Saturday, November 29, 2008

ग्रेनेड कैमरा हो रहा तैयार

Marwar News!
युद्धभूमि में ब्रितानी सैनिकों की मदद के लिए अब अब आई-बॉल की मदद ली जाएगी.

आई-बॉल एक वायरलेस गेंद की तरह है जिसे लड़ाई के मैदान में हथगोले की तरह फेंका जा सकता है या फिर ग्रेनेड लॉन्चर से भी. इसी वजह से कैमरा ग्रेनेड भी कहा जा रहा है! इसे इतना मज़बूत बनाया गया है कि यह काफ़ी तेज़ झटके सह सकता है, इसके भीतर लगे कैमरे 360 डिग्री यानी चारों तरफ़ की तस्वीरें तत्काल भेज सकते हैं1 लड़ाई के मैदान में दुश्मन के किसी मोर्चे पर कितने सैनिक और कैसे हथियार हैं या मोर्चे की संरचना क्या है, ऐसी जानकारियाँ हासिल करने में इस कैमरा ग्रेनेड से काफ़ी मदद मिल सकती है1 सैनिकों को ख़तरे में डाले बिना दुश्मन के बारे में काफ़ी प्रामाणिक जानकारी मिल सकेगी1 ग्रेनेड कैमरा रियल टाइम में अपने चारों तरफ़ की तस्वीर तुरंत भेज सकता है, विशेष तौर पर तैयार किए गए वायरलेस डेटा प्रोसेसर की मदद से सैनिक ग्रेनेड कैमरा की तस्वीरें बिना किसी समस्या के देख सकते हैं.ब्रितानी रक्षा मंत्रालय की ओर से आयोजित एक प्रतियोगिता के तहत यह आइडिया आया था जिसे मंत्रालय ने आगे बढ़ाया है.स्कॉटलैंड स्थित एक कंपनी ड्रीमपैक्ट इसे बना रही है, कंपनी के प्रमुख पॉल थॉमसन का कहना है कि अभी कैमरा ग्रेनेड अपनी शुरूआती अवस्था में है लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद है कि रणभूमि में कारगर सिद्ध होगा.उन्होंने कहा, "हमने कई शुरूआती वैज्ञानिकों चुनौतियों का हल निकाल लिया है, हमें पूरी उम्मीद है कि सैनकों को इससे लड़ाई के मैदान में मदद मिलेगी."रक्षा मंत्रालय के निदेशक एंड्रयू बेयर्ड ने भी इस नई वैज्ञानिक उपलब्धि की सराहना की है.

उन्होंने कहा, "आई-बॉल की टेक्नॉलॉजी बहुत ही बेहतरीन है और उसमें इतना दम है कि भविष्य के रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है."आई-बॉल को सैनिकों के हाथ में आने में भी कई साल लग सकते हैं और इसकी लागत के बारे में नहीं बताया गया है.

 

Saturday, November 22, 2008

मलेशिया में योग के ख़िलाफ़ फ़तवा


DingalNews! मलेशिया में इस्लामिक धर्माधिकारियों ने एक फ़तवा जारी करके लोगों को योग करने से रोक दिया गया है क्योंकि उनको डर है कि इससे मुसलमान 'भ्रष्ट' हो सकते हैं. धर्माधिकारियों का कहना है कि योग की जड़ें हिंदू धर्म में होने के कारण वे ऐसा मानते हैं. यह फ़तवा मलेशिया की दो तिहाई लोगों पर लागू होगा जो इस्लाम को मानते हैं और उनकी कुल आबादी कोई दो करोड़ 70 लाख है.
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार मलेशिया को आमतौर पर बहुजातीय समाज माना जाता है जहाँ आबादी का 25 प्रतिशत चीनी हैं और आठ प्रतिशत हिंदू हैं। समाचार एजेंसी एपी के अनुसार इस आदेश को मलेशिया में बढ़ती रूढ़िवादिता की तरह देखा जा रहा है। खेल की तरह ज़्यादातर लोगों के लिए योग एक तरह का खेल है जिससे आप अपने तनाव को कम कर सकते हैं और दिन की शुरुआत कर सकते हैं।
लेकिन इस प्राचीन व्यायाम योग की जड़ें हिंदू धर्म में हैं और मलेशिया की नेशनल फ़तवा काउंसिल ने कहा है कि मुसलमानों को योग नहीं करना चाहिए। काउंसिल के प्रमुख अब्दुल शूकर हुसिन का कहना है कि प्रार्थना गाना और पूजा जैसी चीज़ें 'मुसलमानों के विश्वास' को डिगा सकती हैं। हालांकि लोगों के लिए योग न करने के इस आदेश को मानने की बाध्यता नहीं है और काउंसिल के पास इसे लागू करवाने के अधिकार भी नहीं हैं लेकिन बड़ी संख्या में मुसलमान फ़तवे को मानते हैं। इस निर्णय से पहले मलेशिया की योग सोसायटी ने कहा था कि योग केवल एक खेल है और यह किसी भी धर्म के आड़े नहीं आता है.
योग की शिक्षिका सुलैहा मेरिकन ख़ुद मुसलमान हैं और वे इस बात से इनकार करती हैं कि योग में हिंदू धर्म के तत्व हैं। समाचार एजेंसी एपी से उन्होंने कहा, "हम प्रार्थना नहीं करते और ध्यान भी नहीं करते." उनके पिता और दादा भी योग के शिक्षक रह चुके हैं. उनका कहना था, "योग एक महान स्वास्थ्य विज्ञान है. इसे वैज्ञानिक रुप से साबित भी किया जा चुका है और इसे कई देशों ने इसे वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति की तरह स्वीकार भी किया है."
बीबीसी के कुआलालंपुर संवाददाता रॉबिन ब्रांट का कहना है कि हालांकि योग की कक्षाओं में ज़्यादातर चीनी और हिंदू ही नज़र आते हैं लेकिन बड़े शहरों में मुसलमान महिलाओं का योग की कक्षाओं में दिखाई देना आम बात है.

Wednesday, November 12, 2008

ब्रिटेन में शुक्राणु दाताओं की भारी कमी


ब्रिटेन में शुक्राणुदाताओं की भारी कमी के मद्देनज़र प्रजनन विशेषज्ञनों ने सुझाव दिया है कि एक ही शुक्राणुदाता के शुक्राणुओं से कराया जाने वाले गर्भधारणों की सीमा बढ़ाई जाए.

ब्रिटिश फ़र्टिलिटी सोसाइटी (बीएफ़एस) के डाक्टर मार्क हैमिल्टन और एलन पैसी ने कहा है कि ब्रिटेन शुक्राणुओं की भारी कमी से जुझ रहा है.

इन विशेषज्ञों ने एक ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में लिखा है कि मौजूदा क़ानून में बहुत बड़े पैमाने पर बदलाव की आवश्यकता है.

इन विशेषज्ञों का कहना है कि शुक्राणुदाता की कमी की वजह शुक्राणुदाताओं का नाम गुप्त रखने का प्रावधान ख़त्म किया जाना है, यह फ़ैसला सरकार ने तीन साल पहले किया था.

कमी

ब्रिटेन में स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता ने इस आरोप से इनकार दिया है, पर इस बात पर सहमति जताई कि शुक्राणुदाताओं की घटती संख्या से निबटने के लिए ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है.

नाम बताने की शर्त्त वाले क़ानून की मदद से बच्चे 18 वर्ष की उम्र में अपने जैविक पिता की तलाश कर सकते हैं इसीलिए यह व्यवस्था की गई है.

कुल मिलाकर ब्रिटेन में पिछले 15 वर्षों में शुक्राणुदाताओं की संख्या में 40 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कई प्रजनन क्लीनिकों में शुक्राणुओं के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता है तो कई क्लीनिक इस सुविधा को बंद करने पर मजबूर हुए हैं.

अनुरोध

इस समय हर वर्ष ब्रितानिया में लगभग 4000 रोगी शुक्राणुओं के लिए अनुरोध करते हैं.

 ब्रिटेन की आबादी इतनी है कि जोखिम की बात नहीं है पर शुक्राणुदाताओं की संख्या बढ़ाने के लिए की कारगर उपाय की ज़रूरत है
 
मार्क हैमिल्टन

ब्रितानी क़ानून के मुताबिक़ एक शुक्राणुदाता के शुक्राणुओं से अधिकतम दस गर्भाधारण कराए जा सकते हैं.

सभी शुक्राणुदाता इस बात के लिए तैयार नहीं होते कि उनके शुक्राणु से 10 गर्भाधारण कराएं जाएं, ऐसे में मांग के मुताबिक़ हर साल कम से कम 500 नए शुक्राणुदाताओं की ज़रूरत है.

लेकिन इसके वर्ष 2006 में सिर्फ़ 307 नए शुक्राणुदाताओं ने ही अपना नाम दर्ज कराया.

नीदरलैंड की आबादी भी ब्रिटेन के लगभग बराबर है और वहाँ गर्भधारण की अधिकतम सीमा 25 है. जबकि फ्रांस में ये सीमा पाँच है.

Friday, November 7, 2008

पाकिस्तान में साइबर अपराध के लिए 'मौत'

 पाकिस्तान के नए क़ानून के तहत अब इंटरनेट अपराध के लिए भारी भरकम ज़ुर्माना, आजीवन कारावास और मौत तक की सज़ा हो सकती है.

राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने एक अध्यादेश जारी कर इंटरनेट अपराध के लिए नए प्रावधान किए हैं.

पाकिस्तान की सरकारी समाचार एजेंसी एपीपी के अनुसार यह क़ानून 29 सितंबर से लागू माना जाएगा.

इस क़ानून के तहत ऐसे किसी भी साइबर अपराध को 'साइबर आतंकवाद' का नाम दिया गया है जो किसी की मौत का कारण बनती है.

और इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को आजीवन कारावास या मौत की सज़ा दी जा सकती है.

पाकिस्तान में एक करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं.

क़ानून के मुताबिक़ किसी व्यक्ति, व्यक्ति समूहों या किसी संस्था को 'साइबर आतंकवाद' के लिए दोषी माना जाएगा अगर उसने (या उन्होंने) ऐसे किसी कंप्यूटर या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग किया है जिससे 'आतंकी गतिविधि' को अंज़ाम दिया गया है.

इस क़ानून में 'आतंकी गतिविधि' को भी परिभाषित किया गया है और इसके अनुसार किसी हिंसा के लिए चेतावनी देना, धमकाना, बाधा पैदा करना, नुक़सान पहुँचाना आदि को इसके दायरे में रखा जाएगा.

'साइबर आतंकवाद' के इस क़ानून के अनुसार किसी गोपनीय जानकारी को कॉपी करना और रासायनिक, जैविक या परमाणु हथियार बनाने की विधि को इंटरनेट के ज़रिए इंटरनेट से डाउनलोड करने को भी इसी दायरे में रखा जाएगा.

इसके अनुसार सिर्फ़ अपराध करना ही नहीं, अपराध के उद्देश्य से किए गए कार्य भी 'साइबर आतंकवाद' की श्रेणी में रखा जाएगा.

इस क़ानून के तहत इंटरनेट के ज़रिए की गई ठगी और स्पैम के लिए भी अलग-अलग सज़ाओं का प्रावधान किया गया है.

दिसंबर 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने भी इसी तरह का एक अध्यादेश जारी किया था और तब क़ानून विशेषज्ञों ने इसे 'अस्पष्ट क़ानून' कहा था और इसकी वजह से इसे मूलभूत अधिकारों के ख़िलाफ़ क़रार दिया गया था.

Thursday, November 6, 2008

गुजराती गुलाब से महक उठा जापानी बाजार


जापान का बाजार इन दिनों गुजराती फूल से गुलजार है। राज्य में उत्पादित कुल गुलाब के 70 फीसदी हिस्से का निर्यात जापान में हो रहा है।
पिछले साल कुल 35 लाख गुलाब जापान भेजे गए थे। राज्य के बागवानी विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सूरत में पैदा किए जाने वाले कुल गुलाब का 70 फीसदी जापान के बाजार में भेजा जाएगा। गौरतलब है कि यहां 100 एकड़ जमीन में गुलाब की खेती प्रस्तावित है।
बागवानी विभाग के उपनिदेशक जेड. एम. पटेल ने कहा - इस साल फूलों के निर्यात में और बढ़ोतरी की उम्मीद है क्योंकि साल 2007 में सरकार ने ग्रीन हाउस फॉर्मिंग की बाबत 18 एमओयू पर दस्तखत किए गए थे और इस वजह से लंबी अवधि के कारोबार में इजाफा होगा।
उन्होंने कहा कि सूरत से होने वाले फूलों का निर्यात जोर पकड़ रहा है क्योंकि यहां फूलों की खेती का रकबा भी बढ़ रहा है। विभाग के एक अधिकारी पी. एम. वघासिया ने कहा कि पिछले 5 साल में यहां खेती का रकबा 40.5 हेक्टेयर से करीब 100 हेक्टेयर पर पहुंच गया है।
जिन किसानों ने दो हेक्टेयर जमीन पर गुलाब की खेती की शुरुआत की थी, वे अब 10 हेक्टेयर जमीन पर गुलाब की खेती कर रहे हैं। पटेल ने कहा कि ये किसान अब गुलाब की विभिन्न वेरायटी का निर्यात जापान को करने लगे हैं। कुछ ऐसे भी किसान हैं जो अभी-अभी फूलों की खेती की तरफ मुड़े हैं।
सूरत के एक किसान धर्मेश पटेल ने बताया कि इसके अलावा इटली, हॉलैंड और जर्मनी जैसे देशों को भी सूरत के किसान गुलाब भेज रहे हैं। उन्होंने कहा कि 60 से ज्यादा किसान फूलों की विभिन्न किस्म मसलन गुलाब, गेंदा आदि की खेती कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि ये किसान खेती के आधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। बागवानी विभाग के अधिकारी वघासिया ने बताया कि हॉटिकल्चर मिशन 2005 की शुरुआत के बाद राज्य में फूलों की खेती का कुल रकबा 10 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है।

सीनेटर ओबामा ने हिंदी, अन्य भारतीय भाषाओं के पर्चे बांटकर भारतीय वोट जुटाने का प्रयास किया था

Dingal News! अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनने वाले सीनेटर बराक ओबामा ने अपने प्रचार अभियान के दौरान स्वयं को अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए शक्तिशाली प्रवक्ता और पक्षपात के खिलाफ आवाज उठाने वाले योद्धा की तरह पेश किया था और भारतीय-अमेरिकियों को हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं में पर्चे बांट कर लुभाने की कोशिश की थी ।
ओबामा प्रचार अधिकारियों ने उनके पांच-सूत्री घोषणापत्र के हिंदी और मलयालम संस्करण निकाले थे, जिन्हें 50 राज्यों में सामुदायिक संगठनों के जरिये भारतीय-अमेरिकियों में बांटा गया था ।
इस पर्चे में कहा गया था कि उनके प्रशासन की एक उच्च प्राथमिकता स्वास्थ्य सेवाओं को वहन करने योग्य बनाना होगा और यह कहा गया था कि देश में 24 लाख एशियाई-अमेरिकी चिकित्सा बीमे के तहत नहीं आते, जो अमेरिका में बहुत महंगा है ।

एक पृष्ठ के घोषणापत्र में कहा गया था कि श्री ओबामा की योजना के अनुसार, एक आम अमेरिकी परिवार कम-से-कम 2,500 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष बचा सकेगा ।

इसमें कहा गया था 47-वर्षीय डेमोक्रेट सीनेटर ने अपने करिअर की शुरुआत शिकागो में एक सामुदायिक संयोजक के रूप में की थी और सभी प्रकार के भेदभाव को मिटाने के लिए काफी समय तक काम किया था । श्री ओबामा ने अपना राजनीतिक करिअर इलिनॉय राज्य की सीनेट के सदस्य के तौर पर शुरू किया था और उन्होंने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ कानून पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।

तमिलनाडु-अस्पताल में 20 टेस्ट ट्यूब बच्चों का जन्म

Dingal News!
तमिलनाडु के इरोड शहर में 30 अक्तूबर को एक दिन में 20 परखनली शिशुओं का जन्म हुआ, जिनमें 16 जुड़वां हैं । यहां के सुधा टेस्ट ट्यूब सेंटर में 12 महिलाओं ने इन बच्चों को जन्म दिया । इस दिन एक महत्वपूर्ण तमिल त्योहार कंडा षष्ठी था । इस सेंटर की निदेशक धनभाग्यम कंडासामी ने भारतीय समाचार एजेंसी, पीटीआई को बताया कि ये महिलाएं गर्भावस्था के अंतिम चरण में थीं और इसी दिन बच्चों को जन्म देना चाहती थीं, क्योंकि तमिल कैलेंडर के अनुसार, यह शुभ दिन था । इन बच्चों का जन्म सिजेरियन ऑपरेशन से हुआ । 30 अक्तूबर से शुरू होने वाला कंडा षष्ठी त्योहार 6 दिन तक मनाया जाता है और यह भगवान सुब्रह्मण्यम की राक्षस सुरापद्मन पर जीत का प्रतीक है । डॉ. कंडासामी ने बताया कि सभी माँएं और बच्चे स्वस्थ हैं तथा बच्चों का वजन 2.2 किग्रा से 3.5 किग्रा के बीच है ।