Thursday, October 9, 2008

'लिव-इन' को विवाह जैसी मान्यता!


महाराष्ट्र सरकार चाहती है कि क़ानूनों को इस तरह से बदल दिया जाए जिससे बिना विवाह किए पर्याप्त समय से साथ रह रही महिला को पत्नी जैसी मान्यता मिल सके.
महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को यह प्रस्ताव भेजा है कि भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) में इस तरह से संशोधन किया जाए जिससे 'पर्याप्त समय' से चल रहे 'लिव-इन' को विवाह जैसी मान्यता मिल सके.
हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने इस 'पर्याप्त समय' को परिभाषित नहीं किया है.
लेकिन यदि क़ानून में यह संशोधन हो जाता है तो 'लिव-इन' में रह रही महिला को विवाह टूटने की स्थिति में मिलने वाली सारे अधिकार हासिल हो जाएंगे जिसमें गुज़ारा भत्ता और बच्चों की परवरिश शामिल है.
'लिव-इन' ऐसा रिश्ता है जिसमें वयस्क लड़का और लड़की आपसी सहमति से बिना विवाह किए एक साथ रहते हैं और पति-पत्नी जैसा व्यवहार करते हैं.
महानगरों में कामकाजी लोगों के बीच ऐसे संबंधों का प्रचलन लगातार बढ़ रहा है.
समस्याएँ
'लिव-इन' संबंध जब टूटते हैं तो अक्सर महिला साथी को परेशानी का सामना करना पड़ता है.
एक तो यह कि इन संबंधों को कोई क़ानूनी मान्यता नहीं है इसलिए वो अपने पुरुष साथी से किसी तरह के हर्ज़ाने की माँग नहीं कर सकती.
न तो उसे गुज़ारा भत्ता मिलता है और न अपने पुरुष साथी की संपत्ति में हिस्सेदारी करने का अधिकार ही मिलता है.
महाराष्ट्र सरकार चाहती है कि आपराधिक दंड संहिता की धारा 125 में संशोधन करके 'लिव-इन' में रह रही महिलाओं को पत्नी की तरह के अधिकार दे दिए जाएँ.
यदि केंद्र सरकार इस संशोधन को स्वीकृति देती है तो महाराष्ट्र सरकार क़ानून में ऐसा संशोधन कर सकेगी.
इसी साल सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फ़ैसले में कहा था कि 'लिव-इन' से पैदा हुए बच्चों को अवैध नहीं कहा जा सकेगा.
महाराष्ट्र सरकार के इस प्रस्ताव पर मिलीजुली सी प्रतिक्रिया हुई है. महिला संगठनों ने जहाँ इसका स्वागत किया है वहीं कुछ संगठनों ने कहा है कि इससे समाजिक संस्कृति को नुक़सान पहुँचेगा.