Wednesday, November 28, 2007

जनरल नॉलेज के लिए कुछ सवाल

हवा कैसी चलती है.
हमारी पृथ्वी, गैस के अणुओं की परतों से घिरी हुई है, जिसे वायुमंडल कहा जाता है. यह वायुमंडल मुख्य रूप से नाइट्रोजन और ऑक्सीजन गैसों से मिलकर बना है. जब इन गैसों के अणु गति पकड़ते हैं तो उसे हवा कहा जाता है. अब सवाल कि हवा चलती कैसे है. सूर्य पृथ्वी की सतह को गर्म करता है तो इससे वायुमंडल भी गर्म होता है. जिन हिस्सों पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं वह गर्म हो जाते हैं और जिन हिस्सों पर तिरछी किरणें पड़ती हैं वह ठंडे रहते हैं. पृथ्वी की सतह गर्म होने से हवा भी गर्म हो जाती है. गर्म हवा ठंडी हवा की अपेक्षा हल्की होती है इसलिए ऊपर उठती है और फैलती है. उसकी जगह लेने के लिए ठंडी हवा आ जाती है. इस तरह चलती है हवा.

स्टैम सैल उपचार क्या होता है.
पहले यह समझ लें कि हर जीव, सैल या कोशिकाओं से मिलकर बनता है. एक वयस्क व्यक्ति के शरीर में कोई 1000 खरब कोशिकाएं होती हैं. अधिकांश वयस्क कोशिकाओं का एक निश्चित उद्देश्य होता है जो बदलता नहीं. उदाहरण के लिए जिगर की कोशिकाएं दिल की कोशिकाओं की भूमिका नहीं निभा सकतीं लेकिन स्टैम सैल ऐसी कोशिकाएं होती हैं जो अभी विकास के आरंभिक चरण में हैं और अन्य प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन स्टैम कोशिकाओं को, मरम्मत के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. मतलब ये कि अगर शरीर के किसी अंग की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो गई हैं तो इन स्टैम कोशिकाओं को स्वस्थ कोशिकाएं विकसित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यह माना जाता है कि इससे पार्किन्सन्स, अल्ज़ाइमर्स, हृदय रोग, पक्षाघात, मधुमेह जैसी बीमारियों का इलाज किया जा सकेगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि अधिकांश स्टैम कोशिकाएं भ्रूण से प्राप्त होती हैं. हालांकि ये वयस्क अंगों में भी पाई जाती हैं जिनका काम होता है क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत करते जाना.

महात्मा गांधी ने फ़ीनिक्स आश्रम की स्थापना कहां की थी
महात्मा गांधी सेठ दादा अब्दुल्लाह के निमंत्रण पर एक मुक़दमे के सिलसिले में 23 मई 1893 को दक्षिण अफ़्रीका पहुंचे थे. गांधी जी पर जॉन रस्किन की पुस्तक अन्टू दिस लास्ट का बड़ा प्रभाव पडा जिसमें समाजवादी अर्थव्यवस्था पर बल दिया गया था. सन 1904 में उन्होंने डरबन शहर से कोई 25 किलोमीटर दूर सौ एकड़ ज़मीन ली और फ़ीनिक्स आश्रम बनाया. इसमें एक प्रिंटिंग प्रैस और आटे की चक्की लगाई, खेती-बाडी़ कराई. उनके साथ आए सभी लोग सब काम अपने हाथों से करते थे.
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को यंग टर्क के नाम से क्यों पुकारा जाता था
इसका संबंध तुर्क साम्राज्य या ऑटोमन साम्राज्य से है. इस साम्राज्य में सुधार लाने के लिए 1889 में सैन्य कैडेटों और विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक आंदोलन शुरू किया जिसमें प्रगतिशील विचारधारा वाले कलाकार, प्रशासक और वैज्ञानिक भी शामिल हुए. इस आंदोलन को सुल्तान अब्दुल हामिद द्वितीय की राजशाही के ख़िलाफ़ हुई यंग टर्क क्रांति कहा गया. ये लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करते थे यानी राजतंत्र और धर्मतंत्र के ख़िलाफ़ थे. यंग टर्क आंदोलन से विद्रोह की परंपरा शुरू हुई और इसी ने तुर्की गणतंत्र के संस्थापक मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क के नेतृत्व में हुई क्रांति की नींव रखी. जहाँ तक चंद्रशेखर का सवाल है उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत समाजवादी विचारधारा से हुई. साठ के दशक में वे आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के क्रांतिकारी विचारों के साथ कांग्रेस से जुड़े थे. इन्हीं क्रांतिकारी विचारों के कारण उन्हें उनके सहयोगियों मोहन धारिया, कृष्ण कांत और चंद्रजीत यादव सहित यंग टर्क के नाम से जाने जाने लगा.

जज़िया कर क्या है.
इस्लामिक क़ानून के तहत जज़िया कर उन लोगों पर लगाया जाता है जो ग़ैर मुस्लिम हैं. यह कर उन्हें देना पड़ता है जो इस्लाम को तो स्वीकार नहीं करते लेकिन इस्लामी सल्तनत के संरक्षण में रहने को तैयार हैं. इससे उन्हें एक सीमा तक स्वायत्तता मिलती है, कुछ रियायतें भी मिलती हैं लेकिन वे हथियार नहीं उठा सकते और न ही सेना में भर्ती हो सकते हैं. क़ुरआन के अनुसार ग़ुलामों, महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों, बीमारों और ग़रीबों पर जज़िया नहीं लगाया जाना चाहिए लेकिन बाद में इन प्रावधानों को छोड़ दिया गया और सभी ग़ैर मुसलमानों पर जज़िया लगाया जाने लगा.

केंचुए का वैज्ञानिक नाम क्या है. द्विलिंगी होने के कारण क्या सभी केंचुए बच्चे पैदा करते हैं. आम केंचुए का वैज्ञानिक नाम है Lumbricus terrestri. यह तो आप जानते ही हैं कि केंचुए द्विलिंगी होते हैं यानी उनमें नर और मादा दोनों प्रजनन कोशिकाएं होती हैं लेकिन उन्हें शुक्राणु की अदला-बदली के लिए साथी की ज़रूरत पड़ती है.

लातीनी अमरीका को लातीनी अमेरिका क्यों कहा जाता है?

अमरीका महाद्वीप के उस समूचे क्षेत्र को लातीनी अमरीका कहा जाता है जहां प्रमुख रूप से स्पेनिश और पुर्तगाली भाषाएं बोली जाती हैं और किसी सीमा तक फ़्रांसीसी भी. क्योंकि ये सभी भाषाएं रोमन काल में लैटिन से पनपी थीं. लैटिन अमरीकी देशों में मैक्सिको, मध्य अमरीका, दक्षिण अमरीका और कैरिबियाई देश शामिल हैं. कहते हैं कि यह शब्दावली सबसे पहले 1860 के दशक में फ़्रांस के सम्राट नैपोलियन तृतीय ने इस्तेमाल की थी जो समूचे क्षेत्र को अपने नियंत्रण में करना चाहते थे.

एड्स के लक्षण बताएं.ये तो आप जानते हैं कि एड्स रोग एचआईवी वायरस से होता है. यह वायरस शरीर में प्रवेश करने के बाद हमारी रोक प्रतिरोधक प्रणाली को नष्ट कर देता है, जिससे हम छोटी बड़ी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. कुछ लोगों में वायरस के प्रवेश करने के कुछ सप्ताह के भीतर फ़्लू जैसे आरंभिक लक्षण दिखाई देने लगते हैं. ग्रंथियां सूज जाती थीं और त्वचा पर ददोरे उभर आते हैं लेकिन कुछ सप्ताह के अंदर ये लक्षण ग़ायब हो जाते हैं. हाँ, जब एड्स हो जाता है तो बहुत से लक्षण दिखाई देते हैं जैसे कमज़ोरी, वज़न घटना, बार-बार बुख़ार आना, ज़बान पर सफ़ेद परत, थकावट, चक्कर आना, लंबे समय तक अतिसार होना, ग्रंथियों का सूजना, सूखी खांसी, सांस उखड़ना, हाथों और पैरों का सुन्न पड़ना आदि.

शंख की ध्वनि तीन बार ही क्यों की जाती है
हिंदू संस्कृति में पूजा और अनुष्ठान के समय शंख बजाने की परंपरा है जो बहुत पुरानी है. शंख ध्वनि किसी का ध्यान आकर्षित करने या कोई संकेत देने के लिए की जाती है. दूसरी बात ये कि क्योंकि शंख पानी से निकलता है और पानी को जीवन से जोड़ा जाता है इसलिए इसे जीवन का प्रतीक भी माना जाता है. तीसरा ये कि किसी राजदरबार में राजा के आगमन की सूचना शंख बजाकर दी जाती थी और सबसे प्रचलित शंख ध्वनि युद्ध के प्रारंभ और अंत की सूचना के लिए की जाती थी. महाभारत युद्ध में शंख ध्वनि की विशद चर्चा है. कई योद्धाओं के शंखों के नाम भी गिनाए गए हैं जिसमें कृष्ण के पांचजन्य शंख की विशेष महत्ता बताई गई है. जहां तक तीन बार शंख बजाने की परंपरा है वह आदि, मध्य और अंत से जुड़ी है.

भारत में सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला मुग़ल बादशाह कौन थासबसे लंबे समय तक शासन करने वाले दो मुग़ल बादशाह थे अकबर और औरंगज़ेब. अकबर ने सन 1556 से 1605 तक राज किया और औरंगज़ेब ने 1658 से 1707 तक. यानी दोनों ने ही 49 सालों तक सत्ता संभाली.

Monday, November 26, 2007

थरपाकर में हिन्दू बहुसंख्या में


भारतीय उपमहाद्वीप के 1947 में विभाजन के बाद जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया तब जिस तरह से बहुत सारे मुसलमानों ने भारत में ही रहना पसन्द किया, उसी तरह से बहूत सारे हिन्दू भी ऐसे थे जिन्हें पाकिस्तान छोड़ना गवारा नहीं हुआ.

कुछ भारत जाना चाहते भी थे तो ग़रीबी की वजह से नहीं जा सके.

बँटवारे के पचास साल बाद भी पाकिस्तान में ज़्यादातर हिन्दुओं की सामाजिक और आर्थिक हालत अब भी चिंताजनक है.

रुचि राम सिन्ध प्रान्त में हिन्दुओं के एक प्रमुख नेता हैं और मानवाधिकारों के लिए भी काम करते हैं. रुचि राम कहते हैं कि सरकार हिन्दुओं की संख्या कम दिखाने के लिए आँकड़ो में फेरबदल करती है.

“थरपाकर में हिन्दू बहुसंख्या में हैं लेकिन सरकार ने मुसलमानों का बहुमत दिखाने के लिए हिन्दुओं और मुसलमानों की संख्या क्रमशः 49 और 51 प्रतिशत कर दी है.”

अवसर नहीं

ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं कि पिछले पचास साल में उन्हें देश की राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के मौके ही नहीं मिले हैं और उनके हालात में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है.
नौकरियों में भी भेदभाव होता है और प्रतिष्ठित पदों पर हिन्दुओं को नौकरियाँ नहीं मिलती हैं
रूचि राम
थरपाकर के एक डॉक्टर अशोक कहते हैं कि कुछ तो सरकारी व्यवस्था की वजह से हिन्दुओं को मौक़े नहीं मिले और कुछ हिन्दुओं ने स्वयं भी पहल नहीं की है.
रुचि राम कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच पैदा होने वाले तनाव का असर भी हिन्दुओं पर पड़े बगैर नहीं रहता है.

रुचि राम याद करते हुए बताते हैं कि भारत में जब 1992 में बाबरी मसजिद को ध्वस्त किया गया था तब पाकिस्तान में हिन्दुओं के ख़िलाफ़ दंगे शुरु हो गए थे और अनेक मन्दिर भी गिरा दिए गए थे लेकिन सरकार ने फिर उन मन्दिरों को बनवा दिया था.

वहीं ऐसे भी उदाहरण मिले जहाँ अनेक मुसलमानों ने पवित्र क़ुरआन का वास्ता देकर मुसलमानों की उग्र भीड़ से अपने हिन्दू पड़ोसियों की जान बचाई.

रुचि राम कहते हैं कि आमतौर पर मुसलमानों की परम्परागत दरियादिली को मानना पड़ेगा और इसकी एक ताज़ातरीन मिसाल ये रही कि भारत के गुजरात राज्य में हाल के महीनों में इतना कुछ हुआ लेकिन पाकिस्तान में हालात सामान्य बने रहे.

इस सामाजिक सद्भाव के बावजूद पाकिस्तानी हिन्दुओं को ये कसक ज़रूर है कि वे बेहद ग़रीबी और सरकारी भेदभाव के माहौल में जीवन गुज़ारते हैं.

लेकिन क्या सामाजिक तौर पर भी उन्हें असुरक्षा के माहौल में जीना पड़ता है. डॉक्टर अशोक कहते हैं कि ऐसी बात नहीं है और हिन्दुओं को मुसलमानों से आमतौर पर कोई ख़तरा या दहशत नहीं होती है.
लेकिन कभी-कभार कट्टरपंथी तबका इस सामाजिक और सांप्रदायिक ताने-बाने को बिगाड़ने की कोशिश ज़रूर करता है.

अनेक हिन्दू कार्यकर्ता कहते हैं कि सरकार में अपनी पहुँच रखने वाले हिन्दू नेता भी अपने समुदाय के ग़रीब लोगों के कल्याण के लिए कुछ नहीं करते.

हक़ीक़त

पाकिस्तान के संविधान में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सरकार को हिफ़ाज़त करनी पड़ेगी और उन्हें नौकरियाँ देनी होंगी लेकिन हक़ीक़त इससे बहुत भिन्न है.

रुचि राम कहते हैं कि हिन्दुओं के बच्चों को स्कूलों में हिन्दू धर्म की शिक्षा नहीं मिलती और उन्हें ज़्यादा नम्बर लेने के लिए इस्लाम की शिक्षा हासिल करनी पड़ती है.

“नौकरियों में भी भेदभाव होता है और प्रतिष्ठित पदों पर हिन्दुओं को नौकरियाँ नहीं मिलती हैं.”

बहरहाल ये शिकायतें तो पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं को सरकार और सामाजिक व्यवस्था से हैं लेकिन इसके बावजूद वे पाकिस्तान को ही अपनी सरज़मीं मानते हैं और तमाम शिकायतों के बावजूद उन्हें वहीं रहना मंज़ूर है.

Sunday, November 25, 2007

मलेशियाई हिन्दू सड़कों पर

मलेशियाई हिन्दू सड़कों पर
कुआलालंपुर
मलेशिया में मुस्लिमों की तरह समान अधिकारों की माँग को लेकर राजधानी कुआलालंपुर में रविवार को 10 हजार से ज्यादा हिन्दुओं ने सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन किया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए उन पर लाठीचार्ज किया, आँसू गैस के गोले छोड़े तथा पानी की तेज बौछार की।

मलेशियाई हिन्दुओं ने भेदभाव के खिलाफ आयोजित इस रैली की तैयारी कई दिन पहले ही कर ली थी, लेकिन सरकार ने हिन्दुओं को यह रैली नहीं करने की चेतावनी दे रखी थी। बावजूद इसके मलेशियाई हिन्दू आज सड़कों पर उतरे और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। इस रैली को आयोजन कई हिन्दू संगठनों ने मिलकर किया था।

हिन्दुओं के संगठन हिन्दू राइट्स एक्शन फोर्स (हिन्ड्राफ) ने आरोप लगाया कि सरकार हिन्दुओं के साथ भेदभाव कर रही है। हिन्दुओं को जानबूझकर नौकरियों में नहीं रखा जाता है जबकि हिन्दुओं के लिए विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना हमेशा से मुश्किल रहा है।

प्रदर्शनकारियों के हाथों में मलेशियाई झंडे तथा तख्तियाँ थीं जिन पर लिखा था- हमने भी इस देश की आजादी की लड़ाई लड़ी थी फिर हमारे हक की अनदेखी क्यों? इलाके में दर्जनों पुलिस के ट्रक और सैकड़ों की संख्या में दंगा निरोधक पुलिस बल तैनात था। पुलिस का एक हेलिकॉप्टर आसमान से उन पर पैनी नजर रखे हुए चक्कर लगा रहा था।

प्रदर्शनकारियों ने कहा- हम अपना हक लेने यहाँ आये हैं। ब्रिटिश शासक 150 वर्ष पहले हमारे पूर्वजों को यहाँ लाए थे। सरकार को जो कुछ भी हमें देना चाहिए और हमारी देखभाल करनी चाहिए, उसमें वह असफल रही है।

मलेशिया की आबादी का सात प्रतिशत हिस्सा भारतीय मूल के लोगों का है। उनकी शिकायत है कि देश में रोजगार एवं व्यापार के अवसरों में स्थानीय मलय सुदाय के दबदबे वाला राजनीतिक नेतृत्व उनके साथ भेदभाव करता है। सरकारी कार्रवाई से गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने नारे भी लगाए। मलेशिया में कोई लोकतंत्र नहीं है, कोई मानवाधिकार नहीं है।