Monday, March 23, 2009

कोई भी रोक नहीं पाया फांसी.


नई दिल्ली। इतिहासकारों के बीच आज भी इस बात को लेकर विवाद है कि क्या भगत सिंह को बचाया जा सकता था? क्या उन्हें गांधी ने मार डाला? क्या वाकई बापू और अन्य बड़े नेता भगत सिंह के इंकलाबी तेवर और लोकप्रियता से डर गए थे? दरअसल शहीदे आजम की मौत अपने पीछे एक ऐसा सवाल छोड़ गई है जिसे सुलझाया नहीं जा सका है। और शायद जिसे कभी सुलझाया जा भी नहीं सकेगा। लाहौर षड्यंत्र केस में 23 मार्च 1931 को जब 23 वर्षीय भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को सूली पर लटकाया गया तो इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनी गई। ब्रिटिश हुकूमत के इस कुकृत्य की जहां तत्कालीन भारतीय नेताओं ने जमकर आलोचना की, वहीं देश-विदेश के तमाम अखबारों ने भी इसे सुर्खियां बनाया। फांसी 24 मार्च को दी जानी थी। लेकिन जनविद्रोह के डर से ब्रिटिश हुक्मरानों ने तिथि चुपके से बदलकर 23 मार्च कर दी। बिपिन चंद्र द्वारा लिखी गई भगत सिंह की जीवनी 'मैं नास्तिक क्यों हूं' में इस घटना पर तत्कालीन नेताओं और अखबारों द्वारा व्यक्त की गई तीखी टिप्पणियां सिलसिलेवार ढंग से दर्ज हैं।यह काफी दुखद और आश्चर्यजनक घटना है कि भगत सिंह और उसके साथियों को समय से एक दिन पूर्व ही फांसी दे दी गई। 24 मार्च को कलकत्ता से कराची जाते हुए रास्ते में हमें यह दुखद समाचार मिला। भगत सिंह युवाओं में नई जागरूकता का प्रतीक बन गया है।' [सुभाष चंद्र बोस] -'मैंने भगत सिंह को कई बार लाहौर में एक विद्यार्थी के रूप में देखा। मैं उसकी विशेषताओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकता। उसकी देशभक्ति और भारत के लिए उसका अगाध प्रेम अतुलनीय है। लेकिन इस युवक ने अपने असाधारण साहस का दुरुपयोग किया। मैं भगत और उसके साथी देशभक्तों को पूरा सम्मान देता हूं। साथ ही देश के युवाओं को आगाह करता हूं कि वे उसके मार्ग पर न चलें।' [महात्मा गांधी] -'हम सबके लाड़ले भगत सिंह को नहीं बचा सके। उसका साहस और बलिदान भारत के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।' [जवाहर लाल नेहरू] -'अंग्रेजी कानून के अनुसार भगत सिंह को सांडर्स हत्याकांड में दोषी नहीं ठहराया जा सकता था। फिर भी उसे फांसी दे दी गई।' [वल्लभ भाई पटेल] -'भगत सिंह ऐसे किसी अपराध का आरोपी नहीं था जिसके लिए उसे फांसी दे दी जाती। हम इस घटना की कड़ी निंदा करते हैं।' [प्रसिद्ध वकील और केंद्रीय विधानसभा सदस्य डीबी रंगाचेरियार] -'भगत सिंह एक किंवदंती बन गया है। देश के सबसे अच्छे फूल के चले जाने से हर कोई दुखी है। हालांकि भगत सिंह नहीं रहा लेकिन 'क्रांति अमर रहे' और 'भगत सिंह अमर रहे' जैसे नारे अब भी हर कहीं सुनाई देते हैं।' [अंग्रेजी अखबार द पीपुल] -'पूरे देश के दिल में हमेशा भगत सिंह की मौत का दर्द रहेगा।' [उर्दू अखबार रियासत] -'राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की मौत से पूरे देश पर दुख का काला साया छा गया है।' [आनंद बाजार पत्रिका] -'जिस व्यक्ति ने वायसराय को इन नौजवानों को फांसी पर लटकाने की सलाह दी, वह देश का गद्दार और शैतान था।'