Friday, December 7, 2007

छोटी उम्र में ही बड़ा कारनामा


प्रवासी भारतीय दिवस कार्यक्रम के दौरान एक नौ साल के बच्चे से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए और उन्होंने इस बच्चे की विशेष रूप से पीठ थपथपाई.
नौ साल के इस चमत्कारी बच्चे अजय पुरी की ख़ासियत यह है कि इसने तीन साल की उम्र में अपनी वेवसाइट तैयार कर ली थी.

मनमोहन सिंह ने उससे कहा,” तुम भारत का नाम रोशन करोगे, मुझे तुम पर गर्व है.”

अजय पुरी पैदा तो हैदराबाद में हुआ है लेकिन बैंकॉक के एक स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ता है और उसके पिता आदित्य बिरला ग्रुप की एक कंपनी में काम करते हैं.

जब वो तीन साल का था तो उसने माइक्रोसॉफ्टकिड डॉट कॉम नाम की एक वेबसाइट डिज़ाइन की.

पत्रकारों से बातचीत में उसने बताया कि यह वेबसाइट मेरे बारे में है. मैं किनसे मिला और मैं कंप्यूटर के बारे में क्या जानता हूँ आदि.

अजय बिल गेट्स से लेकर नारायण मूर्ति तक से मिल चुका है. बिल गेट्स तो उससे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अजय को अपनी साइट के नाम में माइकोसॉफ्ट लगाने की इज़ाजत दे दी.

अजय के दादा बीएन पुरी उसके साथ आए हुए थे.

उसने बताया कि उसका छोटा भाई थोड़ा तगड़ा है इसलिए उसे लोग 'हार्डवेयर' और मुझे 'सॉफ्टवेयर' कहते हैं.

हालांकि उसकी दिलचस्पी क्रिकेट और फ़ुटबॉल में भी है लेकिन पहला प्यार कंप्यूटर से है.

अखबार वाला वो लड़का!


अख़बार बेच कर पढ़ाई कर रहे कोलकाता के सौरभ बोदक ने दसवीं कक्षा में 92 फ़ीसदी से अधिक अंक हासिल किए हैं. पढ़िए होनहार छात्र की कहानी उसी की जुबानी...
''मैंने जबसे होश संभाला अपने पिता समीर बोदक को अख़बार बेचते ही देखा. वे हमारी नींद टूटने के पहले ही घर से निकल जाते थे और सूरज चढ़ने पर घर लौटते थे.

बचपन से उनकी मेहनत देख कर ही मैंने तय किया कि जीवन में कुछ बन कर ही मैं पिता की इस मेहनत का फल दे सकता हूं. इसी लगन ने तमाम अभावों के बीच मुझमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी.

बड़े भाई भी घर का खर्च चलाने के लिए अख़बार बेचते हैं. कुछ बड़ा हुआ तो मैंने भी अतिरिक्त आमदनी के लिए अख़बार बेचने का फ़ैसला किया.

मैं सियालदह रेलवे स्टेशन से अख़बार ख़रीद कर साल्टलेक और बालीगंज इलाके में घर-घर बाँटता हूँ. उसके बाद लौट कर तैयार होकर स्कूल पहुंचता हूं.

मैं जिस बेलियाघाटा देशबंधु स्कूल में पढ़ता हूँ, वहां के तमाम शिक्षक और छात्र मुझे बहुत मानते हैं.

स्कूल ने मेरी लगन और परीक्षा के नतीजों को देख कर फ़ीस तो माफ़ कर ही दी है, मुझे मुफ़्त में किताबें भी मुहैया करा दी हैं.

घर की ख़ुराकी

मेरे पिता बीते 25 वर्षों से रोजाना मीलों साइकिल चलाते रहे हैं. इस वजह से अब उनकी तबियत ठीक नहीं रहती. ऐसे में मेरी आय से किसी तरह घर का खर्च भी चलता है.


मेरे पिता बीते 25 वर्षों से रोजाना मीलों साइकिल चलाते रहे हैं. इस वजह से अब उनकी तबियत ठीक नहीं रहती. ऐसे में मेरी आय से किसी तरह घर का खर्च भी चलता है


सौरभ बोदक

घर में माता-पिता के अलावा हम दो भाई हैं. मेरे घरवालों को उम्मीद है कि मैं पढ़-लिख कर एक दिन बड़ा आदमी बनूंगा और उनकी तक़लीफें दूर हो जाएंगी. मैं उनके सपने को साकार करने का भरसक प्रयास कर रहा हूँ.

सपने मैंने भी देखे हैं. मेरा सपना इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर बनने का है. इसके लिए मैं भारतीय तकनीकी संस्थान यानी आईआईटी और राज्य की साझा प्रवेश परीक्षा में बैठूंगा.

मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि आईआईटी की प्रवेश परीक्षा के लिए कहीं से कोचिंग कर सकूं. लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी है. स्कूल के शिक्षकों ने प्रवेश परीक्षा की तैयारी में मदद का भरोसा दिया है.

स्कूल के शिक्षक दूसरे छात्रों को मेरी मिसाल देते हैं. लेकिन यह अच्छा नहीं लगता है. आख़िर जीवन में कुछ पाने के लिए मेहनत तो करनी ही होती है.

मैं चाहता हूं कि एक दिन बढ़िया नौकरी हासिल कर अपने मां-बाप को सुकून और आराम पहुँचा सकूं.

लेकिन उससे पहले अभी लंबा रास्ता तय करना है. आगे की पढ़ाई के लिए भी और घर-घर अख़बार पहुंचाने के लिए भी.''