Friday, April 18, 2008

ख़ूँख़ार लकड़बग्घों का हमनिवाला !

क्या इंसान और लकड़बग्घों का साथ मुमकिन है?आप कहेंगे कि नामुमकिन तो शायद कुछ भी नहीं है. बात भी ठीक है क्योंकि इथियोपिया के एक युवक ने लकड़बग्घों से न सिर्फ़ दोस्ती गाँठ ली है बल्कि वह रोज़ाना शाम को उन्हें अपने हाथ से माँस भी खिलाता है.
शाम ढलते ही दावत शुरु होती हैहरार शहर में रहने वाले 26 साल के मुलुगेता वोल्ड मरियम के घर के आसपास अँधेरा घिरते ही देश विदेश के पर्यटकों और स्थानीय लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो जाती है.मुलुगेता अपने गले से अजीब सी आवाज़ें निकालता है और कुछ ही मिनटों में अँधेरों में कुछ जोड़ी ख़ौफ़नाक आँखें चमकने लगती हैं.धीरे-धीरे कार की हेडलाइटों के धूमिल उजाले में कुछ जानवरों के आकार नज़र आते हैं.मुलुगेता आवाज़ें निकालना जारी रखता है और आनन फानन में शहर के आस पास के जंगलों में रहने वाले कुछ डरावने लकड़बग्घे वहाँ इकट्ठा हो जाते हैं. उनके तीखे दाँत और चमकदार आँखें देखकर आस पास छुपे लोगों की साँस हलक़ में ही अटक कर रह जाती है और वे एक दूसरे को कस कर पकड़ लेते हैं.मुलुगता ने इन लकड़बग्घों को प्यार के नाम दे रखे हैं और जब वह उन्हें उनके नाम से बुलाता है तो उनमें से हर एक इसे पहचानता है.मुलुगता कहते हैं:"मैंने इन सबके नाम रखे हुए हैं और इन्हें इसका अच्छी तरह पता है."प्यार की इंतहालकड़बग्घों के वहाँ इकट्ठा होने पर मुलुगता अपने पास रखे प्लास्टिक के थैले से माँस के टुकड़े निकाल कर उनके सामने बढ़ाता है.अचानक अँधेरे से कुछ और लकड़बग्घे सामने आते हैं और बिलकुल पालतू जानवरों की तरह अपने मालिक का कहना मानते हुए माँस झपटते हैं.और फिर शुरु होता है मुलुगता का असली तमाशा यानी प्यार और विश्वास की इंतहा.वह अपने दाँतों में माँस का एक बड़ा सा टुकड़ा दबा लेते हैं और फिर उनके मुँह से माँस झपटने में लकड़बग्घों में होड़ शुरू हो जाती है.बड़े बड़े तीखे दाँत निकाले लकड़बग्घे अपने दोस्त के दाँतों में दबा माँस झपटते हैं और कुछ क़दम पीछे हटकर उसे चाव से खाते हैं.हिम्मतवरमुलुगेता बहुत हिम्मतवर युवक है और उनका दावा है कि इन ख़ूँख़ार माँसभक्षियों को मुँह से माँस खिलाने में कोई ख़तरा नहीं है.
लकड़बग्घों का साथ आसान नहींउन्होंने बताया: "मैं पिछले 11 साल से यह काम कर रहा हूँ. मुझे लकड़बग्घों से दोस्ती करना मेरे एक दोस्त ने सिखाया जो उम्र में मुझसे बड़े और अनुभवी हैं." उनका कहना है कि "अगर आप डरते नहीं हैं तो कोई ख़तरा नहीं होता क्योंकि लकड़बग्घों को डर का पता लग जाता है."पुरानी परंपराअफ़्रीक़ा में लकड़बग्घों को भोजन करवाने की परंपरा 19 वीं शताब्दी के दौरान पड़े भीषण अकाल के वक़्त शुरू हुई थी.लोक परंपरा में माना जाता है कि लकड़बग्घों को अच्छे वक़्त में खाना खिलाया जाना चाहिए ताकि अकाल और दूसरी मुसीबतों के दौरान वे आदमियों की बस्तियों पर हमला न करें.आजकल, हरार में लकड़बग्घों को भोजन खिलाकर पर्यटकों और स्थानीय जिज्ञासुओं को आकर्षित किया जाता है.मुलुगेता का कहना है,"इससे बहुत कमाई तो नहीं होती लेकिन आप जीवित रह सकते हैं और मुझे जंगली जानवरों के साथ रहना पसंद है." लेकिन हरार में बहुत लोग नहीं बचे हैं जो लकड़बग्घों से दोस्ती रख सकते हों. मुलुगेता के अलावा उनके कुछ दोस्त ही यह करिश्मा कर सकते हैं.मुलुगेता को डर है कि कहीं इंसान और जानवर का यह अद्भुत संबंध भविष्य में ख़त्म न हो जाए इसलिए आजकल वे नए लड़कों को लकड़बग्घों से मित्रता का हुनर सिखा रहे हैं.

भारतीय भेड़िया सबसे पुराना जानवर?


डीएनए टेस्ट से पता चला है कि भारत में पाया जाने वाला भेड़िया दुनिया का सबसे पुराना जानवर हो सकता है.
लुप्त होने के कगार पर पहुँच चुके इस भेड़िए के जीन के विश्लेषण से पता चला है कि इसकी नस्ल आठ लाख साल पुरानी है.
हिमालय पर पाए जाने वाले ये भेड़िए अन्य सलेटी रंग के भेड़ियों की नस्ल 'केनिस लुपस' में शामिल किए जाते हैं.
लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि ये भेड़िए जीन के आधार पर इतने अलग हैं कि इनकी नस्ल को अलग नाम दिया जाना चाहिए.
देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश के एक भेड़िए के डीएनए पर शोध किया है.
अमरीका और यूरोप के भेड़ियों की नस्ल केवल डेढ़ लाख साल पुरानी है जबकि भारतीय भेड़िया आठ लाख साल पुराना है

वन्यजीव विभाग प्रमुखकोशिका के डीएनए पर शोध करते हुए वैज्ञानिक ये पता लगा पाए कि भेड़िए की नस्ल कब शुरु हुई थी.
हिमाचल प्रदेश के वन्यजीव विभाग के प्रमुख एके गुलाटी कहते हैं, "इस शोध से पहले माना जाता था कि भारतीय प्रायद्वीप के मैदान में पाई जाने वाली भेड़िए की नस्ल दुनिया में सबसे पुरानी है. ये चार लाख साल पुरानी है. अमरीका और यूरोप के भेड़ियों की नस्ल केवल डेढ़ लाख साल पुरानी है."
शोधकर्ताओं ने पूरे भारत और दुनिया में अलग-अलग जगह पाए जाने वाले भेड़ियों और कुत्तों के 700 डीएनए नमूनों पर शोध किया.
जूली नाम के भेड़िए के डीएनए की जाँच से यह परिणाम सामने आया, उसे 14 साल पहले भारत-तिब्बत सीमा पर स्पिति घाटी में पकड़ा गया था.
हिमालय में शिकार और जंगलों के काटे जाने के कारण इन भेड़ियों का संख्या बहुत घटी है और एक अनुमान के अनुसार पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में केवल 350 भेड़िए ही बचे हैं.

वैज्ञानिकों ने दुनिया का 'सबसे बूढ़ा पेड़' खोजा

स्वीडन में क़रीब दस हज़ार साल पुराना देवदार का एक पेड़ मिला है जिसके बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह दुनिया का सबसे बुजुर्ग पेड़ है.
कार्बन डेटिंग पद्धति से गणना के बाद वैज्ञानिकों ने इसे धरती का सबसे पुराना पेड़ कहा है.
यूमेआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को दलारना प्रांत की फुलु पहाड़ियों में यह पेड़ वर्ष 2004 में मिला था.
उस समय वैज्ञानिक पेड़-पौधों की प्रजातियों की गिनती में लगे हुए थे.
फ़्लोरिडा के मियामी की एक प्रयोगशाला में कुछ दिनों पहले ही कार्बन डेटिंग पद्धति की मदद से इस पेड़ के आनुवांशिक तत्वों का अध्ययन किया गया है.
वैज्ञानिक इससे पहले तक उत्तरी अमरीका में मिले चार हज़ार साल पुराने देवदार के ही एक पेड़ को दुनिया का सबसे पुराना पेड़ मानते थे.
गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स के मुताबिक़ अभी तक का सबसे पुराना पेड़ कैलीफ़ोर्निया की सफ़ेद पहाड़ियों में है जिसकी उम्र 4,768 साल आँकी गई है.
क्लोनिंग...
माना जा रहा है कि वर्ल्ड रिकार्ड अपने नाम करने का दावेदार यह पेड़ हिमयुग के तुरंत बाद का है.
फुलु की पहाड़ियों में 910 मीटर की ऊँचाई पर यह पेड़ जहाँ पर मिला है, उसके आसपास में कोणीय पत्तियों वाले लगभग 20 और पेड़ के समूह पाए गए हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है बाक़ी पेड़ भी आठ हज़ार साल से ज़्यादा पुराने हैं.
यूमेआ यूनिवर्सिटी का कहना है कि इन पेड़ों का बाहरी हिस्सा तो अपेक्षाकृत नया है लेकिन पत्तियों और शाखाओं की चार पीढ़ियों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि इनकी जड़ें 9,550 साल पुरानी हैं.
यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर लेफ़ कुलमैन कहते है कि इनके तने का जीवन लगभग छह सौ साल का होता है लेकिन एक की मौत के बाद जड़ से दूसरा 'क्लोन' तना निकल सकता है.
कुलमैन कहते हैं कि हर साल बर्फ़बारी के बाद जब कुछ तने नीचे झुक जाते हैं तो वे जड़ पकड़ लेते हैं.
वैज्ञानिक इस खोज से ख़ासे चकित हैं क्योंकि अभी तक कोणीय पत्तों वाले पौधों की इन नस्लों को अपेक्षाकृत नया माना जाता था.
कुलमैन कहते हैं, "परिणाणों ने बिल्कुल उल्टे नतीजे दिए हैं. कोणीय पत्तों वाले पेड़ पहाड़ियों में सबसे पुराने ज्ञात पौधों में एक हैं."
उन्होंने कहा कि इन पौधों के मिलने से अनुमान है कि उस समय यह इलाक़ा आज की तुलना में ज़्यादा गर्म रहा होगा.