Monday, April 14, 2008

सबसे बड़ा है तो बुद्धिमान भी होगा


New Dehi। बच्चा पहला है तो ज्यादा देखभाल होगी ही। जब ज्यादा देखभाल होगी तो इसका फायदा भी मिलना चाहिए। यह मिलता भी है। एक शोध से साबित हुआ है कि किसी माता-पिता का पहला बच्चा अपने बाकी भाई-बहनों के मुकाबले ज्यादा तेज और चतुर होता है।
यूरोप के वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि बच्चों की बौद्धिकता पर पैदाइशी क्रम का बुनियादी प्रभाव होता है। परिवार के सबसे बड़े बच्चे का आईक्यू [बुद्धि लब्धि यानी मानसिक उम्र और वास्तविक उम्र का अनुपात] लेबल अपने अन्य भाई-बहनों के मुकाबले काफी ऊपर होता है। पूर्व के अध्ययनों में यह बात सामने आई थी कि पहले पैदा हुए बच्चे स्वच्छंदता और अगुवाई के मामले में पीछे होते हैं, लेकिन शैक्षिक स्तर पर ज्यादा कामयाब होते हैं। हालिया अध्ययन बताता है कि पहले पैदा हुए बच्चों का बौद्धिक स्तर बाद के भाई-बहनों के मुकाबले काफी ऊंचा होता है।
इस अध्ययन में एक हजार बच्चों को शामिल किया गया और उनके बचपन से लेकर किशोरावस्था तक के आईक्यू का परीक्षण किया गया। खास बात यह है कि पैदाइश के क्रम में दूसरे नंबर पर रहने वाले बच्चों के आईक्यू का स्तर भी अपने से छोटे भाई-बहनों की अपेक्षा ज्यादा ऊंचा पाया गया। लड़का हो या लड़की, दोनों पर यह बात समान रूप से लागू पाई गई।
एम्स‌र्ट्डम की व्रिजे यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता डारेट बूम्समा के मुताबिक सबसे बड़े बच्चे का आईक्यू स्तर उन बच्चों के मुकाबले ज्यादा ऊपर पाया गया जिनसे कोई एक बड़ा भाई या बहन है। दो भाई या बहनों से छोटे बच्चों में आईक्यू स्तर कुछ ज्यादा ही कम पाया गया। इसके पीछे कारण क्या हैं, वैज्ञानिक निश्चित तौर कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन इनका मानना है कि देखरेख का स्तर और परवरिश के प्रति मां-बाप का उत्साह बौद्धिक विकास में सहायक साबित होता है।

मुठ्ठी में होंगी हज़ारों घंटे की फ़िल्में

GoodNews(New Delhi)
कंप्यूटर की दुनिया की महारथी कंपनी आईबीएम के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई तो आने वाले दिनों में एक ऐसा उपकरण उपलब्ध हो सकेगा जिसके ज़रिए हज़ारों घंटे लंबी फ़िल्में सहेजना संभव होगा.
आईबीएम के शोधकर्ता 'रेसट्रैक टेक्नोलॉजी' नाम की एक तकनीक पर काम कर रहे हैं जो छोटे चुंबकीय घेरों की मदद से सामग्री या आंकड़ों (डाटा) को जमा करती है.
विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में छपी एक रिपोर्ट में आईबीएम की कैलीफोर्निया स्थित अल्मादन प्रयोगशाला में इस तकनीक पर काम कर टीम ने बताया है कि वह किस तरह से इस अनूठे उपकरण को तैयार कर रही है.
इसके तैयार हो जाने के बाद एमपी3 प्लेयरों की मौजूदा क्षमता को सौ गुना बढ़ाया जा सकता है लेकिन रेसट्रैक टेक्नोलॉजी पर काम कर रही इस टीम का कहना है कि इसके बाज़ार में आने में अभी सात से आठ साल लगेंगे.
यादाश्त की दुनिया
इस समय ज़्यादातर डेस्कटॉप कंप्यूटर में डाटा को जमा रखने के लिए फ़्लैश मेमोरी और हार्ड ड्राइव का इस्तेमाल होता है.
इन दोनों के अपने-अपने फ़ायदे हैं तो नुक़सान भी हैं.
हार्ड ड्राइव सस्ती होती हैं लेकिन अपनी बनावट के कारण वे बहुत लंबे समय तक काम नहीं कर पातीं. डाटा को सामने लाने में भी ये कुछ समय लेती हैं.
इसके उलट फ़्लैश मेमोरी ज़्यादा विश्वसनीय हैं और इनमें सुरक्षित रखे हुए डाटा को ज़ल्दी से देखा जा सकता है. हालाँकि इसकी ज़िंदगी सीमित है और यह महँगे भी हैं.
रेसट्रैक टेक्नोलॉजी पर डॉ. स्टुअर्ट पार्किन और उनकी टीम काम कर रही है. इससे तैयार याद्दाश्त वाले उपकरण सस्ते, टिकाऊ और तेज़ साबित हो सकते हैं.
डॉ. पार्किन कहते हैं कि रेसट्रैक टेक्नोलॉजी याद्दाश्त की दोनों तकनीकों - फ़्लैश मेमोरी और हार्ड ड्राइव की जगह ले सकती है.
वह बताते हैं, "हमने रेसट्रैक मेमोरी में काम आ रही सामग्रियों और तकनीक को सामने रखा है. हालाँकि अभी तक हम ऐसा एक भी उपकरण नहीं बना सके हैं लेकिन इसे बनाना अब संभव नज़र आता है."