Tuesday, December 4, 2007

आकर्षित करते हैं होंठ


वैज्ञानिकों के शोध में पता चला है कि व्यक्ति विशेष के होंठ इस बात का निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाते हैं कि वह सामने वाले को कितना आकर्षित कर पाता है.

होंठों के बारे में इतना तो कहा ही जा सकता है कि- जितने भरे-पूरे, उतने अच्छे.
लेकिन प्लास्टिक सर्जरी के ज़रिए होंठों का आकार बढ़ाने के इच्छुक लोगों के लिए चेतावनी कि ज़रूरत से ज़्यादा बड़े न हो जाएँ होंठ.

जहाँ पुरुषों को भरे होंठ भाते हैं, वहीं यह आवश्यक नहीं कि उनके बड़े होंठ महिलाओं को पसंद आएँ ही.

लुइसविले विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर माइकल कनिंघम ने बीबीसी को बताया, "सीधे शब्दों में कहें तो बड़ा आकार छोटे से बेहतर होता है."

लेकिन पुरुषों के मामले होंठों का आकर्षण इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह महिलाओं जैसा न दिखे.

हालाँकि कनिंघम के अनुसार पुरुषों के होंठों में भी उदारता और गर्माहट तो दिखनी ही चाहिए.

उन्होंने कहा, "पुरुषों के चेहरे पर मध्यम आकार के होंठ सटीक लगते हैं. न ज़्यादा बड़े, न ज़्यादा छोटे."

दूसरी ओर महिलाओं की बात करें तो कनिंघम के अनुसार रसीले गुलाबी होंठों का कोई जवाब नहीं.

व्यापक अनुसंधान

प्रोफ़ेसर कनिंघम और उनकी टीम ने ये देखने के लिए कई प्रयोग किए कि चेहरे में थोड़े से भी बदलाव से यौन आकर्षण किस हद तक प्रभावित होता है.



जब कोई व्यक्ति आपको देखकर वास्तव में ख़ुश होता है तो उसके होंठों की लाली बढ़ती है और होंठों का आकार भी बढ़ता है
प्रोफ़ेसर कनिंघम
शोध में पाया गया कि बढ़िया होंठ एक आकर्षक चेहरे को जहाँ और आकर्षक बना सकता है, वहीं किसी अनाकर्षक चेहरे को बढ़िया होंठ भी कोई ख़ास मदद नहीं दे सकते.

कनिंघम कहते हैं, "होंठों से भाव व्यक्त होते हैं. जब कोई व्यक्ति आपको देखकर वास्तव में ख़ुश होता है तो उसके होंठों की लाली बढ़ती है और होंठों का आकार भी बढ़ता है."

उनके अनुसार होंठों से आपका यौन आकर्षण, आपकी गर्माहट ज़ाहिर होती है.

वैसे भी वैज्ञानिकों के अनुसार होंठ की सेक्स की दृष्टि से अहमियत है.

शेफ़िल्ड विश्वविद्यालय के मनोविज्ञानी रॉय लेविन कहते है, "होंठ इतने संवेदनशील होते हैं कि आप तुरंत जान जाएँ कि आपको मिला चुंबन किसी प्रेमी का है या किसी मित्र का."
कुल मिलाकर ताज़ा अनुसंधान से ज़ाहिर हुआ है कि पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए यौन आकर्षण के केंद्र किसी चेहरे के अवयव हैं: छोटी नाक, बड़ी आँखें और भरे होंठ

लंबी उंगलियों वाले होते हैं आक्रामक

कनाडा के वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी व्यक्ति की उंगलियों की लंबाई के आधार पर बताया जा सकता है कि वह शारीरिक रुप से कितना आक्रामक है.
एक शोध के आधार पर कहा गया है कि यदि अंगूठे के बाद वाली उंगली 'तर्जनी' की लंबाई अंगूठी पहनने वाली उंगली 'अनामिका' से जितनी छोटी होगी वह व्यक्ति उतना ही तेज़ या उधमी होगा.

अलबर्टा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सिद्धांत बोलने में तेज़ या लड़ाकू किस्म के लोगों के बारे में लागू नहीं होती.

कोई तीन सौ लोगों की उंगलियों का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह गर्भावस्था के दौरान टेस्टोस्टेरॉन की उपलब्धता से प्रभावित हो सकता है.

टेस्टोस्टेरॉन ऐसा हारमोन होता है जो शरीर में विकास और मांसपेशियों की गतिविधियों को नियंत्रित करता है और आमतौर पर जिसे पुरुषों का सेक्स हारमोन कहा जाता है.

यह कुछ समय पहले ही मालूम हो चुका है कि गर्भावस्था के दौरान टेस्टोस्टेरॉन मिलने का संबंध उंगलियों की लंबाई से होता है.

महिलाओं में तो तर्जनी और अनामिका की लंबाई बराबर होती है लेकिन पुरुषों में अनामिका की लंबाई तर्जनी के मुकाबले ज़्यादा होती है.

दूसरे शोधों के आधार उगलियों के बारे में कहा गया था कि जिन पुरुषों की अनामिका लंबी होती है और दोनों हाथ एक जैसे होते हैं उनकी प्रजनन क्षमता अच्छी होती है. और महिलाओं के बारे में कहा जाता है कि यदि उनकी तर्जनी लंबी है तो उनकी प्रजनन क्षमता अच्छी हो सकती है.
कहा जाता है कि टेस्टोस्टेरॉन की वजह से ही यदि किसी व्यक्ति की अनामिका छोटी होती है तो उसे कम उम्र में ही दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा होता है.

यूनिवर्सिटी के तीन सौ स्नातक छात्रों के अध्ययन के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुँचे कि अनामिका की लंबाई का संबंध शारीरिक आक्रामकता से होता है.

अब वे हॉकी खिलाड़ियों का अध्ययन करके देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या उंगलियों का संबंध उनके पेनाल्टी को गोल में तब्दील करने की क्षमता या मैच के दौरान ग़लतियाँ करने से भी होता है.

शोध में इस बात का भी परीक्षण हो रहा है कि क्या महिलाओं की तरह उंगलियों वाले पुरुषों को मानसिक अवसाद ज़्यादा जल्दी होता है.

डॉ पीटर हर्ड का कहना है कि बहुत सारी चीज़े तभी तय हो जाती हैं जब हम गर्भ में होते हैं.
और उनका कहना है कि उंगलियों की लंबाई से किसी के व्यक्ति के बारे में सबसे अधिक जाना जा सकता है.

तिरूपति के वेंकटेश्वर मंदिर


तिरूपति के वेंकटेश्वर मंदिर का निर्माण किसने और कब किया इसके बारे में कोई एकमत नहीं है. लेकिन 500 वर्ष ईसापूर्व से लेकर सन 300 के बीच, तमिल भाषा के संगम साहित्य में, इसका ज़िक्र मिलता है. सन् 500 तक यह, वैष्णव संतों का केंद्र बन चुका था और चोला, होएसाला और विजयनगर राजघरानों ने इस मंदिर को दान करके बहुत संपन्न बनाया. आज यह दुनिया का सबसे धनी हिंदू मंदिर है और प्रतिदिन कोई पचास हज़ार तीर्थयात्री भगवान विष्णु के दर्शन करने आते हैं. यह मंदिर आंध्रप्रदेश की तिरुमाला पहाड़ियों में से वैंकटचलम पहाड़ी पर स्थित है.yaha mannat mangne par bhagwan unki manokamna puri karte hai. Log apne hair bhi yahi pe chadhate hai. yaha ka famous prashad laddu bhog tast me best hai

पुलिस की वर्दी ख़ाकी क्यों


भारतीय पुलिस की वर्दी ख़ाकी क्यों है. इसे चुनने के पीछे क्या कारण है. क्या इसलिए कि इसमें गंदगी छिप जाती है. ख़ाकी शब्द फ़ारसी भाषा के ख़ाक शब्द से बना है जिसका मतलब है धूल या मिट्टी. इसके पीछे बड़ी रोचक कहानी है. सन 1846 में सर हैरी लम्सडैन ने फ़्रन्टियर सेवा की मदद के लिए पेशावर में एक गाइड दल बनाया. इनके लिए ढीले-ढाले कपड़े बनवाए गए जो मटमैले रंग के थे. जब 1857 में गदर हुआ तो बहुत सी ब्रिटिश रैजिमैंटों ने अपनी गर्मियों की सफ़ेद पोशाक को ख़ाकी रंग में रंग लिया. अब तक इस रंग के फ़ायदे समझ में आने लगे थे कि यह जल्दी गंदी नहीं होती इसलिए 1880 तक इस क्षेत्र में अधिकांश रैजिमैंटों ने अपनी पोशाकें ख़ाकी रंग में रंगवानी शुरू कर दीं. यहाँ तक कि 1899 में दक्षिण अफ़्रीका में हुई ऐंग्लो बोर लड़ाई में भी ब्रिटिश सेना ने ख़ाकी पोशाक अपनाई. उधर अमरीका में 1898 में हुई स्पेनी अमरीकी लड़ाई में अमरीकी सेना ने ख़ाकी वर्दी अपनाई और एक समय ऐसा आया जब दुनिया के कई देशों की सेना और पुलिस दल की वर्दी का रंग ख़ाकी हो गया.

डेजर्ट एलोविरा अब एड्स रोगियों के लिए फायदेमंद

रानीवाड़ा(भास्कर)
मारवाड़ में उगने वाली डेजर्ट एलोविरा(मीठा ग्वारपाठा) और मशरुम(खुम्बी) अब एड्स रोगियों के लिए फायदेमंद साबित होने लगी है। मानव कल्याण संस्थान के निदेशक और सेवानिवृत चिकित्साधिकारी डॉ गंगासिंह चौहान ने काजरी के रिटायर्ड सांइन्सिटक डॉ ए पी जैन के सहयोग से एलोविरा व मशरुम के कैप्सूल तैयार किए हैं। एड्स रोगियों पर इनका परीक्षण करने पर अभूतपूर्व और चौंकाने वाले सुधार नजर आए। सफलता से उत्साहित डॉ चौहान पायलट प्रोजेक्ट के तहत इस रिसर्च का दायरा बढ़ाते हुए एड्स रोगियों पर बड़े स्तर पर कैप्सूल से इलाज करना शुरु कर दिया है।
क्या हुआ फायदाः-
कैप्सूल से रोगियों के प्रमुख बायोलॉजिकल पैरामीटर्स न केवल थम गए, बल्कि उनका वजन भी बढ़ने लगा। सीडी टी कोशिका गणक में ६१ फिसदी की वृद्धि देखी गई। ९० फिसदी रोगियों की सीडी कोशिका में बढ़ोतरी के साथ शारीरिक वजन भी १० फिसदी बढ़ता नजर आया। इसी तरह उनमें प्रथर एडेप्टोजन का खात्मा होना भी सामने आया।
पहले चूर्ण, फिर कैप्सूलः-
पहले एलोविरा व मशरुम को मिलाकर एक चूर्ण तैयार किया गया। सादड़ी में एड़्स रोगियों का इलाज करने वाली मानव कल्याण संस्थान ने कुछ एड्स रोगियों को यह चूर्ण दिया तो उनकी हालत में सुधार नजर आया। बाद में चूर्ण से कैप्सूल तैयार किए गए।
फायदा दिखा, शोध जारीः-
डॉ चौहान ने एड्स रोगियों पर किए गए इस शोध के बारे में हाल ही डेजर्ट मेडिसिन रिचर्स सेंटर में पत्रवाचन किया। उन्होंने बताया कि एलौविरा व मशरुम के मिश्रण से तैयार इस कैप्सूल से एड्स रोगियों में काफी सुधार आया। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ने लगी है। अभी इस पर रिचर्स जारी है। इसलिए रोगियों को मेडिसिन के साथ कैप्सूल दे रहे है।
गुणों की खानः-
डॉ जैन के अनुसार एलोविरा व मशरुम में ८ आवश्यक एमीनो एसीड़, १० से १२ वसीय अम्ल और सभी आवश्यक विटामिन होते है। आधुनिक साईन्स ने इन मेंसे २०० तत्व खोज निकाले है, जो न केवल पौषक, बल्कि रोगोपचार में सहायक है। इसके प्रयोग से एड्स रोगियों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। महिने भर तक इन कैप्सूलों को लेने से ४ सौ रुपए का खर्चा आता है। साईड़ इफेक्ट अभी तक नजर नही आया हैं।