Thursday, December 18, 2008

सोनल शाह के समर्थन में उतरा भारतीय समुदाय


वॉशिंगटन। अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा के सत्ता हस्तान्तरण दल की सदस्य बनाई गईं सोनल शाह के समर्थन में अमरीका का भारतीय समुदाय सामने आ रहा है। सोनल शाह के विश्व हिन्दू परिषद से सम्बन्ध होने को लेकर पैदा हुए विवाद को देखते हुए भारत-अमरीका राजनीतिक कार्रवाई समिति (यूएसआईएनपीएसी) ने ओबामा को भेजे एक पत्र में कहा है कि सोनल शाह पर मुस्लिमों और ईसाइयों के खिलाफ हिंसा में शामिल संगठन का समर्थक होने का झूठा आरोप लगाया जा रहा है।

यूएसआईएनपीएसी के अध्यक्ष संजय पुरी ने कहा कि भारतीय मूल के अमरीकी समुदाय के विभिन्न धार्मिक समूहों का बहुमत सोनल की नियुक्ति का समर्थन करता है। उल्लेखनीय है कि गूगल की पूर्व कर्मचारी सोनल को ओबामा ने अपने प्रशासन की तकनीकी नीति बनाने के लिए गठित तीन सदस्यों के दल में शामिल किया है। सोनल स्वयं विश्व हिन्दू परिषद की अमरीकी शाखा से अपने सम्बन्ध होने के आरोपों से इनकार कर चुकी हैं।

Tuesday, December 2, 2008

वोट तब, घूंघट हटे जब



जयपुर। चुनाव आयोग के सख्त निर्देशों के चलते विधानसभा चुनाव में इस बार महिलाओं को घूंघट हटाकर मतदान करना होगा। पारंपरिक रीति-रिवाजों और लोक-लाज के कारण राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में महिलाएं लंबे घूंघट में मतदान करती आई हैं।
भारतीय चुनाव आयोग के सख्त निर्देशानुसार वोट डालने से पहले महिलाओं को अपना घूंघट हटाकर मतदान केंद्र में ड्यूटी पर तैनात महिलाकर्मियों को अपने फोटो परिचय पत्र से चेहरे का मिलान करवाना होगा। इससे फर्जी मतदान पर अंकुश लग सकेगा। ग्रामीण परम्परा व लोक-लाज के कारण किसी अजनबी पुरूष के सामने महिलाओं के चेहरा दिखाने को लेकर आने वाली समस्याओं के संबंध में प्रशासन का कहना है कि मतदान केंद्रों पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ महिलाकर्मियों की तैनातगी के प्रयास किए जाएंगे।

Last Updated [ 12/2/2008 12:45:36 AM]

Saturday, November 29, 2008

ग्रेनेड कैमरा हो रहा तैयार

Marwar News!
युद्धभूमि में ब्रितानी सैनिकों की मदद के लिए अब अब आई-बॉल की मदद ली जाएगी.

आई-बॉल एक वायरलेस गेंद की तरह है जिसे लड़ाई के मैदान में हथगोले की तरह फेंका जा सकता है या फिर ग्रेनेड लॉन्चर से भी. इसी वजह से कैमरा ग्रेनेड भी कहा जा रहा है! इसे इतना मज़बूत बनाया गया है कि यह काफ़ी तेज़ झटके सह सकता है, इसके भीतर लगे कैमरे 360 डिग्री यानी चारों तरफ़ की तस्वीरें तत्काल भेज सकते हैं1 लड़ाई के मैदान में दुश्मन के किसी मोर्चे पर कितने सैनिक और कैसे हथियार हैं या मोर्चे की संरचना क्या है, ऐसी जानकारियाँ हासिल करने में इस कैमरा ग्रेनेड से काफ़ी मदद मिल सकती है1 सैनिकों को ख़तरे में डाले बिना दुश्मन के बारे में काफ़ी प्रामाणिक जानकारी मिल सकेगी1 ग्रेनेड कैमरा रियल टाइम में अपने चारों तरफ़ की तस्वीर तुरंत भेज सकता है, विशेष तौर पर तैयार किए गए वायरलेस डेटा प्रोसेसर की मदद से सैनिक ग्रेनेड कैमरा की तस्वीरें बिना किसी समस्या के देख सकते हैं.ब्रितानी रक्षा मंत्रालय की ओर से आयोजित एक प्रतियोगिता के तहत यह आइडिया आया था जिसे मंत्रालय ने आगे बढ़ाया है.स्कॉटलैंड स्थित एक कंपनी ड्रीमपैक्ट इसे बना रही है, कंपनी के प्रमुख पॉल थॉमसन का कहना है कि अभी कैमरा ग्रेनेड अपनी शुरूआती अवस्था में है लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद है कि रणभूमि में कारगर सिद्ध होगा.उन्होंने कहा, "हमने कई शुरूआती वैज्ञानिकों चुनौतियों का हल निकाल लिया है, हमें पूरी उम्मीद है कि सैनकों को इससे लड़ाई के मैदान में मदद मिलेगी."रक्षा मंत्रालय के निदेशक एंड्रयू बेयर्ड ने भी इस नई वैज्ञानिक उपलब्धि की सराहना की है.

उन्होंने कहा, "आई-बॉल की टेक्नॉलॉजी बहुत ही बेहतरीन है और उसमें इतना दम है कि भविष्य के रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है."आई-बॉल को सैनिकों के हाथ में आने में भी कई साल लग सकते हैं और इसकी लागत के बारे में नहीं बताया गया है.

 

Saturday, November 22, 2008

मलेशिया में योग के ख़िलाफ़ फ़तवा


DingalNews! मलेशिया में इस्लामिक धर्माधिकारियों ने एक फ़तवा जारी करके लोगों को योग करने से रोक दिया गया है क्योंकि उनको डर है कि इससे मुसलमान 'भ्रष्ट' हो सकते हैं. धर्माधिकारियों का कहना है कि योग की जड़ें हिंदू धर्म में होने के कारण वे ऐसा मानते हैं. यह फ़तवा मलेशिया की दो तिहाई लोगों पर लागू होगा जो इस्लाम को मानते हैं और उनकी कुल आबादी कोई दो करोड़ 70 लाख है.
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार मलेशिया को आमतौर पर बहुजातीय समाज माना जाता है जहाँ आबादी का 25 प्रतिशत चीनी हैं और आठ प्रतिशत हिंदू हैं। समाचार एजेंसी एपी के अनुसार इस आदेश को मलेशिया में बढ़ती रूढ़िवादिता की तरह देखा जा रहा है। खेल की तरह ज़्यादातर लोगों के लिए योग एक तरह का खेल है जिससे आप अपने तनाव को कम कर सकते हैं और दिन की शुरुआत कर सकते हैं।
लेकिन इस प्राचीन व्यायाम योग की जड़ें हिंदू धर्म में हैं और मलेशिया की नेशनल फ़तवा काउंसिल ने कहा है कि मुसलमानों को योग नहीं करना चाहिए। काउंसिल के प्रमुख अब्दुल शूकर हुसिन का कहना है कि प्रार्थना गाना और पूजा जैसी चीज़ें 'मुसलमानों के विश्वास' को डिगा सकती हैं। हालांकि लोगों के लिए योग न करने के इस आदेश को मानने की बाध्यता नहीं है और काउंसिल के पास इसे लागू करवाने के अधिकार भी नहीं हैं लेकिन बड़ी संख्या में मुसलमान फ़तवे को मानते हैं। इस निर्णय से पहले मलेशिया की योग सोसायटी ने कहा था कि योग केवल एक खेल है और यह किसी भी धर्म के आड़े नहीं आता है.
योग की शिक्षिका सुलैहा मेरिकन ख़ुद मुसलमान हैं और वे इस बात से इनकार करती हैं कि योग में हिंदू धर्म के तत्व हैं। समाचार एजेंसी एपी से उन्होंने कहा, "हम प्रार्थना नहीं करते और ध्यान भी नहीं करते." उनके पिता और दादा भी योग के शिक्षक रह चुके हैं. उनका कहना था, "योग एक महान स्वास्थ्य विज्ञान है. इसे वैज्ञानिक रुप से साबित भी किया जा चुका है और इसे कई देशों ने इसे वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति की तरह स्वीकार भी किया है."
बीबीसी के कुआलालंपुर संवाददाता रॉबिन ब्रांट का कहना है कि हालांकि योग की कक्षाओं में ज़्यादातर चीनी और हिंदू ही नज़र आते हैं लेकिन बड़े शहरों में मुसलमान महिलाओं का योग की कक्षाओं में दिखाई देना आम बात है.

Wednesday, November 12, 2008

ब्रिटेन में शुक्राणु दाताओं की भारी कमी


ब्रिटेन में शुक्राणुदाताओं की भारी कमी के मद्देनज़र प्रजनन विशेषज्ञनों ने सुझाव दिया है कि एक ही शुक्राणुदाता के शुक्राणुओं से कराया जाने वाले गर्भधारणों की सीमा बढ़ाई जाए.

ब्रिटिश फ़र्टिलिटी सोसाइटी (बीएफ़एस) के डाक्टर मार्क हैमिल्टन और एलन पैसी ने कहा है कि ब्रिटेन शुक्राणुओं की भारी कमी से जुझ रहा है.

इन विशेषज्ञों ने एक ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में लिखा है कि मौजूदा क़ानून में बहुत बड़े पैमाने पर बदलाव की आवश्यकता है.

इन विशेषज्ञों का कहना है कि शुक्राणुदाता की कमी की वजह शुक्राणुदाताओं का नाम गुप्त रखने का प्रावधान ख़त्म किया जाना है, यह फ़ैसला सरकार ने तीन साल पहले किया था.

कमी

ब्रिटेन में स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता ने इस आरोप से इनकार दिया है, पर इस बात पर सहमति जताई कि शुक्राणुदाताओं की घटती संख्या से निबटने के लिए ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है.

नाम बताने की शर्त्त वाले क़ानून की मदद से बच्चे 18 वर्ष की उम्र में अपने जैविक पिता की तलाश कर सकते हैं इसीलिए यह व्यवस्था की गई है.

कुल मिलाकर ब्रिटेन में पिछले 15 वर्षों में शुक्राणुदाताओं की संख्या में 40 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कई प्रजनन क्लीनिकों में शुक्राणुओं के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता है तो कई क्लीनिक इस सुविधा को बंद करने पर मजबूर हुए हैं.

अनुरोध

इस समय हर वर्ष ब्रितानिया में लगभग 4000 रोगी शुक्राणुओं के लिए अनुरोध करते हैं.

 ब्रिटेन की आबादी इतनी है कि जोखिम की बात नहीं है पर शुक्राणुदाताओं की संख्या बढ़ाने के लिए की कारगर उपाय की ज़रूरत है
 
मार्क हैमिल्टन

ब्रितानी क़ानून के मुताबिक़ एक शुक्राणुदाता के शुक्राणुओं से अधिकतम दस गर्भाधारण कराए जा सकते हैं.

सभी शुक्राणुदाता इस बात के लिए तैयार नहीं होते कि उनके शुक्राणु से 10 गर्भाधारण कराएं जाएं, ऐसे में मांग के मुताबिक़ हर साल कम से कम 500 नए शुक्राणुदाताओं की ज़रूरत है.

लेकिन इसके वर्ष 2006 में सिर्फ़ 307 नए शुक्राणुदाताओं ने ही अपना नाम दर्ज कराया.

नीदरलैंड की आबादी भी ब्रिटेन के लगभग बराबर है और वहाँ गर्भधारण की अधिकतम सीमा 25 है. जबकि फ्रांस में ये सीमा पाँच है.

Friday, November 7, 2008

पाकिस्तान में साइबर अपराध के लिए 'मौत'

 पाकिस्तान के नए क़ानून के तहत अब इंटरनेट अपराध के लिए भारी भरकम ज़ुर्माना, आजीवन कारावास और मौत तक की सज़ा हो सकती है.

राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने एक अध्यादेश जारी कर इंटरनेट अपराध के लिए नए प्रावधान किए हैं.

पाकिस्तान की सरकारी समाचार एजेंसी एपीपी के अनुसार यह क़ानून 29 सितंबर से लागू माना जाएगा.

इस क़ानून के तहत ऐसे किसी भी साइबर अपराध को 'साइबर आतंकवाद' का नाम दिया गया है जो किसी की मौत का कारण बनती है.

और इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को आजीवन कारावास या मौत की सज़ा दी जा सकती है.

पाकिस्तान में एक करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं.

क़ानून के मुताबिक़ किसी व्यक्ति, व्यक्ति समूहों या किसी संस्था को 'साइबर आतंकवाद' के लिए दोषी माना जाएगा अगर उसने (या उन्होंने) ऐसे किसी कंप्यूटर या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग किया है जिससे 'आतंकी गतिविधि' को अंज़ाम दिया गया है.

इस क़ानून में 'आतंकी गतिविधि' को भी परिभाषित किया गया है और इसके अनुसार किसी हिंसा के लिए चेतावनी देना, धमकाना, बाधा पैदा करना, नुक़सान पहुँचाना आदि को इसके दायरे में रखा जाएगा.

'साइबर आतंकवाद' के इस क़ानून के अनुसार किसी गोपनीय जानकारी को कॉपी करना और रासायनिक, जैविक या परमाणु हथियार बनाने की विधि को इंटरनेट के ज़रिए इंटरनेट से डाउनलोड करने को भी इसी दायरे में रखा जाएगा.

इसके अनुसार सिर्फ़ अपराध करना ही नहीं, अपराध के उद्देश्य से किए गए कार्य भी 'साइबर आतंकवाद' की श्रेणी में रखा जाएगा.

इस क़ानून के तहत इंटरनेट के ज़रिए की गई ठगी और स्पैम के लिए भी अलग-अलग सज़ाओं का प्रावधान किया गया है.

दिसंबर 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने भी इसी तरह का एक अध्यादेश जारी किया था और तब क़ानून विशेषज्ञों ने इसे 'अस्पष्ट क़ानून' कहा था और इसकी वजह से इसे मूलभूत अधिकारों के ख़िलाफ़ क़रार दिया गया था.

Thursday, November 6, 2008

गुजराती गुलाब से महक उठा जापानी बाजार


जापान का बाजार इन दिनों गुजराती फूल से गुलजार है। राज्य में उत्पादित कुल गुलाब के 70 फीसदी हिस्से का निर्यात जापान में हो रहा है।
पिछले साल कुल 35 लाख गुलाब जापान भेजे गए थे। राज्य के बागवानी विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सूरत में पैदा किए जाने वाले कुल गुलाब का 70 फीसदी जापान के बाजार में भेजा जाएगा। गौरतलब है कि यहां 100 एकड़ जमीन में गुलाब की खेती प्रस्तावित है।
बागवानी विभाग के उपनिदेशक जेड. एम. पटेल ने कहा - इस साल फूलों के निर्यात में और बढ़ोतरी की उम्मीद है क्योंकि साल 2007 में सरकार ने ग्रीन हाउस फॉर्मिंग की बाबत 18 एमओयू पर दस्तखत किए गए थे और इस वजह से लंबी अवधि के कारोबार में इजाफा होगा।
उन्होंने कहा कि सूरत से होने वाले फूलों का निर्यात जोर पकड़ रहा है क्योंकि यहां फूलों की खेती का रकबा भी बढ़ रहा है। विभाग के एक अधिकारी पी. एम. वघासिया ने कहा कि पिछले 5 साल में यहां खेती का रकबा 40.5 हेक्टेयर से करीब 100 हेक्टेयर पर पहुंच गया है।
जिन किसानों ने दो हेक्टेयर जमीन पर गुलाब की खेती की शुरुआत की थी, वे अब 10 हेक्टेयर जमीन पर गुलाब की खेती कर रहे हैं। पटेल ने कहा कि ये किसान अब गुलाब की विभिन्न वेरायटी का निर्यात जापान को करने लगे हैं। कुछ ऐसे भी किसान हैं जो अभी-अभी फूलों की खेती की तरफ मुड़े हैं।
सूरत के एक किसान धर्मेश पटेल ने बताया कि इसके अलावा इटली, हॉलैंड और जर्मनी जैसे देशों को भी सूरत के किसान गुलाब भेज रहे हैं। उन्होंने कहा कि 60 से ज्यादा किसान फूलों की विभिन्न किस्म मसलन गुलाब, गेंदा आदि की खेती कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि ये किसान खेती के आधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। बागवानी विभाग के अधिकारी वघासिया ने बताया कि हॉटिकल्चर मिशन 2005 की शुरुआत के बाद राज्य में फूलों की खेती का कुल रकबा 10 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है।

सीनेटर ओबामा ने हिंदी, अन्य भारतीय भाषाओं के पर्चे बांटकर भारतीय वोट जुटाने का प्रयास किया था

Dingal News! अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनने वाले सीनेटर बराक ओबामा ने अपने प्रचार अभियान के दौरान स्वयं को अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए शक्तिशाली प्रवक्ता और पक्षपात के खिलाफ आवाज उठाने वाले योद्धा की तरह पेश किया था और भारतीय-अमेरिकियों को हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं में पर्चे बांट कर लुभाने की कोशिश की थी ।
ओबामा प्रचार अधिकारियों ने उनके पांच-सूत्री घोषणापत्र के हिंदी और मलयालम संस्करण निकाले थे, जिन्हें 50 राज्यों में सामुदायिक संगठनों के जरिये भारतीय-अमेरिकियों में बांटा गया था ।
इस पर्चे में कहा गया था कि उनके प्रशासन की एक उच्च प्राथमिकता स्वास्थ्य सेवाओं को वहन करने योग्य बनाना होगा और यह कहा गया था कि देश में 24 लाख एशियाई-अमेरिकी चिकित्सा बीमे के तहत नहीं आते, जो अमेरिका में बहुत महंगा है ।

एक पृष्ठ के घोषणापत्र में कहा गया था कि श्री ओबामा की योजना के अनुसार, एक आम अमेरिकी परिवार कम-से-कम 2,500 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष बचा सकेगा ।

इसमें कहा गया था 47-वर्षीय डेमोक्रेट सीनेटर ने अपने करिअर की शुरुआत शिकागो में एक सामुदायिक संयोजक के रूप में की थी और सभी प्रकार के भेदभाव को मिटाने के लिए काफी समय तक काम किया था । श्री ओबामा ने अपना राजनीतिक करिअर इलिनॉय राज्य की सीनेट के सदस्य के तौर पर शुरू किया था और उन्होंने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ कानून पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।

तमिलनाडु-अस्पताल में 20 टेस्ट ट्यूब बच्चों का जन्म

Dingal News!
तमिलनाडु के इरोड शहर में 30 अक्तूबर को एक दिन में 20 परखनली शिशुओं का जन्म हुआ, जिनमें 16 जुड़वां हैं । यहां के सुधा टेस्ट ट्यूब सेंटर में 12 महिलाओं ने इन बच्चों को जन्म दिया । इस दिन एक महत्वपूर्ण तमिल त्योहार कंडा षष्ठी था । इस सेंटर की निदेशक धनभाग्यम कंडासामी ने भारतीय समाचार एजेंसी, पीटीआई को बताया कि ये महिलाएं गर्भावस्था के अंतिम चरण में थीं और इसी दिन बच्चों को जन्म देना चाहती थीं, क्योंकि तमिल कैलेंडर के अनुसार, यह शुभ दिन था । इन बच्चों का जन्म सिजेरियन ऑपरेशन से हुआ । 30 अक्तूबर से शुरू होने वाला कंडा षष्ठी त्योहार 6 दिन तक मनाया जाता है और यह भगवान सुब्रह्मण्यम की राक्षस सुरापद्मन पर जीत का प्रतीक है । डॉ. कंडासामी ने बताया कि सभी माँएं और बच्चे स्वस्थ हैं तथा बच्चों का वजन 2.2 किग्रा से 3.5 किग्रा के बीच है ।

Wednesday, October 22, 2008

वैज्ञानिकों ने बनाया सबसे ज्यादा सुकून वाला कमरा


Dingal Times!
कमरे में लगे बल्ब सिर्फ रोशनी देने का काम ही नहीं करेंगे। इनके उजाले से कंप्यूटर और फोन ही नहीं, कारों
को भी इंटरनेट से जोड़ा जा सकेगा। सुनकर भले ही अजीब लगे, मगर यह जल्द ही हकीकत में बदलने वाला है। अब तक रिमोट कंट्रोल से टीवी या डीवीडी प्लेयर को ऑपरेट किया जाता रहा है। मगर अब खास वायरलेस सिस्टम से तकरीबन हर जगह पर इंटरनेट कनेक्शन किया जा सकेगा। अमेरिका की बॉस्टन यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर इंजीनियर थॉमस लिटिल कहते हैं कि लाइटिंग वाली हर जगह पर इंटरनेट कनेक्शन से कम्यूनिकेशन को काफी आसान बनाया जा सकेगा।

जैसे ही आप बल्ब का स्विच ऑन करेंगे, जहां-जहां लाइट होगी, वहां रखे कंप्यूटर या फोन में इंटरनेट नेटवर्क सक्रिय हो जाएगा। हालांकि, यह साधारण बल्ब नहीं होंगे। इसके लिए एलईडी (लाइट एमिटिंग डायोड) बल्बों का इस्तेमाल किया जाएगा। यह बल्ब बिजली की कम खपत करेंगे और बहुत लंबे समय तक चलेंगे।

लाइट से कम्यूनिकेशन

रोशनी के जरिए संचार कोई नई बात नहीं है। रोमन एक-दूसरे से संपर्क करने के लिए आग का इस्तेमाल करते थे। समुद्र में बने लाइट हाउस जहाजों को आने-जाने का रास्ता तलाशने में काफी समय से मदद करते रहे हैं। फिलहाल वायरलेस कम्यूनिकेशन रेडियो तरंगों के जरिए अपना रास्ता तय करता है। लेकिन अब रोशनी के जरिए कम्यूनिकेशन की संभावना तलाशी जा रही है। हाल ही में नासा और अमेरिकी आर्मी ने हाई स्पीड लेजर के जरिए कम्यूनिकेशन पर रिसर्च शुरू की है। लिटिल कहते हैं कि अलग-अलग तरह की वायरलेस डिवाइस के लिए अलग-अलग फ्रीक्वेंसी पर रेडियो तरंगें छोड़ी जाती हैं।

इनकी संख्या काफी ज्यादा होने के कारण इनका एक जाल सा बन जाता है, जिसमें एक फ्रीक्वेंसी का दूसरी फ्रीक्वेंसी की तरंगों में मिलने की आशंका पैदा हो जाती है। नेटवर्क भी बहुत तेज नहीं रह पाता। इसके उलट, लाइट से नेटवर्किन्ग तरंगों की इस भीड़ से अलग होगी। यह सीधी खास यूजर और डिवाइस तक नेटवर्क पहुंचाएगी। यह तरीका ज्यादा सेफ भी होगा।

ग्रीन वायरलेस नेटवर्क

लिटिल और उनके साथी रिसर्चरों ने एलईडी बल्बों के जरिए वायरलेस रूट पर प्रयोग शुरू कर दिया है। योजना के अगले चरण में दुनिया में एलईडी बल्बों का प्रसार बढ़ाया जाना है। इन बल्बों में ऊर्जा की खपत काफी कम होती है। एलईडी कंप्यूटर स्क्रीन से लेकर ट्रैफिक लाइटों तक बहुत सी जगह दिखाई देते हैं। हालांकि, एलईडी बल्बों का घरों में इस्तेमाल शुरू होने में थोड़ा वक्त लग सकता है क्योंकि यह काफी महंगा है। फिलहाल एक बल्ब की कीमत 30 डॉलर (करीब 1300 रुपये) है। हालांकि, यह आम बल्बों की तुलना में 50 गुना ज्यादा समय तक चलता है।

स्मार्ट हाउस, स्मार्ट कार

यह प्रयोग अमेरिका के शहरों में सस्ता वायरलेस नेटवर्क देने तक ही सीमित नहीं है। लिटिल लगभग हर चीज को स्मार्ट तरीके से वायरलेस सिस्टम से जोड़ने का मकसद लेकर चल रहे हैं। इसका इस्तेमाल वीइकल्स में भी किया जा सकता है। लिटिल कहते हैं कि ऑटो इंडस्ट्री में यह बेहद कारगर होगा। अमेरिका के कई स्टेट की सरकारें लिटिल की इस योजना में आर्थिक मदद दे रही हैं। 

एजुकेशनल लोन से अरमानों की उड़ान


Dingal Times!
अगर आप हायर एजुकेशन का सपना देख रहे हैं, लेकिन उसे हकीकत में बदलने के लिए आपके पास रिसोर्सेज़ की कमी है, तो चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। आप अपने डिग्री या डिप्लोमा कोर्स के लिए बैंक से लोन ले सकते हैं। बस, इसके लिए आपको कुछ शर्त पूरी करनी होंगी।

बात चाहे विदेश में पढ़ाई की हो या देश में महंगे तकनीकी कोर्स करने की, इन पर आने वाले खर्च को वहन करना हर किसी के बस की बात नहीं होती। इस मर्ज का इलाज है, एजुकेशनल लोन। यूं तो पब्लिक सेक्टर के बैंक ही हायर एजुकेशन के लिए लोन देते हैं, लेकिन कुछ प्राइवेट बैंकों ने भी यह सुविधा स्टूडेंट्स को दी है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ऐसी स्कीम लाने जा रही है, जिससे हायर स्टडीज पूरी करने तक स्टूडेंट्स को लोन पर ब्याज भी नहीं देना पड़ेगा।

एचआरडी मिनिस्ट्री ने इसके लिए चार करोड़ रुपये का बजट रखा है। 2012 में खत्म होने वाली 11वीं पंचवर्षीय योजना के तहत ही यह राशि दे दी जाएगी।

भारत में पढ़ाई

आप कोई भी सिक्युरिटी या मार्जिन मनी दिए बिना बैंक से चार लाख रुपये तक का एजुकेशनल लोन ले सकते हैं। इसके अलावा, आपको थर्ड पार्टी की गारंटी पर चार से सात लाख तक का लोन मिल सकता है। इसमें पांच फीसदी की मार्जिन मनी वसूली जाती है। थर्ड पार्टी की गारंटी आपके किसी रिश्तेदार, पड़ोसी या दोस्त को देनी पड़ती है।

विदेश का सपना

विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट, एनएससी सर्टिफिकेट या प्रॉपर्टी के अगेंस्ट सात लाख या उससे ज्यादा का कर्ज ले सकते हैं। इसमें 15 पर्सेन्ट का मार्जिन अमाउंट भी होगा यानी आपका जितना लोन मंजूर हुआ है, बैंक उससे 15 फीसदी कम राशि आपको देगा। केंद्र सरकार इस तरह के लोन पर दो प्रतिशत की सब्सिडी बैंकों को देती है।

लोन लेने के लिए जरूरी दस्तावेज

- आपके लास्ट एग्जामिनेशन की मार्कशीट।

- कोर्स में ऐडमिशन का प्रूफ।

- कोर्स के लिए खर्च का ब्यौरा।

- अगर आपको स्कॉलरशिप मिली है, तो उसका कंफर्मेशन लेटर देना जरूरी है।

- अगर फॉरेन एक्सचेंज परमिट जरूरी है, तो उसकी कॉपी होनी चाहिए।

- दो पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ।

- लोन लेने वाले स्टूडेंट या उसकेपैरंट्स के छह महीने का बैंक अकांउट स्टेटमेंट।

- इनकम टैक्स असेसमेंट ऑर्डर।

- कर्ज लेने वाले की कुल प्रॉपर्टी और उसकी जिम्मेदारियों का ब्रीफ स्टेटमेंट।

सरकार की योजना

केंद्र सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और इंडियन बैंक्स असोसिएशन (आईबीए) से सलाह-मशविरा करके कॉम्प्रिहेंसिव एजुकेशनल लोन स्कीम तैयार की है। इस स्कीम में सभी तरह के कोर्सेज़ को कवर किया गया है, जिनमें प्रफेशनल कोर्स भी शामिल हैं।

इसके तहत, भारत में शिक्षा लेने के लिए साढ़े सात लाख और विदेश में पढ़ने के लिए 15 लाख रुपये तक का लोन दिया जाता है। इस लोन का भुगतान पांच से सात साल की अवधि में करना जरूरी है। पढ़ाई खत्म होने के बाद कर्ज चुकाने के लिए एक साल का ग्रेस पीरियड मिलता है। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यूजीसी) ने कॉलेज और यूनिवर्सिटीज को मेधावी और जरूरतमंद छात्रों को आसान शर्त पर फाइनैंशल हेल्प देने के लिए भी प्रोत्साहित किया है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एजुकेशनल लोन संबंधी गाइड लाइंस कमर्शल बैंकों को जारी की हुई हैं।

ब्याज की दरें

आमतौर पर सभी नैशनलाइज्ड बैंक और प्राइवेट बैंक 11-15 प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण देते हैं। इलाहाबाद बैंक करीब 11.75-12.5 प्रतिशत दर पर लोन देता है। कोर्स पूरा होने के एक साल बाद या जॉब मिलने के छह महीने के भीतर (जो भी जल्दी हो) कर्ज लौटाना होता है। यह लोन स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल, एग्जामिनेशन और लाइब्रेरी फीस देने और किताबें, साइंटिफिक इक्विप्मेंट खरीदने और स्टडी टूर, प्रोजेक्ट वर्क और थीसिस के लिए दिया जाता है।

इसी तरह, आंध्रा बैंक 13.75 प्रतिशत, बैंक ऑफ बड़ौदा 14 फीसदी और बैंक ऑफ इंडिया 11.25-12.25 पर्सेन्ट की दर से स्टूडेंट्स को लोन देता है। बैंक ऑफ महाराष्ट्र से स्टूडेंट्स 12.75 फीसदी की दर पर लोन ले सकते हैं।

प्राइवेट एजुकेशन लोन

प्राइवेट एजुकेशन लोन को अल्टरनेटिव लोन भी कहा जाता है। आजकल देश और विदेश में हायर एजुकेशन काफी महंगी हो गई है। इस तरह के लोन बैंक से लिए गए लोन और एजुकेशन की एक्चुअल कॉस्ट के अंतर को कम करते हैं। इस तरह के लोन आप प्राइवेट लेंडर्स से ले सकते हैं। कुछ लोग प्राइवेट एजुकेशनल लोन के लिए इसलिए अप्लाई करते हैं, क्योंकि उन्हें बैंक से अपनी जरूरत का पूरा अमाउंट नहीं मिल पाता या वे री-पेमेंट की शर्त को आसान बनाना चाहते हैं। हालांकि इस तरह का कर्ज सरकारी लोन की तुलना में महंगा पड़ता है, लेकिन क्रेडिट कार्ड की उधारी से कहीं अधिक सस्ता है।  

Saturday, October 18, 2008

दिमाग़ के लिए अच्छा' है इंटरनेट

Dingal News!
कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के एक शोध से संकेत मिले हैं कि इंटरनेट के इस्तेमाल से अधेड़ उम्र के लोगों और बुज़ुर्गों की दिमाग़ी ताकत बढ़ाने में मदद मिल सकती है.

शोधकर्ताओं के एक दल ने पाया कि इंटरनेट पर वेब सर्च करने से निर्णय लेने की प्रक्रिया और जटिल तर्कों को नियंत्रित करने वाले दिमाग़ के हिस्से सक्रिय हो जाते हैं.

शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे आयु संबंधी उन मनोवैज्ञानिक बदलावों के मामलों में भी मदद मिल सकती है जिससे दिमाग़ की कार्य करने की गति धीमी हो जाती है.

यह अध्ययन 'अमेरिकन जर्नल ऑफ़ गेरियाट्रिक साइकेट्री' में प्रकाशित हुआ है.

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, दिमाग़ में कई बदलाव आने लगते हैं.

इन बदलावों में कोशिकाओं का संकुचन और उनकी सक्रियता में कमीं आना भी शामिल है जो किसी व्यक्ति की कार्य कुशलता को प्रभावित कर सकते हैं.

वेब सर्फ़िंग

लंबे समय से इस पर माना जा रहा है कि वर्ग पहेली (क्रॉसवर्ड पज़ल) जैसी दिमाग़ी क़सरतों से दिमाग़ सक्रिय बना रहता है. इससे बढ़ती उम्र के कारण दिमाग़ पर पड़ने वाले असर को कम करने में मदद मिल सकती है.

नवीनतम अध्ययन से संकेत मिला है कि इस सूची में वेब सर्फिंग को भी शामिल किया जा सकता है.

मुख्य शोधकर्ता प्रोफेसर गैरी स्मॉल का कहना है, "अध्ययन के नतीज़े उत्साहवर्धक हैं. उभरती कम्प्यूटर तकनीकों का मनोवैज्ञानिक असर हो सकता हैं. इससे वयस्कों, अधेड़ लोगों और बुज़ुर्गों को लाभ मिल सकता है."

 रोज़ाना वेब सर्च जैसा एक साधारण कार्य बुज़ुर्गों के दिमाग़ को दुरूस्त रखता है.
 
गैरी स्माल, प्रोफ़ेसर, कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय

उनका कहना है, "इंटरनेट पर सर्च करने के लिए दिमाग़ को जटिलता से इस काम में जुटना पड़ता है. यह दिमाग़ी करसत में मदद कर सकता है और इससे दिमाग़ की कार्य कुशलता में सुधार होता है."

नवीनतम अध्ययन 55 से 76 आयुवर्ग के 24 लोगों पर किए शोध पर आधारित है. इनमें से आधे लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे जबकि बाक़ी लोगों इससे दूर थे.

क़िताब पढ़ने और इंटरनेट पर सर्च करने के दौरान इन लोगों का ब्रेन स्कैन किया गया.

दोनों ही कार्यों से दिमाग़ के उस हिस्से में उल्लेखनीय गतिविधियाँ दर्ज की गईं जो भाषा, अध्ययन, स्मृति और दृश्य क्षमताओं को नियंत्रित करती हैं.

वेब सर्च करने के दौरान दिमाग़ के अलग-अलग हिस्सों में अतिरिक्त उल्लेखनीय गतिविधियाँ देखी गईं जो निर्णय लेने की प्रक्रिया और जटिल तार्किकता को नियंत्रित करती हैं. वेब सर्च नहीं करने वालों के दिमाग़ में ऐसी कोई हलचल नहीं पाई गई.

आदिलाबाद की बहादुर तुलजाबाई

Dingal News!
आंध्र प्रदेश का आदिलाबाद ज़िला पिछले दिनों मानवता के एक विकृत चेहरे का गवाह बना जब वहाँ दंगे भड़के, लेकिन इसी के बीच कुछ ऐसा भी हुआ जिससे ये लगता है कि तमाम विकृतियों के बावजूद मानवता जीवित है.
इस महीने दुर्गा विसर्जन जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़की और धर्म के नाम पर हमलों का सिलसिला शुरू हो गया. ऐसे में ही दंगाइयों ने एक मुस्लिम घर पर हमला किया और तब अपने पड़ोसियों की मदद के लिए एक हिंदू महिला दंगाईयों के सामने दीवार बनकर खड़ी हो गई.
घटना भैंसा शहर की है जहाँ के संवेदनशील पंजेशाह इलाक़े में उन्मादी असामाजिक तत्वों ने दूकानों और मकानों में आग लगा रहे थे. तुलजा बाई अपने घर की खिड़की से हिंसा का ये मंज़र देख रही थीं.
उन्मादी भीड़ ने तुलजा बाई के घर के सामने रहने वाले सैयद उस्मान के घर को निशाना बनाया और घर को आग के हवाले करने की कोशिश की.
लेकिन तुलजा बाई से यह देखा नहीं गया और वह दंगाईयों से जा भिड़ीं.
तुलजई बाई का साहस
उस हादसे के बारे में तुलजा बाई ने बताया, ''धुँआ निकलता देख मैं,मेरा बेटा और परिवार के अन्य सदस्य बाहर की ओर दौड़े. मैने देखा कि एक युवक उस घर से दौड़कर बाहर निकला. तब मुझे लगा कि परिवार घर के भीतर आग में फँसा हो सकता है.''तुलजा बाई ने बताया, ''मैं अपने परिवार के साथ घर के बाहर जमा भीड़ को पीछे धकेलने लगी. हम परिवार को बचाने के कोशिश कर रहे थे और भीड़ हम पर चिल्ला रही थी. मैंने उन्हें चुप रहने के लिए कहा और उन्हें बताया कि ये लोग हमारे पड़ोसी, हमारे भाई हैं.''
कुछ देर बाद तुलजा बाई और उसका परिवार, साफ़िया बेगम और उसके तीन बच्चों को घर से किसी तरह बाहर निकालने में सफल हो गए. तुलजा बाई, साफ़िया बेगम और उसके बच्चों को अपने घर ले आई.
तुलजा बाई ने बताया, ''अपने घर में उनकी सुरक्षा पुख़्ता करने के बाद हम घर की आग बुझाने के लिए पानी लेकर दौड़े. किस्मत से हमारे पास पर्याप्त पानी था और हमने ख़ुद आग पर क़ाबू पा लिया."
उन्मादी असामाजिक तत्वों ने तुलजा बाई के परिवार को आग बुझाने से रोका और बाल्टियाँ छीनने कोशिश की.
आगजनी और लूटपाट
हमारी सारी संपत्ति लुट गई लेकिन हम अपने हिंदू पड़ोसियों का बहुत-बहुत शुक्रिया अदा करते हैं जिनके कारण मेरे परिवार के सदस्य आज जीवित हैं

सैयद मोहम्मद पाशा
इस घटना में सैयद परिवार के घर के भीतर रखे पतंगों के हज़ारों बंडल जलकर राख हो गए जो उनकी जीविका का सहारा था. फ़र्नीचर भी जल गया और रंगीन टेलीविज़न को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया.
मगर सबसे बड़ा नुक़सान ये हुआ कि भीड़ ने उस्मान के बड़े भाई सैयद मोहम्मद पाशा की बेटियों की शादी लिए जुटाए कीमती गहनों और रूपयों को लूट लिया.
हैदराबाद के एक दैनिक में बतौर संवाददाता काम करने वाले पाशा ने बताया, '' हमारी सारी संपत्ति लुट गई लेकिन हम अपने हिंदू पड़ोसियों का बहुत-बहुत शुक्रिया अदा करते हैं जिनके कारण मेरे परिवार के सदस्य आज जीवित हैं.''
तुलजा बाई और पाशा के पुरख़े पिछले 200 वर्षों से भैंसा के पंजेशाह इलाक़े में रहते आए हैं.
तुलजा बाई के बेटे ठाकुर रमेश सिंह ने कहा, '' हमेशा बाहरी लोग समस्या खड़ी करते हैं और स्थानीय लोगों को भोगना पड़ता है. ''
फ़िलहाल चाहे हिंदू हों या मुसलमान, हर वर्ग के लोग तुलजा बाई की वीरता और मानवता की सराहना कर रहे हैं.
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने तुलजा बाई को सांप्रदायिक वैमनस्यता फैलाने वाले लोगों के ख़िलाफ़ आशा की एक किरण बताया.
जाने-माने लोकगीत गायक और आंदोलनकारी ग़द्दार ने तुलजा बाई के घर पर जाकर उनकी बहादुरी की प्रशंसा की और उनके पैर छूकर उन्हें सम्मान दिया.

इज्ज़त बचाने के लिए सिर क़लम

Dingal News!
उत्तर प्रदेश में एक महिला ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए एक दबंग किस्म के कामुक युवक का सिर क़लम कर अपने को पुलिस के हवाले कर दिया.
मगर पुलिस ने इस महिला को पीड़ित मानते हुए उसे सम्मानपूर्वक घर भेज दिया क्योंकि पुलिस के अनुसार उसने आत्म रक्षा में पलटवार किया था.
घटना नेपाल सीमा से सटे लखीमपुर ज़िले के इसानगर थाने की है.
ग्राम हसनपुर कटौली के मजरा मक्कापुरवा में दलित राजकुमार और मनचले किस्म के जुलाहे अन्नू के घर अगल-बगल हैं.
अन्नू राजकुमार की पत्नी फूलकुमारी को अक्सर छेड़ता था. मगर कमजोर वर्ग का राजकुमार उसके विरोध का साहस नहीं कर पाता.
गुरुवार को फूलकुमारी जानवरों के लिए चारा लाने गयी थी. वह एक गन्ने के खेत में पत्ते तोड़ रही थी. तभी अन्नू वहाँ पहुँच गया और उसके साथ ज़बर्दस्ती करने लगा.
इज्ज़त बचाने के लिए हमला
बीबीसी से फोन पर बातचीत में फूलकुमारी ने कहा कि वह चारा काटने गई थी और उसने अपनी इज्ज़त और जान बचाने के लिए हमलावर पर वार किया था.
महिला का कहना था, ''हमने मार दिया. हम गए थे गन्ने की पत्ती लेने. तभी वह ज़बर्दस्ती लिपट गया. हमने किसी तरह उसका बांका छीन लिया और उसी से उसकी गर्दन उड़ा दी.''
स्थानीय अख़बारों ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से लिखा कि फूलकुमारी खून से लथपथ अन्नू का कटा हुआ सिर लिए हसनपुर कटौली पहुँची और वहाँ अपने को पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस वाले उसे थाने ले गए और उसने पूरा मामला बयान किया.
बीबीसी से बातचीत में फूलकुमारी ने इस बात से इनकार किया कि वह अन्नू का कटा हुआ सिर लेकर बाज़ार में गई. पुलिस का कहना है कि उसने अन्नू का कटा सिर धान के एक खेत से बरामद किया.
पुलिस ने फूलकुमारी की चिकित्सा जांच कराई और चौबीस घंटों की तहकीकात के बाद उसके घर वालों के हवाले कर दिया.
ज़िले के पुलिस कप्तान राम भरोसे ने बीबीसी से बातचीत में कहा, वह तो पीड़ित है और उसने अपने बचाव में ऐसा किया. उसने कोई ज़ुर्म नहीं किया.
पुलिस ने फूलकुमारी की रपट के आधार पर मृत युवक के ख़िलाफ़ बलात्कार, हत्या के प्रयास और उत्पीड़न का मामला दर्ज कर लिया.
पुलिस का कहना है कि मृत युवक के परिवार वालों ने अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं कराया है.
एक स्थानीय पत्रकार का कहना है कि मृत युवक का चाल चलन अच्छा नहीं था.

Wednesday, October 15, 2008

हाथ मिलाने से ही रोग का पता

Dingal Times!
ज़रा कल्पना कीजिए कि आप अपने डॉक्टर के पास जाते हैं, उससे हाथ मिलाते हैं और बस आपकी बीमारी के बारे में सारी जानकारी उसे मिल जाती है.
इतना ही नहीं डॉक्टर के शरीर से यह जानकारी अपने आप ही कंप्यूटर में दाख़िल हो जाती है.
यानी अभी आप कुर्सी पर बैठे भी नहीं हैं कि आपके शरीर का अंदरूनी हाल डॉक्टर के पास पहुँच जाता है.
शरीर में तरह-तरह के संवेदनशील सूचक यानी चिप लगाए जा सकते हैं जिनमें आपकी नब्ज़ की रफ़्तार, पसीने में पाए जाने वाले तत्व और चिकित्सा संबंधी अन्य जानकारी मौजूद होगी.
इन चिपों के ज़रिए यह संभव हो सकता है कि आप अपने डॉक्टर से सिर्फ़ हाथ मिलाएँ और आपकी तबियत क्यों ख़राब है, इसकी जानकारी डॉक्टर को मिल जाए. आपको डॉक्टर को कुछ भी बताने की ज़रूरत न पड़े.
अब शायद ये बातें सच हो सकती हैं.
कंप्यूटर की अमरीकी फ़र्म माइक्रोसॉफ़्ट ने इसी क्षेत्र में पेटेंट हासिल किया है. यानी इन्सान के हाथ की उँगलियों से ले कर पैर के अँगूठे तक इन्सानी शरीर को कंप्यूटर में बदलने का पेटेंट.
अमरीकी पेटेंट संख्या 6754472 का शीर्षक है - 'मानवीय शरीर को इस्तेमाल करते हुए ऊर्जा और डाटा संचारित करने का तरीक़ा और मशीन.'
शरीर एक मशीन
इन्सानी शरीर में नसों और धमनियों का एक जाल बिछा हुआ है. इस जाल को इलेक्ट्रॉनिक सूचना के संचार के लिए आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है.
हमारे शरीर की त्वचा में बिजली की तरंग दौड़ाने की क्षमता है और यही क्षमता शरीर को कंप्यूटर की तरह इस्तेमाल करने में मददगार साबित होगी.
मिसाल के तौर पर आप का मोबाइल फ़ोन कमर की पेटी में लटका हुआ है, जिसमें घंटी बजती है जो किसी और को सुनाई नहीं देगी बल्कि आप के कानों में ठुसे हुए छोटे-छोटे स्पीकर उस घंटी की आवाज़ आपके कानों में पहुँचा देंगे.
आप एक ख़ास तरह की ऐनक पहने हुए हैं, उस टेलीफ़ोन के साथ अगर कोई तस्वीर आ रही है तो उस ऐनक पर वो तस्वीर आप को ख़ुद बा ख़ुद नज़र आ जाएगी.
ये मत समझिए कि ये सब कल्पना है. अब से छह साल पहले ब्रिटेन के रीडिंग विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर केविन वॉर्क ने अपनी बाँह में एक कंप्यूटर चिप दाख़िल कर ली थी.
वो जब किसी दरवाज़े के नज़दीक होते तो वो दरवाज़ा ख़ुद ब-ख़ुद खुल जाता और कमरे में उनके दाख़िल होते ही बत्ती जल जाती थी.
मशहूर पत्रिकार न्यू साइंटिस्ट ने अब से दो साल पहले लिखा था कि एक मरीज़ के धड़ का एक तरफ़ का हिस्सा फालिस से बेकार हो गया था और उसकी एक टाँग काम नहीं करती थी.
उसकी विकलाँग टाँग में एक छोटी सी चिप लगा दी गई जो उसकी सही टाँग से सिगनल लेकर बिल्कुल उसी तरह काम करने लगी जैसी सही टाँग काम करती है.
स्विट्ज़रलैंड के वैज्ञानिकों ने विकलांग लोगों के लिए एक ऐसा आला बना लिया था जिसकी मदद से उनकी विकलांगों वाली गाड़ी उनकी अपनी सोच का कहना मानते हुए चल सकती थी.
कंप्यूटर और तकनालॉजी की कंपनी आईबीएम ने बताया है कि आठ साल पहले उसने एक आला बनाकर उसे एक नुमाइश में पेश किया था जिसकी मदद से दो आदमी जब एक दूसरे से हाथ मिलाएँ तो अपने कार्डों की जानकारी बिजली की तरंगों के ज़रिए एक दूसरे को दे सकते हैं.
कुछ मानवाधिकार संगठनों ने इस पर ऐतराज किया है कि माइक्रोसॉफ़्ट को इसका पेटेंट क्यों दिया गया है.
उनका कहना है कि शरीर या इन्सान की त्वचा ऐसी चीज़ नहीं है जिसे कोई कंपनी अपने नाम पेटेंट करा ले.

जान बचा सकता है हाथ धोना!

DingalTimes!
हाथ धोने से डायरिया जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि संयुक्त राष्ट्र के पहले हाथ धुलाई दिवस के अवसर पर एशिया में लगभग 12 करोड़ बच्चे अपने हाथ धोएँगे.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस अभियान से वह संदेश देना चाहता है कि एक साधारण क़दम से डायरिया और हेपेटाइटिस जैसे गंभीर रोगों से बचा जा सकता है.
भारत में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर इस अभियान में हिस्सा लेंगे.
रिपोर्टों के अनुसार लगभग 35 लाख बच्चों की डायरिया और निमोनिया की वजह से मौत हो जाती है.
उल्लेखनीय है कि साबुन से हाथ धोने से इन बीमारियों से मरनेवालों की संख्या घटकर आधी तक की जा सकती है.
इस तथ्य को ध्यान में रखकर ये अभियान चलाया जा रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल से लेकर पाकिस्तान के शहर कराची और भारत की राजधानी दिल्ली से लेकर बांग्लादेश के ढाका तक ये अभियान चलाया जा रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान में टीवी और रेडियों पर इस विषय पर चर्चा होगी और नेपाल में नई सरकार एसएमएस संदेश के जरिए इस संदेश को भेजा जाएगा.
भूटान में तो इस संदेश के लिए भूटानी चरित्रों वाले विशेष एनीमेटेड वीडियो तैयार किए गए हैं.
ग़ौरतलब है कि दुनिया भर में बच्चों की जान लेने वाली डायरिया दूसरी बड़ी बीमारी है.

Tuesday, October 14, 2008

...खाने के और, दिखाने के और'


अगर आपसे कहा जाए कि सूचना का अधिकार क़ानून लागू किए जाने के तीन बरस बीत जाने तक सरकार ने इस क़ानून के प्रचार पर जितना खर्च किया, वो शायद एक नेता या नौकरशाह के कुछ महीनों के चाय-पानी के खर्च से भी कम है तो आपको अटपटा लगेगा.
पर सूचना का अधिकार क़ानून के प्रचार-प्रसार के लिए केंद्र सरकार की ओर से किए गए खर्च की यही सच्चाई है.
सूचना का अधिकार क़ानून के ज़रिए मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार के सेवीवर्गीय एवं प्रशिक्षण विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ़ पर्सोनल एंड ट्रेनिंग- डीओपीटी) ने अभी तक इस क़ानून के प्रचार-प्रसार पर तीन बरसों में कुल दो लाख रूपए खर्च किए हैं.
केंद्र में सत्तारूढ़ यूपीए सरकार सूचना का अधिकार क़ानून को अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों में शामिल बताती है. यूपीए के कार्यकाल में ही 12 अक्तूबर 2005 को यह क़ानून देशभर में लागू किया गया.
उस वक्त सरकार ने इस क़ानून के ज़रिए सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कराने की दिशा में लोगों के हाथ में एक मज़बूत अधिकार दिए जाने की बात कही थी.
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जहाँ एक-एक योजना के प्रचार पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर देती है, सूचना का अधिकार क़ानून के मामले में शायद सरकार की ऐसी कोई इच्छाशक्ति नहीं दिखाई दी.
कितना किया ख़र्च..?
अगर विभागों पर ही इस क़ानून के प्रचार के लिए निर्भरता रहेगी तो नौकरशाही का कामकाज का तरीका इसे लेकर गंभीर नहीं होगा और अधिक पैसा देने पर भी उसका सही इस्तेमाल नहीं हो सकेगा. ऐसे में सरकार को उन संगठनों को पैसा देना चाहिए जो इसके प्रचार को लेकर गंभीर हैं और इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं

वजाहत हबीबुल्लाह, मुख्य सूचना आयुक्त
पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय में इसी क़ानून के तहत आवेदन करके दिल्ली के एक युवा कार्यकर्ता अफ़रोज़ आलम ने यह जानकारी मांगी कि सरकार ने अभी तक इस क़ानून के प्रचार-प्रसार पर कितना पैसा खर्च किया.
इसके जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस आवेदन को डीओपीटी को बढ़ा दिया. विभाग की ओर से इस बारे में दिया गया जवाब चौंकानेवाला है.
विभाग के मुताबिक पिछले तीन बरसों में इस क़ानून के प्रचार के लिए कुल दो लाख रूपए खर्च किए गए हैं. यह पैसा डीएवीपी और प्रसार भारती के ज़रिए खर्च किया गया है.
यानी इस आंकड़े के मुताबिक वर्ष में लगभग 66 हज़ार रूपए या यूँ कहें कि सरकार इस क़ानून के प्रचार पर औसत तौर पर हर महीने महज़ साढ़े पाँच हज़ार रुपए ख़र्च कर रही है.
विभाग ने यह भी बताया है कि इस रक़म के अलावा क़रीब दो लाख, 80 हज़ार रुपए सरकारी विभागों, सूचना मांगनेवालों, अपील अधिकारियों, जन अधिकारियों और केंद्रीय जन सूचना अधिकारियों को निर्देश आदि जारी करने पर खर्च कर दिया गया.
यानी विभाग की ओर से सरकारी महकमे में जानकारी देने के लिए किया गया खर्च भी 100 करोड़ से ज़्यादा बड़ी आबादी के देश को सूचना का अधिकार क़ानून के बारे में बताने के लिए किए गए खर्च से ज़्यादा है.
क़ानून की उपेक्षा..?
सूचना का अधिकार अभियान से जुड़ी जानी-मानी समाजसेवी अरुणा रॉय कहती हैं, "इससे साफ़ है कि सरकार सूचना का अधिकार क़ानून को लोगों तक पहुँचाने के प्रति कितनी गंभीर है. इससे नौकरशाही का और सत्ता का इस क़ानून के प्रति रवैया उजागर होता है."
सूचना का अधिकार अभियान के एक अन्य मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त समाजसेवी अरविंद केजरीवाल भी सरकार की मंशा और नौकरशाही के रवैये पर ऐसे ही पटाक्षेप करते हैं.
इससे साफ़ है कि सरकार सूचना का अधिकार क़ानून को लोगों तक पहुँचाने के प्रति कितनी गंभीर है. इससे नौकरशाही का और सत्ता का इस क़ानून के प्रति रवैया उजागर होता है

अरुणा रॉय
सूचना का अधिकार क़ानून का सेक्शन-चार कहता है कि विभागों को कामकाज से संबंधी सूचना तत्काल जारी करनी और सार्वजनिक करनी चाहिए. यही सेक्शन यह भी कहता है कि विभागों को इस क़ानून के बारे में लोगों के बीच सभी संभव संचार-प्रचार माध्यमों का इस्तेमाल करके लोगों को इससे अवगत कराना चाहिए.
पर सरकार की ओर से इतने छोटे बजट का खर्च इस क़ानून की अवहेलना की कलई भी खोलता है.
'नौकरशाही पर निर्भर न रहें'
भारत सरकार के मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह भी यह स्वीकार करते हैं कि इस क़ानून के प्रचार के लिए जितना पैसा खर्च किया गया है वो काफी कम है.
पर वो इसके लिए अलग रास्ता सुझाते हैं. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि सरकार या विभागों का मुंह देखने के बजाय इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि किस तरह से इस क़ानून को लेकर लोगों के बीच काम कर रहे संगठनों की मदद की जाए.
उन्होंने कहा, "अगर विभागों पर ही इस क़ानून के प्रचार के लिए निर्भरता रहेगी तो नौकरशाही का कामकाज का तरीका इसे लेकर गंभीर नहीं होगा और अधिक पैसा देने पर भी उसका सही इस्तेमाल नहीं हो सकेगा. ऐसे में सरकार को उन संगठनों को पैसा देना चाहिए जो इसके प्रचार को लेकर गंभीर हैं और इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं."
पर क्या मुट्ठी भर संगठनों और संसाधनों का अभाव इस विचार को बौना साबित नहीं कर देता, इस पर वो कहते हैं कि इसके लिए बड़े दानदाताओं की ओर देखना चाहिए. विश्व बैंक जैसी संस्थाएं हज़ारों करोड़ रूपए का बजट ऐसे काम के लिए देने को तैयार हैं. इसके इस्तेमाल की दिशा तय करने की ज़रूरत है.
केंद्रीय सूचना आयुक्त के तर्क और सूचना का अधिकार अभियान से जुड़े लोगों की चिंता कई संकेत देती हैं.
राजनीतिक और नौकरशाही के हलकों में ये बात आम है कि सूचनाओं के सार्वजनिक होने से नेताओं और नौकरशाहों में चिंता है और हड़कंप है.
विश्लेषक मानते हैं कि दुनियाभर में जो इतिहास भारत सरकार ने इस क़ानून को लागू करके रचा था, उसे इसके प्रचार-प्रसार के प्रति इस रवैये को देखकर ठेस पहुँची है.
सवाल भी उठ रहे हैं कि प्रधानमंत्रियों के जन्मदिन और पुण्यतिथियों पर लाखों के विज्ञापन छपवा देने वाली सरकारें, अपनी उपलब्धियों पर मुस्कराती हुई तस्वीर छपवाने वाले मंत्रियों का आम आदमी को सूचना प्रदान करने वाले इस क़ानून के प्रति क्या रवैया है.

Sunday, October 12, 2008

मलेरिया परजीवियों का नया जीनोम तैयार


वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने विकासशील देशों में आम बीमारी मलेरिया का कारण बनने वाले दो परजीवियों का जीनोम तैयार करने में सफलता हासिल कर ली है। इस खोज के बाद दुनिया के 2.6 अरब यानी कुल आबादी के 40 फीसद लोगों को मच्छर के काटने से होने वाली बीमारी से लड़ने के लिए नई दवा और टीका विकसित करने में मदद मिलेगी। न्यूयार्क विश्वविघालय के लांगोन मेडिकल सेंटर के वैज्ञानिक जेन कार्लटन के नेतृत्व में दोनों परजीवियों का जीनोम तैयार किया गया। कार्लटन ने कहा कि मलेरिया के इलाज में यह खोज बहुत ही कारगर साबित होगी। हालांकि इन परजीवियों से जो मलेरिया होता है वह कभी-कभार ही जानलेवा होता ह,ै लेकिन इससे बार -बार तेज बुखार, सिरदद, ठंड लगना बहुत ज्यादा पसीना आना, उल्टी, अतिसार जैसी परेशानियां हो जाती हैं। * वीवैक्स नाम का परजीवी शुरूआती बीमारी के बाद मनुष्य के कलेजे में महीनों या वर्षाें सुप्तावस्था पड़ा रहता है। उसके बाद यह दोबारा हमला करता है। * वैज्ञानिकों ने जीनोम तैयार करने के बाद वह जीन खोज ली है, जो लम्बे समय तक इसके सुप्तावस्था में पड़े रहने के लिए जिम्मेदार होती है। * उस जीन की भी खोज कर ली गई है, जो व्यक्ति की लाल रक्त कोशिकाओं और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर हमला करती हैं। इस परजीवी पर अब कईं दवाइयां असर ही नहीं करती हैं। * विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2007 में मलेरिया ने दुनियाभर में कुल आठ लाख 81 हजार लोगों की जान ले ली थी तथा 24 करोड़ 70 लाख इससे संक्रमित हुए थे। * ब्रिटेन में वेलकम टस्ट सांगेर के वैज्ञानिकों ने मलेरिया के ही एक परजीवी प्लास्मोडियम नोलेसी का जीनोम तैयार किया है। *यह परजीवी दक्षिण पूर्व एशिया में स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता जा रहा है। * वैज्ञानिकों ने मुनष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली की नजर से बचने के लिए इस परजीवी द्वारा अपनाए जाने वाले तिकड़म का भी पता लगा लिया है। इसके लिए यह मनुष्य की इस क्षमता में मौजूद एक जीन जैसा हुलिया अख्तियार कर लेता है। * मलेरिया से मरने वाले लोगों की सबसे ज्यादा तादाद अफ्रीका में है और ये मौतें प्लास्मोडियम फाल्सीपैरम परजीवी से होती है। इस परजीवी का जीनोम 2002 में तैयार कर लिया गया था।

Thursday, October 9, 2008

'लिव-इन' को विवाह जैसी मान्यता!


महाराष्ट्र सरकार चाहती है कि क़ानूनों को इस तरह से बदल दिया जाए जिससे बिना विवाह किए पर्याप्त समय से साथ रह रही महिला को पत्नी जैसी मान्यता मिल सके.
महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को यह प्रस्ताव भेजा है कि भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) में इस तरह से संशोधन किया जाए जिससे 'पर्याप्त समय' से चल रहे 'लिव-इन' को विवाह जैसी मान्यता मिल सके.
हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने इस 'पर्याप्त समय' को परिभाषित नहीं किया है.
लेकिन यदि क़ानून में यह संशोधन हो जाता है तो 'लिव-इन' में रह रही महिला को विवाह टूटने की स्थिति में मिलने वाली सारे अधिकार हासिल हो जाएंगे जिसमें गुज़ारा भत्ता और बच्चों की परवरिश शामिल है.
'लिव-इन' ऐसा रिश्ता है जिसमें वयस्क लड़का और लड़की आपसी सहमति से बिना विवाह किए एक साथ रहते हैं और पति-पत्नी जैसा व्यवहार करते हैं.
महानगरों में कामकाजी लोगों के बीच ऐसे संबंधों का प्रचलन लगातार बढ़ रहा है.
समस्याएँ
'लिव-इन' संबंध जब टूटते हैं तो अक्सर महिला साथी को परेशानी का सामना करना पड़ता है.
एक तो यह कि इन संबंधों को कोई क़ानूनी मान्यता नहीं है इसलिए वो अपने पुरुष साथी से किसी तरह के हर्ज़ाने की माँग नहीं कर सकती.
न तो उसे गुज़ारा भत्ता मिलता है और न अपने पुरुष साथी की संपत्ति में हिस्सेदारी करने का अधिकार ही मिलता है.
महाराष्ट्र सरकार चाहती है कि आपराधिक दंड संहिता की धारा 125 में संशोधन करके 'लिव-इन' में रह रही महिलाओं को पत्नी की तरह के अधिकार दे दिए जाएँ.
यदि केंद्र सरकार इस संशोधन को स्वीकृति देती है तो महाराष्ट्र सरकार क़ानून में ऐसा संशोधन कर सकेगी.
इसी साल सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फ़ैसले में कहा था कि 'लिव-इन' से पैदा हुए बच्चों को अवैध नहीं कहा जा सकेगा.
महाराष्ट्र सरकार के इस प्रस्ताव पर मिलीजुली सी प्रतिक्रिया हुई है. महिला संगठनों ने जहाँ इसका स्वागत किया है वहीं कुछ संगठनों ने कहा है कि इससे समाजिक संस्कृति को नुक़सान पहुँचेगा.

Tuesday, October 7, 2008

रीढ़ की हड्डी फिट तो आप हिट


फिट रहने के लिए रीढ़ की हड्डी का ध्यान रखना ज़रूरी है, क्योंकि शरीर को आगे-पीछे मोड़ने और सही पॉस्चर में रखने के लिए इसका सही रहना ज़रूरी है। दूसरे शब्दों में कहें, तो रीढ़ की हड्डी पर शरीर की तमाम गतिविधियां निर्भर रहती हैं। इसे सही रखने के लिए इन तीन आसनों का नियमित अभ्यास जरूरी है:

पादहस्तासन सीधे खड़े होकर पैरों को आपस में मिला लें। अब सांस भरते हुए हाथों को ऊपर उठाएं व सांस निकालते हुए आगे की ओर झुकें व हाथों से पैरों को छू लें। यहां कमर आगे मुड़ जाएगी। प्रयास करें कि आपका माथा घुटनों के पास आ जाए और ध्यान रखें कि घुटनों को मोड़ें नहीं। सांस को सामान्य रखते हुए आसन में यथाशक्ति रुके रहें और फिर धीरे से वापस आ जाएं। सावधानी कमर दर्द, गर्दन दर्द व हाई बीपी व एसिडिटी में इसका अभ्यास न करें। लाभ यह आसन कमर में लचीलापन बढ़ता है और घुटनों व जंघाओं को बल देता है। इससे पाचनतंत्र, हृदय, फेफड़ों व मस्तिष्क का स्वास्थ्य बढ़ता है और मन में एकाग्रता बढ़ती है।

अर्धचक्रासन पादहस्तासन में हमने कमर को आगे की ओर मोड़ा। अब कमर को पीछे मोड़ना है। इसके लिए पैरों में थोड़ा अंतर रखें व हाथों को पीछे आपस में पकड़ लें। अब सांस भरते हुए कमर को पीछे की ओर मोड़ें व हाथों को नीचे की ओर खींचे। यहां सिर को पीछे ढीला छोड़ दें। आंखें खुली रखें। सांस सामान्य रहेगी। ध्यान रहे, कमर को जबरदस्ती पीछे नहीं मोड़ना है। यथाशक्ति रुकने के बाद धीरे से वापस आ जाएं। इसका अभ्यास दो बार करें।

सावधानी: हर्निया में इसका अभ्यास न करें। यह आसन कमरदर्द, गर्दन दर्द और कंधे की जकड़न को दूर करता है। इससे कमर में लचीलापन बढ़ता है। इससे रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याएं नहीं होतीं और शरीर हल्का रहता है।

वक्रासन बैठकर दोनों पैरों को सामने फैला दें। बाएं पैर को घुटने से मोड़कर दाएं पैर के घुटने के पास खड़ा कर लें। अब दाएं हाथ को बाएं पैर के घुटने के बाहर से घुमाकर खड़े पैर का पंजा पकड़ लें व बाएं हाथ को पीछे जमीन पर रखते हुए गर्दन को पीछे की ओर घुमा दें। सांस को सामान्य रखकर कुछ देर के लिए रुक जाएं। इसी प्रकार दूसरी ओर से भी करें।

सावधानी: कमर में ज्यादा दर्द होने पर यह आसन न करें। यह आसन पाचनतन्त्र को बलिष्ठ बनाता है। इससे अमाश्य, लीवर, पेन्क्रियाज, आंतें, किडनी, मूत्राश्य आदि अंगों को बल मिलता है। यह डायबटीज में लाभकारी है और कमर को लचीला रखता है।

Thursday, October 2, 2008

लड़की या लड़का माँ की सोच का नतीजा

Dingal news!
अगर कोई महिला यह सोचे कि वह कितने दिन जीवित रहने वाली है, या यह दुनिया अच्छी है या बुरी, तो उसकी इस सोच का असर उसके बच्चे पर निर्णायक रूप में पड़ सकता है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि यहाँ तक कि इस सोच का असर उसके बच्चे के लिंग निर्धारण में भी निर्णायक रूप में पड़ सकता है.
ब्रिटेन के केंट विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान की शिक्षक डॉक्टर सारा जोन्स ने निष्कर्ष निकाले हैं कि जो महिलाएँ आशावादी होती हैं उनको बेटा पैदा होने की ज़्यादा संभावना होती है.
डॉक्टर जोन्स ने 609 ऐसी महिलाओं से बातचीत की जो हाल ही माँ बनी थीं.
डॉक्टर जोन्स ने पाया कि जो महिला अपनी जितनी लंबी उम्र के बारे में सोचती, उसके हर एक साल के लिए बेटा पैदा होने की संभावना बढ़ती जाती.
पहले के शोधों में पाया गया है कि जो महिला शारीरिक रुप से स्वस्थ होती है और सुविधाजनक और आरामदेह ज़िंदगी जीती है, उनको बेटा पैदा होने की संभावना ज़्यादा रहती है.
इसके उलट जो महिलाएँ मुश्किल हालात में ज़िंदगी जीती हैं, उनके यहाँ बेटी पैदा होने की संभावना ज़्यादा होती है.
डॉक्टर सारा जोन्स ने महिलाओं से उनके रुख़ के बारे में जो सवाल पूछे, उनका लब्बोलुबाव यही था कि वे कितने साल जीना चाहती हैं?
मध्यम वर्ग और कामकाजी तबके की महिलाओं का मानना था कि वे 40 साल की उम्र तक तो जीवित रहेंगी ही लेकिन कुछ का मानना था कि वे 130 साल तक जीवित रह सकेंगी.
सोच और रासायनिक परिवर्तन
डॉक्टर सारा जोन्स का मानना है कि दिमाग़ में आशावादी विचारों से शरीर में कुछ महत्वपूर्ण रासायनिक परिवर्तन होते हैं और इससे यह संभावना बढ़ती है कि आशावादी दृष्टिकोण रखने वाली महिला के गर्भ में पुत्र ही वजूद में आएगा.
एक बेटे को पाल-पोसकर युवावस्था तक लाना बहुत मुश्किल काम है. गर्भ में भी लड़का अपनी माँ के मिसाल के तौर पर ये रासायनिक परिवर्तन गर्भ धारण के समय महिला के सेक्स हारमोन में तब्दीली कर सकता है जिससे बेटे के वजूद की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं.
डॉक्टर सारा जोन्स ने बीबीसी के रेडियो-4 को बताया कि यह देखने की बात थी कि बेटे को जन्म देने वाली महिलाएँ न सिर्फ़ शारीरिक रूप से स्वस्थ थीं बल्कि वे आशावादी और सकारात्मक सोच रखने वाली थीं और अपने बेटे को अच्छी ज़िंदगी देने का संकल्प रखती थीं.
सारा जोन्स का कहना था, "एक बेटे को पाल-पोसकर युवावस्था तक लाना बहुत मुश्किल काम है. गर्भ में भी लड़का अपनी माँ के शरीर पर ज़्यादा दबाव डालता है और लड़कों को जन्म देना भी ज़्यादा मुश्किल माना जाता है."
"अगर आप अपने बेटे का अच्छी तरह ध्यान रखते हुए उसे एक कामयाब व्यक्ति बनाने की तरफ़ अपना ठोस योगदान नहीं कर पाते हैं और अगर वह विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होता है तो इस बात की काफ़ी संभावना है कि वह अपनी पीढ़ी आगे बढ़ाने में सहयोग नहीं कर सके.
रॉयल कॉलेज ऑफ़ ऑब्सटेटरीशियंस एंड गायनीकोलॉजिस्ट के डॉक्टर पीटर बोवेन सिपकिंस का कहना है कि गर्भ में बच्चे के लिंग का निर्धारण सिर्फ़ एक इत्तेफ़ाक़ की बात नहीं होकर बहुत से शारीरिक और मानसिक हालात पर निर्भर हो सकता है.
उन्होंने कहा, "पहले विश्व युद्ध में पुरुषों का बड़े पैमाने पर संहार होने के बाद बहुत से लड़के पैदा हुए थे. ऐसा लगता है कि लड़ाई में जो कुछ खोया था क़ुदरत ने उसकी भरपाई के लिए ऐसा किया."
यह शोध बॉयोलॉजी लैटर्स की पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

'मोबाइल घटा रहा है मर्दानगी'

Dingal Times!
शोधकर्ताओं का कहना है कि मोबाइल फ़ोन का अधिक इस्तेमाल करने वाले पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या घट रही है जो सीधे तौर पर प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है.
मुंबई के अस्पतालों में संतानोत्पति में नाकाम होने के बाद अपना इलाज़ करा रहे 364 पुरूषों पर हुए अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है.
यह शोध ओहियो के क्लीवलैंड क्लिनिक फाउंडेशन की ओर से हुआ है और इसके निष्कर्ष अमरीका के 'सोसाइटी ऑफ रिप्रोडक्टिव मेडिसिन' को सौंप दिए गए हैं.
शोधकर्ताओं के मुताबिक एक दिन में चार घंटे या इससे अधिक देर तक मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या कम पाई गई और बचे हुए शुक्राणुओं की हालत भी ठीक नहीं थी.
हालाँकि ब्रिटेन के एक विशेषज्ञ का कहना है कि प्रजनन क्षमता में कमी के लिए मोबाइल को दोष देना ठीक नहीं है क्योंकि वह पुरूषों के जननांगों के निकट नहीं होता.
शोध
शोध के मुताबिक जो लोग दिन में चार घंटे से अधिक मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करते थे उनमें शुक्राणुओं की संख्या प्रति मिलीलीटर पाँच करोड़ पाई गई जो सामान्य आँकड़े से काफी कम है.
जो लोग दो से चार घंटे तक मोबाइल फ़ोन से बात करते थे उनमें प्रति मिलीलीटर शुक्राणुओं की संख्या लगभग सात करोड़ आँकी गई.
जिन लोगों ने बताया कि वे मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल ही नहीं करते हैं, उनमें यह संख्या लगभग साढ़े आठ करोड़ थी और उनके शुक्राणु काफी स्वस्थ हालत में सक्रिय पाए गए.
चेतावनी
शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व करने वाले डॉ अशोक अग्रवाल कहते हैं कि अभी इस मामले पर और अध्ययन किए जाने की ज़रूरत है.
वो कहते हैं, "लोग मोबाइल का इस्तेमाल बेधड़क करते जा रहे हैं. बिना ये सोचे कि इसके परिणाम क्या होंगे."
डॉ अग्रवाल का कहना है कि मोबाइल से होने वाला विकिरण डीएनए पर बुरा असर डालता है जिससे शुक्राणु भी प्रभावित होते हैं.

सोयाबीन रोगियों के लिए फ़ायदेमंद

Dingal Times!
एक शोध के अनुसार सोयाबीन और चना में पाए जाने वाले एक रसायनिक पदार्थ का सेवन दिल के दौरे का सामना कर चुके रोगियों के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है.
हाँगकाँग विश्वविद्यालय की टीम का कहना है कि सोयाबीन में पाए जाने वाले आइसोफ़लेवोन नामक रसायनिक पदार्थ कॉलेस्ट्रॉल से लड़ने वाली स्टेटिन के समकक्ष है.
यूरोपीय हृदय पत्रिका के शोध के अनुसार आइसोफ़लेवोन धमनियों में ख़ून के प्रवाह को बेहतर करने में मदद करता है.
कैंसर से बचता है
पिछले अध्ययनों में संभावना व्यक्त की गई था कि सोयाबीन का सेवन छाती और प्रोस्टेट कैंसर से बचने मे मदद करता है और कॉलेस्ट्रॉल भी कम करता है.
सोयाबिन में पाया जाने वाला आइसोफ़लेवोन हृदय की बीमारी के ख़तरे को कम करता है और उस कोशिका को बढ़ने से रोकता है जो धमनियों में ख़ून के बहाव में रूकावट पैदा करती है.
शोधकर्ताओं ने ताज़ा परीक्षण में 102 मरीज़ों को शामिल किया और शामिल किए गए सभी लोगों को ख़ून का थक्का जमने के कारण दिल का दौरा पड़ चुका था और वे हृदय की बीमारी से ग्रसित थे.
शोधकर्ताओं ने इन मरीज़ों को दो समूहों में बाँटा. एक समूह को आइसोफ़लेवोन जबकि दूसरे को पलेसेबो बारह सप्ताहों तक दिया.
शोधकताओं ने पाया कि जिन मरीज़ों ने आइसोफ़लेवोन का सेवन किया था उनकी हालत में बेहतरी देखी गई.
शोधकर्ता प्रोफ़ेसर हंग फेट सी का कहना था, "शोध इस बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि आइसोफ़लेवोन इनडोथेलियल की ख़राबी को ख़त्म करता है."
अध्ययन की ज़रूरत
हालाँकि उनका कहना था कि अभी यह जल्दबाज़ी होगी के मरीज़ो को आइसोफ़लेवोन के सेवन करने की सलाह दी जाए.
लेकिन उनका कहना था, "जिनके खाने में आइसोफ़लेवोन की मात्रा ज़्यादा होगी उन लोगों में दिल का दौरा पड़ने के ख़तरे कम होंगे."
ग़ौरतलब है कि आइसोफ़लेवोन फ़ाइटोइस्ट्रोजीन के अंतर्गत आता है जो प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले ओएस्ट्रोजन की नक़ल करता. ओएस्ट्रोजन हृदय की बीमारी के ख़तरे से रक्षा करता है.
द स्ट्रोक ऐसोसियेशन के डाक्टर पेटर कोलेमन का कहना है, "शोध से जो पता चल रहा है वो बड़ा महत्वपूर्ण और दिलचसप है कि आइसोफ़लेवोन के सेवन से दिल का दौरा पड़ चुके मरीज़ों के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है."
उनका कहना था कि अभी ये शोध बहत कम लोगों पर किया गया है और इस सिलसिले में और अध्ययन की ज़रूरत है.

Monday, September 29, 2008

बिग बी को धमकी देने वाला युवक गिरफ्तार

Marwar News!
रानीवाड़ा(जालोर)।गत मध्य रात्रि एक बजे मुंबई पुलिस की विशेष शाखा ने रानीवाड़ा पुलिस की मदद से कस्बे की इंदिरा कॉलोनी से एक युवक को पूछताछ के लिए गिरफ्तार किया है। आरोपी युवक का नाम देवीसिंह पुत्र पदमसिंह राजपुरोहित निवासी झाबरा तहसील पोकरण जिला जैसलमेर बताया गया है। यह युवक अभिषेक बच्चन का हमशक्ल होने की वजह से पूरे क्षेत्र में युवाओं में चर्चा का विषय रहा है। थानाधिकारी मदनलाल ने बताया कि गत मध्य रात्रि को मुंबई पुलिस की विशेष शाखा के निवेदन पर आरोपी देवीसिंह को उसके कमरे से हिरासत में लिया गया। मुंबई पुलिस के अनुसार किसी लंबित प्रकरण में इस आरोपी को पूछताछ के लिए हिरासत में लेकर मुंबई ले जाया जा रहा है। कस्बे में देवीसिंह के भाई भंवरसिंह की रेल्वे प्लेटफार्म के सामने जनता स्वीट होम नाम की होटल है। इस घटना के बारे में जब भंवरसिंह से संपर्क किया गया, तो वो न तो होटल पर और न ही घर पर मिला। विशेष सूत्रों के अनुसार डेढ़ साल पहले आरोपी देवीसिंह ने ऐश्वर्या राय के बंगले पर सुरक्षा गार्डो को गच्चे में डालकर अंदर प्रवेश करने में सफल हो गया था। परंतु बाद में वो पकड़ा गया, जिसकी खबर भी मुंबई के अखबारों में व ऑनलाईन मीडिया में सुर्खियों में छाई थी। वर्तमान में आरोपी देवीसिंह मुंबई के दादर ईलाके में निवास कर रहा है। तथा फिल्मों में रोल पाने के लिए संघर्ष कर रहा है।

Friday, September 26, 2008

सिगरेट पीने वाले के संपर्क में आने से बचें

Marwar News! Sep 23, 06:55 pm
न्यूयार्क। धूम्रपान करना खुद के साथ ही संपर्क में आने वाले अन्य लोगों की सेहत के लिहाज से भी खतरनाक है। हालिया शोध में कहा गया है कि किसी अन्य के द्वारा छोड़े गए सिगरेट के धुएं के संपर्क में आने यानी 'सैकेंड हैंड स्मोक' से भी सेहत को नुकसान पहुंच सकता है। इससे महिलाओं में 'पैरीफ्रल आर्टियल डिजीज' [पैर की धमनियों की बीमारी] होने का खतरा बढ़ जाता है। इस रोग के घातक होने पर पैर काटने तक की नौबत आ सकती है।
इससे पहले किए गए अन्य शोध में धूम्रपान से हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ने की बात कही जा चुकी है। ताजा अध्ययन चीन की महिलाओं पर किया गया। प्रमुख शोधकर्ता बीजिंग के डा. याओ ही कहते हैं कि महिलाओं की तुलना में पुरुष धूम्रपान ज्यादा करते हैं लेकिन इसके दुष्परिणाम महिलाओं को ज्यादा भुगतने पड़ते हैं।
इस अध्ययन में 60 साल या उससे ज्यादा उम्र की 1209 ऐसी महिलाओं को शामिल किया गया जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया था। इनमें से 477 महिलाओं ने घर या आफिस में सैकेंड हैंड स्मोक की बात स्वीकारी। शोधकर्ताओं के अनुसार सैकेंड हैंड स्मोक की वजह से महिलाओं में पैरीफ्रल आर्टियल डिजीज का खतरा 67 फीसदी तक बढ़ा पाया गया। यही नहीं, उनमें हृदय रोग का 69 फीसदी और स्ट्रोक का खतरा 56 फीसदी तक अधिक पाया गया।

बच्चे को ढोने दें स्कूल बैग का बोझ

Marwar News! Sep 26, 06:54 pm
मेलबर्न। क्या अपने बच्चे का भारी स्कूल बैग आप ढोते हैं? यदि उत्तर 'हां' है तो आगे से ऐसा न करें। आस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं का कहना है कि किशोर उम्र में पीठ पर भारी बैग ढोने से शरीर और खास तौर पर रीढ़ की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। बस, ध्यान सिर्फ इतना रखना है कि स्कूल बैग का वजन बच्चे के वजन से 15 फीसदी से अधिक न हो।
यह अध्ययन रिपोर्ट आस्ट्रेलियन जर्नल आफ फिजियोथिरैपी के ताजा अंक में प्रकाशित हुई है। पश्चिमी आस्ट्रेलिया स्थित कर्टिन यूनिवर्सिटी के लियान स्ट्रेकर के हवाले से इसमें कहा गया है कि जो बच्चे पैदल या साइकिल से स्कूल जाते हैं उन्हें पीठ और गर्दन के दर्द की शिकायत कम होती है।
स्ट्रेकर के अनुसार स्कूल बैग लेकर पैदल चलने या साइकिल चलाने से शरीर और रीढ़ की मांसपेशियों की ताकत व सहनशीलता बढ़ती है। स्ट्रेकर कहते हैं कि पीठ पर स्कूल बैग ढोने से मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं इसलिए उनमें पीठ और गर्दन में दर्द जैसी तकलीफें कम देखने को मिलती हैं।
इस अध्ययन के दौरान छात्रों से स्कूल बैग के वजन और उसे लेकर चलने के उनके अनुभव के बारे में सवाल पूछे गए। स्ट्रेकर ने बताया कि अध्ययन में शामिल पचास फीसदी छात्र-छात्राओं ने पीठ और गर्दन में दर्द रहने की शिकायत की। इनमें से ज्यादातर लोग अपना स्कूल बैग खुद नहीं ढोते थे।

ज्यादा साफ-सफाई से भी डायबिटीज!

Marwar News! Sep 26, 07:26 pm
लंदन। साफ-सुथरे वातावरण की अक्सर वकालत की जाती है। यह स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद जरूरी भी है। लेकिन, एक हालिया शोध में ज्यादा साफ-सफाई से रहने को डायबिटीज का खतरा बढ़ने की बात कही गई है।
ब्रिटिश शोधकर्ताओं के अनुसार बचपन में बैक्टीरिया और वायरस रहित वातावरण आगे जाकर हाई ब्लड प्रेशर और उससे संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। अध्ययन के मुताबिक बचपन के दौरान शरीर में ऐसे 'ह्यूंमन फ्रेंडली' बैक्टीरिया विकसित होते हैं जो टाइप 1 डायबिटीज से लड़ने में मददगार होते हैं। इनके चलते प्रतिरक्षा तंत्र कोशिकाओं को इंसुलिन बनाने के लिए प्रेरित करता है। उल्लेखनीय है कि ये बैक्टीरिया आंतों में विकसित होते हैं।
बैक्टीरिया का प्रतिरक्षा तंत्र पर प्रभाव जानने के लिए शोधकर्ताओं ने चूहों पर प्रयोग किया। जिन चूहों को बचपन में बैक्टीरिया मुक्त वातावरण में रखा गया था उनमें आगे चलकर गंभीर डायबिटीज पाई गई। इसके विपरीत जिन चूहों को शुरू से बैक्टीरिया वाले माहौल में रखा गया तो आगे जाकर उनमें आश्चर्यजनक रूप से डायबिटीज का खतरा कम देखा गया।
ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी की प्रमुख शोधकर्ता सुजेन वांग के मुताबिक आंतों में पाए जाने वाले ह्यूंमन फ्रेंडली बैक्टीरिया और प्रतिरक्षा तंत्र के बीच गहरा संबंध है। सुजेन ने कहा कि अब हम इस बात की खोज में लगे हैं कि यह बैक्टीरिया किस तरह से प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय कर टाइप 1 डायबिटीज को रोकने में सफल होता है।

भ्रष्ट अधिकारी ढूंढि़ये और पाईए इनाम

Marwar News! Sep 26, 12:22 pm
मेक्सिको सिटी। दशकों से मेक्सिकोवासी ऐसे नौकरशाहों से पीडि़त रहे हैं, जो उनसे किसी भी काम के लिए रिश्वत मांगते हैं, लेकिन अब उनकी यह परेशानी उन्हें नकद ईनाम भी दिलवा सकती है।
संघीय सरकार भ्रष्टाचार के सबसे खराब उदाहरण तलाशने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन कर रही है। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को इस प्रतियोगिता के पुरस्कारों और नियमों की घोषणा की। राष्ट्रपति फिलिप काल्डेरोन ने इस महीने की शुरू में कहा था कि ऐसी प्रतियोगिता शुरू करने पर विचार चल रहा है। लोक प्रशासन सचिव सल्वादोर वेगा ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार लोगों और समुदाय के विकास के लिए कार्य करती है न कि उनकी परेशानी के लिए।
अधिकारियों ने प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए आवेदन पत्र जारी किया है जिस पर फाइलों से घिरे एक अधिकारी की तस्वीर छपी है। इस तस्वीर में लोगों की एक कतार तथा एक महिला कर्मचारी को अपने नाखून रंगते हुए दिखाया गया है। दीवार पर टंगी घड़ी में समय पूर्वाह्न साढे़ ग्यारह हो चुका है, जबकि एक डिजिटल काउंटर दिखाता है कि अभी सुबह से सिर्फ दूसरे व्यक्ति का काम ही हुआ है। मेक्सिकोवासियों को 31 अक्टूबर से पहले अपने फार्म जमा करने होंगे। इसमें पूछे गये सवालों की एक वानगी.. क्या आपसे कभी ऐसे दस्तावेज देने को कहा गया है जिन्हें पाना मुश्किल हो, क्या आपसे रिश्वत मांगी गई। सरकार इस फार्म में लोगों को नौकरशाही सुधारने के तरीकों के बारे में भी पूछ रही है।
संघीय सरकार भ्रष्ट अधिकारियों का खुलासा करने और उसे सुधारने के उपाय सुझाने वाले व्यक्ति को बतौर ईनाम 27,000 डालर की राशि देगी, जबकि स्थानीय स्तर पर यह राशि 9,300 डालर है।

बच्चों के दिमाग को बनाइए तंदरुस्त

Marwar News! Sep 26, 06:04 pm
लंदन। यह बात हम पहले से जानते हैं कि मछली खाने से दिमाग तेज होता है। अब वैज्ञानिकों ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। हाल में हुए एक शोध के मुताबिक जो बच्चे नियमित रूप से मछली के तेल की खुराक लेते हैं उनका दिमाग ज्यादा तेज होता है।
ब्रिटिश शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रतिदिन मछली के तेल के सप्लीमेंट्स लेना दिमाग को दुरुस्त रखता है। इससे वे परीक्षा में भी बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं। शोधकर्ताओं ने लगातार छह महीनों तक मछली के सप्लीमेंट्स लेने वाले तीन हजार छात्रों के परीक्षा परिणामों पर नजर रखी। सप्लीमेंट्स लेने वाले छात्रों के रिजल्ट की तुलना सप्लीमेंट्स नहीं लेने वाले छात्रों के परीक्षा परिणामों से की गई। अध्ययन के मुताबिक सप्लीमेंट्स न लेने वाले छात्रों की अपेक्षा सप्लीमेंट्स लेने वाले छात्रों ने परीक्षा में 17.7 फीसदी ज्यादा अंक अर्जित किए।

सेहत के लिए खतरनाक है साइबर सेक्स

Marwar News! Sep 26, 06:04 pm
सिडनी। यह खबर आनलाइन सेक्स और पोर्न साइट्स देखने वालों के लिए खतरे की घंटी है। हाल में हुए एक शोध के मुताबिक यह आदत अवसाद व तनाव को खतरनाक होने की हद तक बढ़ा देती है। आनलाइन सेक्स में कामोत्तेजक वीडियो, अश्लील मैसेज भेजना और चैटिंग करना शामिल है।
अध्ययन के मुताबिक प्रतिदिन एक घंटे साइबर सेक्स का मजा लेने वाले लोगों को यह बीमारी आसानी से गिरफ्त में ले लेती है। आस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने 18 से 80 साल के पढ़े-लिखे पुरुषों को अध्ययन में शामिल किया। ये लोग हफ्ते में औसतन 12 घंटे तक कंप्यूटर पर सेक्स का लुत्फ उठाते थे। इसके लिए वेबकैम, कामोत्तेजक वीडियो और तस्वीरों का इस्तेमाल किया जाता था।
शोध में शामिल 1325 लोगों में से 65 फीसदी ने आनलाइन बात करने के बाद डेटिंग की बात स्वीकार की। इनमें अधिकांश की मानसिक दशा काफी खराब थी। आनलाइन सेक्स के लती 27 फीसदी लोगों को मध्यम से उच्चस्तर तक अवसादग्रस्त पाया गया। वहीं 30 फीसदी में चिंता का उच्चस्तर और 35 फीसदी तनावग्रस्त पाए गए। अवसाद और चिंता का स्तर उन लोगों में सर्वाधिक पाया गया जो आनलाइन यौन क्रियाओं में लिप्त थे।

लेसोथो में बड़ा और अनूठा हीरा मिला

Marwar News!
यह 105 कैरेट वाले गोल कोहिनूर हीरे से भी बड़ा होगा जो ब्रिटिश ताज में जड़े हुए रत्नों का हिस्सा है.
लेसोथो में खनिकों ने एक ऐसे पत्थर की खोज निकाला है जो तराशने के बाद दुनिया में अब तक मौजूद हीरों में सबसे बड़ा पॉलिश किया गया हीरा बन सकता है.
'जैम डायमंड' नाम की कंपनी का कहना है कि इस पत्थर का वजन 478 कैरेट है और अब तक पाया गया बीसवाँ सबसे बड़ा कच्चा हीरा है.
इस कंपनी का कहना है कि बिना किसी जोड़ वाला यह पत्थर पिछले दिनों लेसेंग खदान से निकाला गया जिसका मालिकाना हक़ लेसोथो स्थित उनकी कंपनी के पास है.
कंपनी का मानना है कि इससे 150 कैरेट का रत्न मिल सकता है जो करोड़ों डॉलरों में बिक सकता है. इस हीरे को अभी नाम नहीं दिया गया है.
चमकदार
कंपनी के चीफ़ एक्ज़ीक्यूटिव क्लिफ़र्ड एल्फ़िक कहते हैं, "इस अनूठे हीरे की प्राथमिक जाँच में ही संकेत मिल गया था कि इससे चमकदार और बहुत सुंदर रंग वाला ऐसा हीरा तराशा जा सकता है जो रिकार्ड तोड़ देगा." यह 105 कैरेट वाले गोल कोहिनूर हीरे से भी बड़ा होगा जो ब्रिटिश ताज में जड़े हुए रत्नों का हिस्सा है.
लेकिन यह 1905 में पाए गए क्यूलिनेन हीरे से छोटा ही रहेगा जो तराशे जाने से पहले 3,106 कैरेट का था और तराशे जाने के बाद आँसू की बूँद के आकार का 530 कैरेट का हीरा बना. उस हीरे को 'ग्रेट स्टार ऑफ़ अफ़्रीका' के नाम से जाना जाता है.
लेसेंग खदान के मालिकाना हक़ वाली कंपनी में 70 फ़ीसदी हिस्सेदारी जैम डायमंड्स की और 30 फ़ीसदी हिस्सेदारी लेसोथो सरकार की है.

Saturday, September 13, 2008

कान से देखता है बेन!


कैलिफोर्निया। पंद्रह साल का एक लड़का इस धरती का पहला ऐसा इंसान है जो बिना आंखों के सब कुछ देखता है। नाम है बेन अंडरवुड। कैलिफोर्निया का रहने वाला 15 साल का बेन नेत्रहीन है लेकिन उसकी गतिविधियां पूरी दुनिया को हैरान कर रही हैं।
बेन बास्केटबॉल खेलता है, साइकिल चलाता है, यहां तक कि स्केटिंग भी करता है। बेन के मां-बाप ही नहीं, बल्कि डॉक्टर और वैज्ञानिक भी उसे देखकर हैरान हैं। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर बेन बिना आंखों के कैसे देख सकता है।
कैसे वो आम बच्चों की तरह हर काम करता है। दरअसल बेन जब दो साल का था, तभी उसकी आंखों में रेटिनल कैंसर हो गया था। ये गंभीर बीमारी साठ लाख लोगों में से एक को होती है। इस कैंसर की वजह से उसकी आंखें निकालनी पड़ीं।
लेकिन इसके बावजूद बेन को कोई फर्क नहीं पड़ा और वो बिना आंखों के ही सब कुछ देखने लगा। बेन की इस हकीकत को जानने के लिए कई बार परीक्षण भी किए गए लेकिन हर बार वो सफल रहा।
बेन जब महज चार साल का था तभी उसने चमत्कार दिखाना शुरू कर दिया था। वो कार से कहीं जा रहा था और तभी उसने बताया कि वो इस वक्त ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों के बीच से पार हो रहा है। फिर क्या था बेन की मां हैरान रह गईं। बेन सच कह रहा था।
अपने उन दोस्तों के मुकाबले बेन ज्यादा समझदार है जो देख सकते हैं। खतरा तो वो काफी दूर से भांप लेता है। अगर सामने से कोई तेज रफ्तार कार आ रही हो तो दोस्तों से पहले वो फुटपाथ पर चला जाता है। बेन ने नेत्रहीनों के स्कूल में पढ़ने से साफ इनकार कर दिया और आंखों वाले इंसान को वो वीडियो गेम तक में हरा देता है।
डॉक्टरों को पहले तो बेन के बारे में सुनकर यकीन ही नहीं हुआ। लेकिन जब उसे सामान्य बच्चों की तरह खेलते कूदते देखा तो उन्हें भी मानना पड़ा। दरअसल बेन ये काम करता है आवाज से। आंखें खराब होने के बाद से बेन के अंदर इंद्रियों की बेहतर समझ आई।
पूरी दुनिया में बेन इकलौता इंसान है जो अपनी जीभ से आवाज निकालकर सारे काम करता है। बेन सीढ़ियां उतरते वक्त अपने मुंह से लगातार क्लिक-क्लिक की आवाज निकालता है। क्लिक की ये आवाज आसपास की चीजों से टकराकर बेन के दिमाग में उसकी छवि बनाती हैं।
बेन समझ जाता है कि अगला कदम उसे कहां रखना है। अपना रोजमर्रा का काम करने के लिए बेन को किसी की मदद की जरूरत नहीं होती। न आसपास की चीजों का सहारा लेता है और न वॉकिंग स्टिक का। बेन अपनी जीभ की क्लिक से जान जाता है कि सामने कौन सी चीज है।
कहां दीवार है और कहां पर्दे लगे हैं। बेन भले ही सारी चीजों को आसानी से जान लेता हो लेकिन पढ़ने लिखने में वो मजबूर है। इसके लिए उसे मशीनी मदद की जरूरत पड़ती है। बेन के पास एक ऐसा कंप्यूटर है जो बोलता है यानी जो आदेश बेन की-बोर्ड के बटन दबाकर देता है वो एक खास सॉफ्टवेयर की मदद से बेन को भी सुनाई देते हैं।
स्कूल से मिला होम वर्क करने के लिए बेन के पास एक ब्रेल मशीन है। कुल मिलाकर कहा जाए तो बेन धरती पर किसी अजूबे से कम नहीं हैं।

गायत्री परिवार ने कराया रोजा इफ्तार


वाराणसी। साम्प्रदायिक नफरत के मौजूदा माहौल में वाराणसी में एक ऐसा अनूठा और अनुकरणीय आयोजन हुआ जो सौहार्द की सुगंध बिखेर गया। यहां गायत्री परिवार के सदस्यों ने गुरुवार को शहर के रोजेदार मुसलमानों के लिए इफ्तार पार्टी का आयोजन किया।
इस आयोजन की खास बात यह रही कि इस मुसलमानों के अलावा हिंदू, सिख और ईसाई समुदाय के गणमान्य लोगों ने भी बड़ी शिद्दत के साथ इसमें शिरकत की।
शहर के एक छोटे से नर्सिंग होम में बड़े मकसद के लिए दी गई इस इफ्तार पार्टी की शुरुआत मगरीब की नमाज के बाद खजूर के सेवन से शुरू हुई।
सामूहिक नमाज की इमामत मुफ्ती-ए-शहर मौलाना अब्दुल बातिन नुमानी ने की। नर्सिंग होम का सभागार थोड़ी देर के लिए इबादतगाह में तब्दील हो गया।
नमाज के बाद गायत्री परिवार के सदस्यों ने वहां उपस्थित रोजेदारों और अन्य गणमान्य लोगों को अल्पाहार कराया। इस अवसर पर मौलाना नुमानी ने कहा कि ऐसे आयोजनों से भाईचारा, सांप्रदायिक सौहार्द तथा अमन-ओ-अमान का पैगाम लोगों तक पहुंचता है, जिसकी आज खास जरूरत है।
रोजेदारों को इफ्तार परोस रहे स्वामी आत्मानन्द गिरी ने कहा कि कोई भी धर्म मनुष्यों को आपस में जोड़ने के लिए बनाया गया है न कि तोड़ने के लिए।
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से कुछ लोग धर्म का उपयोग इंसान-इंसान के बीच वैमनस्यता फैलाने के लिए कर रहे हैं। इस वैमनस्यता को इस तरह के आयोजन ही मिटा सकते हैं।
इस मौके पर फादर सबस्टीन ने कहा कि रमजान के दिनों में बड़े नेताओं के द्वारा इफ्तार पार्टी देना आम चलन हो गया है, लेकिन उन बड़ी इफ्तार पार्टियों में न तो सौहार्द झलकता है और न ही किसी प्रकार की एकता।