.एम. तथा आन-लाइन बेंकिंग सुविधा प्रदान करते है। इसके अतिरिक्त विविध सहकारी व निजि बेंक भी यहा कार्यरत है।

पुस्तकालय
शहर मे नगरपालिका मण्डल द्वारा एक सार्वजनिक पुस्तकालय व वाचनालय तथा सरस्वति मंदिर द्वारा एक निजि वाचनालय संचालित है।

ठहरने के स्थान (होटल)
शहर मे विविध प्रकार के आधिनिक सुविधा-सम्पन्न ठहरने के अनेक होटल मौजुद है। जिनमे होटल सम्राट, राजदीप, नीलकमल, सुर्य-किरण व होटल सागर पैलेस आदि प्रमुख है। राजस्थान राज्य सरकार के सार्वजनिक निर्माण विभाग (पी.डबल्यु.डी.) के अधीन एक डाक बंगलो का परिचालन होता है। शहर से 25 कि.मी.की दुरी पर दास्पा गावँ मेँ एक हेरिटेज होटेल केसल दुर्जन निवास भी है।

प्रशासनिक ढाँचा
भीनमाल जालौर जिले का एक महत्वपुर्ण उपखण्ड (उप जिला) है। इस उपखण्ड क्षेत्र के अधीन भीनमाल, रानीवाडासांचोर जैसे तीन तहसील क्षेत्र व चार पंचायत समीति क्षेत्र क्रमशः भीनमाल,रानीवाडा,सांचोर व जसवंतपुरा आते है। यहा पर राज्य सरकार की तरफ से बतौर प्रशासनिक अधीकारी उपजिलाधीश ( एस.डी.ओ.) कार्यरत है। जिसके जिम्मे प्रशासनिक कार्य तथा समस्त प्रशासनिक शक्तियाँ निहित है।
शहर का समस्त नागरिक सुविधा प्रबंधन स्थानीय निकाय "नगरपालिका मण्डल भीनमाल" (बी.एम.सी.) करती है। नगर पालिका क्षेत्र के 25 वार्ड मे से सीधे जनता द्वारा 25 नगर पार्षद (जनप्रतिनिधि) चुने जाते है। यह 25 वार्ड पार्षद नगरपालिका अध्यक्ष का चुनाव करते है।इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा तीन पार्षदो का मनोयन भी किया जाता है व क्षेत्रिय विधायक को भी चुनावी मताधिकार होता है। नगर पालिका के समस्त प्रशासनिक कार्यो के लिए राजस्थान शासन द्वारा एक अधिशाषी अधिकारी(ई.ओ.) नियुक्त होता है।

सन् 2001 की जनगणना के मुताबिक भीनमाल शहर की जनसंख्या 39,278 है। इसमे पुरुष अनुपात 53% तथा महिला 47% है। शहर की साक्षरता दर 52 % है जिसमे पुरुष साक्षरता दर 67 % तथा महिला साक्षरता दर 36% है।

Friday, September 28, 2007

नरेगा का विस्तार समग्र राष्ट्र में...



काम का अधिकार अभियान से जुड़ी अरुणा रॉय ने देश भर में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना लागू करने के प्रधानमंत्री के फ़ैसले की सराहना की है. अरुणा रॉय कई साल 'काम का अधिकार' अभियान में अहम भूमिका निभा रही हैं.
शुक्रवार को भारत के प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना को देश के सभी ज़िलों में लागू करने की घोषणा की.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से इस बारे में बुलाई गई बैठक में यह फ़ैसला लिया गया.
केंद्र सरकार के इस क़दम की सराहना करते हुए मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित अरुणा रॉय ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम का एक वादा ही पूरा किया है.
उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) में रोज़गार गारंटी क़ानून को देशभर में लागू करने की बात सबसे पहले रखी थी. सरकार को तो इसे देश भर में लागू करना ही था. सरकार का तीन बरस से ज़्यादा कार्यकाल पूरा होने के बाद इसे किया गया है."
ग़ौरतलब है कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पार्टी महासचिव बनाए जाने के बाद बुधवार को एक प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री से मिलकर 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी सुनिश्चित करने वाले इस क़ानून को पूरे देश में लागू करने की माँग की थी.
'ग़रीब विरोधी रवैया'
हालांकि कुछ अर्थशास्त्री इस क़ानून के लागू होने में गड़बड़ियों का हवाला देते हुए लगातार इसे लागू किए जाने का विरोध करते रहे हैं.
ऐसे में क्या 330 ज़िलों से बढ़ाकर इस योजना को देशभर में लागू करने से अनियमितताओं का सवाल और गहरा नहीं होगा, इस सवाल पर अरुणा रॉय इसे 'ग़रीब विरोधी रवैया' बताती हैं.
वो कहती हैं, "केंद्र की यह अकेली योजना है जिसमें पारदर्शिता सुनिश्चित करते हुए आगे बढ़ा जा रहा है. योजना के बारे में सही मालूमात हासिल हो रही है. कहीं अच्छा तो कहीं ख़राब भी अनुभव रहा है पर लोगों को अब समझ में आने लगा है कि यह मज़दूरों का क़ानून है और उन्होंने काम माँगना शुरू किया है."
अरुणा विरोधियों को आड़े हाथों लेते हुए कहती हैं, "जो लोग रंगीन चश्मों से बाक़ी की योजनाओं को देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि देश प्रगति के पथ पर बढ़ रहा है, अगर उन योजनाओं का सच सामने लाया जाए तो भ्रष्टाचार और ज़्यादा देखने को मिलेगा।"

वो मानती हैं कि योजना का विरोध करने के बजाए इसे और पारदर्शी बनाने की ज़रूरत है. साथ ही लोगों को इसके बारे में और जागरूक और व्यवस्था को और जवाबदेह बनाने की भी ज़रूरत है क्योंकि ऐसा करने से भ्रष्टाचार पर नकेल लगेगी.

देशभर के लिए
प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने बताया कि रोज़गार गारंटी योजना को पूरे देश में लागू करने का फ़ैसला प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में लिया गया.
बैठक में वित्त मंत्री पी चिदंबरम और ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह भी मौजूद थे.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना केंद्र की संप्रग सरकार की सबसे महात्वाकांक्षी योजना है और इस समय यह देश के चुनिंदा 330 पिछड़े ज़िलों में चल रही है.
योजना पहले चरण में वर्ष 2006 में देश भर के 200 पिछड़े ज़िलों में लागू हुई थी और बाद में इसका 130 ज़िलों में विस्तार किया गया था.

भगत सिंह का अंतिमपत्र


साथियों को अंतिम पत्र

22 मार्च,1931

साथियो,

स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता. लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता. मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है - इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता. आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं. अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.


आपका साथी,

भगत सिंह

25 मार्च, 1931

Saturday, September 22, 2007

खेतों में घुसी विदेशी कंपनियां, कलेक्टर अनजान

रानीवाड़ा-प्रदेश के 400 से ज्यादा गांवों में विदेशी कंपनियों ने शराब बनाने के लिए जौ की खेती शुरू कर दी है, लेकिन जिला कलेक्टरों को इसकी जानकारी ही नहीं है। ये कंपनियां किसानों से जबानी जमा खर्च करके खेती करवा रही हैं, जिसमें कोई लिखित कागज तक नहीं है।
जानकारों का कहना है कि राज्य सरकार ने दो साल पहले किसानों के हितों की रक्षा का दावा करते हुए कान्ट्रेक्ट फार्मिंग का कानून बनाया था, लेकिन विदेशी कंपनियों ने जवाबदेही तय होने के कारण किसी किसान से कांट्रेक्ट नहीं किया। इन कंपनियों ने कांट्रेक्ट फार्मिंग की काट निकाली और कोलेबोरेटिव फार्मिग से धंधा शुरू कर दिया। इसमें घाटा होने पर कंपनियों की कोई जिम्मेदारी नहीं रहती। कांट्रेक्ट फार्मिंग से कोलेबोरेटिव नुकसानदायक बताई जा रही है।
अधिकारियों के अनुसार हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिलों के 300 गांवों में पेप्सी ने जौ की कोलेबोरेटिव फार्मिंग शुरू की है, जबकि सीकर और जयपुर के 125 गांवों में कारगिल और सैबमिलर ने। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ से जौ पंजाब के बठिंडा में पेप्सी की ब्रेवरी फैक्ट्री खरीदेगी, जबकि जयपुर-सीकर का जौ दिल्ली रोड स्थित सैबमिलर की ब्रेवरी।
कृषि अधिकारियों का कहना है कि ये कंपनियां जौ से शराब बनाने में इस्तेमाल होने वाला माल्ट तैयार करेंगी। कोलेबोरेटिव फार्मिंग की शुरुआत करने के लिए माल्ट, मफिन और कुकीज तैयार करने वाली कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां जौ की खेती के लिए प्रदेश में आ चुकी हैं। इन कंपनियों के प्रतिनिधि इन दिनों कई जिलों के किसानों पर डोरे डाल रहे हैं। वे किसानों से सीधे बात कर रहे हैं। इसकी जानकारी न तो जिला कलेक्टरों को है और न ही जनप्रतिनिधियों को।
जानकारों का कहना है कि प्रदेश में कारगिल, सैब मिलर, पेप्सी जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिनिधि बेहतरीन गुणवत्ता का जौ हासिल करने के लिए किसानों को अपने साथ जोड़ रही हैं। किसान संगठनों ने आशंका जताई है कि बड़ी कंपनियों की महंगी खेती राजस्थान के किसानों को महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और पंजाब की तरह कर्ज के फंदे में फंसा सकती हैं।
कृषि विभाग के जानकारों के अनुसार विदेशी कंपनियों के राजस्थान में आने की वजह उद्योग एवं वाणिज्य संगठन (एसोचेम) की रिपोर्ट से जाहिर हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार मफिन्स, माल्ट, कुकीज, पैनकेक्स, शराब आदि की सालाना वृद्धि दर 22 फीसदी है। इन चीजों की खपत बढ़ने से जौ की मांग बढ़ रही है।
कोलेबोरेटिव फार्मिंग के खतरेभारतीय किसान संघ के प्रांतीय संगठन महामंत्री राजवीरसिंह का कहना है कि विदेशी कंपनियां राजस्थान के किसानों को शुरू में लालच दे रही हैं। इनका असली मकसद किसानों की जमीनों को हड़पना है। पहले ये महंगी खेती करवाकर किसानों को कर्जदार बनाएंगी। बाद में उनकी जमीनें छीन लेंगी। यह गहरा षड्यंत्र है। संघ इसके खिलाफ आंदोलन करेगा।
दुगुना रकबा, तिगुना उत्पादन 2005-06 202000 हैक्टेयर- 458000 टन2006-07 335000 हैक्टे.- 898000 टन2007-08 400000 हैक्टे.- 1200000 टन
जौ का गणितसमर्थन मूल्य : 650 रुपए प्रति क्विंटलइन दिनों : 1000 से 1100 रुपए प्रति क्विंटल
* मुझे जानकारी नहीं कि जयपुर में कोलेबोरेटिव फार्मिंग हो रही है।अखिल अरोड़ा, जिला कलेक्टर, जयपुर
* मुझे जानकारी नहीं कि मेरे जिले में किसी तरह की कंपनियों ने खेती शुरू की है।भवानीसिंह देथा, जिला कलेक्टर, श्रीगंगानगर
* जिले में बड़ी कंपनियों के खेती करने की सूचना मुझे नहीं है।मुग्धा सिन्हा, जिला कलेक्टर, हनुमानगढ़
* जिले में जौ की खेती तो होती है, लेकिन बड़ी कंपनियां ऐसा कर रही हैं। ये जानकारी नहीं है।मंजू राजपाल, जिला कलेक्टर, सीकर
* अनुबंध खेती के भी खतरे हैं, लेकिन वह कम से कम कानूनी तो है। कोलेबोरेटिव खेती में तो किसी तरह का कानून ही नहीं है। इससे किसानों का अहित हो सकता है।अमराराम, विधायक माकपा व प्रदेश अध्यक्ष, अखिल भारतीय किसान सभा
कृषि विभाग के आयुक्त मनोज शर्मा से बातचीत* क्या राजस्थान के खेतों में कोलेबोरेटिव फार्मिंग शुरू की गई है?-प्रदेश के चार जिलों के 425 गांवों में कोलेबोरेटिव फार्मिंग शुरू की गई है।
* कांट्रेक्ट फार्मिंग और कोलेबोरेटिव फार्मिंग में फर्क क्या है?-कांट्रेक्ट फार्मिंग में लिखित कांट्रेक्ट होता है। कोलेबोरेटिव फार्मिंग में किसान और कंपनी के बीच आपसी सहमति होती है।
* कोलेबोरेटिव फार्मिंग में किसानों के हित कैसे सुरक्षित रहेंगे?-कांट्रेक्ट फार्मिंग वाली कंपनियों पर सरकार की नजर है। किसान पूरी तरह सुरक्षित हैं। अलबत्ता, किसानों को बाजार से अधिक कीमतें मिलेंगी।

संड़े स्पेशियल


एक कथा है-

राव गुमानसिंह ईराणी

एक मनुष्य को अपने जीवन से विरक्ति हो गई। उसे लगता था कि वह जीवन में सफल नहीं है। औरों की तरह वह न तो उतना धन कमा पाया, न ही किसी बड़े पद को प्राप्त कर सका और न ही उसे कोई सम्मान प्राप्त हुआ। इसी विचार के साथ उसने जीवन त्यागने का निर्णय ले लिया। उसने सोचा जीवन त्यागने से पहले वह ईश्वर से बात जरुर करेगा। यही सोचकर वह जंगल पहुंचा और ईश्वर को आवाज दी। फिर उसने सवाल किया कि "है ईश्वर! तुम सब जानते हो, अब मुझे सिर्फ एक कारण बताओ कि मैं तुम्हारी इस दुनिया में क्यों जिऊं? उसे जवाब मिला, 'जरा अपने आस-पास देखो। एक तरफ लहलहाती हरियाली घास और उसी के साथ ये लंबे-लंबे बांस, दिखाई देते हैं न?' ।

उसने कहां कि 'हां'।

ईश्वर ने कहां, "जब मैंने इन दोनों को बोया, तो इनकी देखभाल भी मैंने बराबर की। बराबर धूप, बराबर पानी। सब कुछ। देखते-देखते यह घास चारों तरफ फैल गई। दूसरी ऒर बांस का बीज जस का तस। वह जरा भी विकसित नहीं हुआ। दूसरे साल भी वो ही बात। घास फैलती गई और बांस लगभग वैसा का वैसा। लेकिन मैंने बांस को फिर भी उसी तरह का प्यार किया। उसी तरह खाद-खुराक देता रहा।चार साल तक ऐसा ही चलता रहा, मैंने कभी भी इस बांस को अकेला नहीं छोडा। उसी तरह उसको सब कुछ देता रहा। पांचवें साल में इस बीज से एक शाख फूटी। हालांकि वह घास के मुकाबले कुछ भी नहीं था। तो क्यां।धीरे-धीरे इस बीज ने उक शाख के सहारे अपना विकास जारी रखा। अब हर दिन इसका आश्चर्यजनक रुप से विकास होने लगा।अगले कुछ महिनों में ही उसने इस जंगल में सबसे ऊंचाई हासिल कर ली। पांच साल के भीतर ही उसने अपनी जड़ें इतनी गहरी कर ली किवह १०० फुट की ऊंचाई पर पहुंचकर भी बेखौफ, सीना ताने, मजबूती से खड़ा हैं। अपनी बात को जारी रखते हुए उन्होंने कहा, "मेरे बच्चे, एक बात याद रखो, जिस समय तुम्हें लग रहा है कि तुम सिर्फ जीने के लिए संघर्ष कर रहें हो, दरअसल उस समय तुम सिर्फ अपनी जडो को मजबूत कर रहे हो।यह हमेशा याद रखो कि मैंने अगर इस बांस की अनदेखी नहीं की, तो फिर तुम्हारे साथ कैसे करुंगा। बस एक बात हमेशा याद रखना, दूसरों से अपनी तुलना कभी मत करो। दुनिया में हर इंसान को अलग-अलग काम के लिए भेजा गया है। सबकी अपनी-अपनी भूमिका है। इसलिए किसी और को देखकर अपने बारे में फैसला मत करना, क्योंकि घास और बांस दो अलग-अलग उद्देश्यों के लिए पैदा हुए हैं।


सबकः-

"अपने अस्तित्व और उसके अर्थ को जानने के लिए दूसरों को नहीं ख़ुद को देखना ज़रुरी है।अपने अंतर से बात होती रहें, तो जीवन का उद्देश्य और अपनी भूमिका का पता भी चलता रहता है!"

Friday, September 21, 2007

पाकिस्तानी हिंदू:अस्तित्व की चिंता





बुद्धाराम अपनी अगली पीढ़ी के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित नज़र आते हैं
भारत और पाकिस्तान आज़ादी के साठ साल पूरे होने पर तरह-तरह के समारोह मना रहे हैं लेकिन कराची के एक बुज़ुर्ग हिंदू बुद्धाराम के लिए इन समारोहों का कोई मतलब नहीं है बल्कि उनके सामने ज़िंदगी और मौत का सवाल खड़ा है.
62 वर्षीय बुद्धाराम कराची की एक ऐसी बस्ती में रहते हैं जो चारों तरफ़ से मुसलमानों से घिरी हुई है और उनके लिए हर दिन यह ख़तरा लेकर आता है कि आज जाने क्या होगा. उनका दिन जब सही सलामत गुज़र जाता है तो बड़ी राहत की साँस लेते हैं.
चार बेटियों के पिता बुद्धाराम कहते हैं, “हमने तो जैसे-तैसे वक़्त गुज़ार लिया लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए पाकिस्तान में हालात अच्छे नहीं हैं. हम बहुत डर में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. हमारे बुज़ुर्गों ने पाकिस्तान में रहने का फ़ैसला करके बहुत बड़ा ख़तरा मोल लिया था.”
बुद्धाराम पाकिस्तान में रहने वाले उन 25 लाख हिंदुओं में से एक हैं जिन्हें संविधान में तो बराबरी का दर्जा हासिल है लेकिन हक़ीक़त कुछ और ही है.
बहुत सारे हिंदुओं का यह भी कहना है कि आम ज़िंदगी में उन्हें कोई ख़ास परेशानी नहीं है लेकिन बहुत सारे ऐसे मुद्दे भी हैं जिनमें उन्हें अहसास होता है कि वे एक मुसलिम देश में रहते हैं जहाँ कभी-कभी कट्टरपंथियों का दबदबा उन्हें यह सोचने को मजबूर कर देता है कि पाकिस्तान में हिंदुओं का भविष्य क्या है?
अगस्त 1947 में पाकिस्तान बनते समय उम्मीद की गई थी कि वो मुसलमानों के लिए एक आदर्श देश साबित होगा लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश ज़रूर होगा मगर सभी आस्थाओं वाले लोगों को पूरी धार्मिक आज़ादी होगी.
पाकिस्तान के संविधान में ग़ैर मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी के बारे में कहा भी गया है, “देश के हर नागरिक को यह आज़ादी होगी कि वह अपने धर्म की अस्थाओं में विश्वास करते हुए उसका पालन और प्रचार कर सके और इसके साथ ही हर धार्मिक आस्था वाले समुदाय को अपनी धार्मिक संस्थाएँ बनाने और उनका रखरखाव और प्रबंधन करने की इजाज़त होगी.”
कराची के स्वामीनारायण मंदिर में बहुत से लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं
मगर आज के हालात पर ग़ौर करें तो पाकिस्तान में ग़ैर मुसलमानों की परिस्थितियाँ ख़ासी चिंताजनक हैं. उनकी पहचान पाकिस्तानी पहचान में खो सी गई है, बोलचाल और पहनावा भी मुसलमानों की ही तरह होता है, वे अभिवादन के लिए मुसलमानों की ही तरह अस्सलामुअलैकुम और माशाअल्लाह, इंशाअल्लाह जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.
पाकिस्तान में हिंदुओं की ज़्यादातर अबादी सिंध में है. सिंध और पंजाब में रहने वाले हिंदुओं के हालात में भी ख़ासा फ़र्क नज़र आता है. सिंध में हिंदू अपने अधिकारों के लिए संघर्ष भी करते नज़र आते हैं लेकिन लाहौर में रहने वाले हिंदू जैसे पूरे तौर पर सरकार पर निर्भर हैं और उन पर सरकार की निगरानी भी है.
ख़ुशी और चिंताएँ
कराची के स्वामीनारायण मंदिर परिसर में लंबे समय से रहने वाले वरसीमल कहते हैं कि उन्हें वहाँ कोई परेशानी नहीं है और हिंदू अपने त्यौहार – होली, दीवाली, रामलीला वग़ैरा भारत में हिंदुओं की ही तरह पूरी आजादी और उत्साह से मनाते हैं.
स्वानारायण मंदिर कराची महानगर पालिका के दफ़्तर के बिल्कुल सामने है और मंदिर परिसर में ही अनेक हिंदुओं के घर भी हैं और वहीं आसपास कुछ दुकानें भी. वरसीमल तो यहाँ तक भी कहते हैं कि उस परिसर में ऐसा ही माहौल रहता है जैसाकि भारत के किसी हिंदू बहुल इलाक़े में.
वैसे तो कराची में अनेक इलाक़ों में हिंदू मंदिर और घर नज़र आते हैं लेकिन एक ऐसी भी बस्ती है जिसमें हिंदू, सिख और ईसाई रहते हैं और वहाँ अनेक मंदिरों के अलावा चर्च और एक छोटा सा गुरुद्वारा भी है. नारायणपुरा नामक यह बस्ती भी बदहाली की वही कहानी कहती है जो भारत के किसी बेहद पिछड़े इलाक़े में होती है यानी भारी गंदगी, कुपोषित बच्चे और बेकार घूमते युवक.
जीने को मजबूर
हमारे पूर्वजों ने वापिस पाकिस्तान आने का फ़ैसला करके बहुत बड़ी ग़लती की थी लेकिन हमारी मजबूरी ये है कि भारत सरकार भी हमें स्वीकार करने को तैयार नहीं है और पाकिस्तान में हम डर की ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर हैं.

बुद्धाराम
इन बस्तियों में बातचीत से ऐसा आभास होता है कि वहाँ ग़ैरमुसलमानों को कोई परेशानी ही नहीं है लेकिन सच जानने की कोशिश में हम एक और ऐसी बस्ती में पहुँचे जहाँ एक मौलवी ने एक मंदिर पर क़ब्ज़ा करके वहाँ पीर की दरगाह बना ली है.
उस बस्ती में रहने वाले बुद्धाराम बताते हैं कि उनके पूर्वज 1950 के दौर में भारत के कच्छ इलाक़े में पहुँचे थे लेकिन वहाँ उन्हें समाज और सरकार का कोई सहयोग नहीं मिला और फिर वे मजबूर होकर पाकिस्तान ही लौट आए. बुद्धाराम बताते हैं कि भारत में तथाकथित उच्च जाति के हिंदुओं ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया और छुआछूत की समस्या की वजह से उनके पूर्वज भारत से एक बार फिर पाकिस्तान लौट आए.
बुद्धाराम का कहना था, “हमारे पूर्वजों ने वापिस पाकिस्तान आने का फ़ैसला करके बहुत बड़ी ग़लती की थी लेकिन हमारी मजबूरी ये है कि भारत सरकार भी हमें स्वीकार करने को तैयार नहीं है और पाकिस्तान में हम डर की ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर हैं.”
बेटियों की चिंता
बुद्धाराम के चेहरे पर अपनी जवान बेटी के भविष्य की चिंता साफ़ नज़र आती है. यह चिंता पायल के पिता बुद्धाराम की ही नहीं है पाकिस्तान में रहने वाले बहुत से हिंदुओं की है. उनकी लड़कियों को या तो ज़बरदस्ती मुसलमान बना लिया जाता है या फिर वे हालात की वजह से ख़ुद ही इस्लाम की तरफ़ आकर्षित हो जाती हैं कि शायद मुसलमान बनकर वे ज़्यादा सुरक्षित और ख़ुशहाल रहेंगी.
मंगलेश शर्मा ने इस्लाम का अच्छा ज्ञान हासिल किया है
एक सामाजिक कार्यकर्ता मंगलेश शर्मा को यह दलील ही समझ में नहीं आती कि अचानक हिंदू लड़कियों को इस्लाम से मोहब्बत क्योंकर हो जाती है, “इस्लाम एक बहुत बड़ा मज़हब है तो उसकी किस बात से अचानक इतनी मोहब्बत हो जाती है कि वह लड़की अपने इस्लाम को क़बूल करने के लिए अपने परिवार को छोड़ने के लिए तैयार हो जाती है.”
इस्लाम की एक अच्छी जानकार मंगलेश शर्मा कहती हैं कि हिंदू लड़कियों के इस्लाम क़बूल करने के मुद्दों को राजनीतिक हवा भी दी जाती है और अधिकतर मामलों में समाज और व्यवस्था बहुसंख्यक समुदाय यानी मुसलमानों के साथ खड़ी नज़र आती है.
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के महासचिव इक़बाल हैदर कहते हैं कि चिंता की बात ये है कि अकसर मामलों में न्यायालय भी कम उम्र हिंदू लड़की के इस बयान को मान्यता दे देते हैं कि वह अपनी मर्ज़ी से इस्लाम क़बूल कर रही है और उस लड़की की उम्र पूछने की ज़हमत भी गवारा नहीं की जाती, ऐसे में पूरा मामला ही ढीला पड़ जाता है.
इक़बाल हैदर के अनुसार बहुत से कट्टरपंथी मुसलमान इस मुहिम पर बड़ी मुस्तैदी से काम कर रहे हैं कि हिंदुओं को और ख़ासतौर पर उनकी बेटियों को मुसलमान बनाया जाए. पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-6 में लगभग पचास हिंदू लड़कियों ने इस्लाम क़बूल किया था.
मंदिर-मस्जिद

हिंदुओं की एक बड़ी चिंता ये भी है कि उनके अनेक मंदिर ऐसे भी हैं जिन पर क़ब्ज़ा हो चुका है लेकिन सरकार कोई सुध नहीं लेती. बुद्धाराम का कहना है कि उनकी ही बस्ती में एक मंदिर पर क़ब्ज़ा करके वहाँ पीर की दरगाह बना दी गई, सरकारी विभागों में बार-बार गुहार लगाने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई है.
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों की निगरानी करने वाले एवेक्यूई ट्रस्ट बोर्ड के चेयरमैन ज़ुल्फ़िक़ार अली ख़ान के सामने जब हमने यह सवाल रखा तो उनका कहना था कि मंदिरों की देखरेख हिंदू समुदाय के ही लोग करते हैं और उनमें सरकार का कोई दखल नहीं होता.
पाकिस्तान में हिंदुओं के अनेक आराध्य देवों को समर्पित मंदिर हैं
भारत में 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस का असर पाकिस्तान में भी महसूस किया गया. लाहौर के कृष्णा मंदिर की देखरेख करने वाले मुनव्वर चंद कहते हैं, “उस समय एक धार्मिक उन्माद देखा गया था और अनेक हिंदू मंदिरों को या तो गिराया गया या नुक़सान पहुँचाया गया लेकिन सरकार ने ज़्यादातर मंदिरों को फिर से बनवा दिया है.”
मुनव्वर चंद अपनी इस बात के समर्थन में दलील देते हैं कि लाहौर के कृष्णा मंदिर का आधुनिकीकरण करने के लिए सरकार ने पच्चीस लाख रुपए की सहायता दी है और भारी संख्या में हिंदू उसमें पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं.
स्कूलों में इस्लामी तालीम अनिवार्य है और हिंदुओं को अपने धर्म और भाषा का अध्ययन सिर्फ़ घरों और मंदिरों में ही करना होता है, सरकार इसमें कोई मदद नहीं करती.
तमाम मुश्किलों के बावजूद कुछ हिंदू यह कहने में भी नहीं हिचकिचाते कि सरकार उनका ख़याल रखती है. मंगलेश शर्मा की नज़र में परवेज़ मुशर्रफ़ की सरकार ने हिंदुओं के लिए हालात बेहतर बनाए हैं और उनके शासन काल में अल्पसंख्यकों को ऐसा महसूस हुआ है कि वे भी इनसान हैं.
मंगलेश शर्मा के अनुसार 1992 में हिंदुओं को बहुत तकलीफ़ें हुई थीं लेकिन भारत में जब 2002 में गुजरात दंगे हुए तो पाकिस्तान में हिंदुओं को कोई परेशानी या तकलीफ़ नहीं हुई जिसकी वजह ये थी कि सरकार ने ठोस उपाय किए थे.
राणा भगवान दास जैसे नाम अक्सर समाचारों में सुनने को मिलते हैं जो हिंदू होते हुए भी पाकिस्तान के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुँच गए मगर ऐसे उदाहरण बिरले ही मिलते हैं.
पाकिस्तान में भी हिंदुओं को उसी अदृश्य पक्षपात और पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है जिसका आरोप भारत में रहने वाले मुसलमान लगाते हैं यानी संविधान और नियम-क़ानूनों में तो बराबरी का दर्जा हासिल है लेकिन वास्तविकता में वो बराबरी दूर की बात है.
तमाम भेदभाव और पक्षपात के माहौल के बावजूद ज़्यादातर हिंदुओं का कहना था कि उनकी पहचान एक पाकिस्तानी के रूप में ही है और इसमें उन्हें कोई अफ़सोस भी नहीं है. वे पाकिस्तान में रहकर ही अपने लिए हालात बेहतर करने की जद्दोजहद के लिए हिम्मत जुटाते नज़र आते हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तान में हिंदुओं को हालात काफ़ी दयनीय हैं लेकिन लाहौर उच्च न्यायालय के हाल के एक फ़ैसले से एक उम्मीद भी नज़र आती है.
न्यायालय ने अपने फ़ैसले में एक मंदिर गिराकर वहाँ एक शापिंग माल बनाने पर रोक लगाते हुए कहा था कि किसी धार्मिक स्थल को नुक़सान पहुँचाना दंडनीय अपराध है.

Wednesday, September 12, 2007

बीबीसी की हिंदी...अचला शर्मा


रेडियो की भाषा कैसी हो, यह पाठ पहले पहल मुझे बीबीसी हिंदी सेवा में वरिष्ठ सहयोगी स्वर्गीय ओंकार नाथ श्रीवास्तव ने पढ़ाया था.
उन्होंने कहा, ‘भूल जाओ कि हिंदी में एमए किया है. रेडियो पर पाठ्यपुस्तकों की या साहित्य की भाषा नहीं चलती. भाषा ऐसी हो जिसमें श्रोताओं से बतियाया जा सके.’
बेशक, मुश्किल से मुश्किल विषय को आसान शब्दों में श्रोताओं तक पहुँचाने का हुनर ओंकार जी को आता था. बीबीसी की हिंदी को ज़िंदादिल बनाए रखने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उनसे पहले और उनके बाद भी प्रसारकों-पत्रकारों की कई पीढ़ियों ने बीबीसी की हिंदी को गढ़ने, सँवारने और उसकी परंपरा को क़ायम रखने में भूमिका निभाई.
बीबीसी हिंदी सेवा का जन्म 1940 में हुआ था लेकिन उस ज़माने में उसका नाम था ‘हिंदुस्तानी सर्विस’ और पहले संचालक थे ज़ेड. ए. बुख़ारी.
आम जन की नज़र में ‘हिंदुस्तानी’ हिंदी और उर्दू की सुगंध लिए एक मिली जुली सादा ज़बान का नाम था, जो भारत की गंगा जमुनी सभ्यता का प्रतीक थी. यही गंगा जमुनी भाषा, बीबीसी की आज की हिंदी का आधार बनी.

विश्व युद्ध का ज़माना था. ब्रितानी फ़ौज में हिंदू भी थे और मुसलमान भी. उनकी बोलचाल की भाषा एक ही थी-हिंदुस्तानी. हालाँकि हिंदुस्तानी सर्विस नाम के जन्म की कहानी का एक राजनीतिक पहलू भी है.
मार्च 1940 में बुख़ारी साहब ने एक नोट लिखा जिसका विषय था ‘हमारे कार्यक्रमों में किस तरह की हिंदी का इस्तेमाल होगा.’ इस नोट में एक जगह उन्होंने लिखा—
"भारत में हाल की राजनीतिक घटनाओं और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की अपेक्षाओं के बीच, दूसरे शब्दों में, इन संकेतों के बीच कि स्वतंत्र भारत की सत्ता बहुसंख्यकों के हाथ में होगी, हिंदुओं ने अपनी भाषा से अरबी और फ़ारसी के उन तमाम शब्दों को निकालना शुरू कर दिया है जो मुसलमानों की देन थे. दूसरी तरफ़ मुसलमानों ने उर्दू में भारी भरकम अरबी-फ़ारसी शब्दों को भरना शुरू कर दिया है".
"पहले की उर्दू में हम कहते थे- मौसम ख़राब है. लेकिन काँग्रेस की आधुनिक भाषा में या मुसलिम लीग की आज की ज़बान में यूँ कहा जाएगा- मौसमी दशाएँ प्रतिकूल हैं या मौसमी सूरतेहाल तशवीशनाक है.…..हम अपने प्रसारणों को दो वर्गों में रख सकते हैं".
"पहला- अतिथि प्रसारक जिनकी भाषा पर हमारा कोई बस नहीं क्योंकि आप बर्नार्ड शॉ की शैली नहीं बदल सकते. दूसरे वर्ग में हमारे अपने प्रसारक आते हैं जिनकी भाषा में मौसम खराब हो सकता है, मौसमी दशाएँ प्रतिकूल नहीं होंगी. काँग्रेस ने हिंदुस्तानी नाम उस भाषा को दिया था जिसमें हम कहते हैं- मौसम ख़राब है".
मिलीजुली ज़बान हिंदुस्तानी
आम जन की नज़र में ‘हिंदुस्तानी’ हिंदी और उर्दू की सुगंध लिए एक मिली जुली सादा ज़बान का नाम था, जो भारत की गंगा जमुनी सभ्यता का प्रतीक थी. यही गंगा जमुनी भाषा, बीबीसी की आज की हिंदी का आधार बनी.
चालीस के दशक से शुरू हुई इस परंपरा को कई जाने माने प्रसारकों ने मज़बूत किया जिनमें बलराज साहनी, आले हसन, पुरुषोत्तमलाल पाहवा, महेंद्र कौल, रत्नाकर भारती, गौरीशंकर जोशी, हिमांशु भादुड़ी, नीलाभ, परवेज़ आलम, जसविंदर समेत बहुत से नाम शामिल हैं.
आले हसन देवनागरी लिपि नहीं जानते थे. उर्दू में लिखते थे. मगर बीबीसी हिंदी के पुराने श्रोता उनकी ख़ूबसूरत आवाज़ और मीठी भाषा कैसे भूल सकते हैं!

राजस्थान में आरक्षण के मुद्दे पर गूजर समाज की गुरुवार को धौलपुर में महापंचायत हो रही है. इसे देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं.
गूजर नेताओं का कहना है कि वे इस महापंचायत में अपने अगले क़दम की घोषणा करेंगे.
सरकार ने गूजर बहुल इलाक़ों, धौलपुर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, दौसा और करौली में सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी के लिए चार मंत्रियों को तैनात किया है.
दूसरी और राजस्थान सरकार ने गूजर समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के मामले पर गठित जस्टिस जसराज चोपड़ा समिति के कार्यकाल को तीन महीने के लिए बढ़ा दिया है.
एक सरकारी प्रवक्ता का कहना था कि गूजर महासभा के नेता किरोड़ी सिंह बैंसला से बातचीत के बाद समिति का कार्यकाल बढ़ाकर 15 दिसंबर तक कर दिया गया है.
चोपड़ा समिति का कार्यकाल बुधवार को समाप्त हो रहा था.
गूजरों की माँग
ग़ौरतलब है कि राजस्थान में गूजरों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में रखा गया है लेकिन वे अनुसूचित जनजाति के तहत मिलने वाली आरक्षण सुविधा की मांग कर रहे हैं.
अपनी माँगों को लेकर गूजर सड़कों पर उतर आए थे
इसको लेकर गूजर समुदाय सड़कों पर उतर आया था और उनके आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया था.
इस आंदोलन के दौरान कुछ पुलिसकर्मियों समेत 23 लोगों की जानें गई थीं.
राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में भी गूजर समाज के लोग इस आंदोलन से जुड़ गए थे.
इस दौरान हुए धरने-प्रदर्शनों के कारण सामान्य जनजीवन भी ख़ासा प्रभावित हुआ था.
लगभग दो सप्ताह तक चले उग्र आंदोलन के बाद चार जून को गूजरों नेताओं और राजस्थान सरकार के बीच एक समझौता हो गया था. इसी के तहत चोपड़ा समिति का गठन किया गया था.

क्यूँ मेरी अंगुलियाँ


क्यूँ मेरी अंगुलियाँ थकने लगी है?
क्यूँ मेरे लब थरथरा रहे है?


मै अपने गीतो से शर्मा रहा हूँ,ओर
मेरे गीत मुझसे शर्मा रहे है..
वों गीत मुझे आज बेज़ान लगते है....
कि मेरे दिल के जज़्बात थे,
जिन्हे कोरे कागज़ पर मैने उकेरा था,
और उस क़लम को भी तोड देना चाहता हूँ,
जिसने लोगो के दिल के तारो को छेडा था,
आज मेरे हाथो मे क्रांति की मशाल दे दो...
जिसकी रोशनी से,मै हटा दूँ घने स्याह अँधेरो को,
और अपने इस दिल की तडप से आज फिर,
उगा दूँ नई सुबह और सवेरो को...
अब तो दिल का आलम यही है...
कि सारे आलम पे छा जाना चाहता हूँ,
करके क़ुर्बान ये जीवन इस ज़मी के लिये,
इक नई रोशनी जलाना चाहता हूँ...!!!!