Wednesday, March 12, 2008

अश्लील वेबसाइट के ख़तरे


दफ़्तर में बैठ कर इंटरनेट पर पोर्नोग्राफ़िक या अश्लील साइट देखने वाले सावधान हो जाएँ. यदि आपके किसी सहयोगी को उससे असुविधा है और उसने शिकायत कर दी तो आपकी नौकरी जा सकती है.
एक नए सर्वेक्षण के मुताबिक अधिकतर कंपनियाँ जब अपने कर्मचारियों को इंटरनेट के दुरुपयोग की वजह से बर्ख़ास्त करती हैं तो उसका कारण यह होता है कि वे पोर्नोग्राफ़िक वेबसाइट देख रहे होते हैं.

ब्रिटेन की एक चौथाई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को इंटरनेट के दुरुपयोग की वजह से नौकरी से निकाला है.


दफ़्तरों में इंटरनेट का दुरुपयोग एक आम बात है
लगभग पाँच सौ प्रबंधकों से बात करने पर पता चला कि इन कर्मचारियों के बारे में लगभग 40 प्रतिशत शिकायतें सहयोगियों की ओर से होती हैं.

इस नए अनुसंधान के मुताबिक बर्ख़ास्त किए गए 69 फ़ीसदी कर्मचारी पोर्नोग्राफ़िक साइट्स देखते हुए पाए गए.

यह भी पता चला कि इन प्रबंधकों में से आधे शिकायतें मिलने पर कर्मचारियों के साथ आपस में बातचीत करना पसंद करते हैं लेकिन 29 प्रतिशत मौखिक चेतावनी देने का रास्ता अपनाते हैं.

इंटरनेट का दुरुपयोग

पर्सनेल टुडे पत्रिका और वेबसीन फ़र्मे के लिए संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन में 544 मानव संसाधन प्रबंधकों और ऐसी कंपनियों के अधिकारियों से बात की गई जहाँ औसतन ढाई हज़ार लोग काम करते हैं.

क़ानूनी फ़र्म मॉर्गन कोल के बैरिस्टर जोनाथन नेलर का कहना है," इंटरनेट के दुरुपयोग के लिए किसी कर्मचारी को निकालना कंपनी को ख़ासा महंगा पड़ता है".
"नए कर्मचारी के लिए विज्ञापन, भर्ती और प्रशिक्षण आदि का ख़र्च तो है ही इससे अन्य कर्मचारियों का मनोबल प्रभावित होता है और कंपनी की साख पर भी असर पड़ता है".

अक्तूबर, 2000 में ब्रिटेन के कंपनी मालिकों को यह जानने का अधिकार मिल गया कि उनका स्टाफ़ इंटरनेट पर क्या देख रहा है या ईमेल के ज़रिए किस तरह के संदेश भेज रहा है.

कुछ कंपनियाँ फ़िल्टर सिस्टम का भी इस्तेमाल करती हैं जो कुछ आपत्तिजनक साइट्स पर जाने से रोक देता है.

फ़िल्टर का इस्तेमाल यह जानने के लिए भी होता है कि कहीं कर्मचारी कंपनी को धोखा देने या उसके गोपनीय फ़ैसले प्रतिद्वंद्वियों को बेचने के लिए तो नहीं कर रहे हैं.

लेकिन कुछ कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को यह अनुमति दे रखी है कि वे भोजनावकाश में ख़रीदारी, खेल और भ्रमण से संबद्ध साइट्स देख सकते हैं.

प्रेम सचमुच अँधा होता है:वैज्ञानिक खोज


प्यार अँधा होता है-यह मात्र एक कहावत ही नहीं है.वैज्ञानिकों ने वे तथ्य जुटा लिए हैं जो यह बात साबित करते हैं.

एक अध्ययन से पता चला है कि प्रेम होने पर दिमाग़ में कुछ उन गतिविधियों पर अंकुश लग जाता है जो किसी को आलोचनात्मक नज़र से देखती हैं.

उस व्यक्ति के क़रीब होने पर दिमाग़ ख़ुद बख़ुद यह तय करने लगता है कि उसके चरित्र और व्यक्तित्व का कैसे आकलन किया जाए.

यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन का यह अध्ययन न्यूरोइमेज पत्रिका में छपा है.

माँ की ममता

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि दिमाग़ पर इस तरह का असर रोमांस के दौरान भी होता है और ममता के तहत भी.

माँ की ममता भी बच्चे की अच्छाइयाँ ही देख पाती है

यानी माँ का बच्चे से लगाव भी कुछ इसी तरह का प्रभाव पैदा कर देता है.

उस समय नकारात्मक भावनाएँ कहीं गहरे दब जाती हैं.

शोधकर्ताओं के दल ने 20 युवा माँओं के दिमाग़ का उस समय अध्ययन किया जब उन्हें उनके अपने बच्चों और उनके परिचितों के बच्चों के चित्र दिखाए गए.

उन्होंने पाया कि उस समय मस्तिष्क की गतिविधियाँ कुछ ऐसी ही थीं जैसी रोमांटिक युगल की होती हैं.

दोनों अध्ययनों से पता चला कि उस समय दिमाग़ की कुछ ऐसी ही स्थिति होती है जैसी अचानक धन मिल जाने या अच्छा खाने-पीने के समय होती है.

इसी तरह के परिणाम जानवरों में भी देखने में आए.

लेकिन अनुसंधान से यह भी पता चला कि रोमांटिक और ममता से जुड़ी भावनाओं में एक बुनियादी फ़र्क़ है.

प्रेमी-प्रेमिका के दिमाग़ के उस हिस्से में भी गतिविधियाँ तेज़ हो जाती हैं जो सेक्स उत्तेजना से संबद्ध हैं.

'बस साल भर रहता है रूमानी प्यार'


शायद बहुत सारी जोड़ियाँ इस शोध से असहमत हों लेकिन इटली के कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन में रोमांस साल भर से थोड़ा ही अधिक ही समय के लिए रहता है.
इटली की पाविया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी के जीवन में पहला-पहला-प्यार-है का जो संगीत बजता है, उसके पीछे असल भूमिका संभवतः मस्तिष्क में रहनेवाले एक रसायन की होती है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि किन्हीं दो लोगों के बीच जिनके बीच नया-नया प्यार पनपा हो उनमें इस प्रोटीन का स्तर अधिक होता है.

लेकिन जब ऐसे लोगों की जिनके बीच संबंध लंबे समय से चले आ रहे हों, उनकी जाँच की गई, या ऐसे लोगों को परखा गया जो अभी प्यार की गाड़ी में सवार नहीं हुए हों, तो देखा गया कि इस प्रोटीन का स्तर कम था.

शोध

प्यार और अधिक स्थायी होता है. लेकिन रोमांस वाला प्यार शायद ख़त्म हो जाता है


एक शोधकर्ता

इस प्रोटीन को न्यूट्रोफ़िन्स कहा जाता है और शोधकर्ताओं ने 18 से 31 वर्ष तक की उम्र के पुरूषों और औरतों में इस प्रोटीन की जाँच की.

साइकोएंडोन्यूरोएंडोक्राइनलॉजी नामक जर्नल में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने 59 ऐसे लोगों की जाँच की जिन्होंने हाल ही में संबंधों की शुरूआत की थी.

उनकी तुलना की गई 59 ऐसे लोगों से जो या तो बहुत पहले से अपने साथी के साथ रह रहे थे या अकेले थे.

शोधकर्ताओं ने पाया कि जिनके संबंध हाल ही में शुरू हुए थे इसमें इस प्रोटीन का स्तर अधिक पाया गया.

लेकिन रिपोर्ट तैयार करनेवाले एक शोधकर्ता ने ये कहा कि इसका अर्थ ये लगाना ग़लत होगा कि लोगों में प्रेम नहीं रहा, बल्कि ये सही होगा कि पहले जैसा भड़कीला प्यार नहीं रहा.

शोधकर्ता ने कहा,"प्यार और अधिक स्थायी होता है. लेकिन रोमांस वाला प्यार शायद ख़त्म हो जाता है".

वैसे उन्होंने कहा कि रूमानी प्रेम के बारे में वैज्ञानिकों का ज्ञान अभी बहुत कम है और इस बारे में और अधिक शोध करने की आवश्यकता है.

सृजनशील लोगों पर बरसता है प्यार


अगर आपको अपने जीवन में प्यार बढ़ाना है तो शायद आपको स्वयं को सृजनशील बनाना होगा.
ब्रिटेन के कुछ शोधकर्ताओं ने पाया है कि व्यक्ति जितना सृजनशील या रचनाशील होता है, उसके प्रेमियों की संख्या भी उतनी ही अधिक होती है.

शोधकर्ता कहते हैं कि एक कलाकार या कवि के जीवन में औसतन चार से 10 संगी आते हैं जिनके साथ उनके शारीरिक संबंध बनते हैं.

वहीं जो लोग सृजनशील नहीं होते उनके जीवन में तीन संगी आते हैं.

न्यूकासल एंड ओपन विश्वविद्यालय के इन शोधकर्ताओं ने 425 व्यक्तियों पर अध्ययन के बाद अपना निष्कर्ष निकाला है.

शोध

ये बहुत आम बात है कि सृजनशील लोगों के कामुक व्यवहार को लोग झेलते भी हैं, उनके जो संगी होते हैं वो भी इस बात में अधिक भरोसा नहीं रखते कि वह व्यक्ति उसके साथ निष्ठा बनाए रखेगा


डॉक्टर डेनियल नेटल

शोधकर्ताओं के अनुसार सृजनशील या रचनाशील व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के सकारात्मक पक्ष को उभार सकते हैं.

डॉक्टर डेनियल नेटल कहते हैं कि सृजनशील लोग ऐसी जीवनशैली में रहते हैं जो निर्बंध होती है, अनियमित होती है और समाज के सामान्य लोगों से अलग होती है.

डॉक्टर नेटल के अनुसार ऐसे लोग अक्सर साधारण लोगों से कहीं अधिक यौन संबंधों की ओर झुकाव दिखाते हैं जिसमें से कई बार उनका उद्देश्य केवल अनुभव प्राप्त करना होता है.

डॉक्टर नेटल का कहना है,"ये बहुत आम बात है कि उनके इस कामुक व्यवहार को लोग झेलते भी हैं, उनके जो संगी होते हैं वो भी इस बात में अधिक भरोसा नहीं रखते कि वह व्यक्ति उसके साथ निष्ठा बनाए रखेगा".

लेकिन उन्होंने कहा कि इस तरह के व्यवहार के नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं.

उन्होंने कहा,"इस तरह के व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को अवसाद या आत्महत्या की इच्छा जैसे मानसिक रोगों का ख़तरा होता है".

उदाहरण

इस तरह के व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को अवसाद या आत्महत्या की इच्छा जैसे मानसिक रोगों का ख़तरा होता है


डॉक्टर डेनियल नेटल

अतीत में ऐसे कई उदाहरण नज़र आते हैं जो अपनी यौन इच्छाओं के लिए कुख्यात रहे हैं तो दूसरी तरफ़ अपनी सृजनशील के लिए विख्यात भी.

ऑन द वाटरफ़्रंट और द गॉडफ़ादर जैसी फ़िल्मों से जाने जानेवाले अभिनेता मार्लन ब्रांडो के कम-से-कम 11 बच्चे थे. उन्होंने तीन बार शादी की थी और उनका अनेक महिलाओं से संबंध था.

वहीं कैसानोवा का दावा था कि उसकी स्मृति में उसके 100 से भी अधिक महिलाओं से संबंध रहे हैं.

उसके संबंध रूस की कैथरीन द ग्रेट से लेकर फ्रांस के दार्शनिक वोल्तेयर तक से थे.

लेकिन वो काफ़ी पहले ही यौन रोग का शिकार हो गए और वेनिस की एक जेल से भागने के बाद निर्वासन में ही उनकी मौत हो गई.

सिर्फ़ एक झलक तोड़ सकती है ध्यान


यह तो हम सब पढ़ते-सुनते ही आ रहे हैं कि विश्वामित्र का ध्यान भंग करने के लिए मेनका जैसी अप्सरा को भेजा गया था और वह अपने मिशन में कामयाब भी रही थी.
ये तो है पुराने ज़माने की बात लेकिन आज के ज़माने में भी कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि सुंदर और आकर्षक महिलाओं की एक झलक भर पुरुषों का ध्यान बँटाने और फ़ैसला लेने की उनकी क्षमता को छिन्न-भिन्न कर सकती है.

प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द रॉयल सोसायटी में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चला कि आकर्षक महिलाओं को देखने भर से पुरुषों में यौन संबंधी विचार जागने लगते हैं जिससे उनका ध्यान इस हद तक भंग हो सकता है कि वो फ़ैसला लेने की स्थिति में भी ना रहें.

बेल्जियम के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है जिसमें कुछ ऐसे पुरुषों को महिलाओं की आकर्षक तस्वीरें दिखाई गईं जो एक ऐसा खेल खेलने वाले थे जिसमें कुछ हिसाब-किताब भी करना था.

इस अध्ययन में 18 से 28 साल की उम्र के 176 छात्रों को ये पहेली हल करने के लिए दी गई.

लेकिन उनमें से आधे छात्रों को आकर्षक महिलाओं की तस्वीरें वग़ैरा दिखाई गईं. 44 पुरुषों को कुछ तस्वीरें दिखाई गईं और उन पर उनकी राय माँगी गई.

इनमें कुछ प्राकृतिक नज़ारों की तस्वीरें थीं तो कुछ छात्रों को आकर्षक महिलाओं की तस्वीरें दिखाई गईं.

छात्रों के एक अन्य दल में से कुछ छात्रों को वृद्ध महिलाओं की तस्वीरें दिखाई गईं और कुछ को युवा मॉडल महिलाओं की.

इसके बाद छात्रों के हर एक दल से एक ऐसे खेल में शामिल होने के लिए कहा गया जिसमें कुछ पैसे का लेन-देन भी शामिल था.

तस्वीरों का खेल

इस अध्ययन के नतीजों से पता चला कि जिन पुरुषों को आकर्षक महिलाओं की तस्वीरें और अन्य आकर्षक चीज़ें दिखाई गई थीं उन्होंने पैसे गँवाने वाला फ़ैसला लिया जबकि जिन पुरुषों को इस तरह की चीज़ें नहीं दिखाई गई थीं उन्होंने कारोबारी तौर पर सही फ़ैसला लिया.


ख़ूबसूरती का अलग असर होता है

शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसी इसलिए होता है कि कुछ पुरुष आकर्षक महिलाओं के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं और ऐसा उनमें यौन हार्मोन्स की वजह से होता है.

इस अध्ययन में भाग लेने वाले डॉक्टर सीगफ्रेड डीविट्टे का कहना है कि मानव एक ऐसा जीव है जिसके अंदर विवेकशीलता प्राकृतिक रूप से ही होती है लेकिन इस अध्ययन से पता चलता है कि जिन पुरुषों में टेस्टोस्टीरोन नामक हार्मोन का स्तर ज़्यादा होता है वे ख़ासतौर से यौन गतिविधियों के लिए ज़्यादा संवेदनशील होते हैं.

अगर ऐसा कोई माहौल आसपास नहीं है तो वे सामान्य रूप से बर्ताव करते हैं लेकिन अगर उन्हें आकर्षक महिलाएँ नज़र आती हैं तो उनके अंदर भावनाओं का आवेग जाग उठता है.

लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक प्रवृत्ति है और ऐसी बात नहीं है कि इस तरह के पुरुषों में इसका सामना करने की ताक़त नहीं होती. वैज्ञानिकों के अनुसार हार्मोन का कोई ख़ास स्तर होना एक अलग बात है लेकिन इस कमज़ोरी को दूर किया जा सकता है.

दिलचस्प बात ये है कि अब इसी तरह का अध्ययन महिलाओं पर भी किया जा रहा है.

बड़ी उम्र में भी है यौनरोगों का ख़तरा



एक ताज़ा शोध में कहा गया है कि साथी का इतिहास जाने बिना यौन संबंधों में कंडोम का इस्तेमाल नहीं करने के कारण पचास से ऊपर की उम्र वाले लोग ख़ुद को यौन संक्रमण के "ख़तरे" में ढकेल रहे हैं.
शोध का कहना है कि सर्वेक्षण में शामिल हर दस में एक आदमी ने क़बूल किया कि अपने साथी के यौन इतिहास की जानकारी नहीं रहते हुए भी उन्होंने संक्रमण से बचाव के लिए कंडोम का उपयोग नहीं किया.

यौन संबंध से होने वाला संक्रमण (एसटीआई) आम तौर हर उम्र वर्ग में दिख रहा है. इसमें पचास की उम्र पार कर चुके लोग भी शामिल हैं.

"सागा" पत्रिका ने इस सर्वेक्षण में पचास साल से ज़्यादा उम्र के क़रीब आठ हज़ार लोगों से पूछताछ की.

सर्वेक्षण में इन लोगों के सामान्य स्वास्थ्य के अलावा उनकी यौन ज़िंदगी की भी परख की गई.

पत्रिका की संपादक एम्मा सोम्स कहती हैं, "आम मान्यता है कि यौन संक्रमण का ख़तरा युवाओं को है. पचास से ऊपर वाले आमतौर पर गर्भनिरोधक उपाय नहीं करते क्योंकि उन्हें असुरक्षित यौन संबंध बनाने में कोई ख़राबी नज़र नहीं आती."

बढ़ते मामले

स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी ने भी इस बात की पुष्टि की है कि यौन संबंधों से फैल रहे संक्रमण के मामले सभी उम्र के लोगों में बढ़े हैं.

एजेंसी की एसटीआई शाखा के प्रमुख ग्वेंडा हग्स कहते हैं, "हो सकता है कि ज़्यादा उम्र के लोगों में इस बात को लेकर कम जागरूकता हो कि उन्हें एसटीआई का ख़तरा है."


संक्रमण में बेमानी है उम्र...
ग्वेंडा हग्स कहते हैं, "आपकी उम्र कितनी भी क्यों न हो, अगर आप नई साथी से संबंध बना रहे हैं और कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो आपको संक्रमण हो सकता है."

पत्रिका के अध्ययन में शामिल किए गए 65 फ़ीसदी लोग यौन संबंधों को लेकर सक्रिय मिले.

क़रीब-क़रीब आधे लोगों ने कहा कि वे सप्ताह में कम से कम एक बार ज़रूर यौन संबंध क़ायम करते हैं.

संपादक सोम्स कहती हैं, "बड़ी उम्र में लोग सेक्स कर रहे हैं और कोई शक नहीं कि इसमें वियाग्रा की अहम भूमिका है."

सोम्स कहती हैं, "यौन क्षमता बढ़ाने में मददगार दवाओं का इस्तेमाल कई लोगों की ज़िंदगी में शामिल हो गया है. कई जोड़ियों में यह लंबे समय तक यौन संबंध बनाने की आकांक्षा पूरी कर रहा है."

सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई कि पचास से ज़्यादा उम्र वालों में सेक्स का स्तर बेहतर था.

कम दबाव

सर्वेक्षण में शामिल 85 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि पचास साल की उम्र के बाद सेक्स कम तनाव देता है जबकि 70 फ़ीसदी लोग इसे जवानी के दिनों से ज्यादा संतुष्टि देने वाला मानते हैं.


लोगों का कहना रहा कि बड़ी उम्र में सेक्स के दौरान वे कम तनाव महसूस करते हैं

पत्रिका का कहना है कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उम्र के उस दौर में लोग कम से कम तनाव और शरीर से सुविधाजनक महसूस करना चाहते हैं.

हालाँकि बड़ी उम्र में लोग यौवन के दिनों से कम सेक्स करते हैं. 84 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि 20 और 30 साल की उम्र की तुलना में पचास के बाद वे यौन संबंध कम बनाते हैं.

सोम्स कहती हैं, "संख्या कोई मामला ही नहीं है. वे स्तरीय संबंध का आनंद ले रहे हैं."

सर्वेक्षण में ऊपर के दो सामाजिक-आर्थिक समूह के लोगों को शामिल किया गया था और इनमें 75 फ़ीसदी शादीशुदा थे.

एक चौथाई अमरीकी लड़कियों को यौनरोग!


एक अध्ययन से संकेत मिले हैं कि अमरीका में हर चार में से एक लड़की यौनरोग से पीड़ित है.
अमरीका के 'सेंटर्स फॉर डीज़ीज़ कंट्रोल' (सीडीसी) के इस अध्ययन में कहा गया है कि यौनजनित रोगों से पीड़ित अश्वेत युवतियाँ की संख्या इससे भी अधिक है.

इस अध्ययन में देश भर से 14 से 19 साल की 838 लड़कियों की जाँच का विश्लेषण किया गया है.

इसमें गर्भाशय के कैंसर के लिए ज़िम्मेदार वायरस 'एचपीवी' के मामले सबसे अधिक पाए गए. इसके बाद क्लैमिडिया, ट्राइकोमोनियासिस और हर्पीस रोगों के मामले मिले हैं.

सीडीसी का कहना है कि यह अपने तरह का पहला अध्ययन है और इसमें कहा गया है कि यौनजनित रोगों का शिकार नवयुवतियाँ अधिक होती हैं.

अध्ययन में पाया गया कि लगभग आधी अफ़्रीकन-अमरीकी लड़कियाँ कम से कम एक यौनजनित रोग से पीड़ित हैं जबकि श्वेत और मैक्सिकन-अमरीकी लड़कियों में इसका प्रतिशत 20 के क़रीब पाया गया.

अध्ययन में पाया गया है कि लगभग 18 प्रतिशत लड़कियाँ एचपीवी का शिकार हैं.

गंभीर मामला


गर्भाशय के कैंसर का टीका 11-12 की उम्र में लगवाने की सलाह दी जाती है

सीडीसी के डेविड फ़ेंटन का कहना है कि यह एक गंभीर मसला है क्योंकि इन रोगों की वजह से लड़कियों में बाँझपन और गर्भाशय के कैंसर की समस्या हो सकती है.

उन्होंने कहा, "यौन संबंध बनाने वाली लड़कियों की नियमित जाँच, टीके और बचाव के दूसरे उपाय हमारी सबसे बड़ी स्वास्थ्य प्राथमिकता है."

सीडीसी ने कहा है कि क्लैमिडिया के लिए यौन-सक्रिय 25 वर्ष से कम आयु की सभी युवतियों की नियमित जाँच होनी चाहिए जबकि एचपीवी से बचाव के लिए 11-12 वर्ष की आयु में लड़कियों को टीके लगवाए जाने चाहिए और बाद में एक बूस्टर टीका भी लगवाना चाहिए.

सीडीसी के यौनरोग विभाग के प्रमुख जॉन डगलस का कहना है कि लड़कियाँ इन रोगों की जाँच नहीं करवाती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनको कोई ख़तरा ही नहीं है.

विश्लेषकों का कहना है कि डॉक्टर भी अक्सर इन रोगों की जाँच नहीं करते क्योंकि इसके नतीजे अभिभावकों को बताने होंगे और इससे मरीज़ की गोपनीयता प्रभावित हो सकती है.