Saturday, January 31, 2009

गांधी का अस्थिवाहक ट्रक फिर चलेगा

 महात्मा गांधी की अस्थियाँ जिस फ़ोर्ड ट्रक पर ले जाई गई थीं उसे इस वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर एक समारोह में प्रदर्शित किया जाएगा.ये पुराना ट्रक 1948 के बाद से ही बंद पड़ा है और इलाहाबाद के एक संग्रहालय में बुरी अवस्था में रखा हुआ था.फ़िलहाल इस ट्रक की मरम्मत का काम चल रहा है और इस काम में लगे इंजीनियरों को ये देखकर हैरत हुई कि ट्रक का इंजन बिल्कुल दुरूस्त हैअधिकारी ये कोशिश कर रहे हैं कि इस ट्रक को 30 जनवरी को फिर से सड़क पर चलने लायक बनाया जा सके.इसके बाद 12 फ़रवरी को महात्मा गांधी के अस्थिकलश की यात्रा की ही तरह ट्रक के साथ एक और यात्रा निकाली जाएगी.
ऐतिहासिक यात्रा
58 साल पहले महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब उनकी शवयात्रा निकली थी तो इसमें लाखों लोग शामिल हुए थे.महात्मा गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद में संगम में प्रवाहित किया गया था.जब अस्थिकलश ट्रक पर ले जाया जा रहा था तो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस ट्रक पर अस्थिकलश के साथ थे.नेहरू के साथ महात्मा गांधी के बेटे देवदास और भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल भी फ़ोर्ड ट्रक पर सवार हुए थे.12 फ़रवरी 1948 को महात्मा गांधी की अस्थियाँ इलाहाबाद में संगम में प्रवाहित की गई थीं और तब लाखों लोगों ने इस ट्रक के मार्ग में आकर गांधी को श्रद्धांजलि दी थी.
संग्रहालय

1947 में निर्मित इस फ़ोर्ड ट्रक को पहले सेना ने सज्जित कर फ़ायर ब्रिगेड पुलिस को सौंप दिया था.बाद में जब इलाहाबाद में एक संग्रहालय बना तो इस ऐतिहासिक ट्रक को वहाँ राष्ट्रीय संपत्ति बनाकर रख दिया गया.ट्रक पर पिछले साल अगस्त में नज़र पड़ी उत्तर प्रदेश के राज्य परिवहन निगम के निदेशक उमेश सिन्हा की.उमेश सिन्हा ने बीबीसी को बताया,"महात्मा गंधी की अंतिम यात्रा से जुड़ी ये गाड़ी हमारी धरोहर का अमूल्य हिस्सा है. यही सोचकर हमारे विभाग ने इसके जीर्णोद्धार की ज़िम्मेदारी ली".

मरम्मत

परिवहन अधिकारी इस ट्रक को मरम्मत के लिए अपने वर्कशॉप में ले जाना चाहते थे लेकिन संग्रहालय के नियम इसकी अनुमति नहीं देते थे.इस कारण मरम्मत का काम संग्रहालय के ही गैरेज में करना पड़ा.उत्तर प्रदेश पथ परिवहन निगम के क्षेत्रीय निदेशक पी आर बेलवारायर ने कहा,"इंजीनियर ये देखकर हैरान रह गए कि इतने दशकों तक पड़े रहने के बावजूद ट्रक का इंजन बिल्कुल ठीक था, बस उसे थोड़ा साफ़ करना पड़ा और वह बिल्कुल नए ट्रक के जैसा चलने लगा".सबसे अधिक मुश्किल आई ट्रक के लिए नए टायरों का प्रबंध करने में लेकिन टायर निर्माता कंपनी सिएट ने नए टायर उपलब्ध कराए जिसे लगा दिया गया है.अधिकारियों के अनुसार फ़िलहाल संग्रहालय में इस ट्रक को परीक्षण के तौर पर चलाया जा सकता है.

 

कराची की मोहन गली में गांधी जी


“इस तस्वीर को हमने इसलिए नहीं हटाया ताकि उन (भारतीयों) को एहसास हो जाए कि हम भी उन (गांधी) का सम्मान करते हैं. उनसे प्यार करते हैं और दोस्ती करना चाहते हैं.”यह शब्द 27 वर्षीय शहज़ाद बलोच के हैं जो कराची के उर्दू बाज़ार में स्थित अज़ीज़ मंज़िल नाम की एक इमारत में काम करते हैं जहाँ बालकनियों पर माहत्मा गांधी तस्वीर उकेरी गई है.यह एक तीन-मंज़िला सुंदर इमारत है जो उर्दू बाज़ार की मोहन गली में स्थित है. स्थानीय लोगों के अनुसार मोहन गली भी मोहनदास करमचंद गांधी के नाम पर ही है.शहज़ाद बलोच ने बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा, “हम लोग इन तस्वीरों का अब भी सम्मान करते हैं और हर किसी को कहते हैं कि देखो हमारे पास अब भी गांधी साहब की तस्वीर मौजूद है.”शहज़ाद बलोच जैसे कई ऐसे युवक भी हैं जो यह नहीं जानते कि ये चित्र किसके हैं. किसी ने कहा कि इंदिरा गांधी के हैं और किसी ने उसे से राजीव गांधी का बताया.इसी इमारत में एक दुकानदार रफ़ीक़ ने गांधी जी के चित्रों पर आपत्ति जताई है. उनका कहना है, “जिन लोगों ने मकान लिया था शायद उनको पता नहीं था कि यहाँ कोई तस्वीर लगी हुई है, वर्ना और कोई भी होगा तो इसे नहीं रखेगा.”उन्होंने बताया कि घरों या इमारतों पर कोई तस्वीर लगाना इस्लाम के अनुरूप ठीक नहीं है.अज़ीज़ मंज़िल के एक निवासी ने तो अपने घर की बालकनी पर लगे गांधी के चित्र के ऊपर सीमेंट और चूना लगा दिया है जिस से वह चित्र मिट चुका है.

लेकिन मोहम्मद अनवर, जिनका इस इमारत में भी दुकान है, वे इस इमारत को अच्छी तरह जानते हैं. उन्होंने बताया कि इस इमारत का निर्माण 1933 में हुआ था और इस का मालिक विभाजन के बाद भारत चला गया था.उन्होंने कहा, “इस इमारत पर गांधी साहब के चित्र आम लोगों और पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं.”अनवर ने बताया कि पहले विदेशी पर्यटक यहाँ आते थे, गांधी साहब के चित्र को देख कर ख़ुश होते थे और तस्वीरें खींचते थे. उनके अनुसार अब स्कूल वाले बच्चों को यह चित्र दिखाने आते हैं.कराची शहर में माहत्मा गांधी के नाम पर ओर भी कई स्थान थे और विभाजन के बाद उनके नाम बदल दिए गए थे.चिड़ियाघर जो पहले ‘गांधी गार्डन’ के नाम से जाना जाता था, विभाजन के बाद उसका नाम बदल दिया गया और यह बना कराची गार्डन. इस तरह शहर से केंद्र में स्थित गांधी स्ट्रीट का नाम बदल कर याक़ूब स्ट्रीट रखा गया है.कराची के अतीत में झांकने पर पता चलता है कि इस शहर का महात्मा गांधी के साथ गहरा संबंध था.