Wednesday, October 24, 2007

ब्लॉग बना चिट्ठा, जम गई चिट्ठाकारिता

इंटरनेट पर इन दिनों ब्लॉगिंग की खूब चर्चा है, हालाँकि इसकी शुरुआत तकरीबन दस साल पहले अँग्रेजी में हुई थी मगर अब हिंदी लिखने-पढ़ने वालों में भी यह विधा लोकप्रिय हो चली है.
ब्लॉग यानी इंटरनेट पर डायरीनुमा व्यक्तिगत वेबसाइटें, जिसके लिए हिंदी में 'चिट्ठा' नाम प्रचलित और स्थापित हो चुका है.

महज साढ़े चार साल पहले हिंदी ब्लॉग लेखन की शुरुआत हुई थी और आज हिंदी चिट्ठों की तादाद हज़ार से ऊपर है.

मगर इस विधा को हिंदी में अपनाना कोई आसान काम नहीं था. शुरुआती दौर को तकनीकी गुरू और चिट्ठाकार रवि रतलामी कुछ यों याद करते है, "उन दिनों दो सवाल खूब पूछे जाते थे. पहला तो ये कि कंप्यूटर पर हिंदी नहीं दिखती, क्या करें? और दूसरा ये कि हिंदी दिखती तो है मगर हिंदी में लिखें कैसे?"

ये सवाल हालाँकि लोग अब भी पूछते हैं लेकिन भोमियो और गूगल इंडिक ट्रांसलिटरेशन टूल जैसी सुविधाओं के आ जाने से देवनागरी लिखना पहले के मुक़ाबले बहुत आसान हो गया है.

इंटरनेट पर हिंदी और ब्लॉगिंग से जुड़ी ऐसी तमाम परेशानियों को दूर करने के उद्देश्य से तकनीक के जानकार चिट्ठाकार अपने चिट्ठों पर समय-समय पर लिखते रहे हैं जिन्हें खूब पढ़ा जाता है.

हिंदी के ज़्यादातर चिट्ठे 'ब्लॉगर डॉटकॉम' या 'वर्डप्रेस डॉटकॉम' पर उपलब्ध मुफ़्त ब्लॉगिंग टूल के माध्यम से चल रहे हैं.

विविधता

बात इन चिट्ठों पर प्रकाशित सामग्री की जाए तो इसकी विविधता का दायरा हल्के-फुल्के हास्य-व्यंग्य या फिर गंभीर साहित्यिक लेखन तक ही सीमित नहीं है. इन चिट्ठों की माध्यम से कोई अपने सामाजिक आंदोलनों को गति दे रहा है तो कोई धर्म और आस्था की बातें कर रहा है.


'मोहल्ला' पर बीसियों लोग मिलकर लिखते हैं

किसी के चिट्ठे पर भारतीय रसोई की खुशबू है तो कोई बाज़ार की झलक दिखाने में लगा है. कोई अपना तकनीकी ज्ञान लोगों से साझा कर रहा है तो कोई अपने लेखन से मन की परतें खोलने में लगा है. सिनेमा, खेल, समाज, राजनीति जैसे हर विषय पर लोग खुलकर लिखते हैं और बहस भी छिड़ती है.

ब्लॉगिंग विधा ने राजस्थान में बाड़मेर पुलिस को इतना प्रभावित किया कि विभाग ने अपना एक आधिकारिक चिट्ठा ही बना लिया. इस चिट्ठे पर विभाग अपने दैनिक कार्यकलापों का ब्यौरा प्रकाशित करता है.

यदि आप चिट्ठाकारी की विविधता की सही तस्वीर देखना चाहते हैं तो आपको ब्लॉग एग्रीगेटरों पर जाना होगा.

ब्लॉग एग्रीगेटर यानी ऐसी वेबसाइट जहां सक्रिय चिट्ठों की सूची होती है. हिंदी चिट्ठाकारी को बढ़ावा देने में ब्लॉग एग्रीगेटरों की न सिर्फ भूमिका बड़ी है, बल्कि इनकी विकास यात्रा भी बड़ी रोचक रही है.

शुरुआत

चिट्ठाविश्व नाम से पहला हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर बनाने वाले पुणे के सॉफ्टवेयर इंजीनियर देबाशीष चक्रवर्ती बताते हैं कि शुरुआत में जब महज पाँच-दस चिट्ठे हुआ करते थे तब चिट्ठाकार एक-दूसरे के चिट्ठों पर जाकर ताज़ा सामग्री पढ़ लिया करते थे. संख्या बढ़ने पर इस कल्पना ने जन्म लिया कि अलग-अलग चिट्ठों पर होने वाले अपडेट की सूचना एक ही जगह मिला करे.


ज़िंदगी भर बहुत कमाया है, ब्लॉगवाणी तो अब बुढ़ापे में खुद को व्यस्त रखने का एक साधन भर है. पर भविष्य में एग्रीगेटरों के व्यावसायिक महत्व से इनकार भी नहीं किया जा सकता


मैथिली गुप्ता, ब्लॉगवाणी के संचालक

तेजी से बढ़ते चिट्ठों की वजह से चिट्ठाविश्व की सेवा नाकाफी साबित होने लगी क्योंकि वह तकनीकी तौर पर इतने सारे चिट्ठों के लिए तैयार नहीं था. ऐसे में चिट्ठोंकारों ने आपसी सहयोग का अनूठा उदाहरण पेश किया.

देश-विदेश में बसे कई चिट्ठाकारों ने हिंदी के नाम पर आपस में चंदा करके एक हज़ार डॉलर से भी ज्यादा की रकम जुटाई. इस रकम का इस्तेमाल करके जो एग्रीगेटर बना वो 'नारद' के नाम से बेहद लोकप्रिय साबित हुआ.

अब तो चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी नाम के एग्रीगेटर भी सक्रिय है.

चिट्ठों की तेजी से बढ़ती संख्या की वजह से एग्रीगेटरों के संचालन का खर्च भी बढ़ता जा रहा है. ब्लॉगवाणी के संचालक मैथिली गुप्त ने तो अपने एग्रीगेटर के लिए एक अलग सर्वर ही ले रखा है जिसका किराया 200 डॉलर मासिक के आसपास बैठता है.

इतने खर्चे के पीछे कोई व्यवसायिक उद्देश्य? यह पूछे जाने पर सरकारी नौकरी में भाषायी सॉफ्टवेयर निर्माण के काम से रिटायर मैथिली गुप्त कहते हैं, "ज़िंदगी भर बहुत कमाया है, ब्लॉगवाणी तो अब बुढ़ापे में खुद को व्यस्त रखने का एक साधन भर है. पर भविष्य में एग्रीगेटरों के व्यावसायिक महत्व से इनकार भी नहीं किया जा सकता."

जमती जड़ें

किसी ब्लॉगर की लोकप्रिय पोस्ट आम तौर पर 200 से 300 बार पढ़ी जाती है वहीं ब्लॉग एग्रीगेटरों के पन्ने रोज़ाना तकरीबन पाँच से दस हज़ार बार देखे जाते हैं.

ब्लॉगर भी अपने चिट्ठों को लोकप्रिय बनाने की तिकड़म में लगे रहते हैं. इसके लिए वे परंपरागत लेखन के अलावा इंक ब्लॉगिंग, पॉडकास्टिंग यानी ऑडियो ब्लॉगिंग और वीडियो ब्लॉगिंग करते देखे जा सकते हैं. ये बात और है कि इन प्रयोगधर्मी ब्लॉगरों की तकनीकी समझ आम ब्लॉगरों की तुलना में थोड़ी अधिक होती है.


ब्लॉगवाणी कुछ ही समय पहले शुरु हुआ है

इस चलन को गीत-संगीत पर आधारित चिट्ठा चलाने वाले वाले यूनुस खान चिट्ठाकारी का स्वाभाविक विस्तार मानते हैं. बतौर रेडियो प्रेजेंटर विविध भारती में कार्यरत यूनुस अपने चिट्ठे पर ऐसे गीत-संगीत को जगह देते हैं जिसे रेडियो पर पेश कर पाना मुमकिन नहीं.

व्यवसायिकता की दृष्टि से देखें तो अंग्रेजी के ब्लॉगर अपने लेखन से डॉलर और पाउंड में खासी कमाई कर रहे हैं, मगर हिंदी में चिट्ठा लेखन फिलहाल शौक़िया ही है.

यहाँ यह बता देना जरूरी है कि ब्लॉगरों की कमाई मुख्य रूप से विज्ञापन और प्रयोजित लेखन के ज़रिए होती है. हालांकि कुछ हिंदी चिट्ठाकार भी इस रास्ते पर हैं मगर कमाई अभी ना के बराबर ही है.

जानकार मानते हैं कि इंटरनेट के तेज़ी से हो रहे विस्तार में हिंदी चिट्ठाकारों का उज्ज्वल भविष्य छिपा है क्योंकि अब नेट पर अंगरेज़ी का एकछत्र राज नहीं रह गया है.

पाकिस्तान में मुहाजिरों का दर्द

विभाजन को साठ साल हो गए हैं लेकिन बँटवारे का दर्द किसी न किसी रूप में यहाँ आज भी महसूस किया जा सकता है.
बँटवारे के बाद अपने लिए एक अलग देश का सपना आँखों में लिए मुसलमानों का पाकिस्तान पलायन हुआ.

ये लोग भारत में अपना सार घर-बार छोड़कर पाकिस्तान आए थे लेकिन पाकिस्तान में इन उर्दूभाषी लोगों को मुहाजिर कहा गया और इनमें से बहुत सारे लोग जिस हालत में आए थे आज भी उसी हालत में कराची की मैली-कुचैली गलियों में जीवन बिता रहे हैं.

लगभग 50 फ़ीसदी मुहाजिर मुफ़लिसी की हालात में कराची तथा सिंध में रहते हैं. साठ साल बीत जाने बाद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है.

ग़रीबी से जूझते ये लोग बड़ी संख्या में कराची के गुज्जर नाला, ओरंगी टाउन, अलीगढ़ कॉलोनी, बिहार कॉलोनी और सुर्जानी इलाकों में रहते हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान की आबादी लगभग 16.5 करोड़ है. जिसमें मुहाजिरों की संख्या लगभग आठ प्रतिशत है. ये वो लोग हैं जो विभाजन के समय पाकिस्तान आए थे.

इसके अलावा 44.68 फ़ीसदी पंजाबी, 15.42 फ़ीसदी पश्तून, 14.1 फ़ीसदी सिंधी, 10.53 फ़ीसदी सिरायकी, 3.57 फ़ीसदी बलोच तथा 4.66 फ़ीसदी अन्य समुदाय हैं.

विभाजन की पीड़ा

कराची के गुज्जर नाले के निवासी और भारतीय शहर कानपुर से आए, 78 साल के मोहम्मद अनवर बँटवारे के दर्द को याद करते हुए कहते हैं, “जब हम पाकिस्तान पहुँचे तो पहले हमे थार के मरुस्थल में बनाए गए एक शिविर में रखा गया, जहाँ हम मजबूरी में ट्रेन के भापइंजन से निकला गरम पानी पीते थे."

अनवर का कहना था, “हम किस तकलीफ़ से गुजरे हैं यह शायद इस युवा पीड़ी को नहीं मालूम होगा. हमने कई मंज़र देखे हैं जिसमें बँटवारे के दौरान दंगों में हमारे अजीज़ हमसे बिछड़ गए.”




अनवर ने बताया कि कानपुर में घर, ज़मीन, जो भी था सब कुछ छोड़कर केवल एक चादर लिए पाकिस्तान आए थे. मुआवज़े में सरकार की ओर से कुछ भी नहीं मिला. मुआवज़े में घर या संपत्ति उन्हीं को मिली जिनके आगे-पीछे कोई हाथ था. या जिन्होंने लूटा उनको ही सब मिला.”


हम तो इस्लाम का झंडा लेकर अए थे और सोचा था कि मुसलमानों के लिए एक अलग देश बन रहा है तो कुछ सुख की सांस लेंगे पर यहाँ तो तकलीफ़ ही तकलीफ़ हैं


मोहम्मद अनवर

मोहम्मद अनवर ने कहा, “हम तो इस्लाम का झंडा लेकर अए थे और सोचा था कि मुसलमानों के लिए एक अलग देश बन रहा है तो कुछ सुख की सांस लेंगे पर यहाँ तो तकलीफ़ ही तकलीफ़ हैं”.

बँटवारे के समय जब मोहम्मद अनवर ने कानपुर छोड़ा था तब उन की उम्र 17 साल थी, और फिर ग़रीबी के कारण उन्हें कानपुर लौटना नसीब नहीं हुआ.

उन्होंने बताया, “भारत जाने के लिए इतने साधन नहीं हैं, पेट की चिंता करें या अपने मादरे-वतन कानपुर देखने की. दिल तो बहुत करता है, पर क्या करें, ग़रीबी ने दीवार सी खड़ी कर दी है.”

उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर से आए, 72 वर्षीय अयूब अली का कहना था, “शाहजहाँपुर में घर छोड़ा ज़मीन छोड़ी, पर यहाँ आने के बाद भी फ़क़ीर ही रहे. न किसी ने सिर छिपाने को जगह दी और न ही किसी ने कोई मदद की. बँटवारे के बाद से आज तक धक्के खा रहे हैं.”

आख़िरी इच्छा

गुज्जर नाले के ही रहने वाले अयूब अली ने कहा कि पाकिस्तान में सारी उम्र तकलीफ़ में गुज़री है, "मन करता है कि भारत जाकर आख़िरी दिन वहीं पर ही गुज़ारूँ. बँटवारे के बाद फ़िर कभी मुड़कर भी अपने शाहजहाँपुर को नहीं देखा, अब तो मन में एक ही अरमान है कि शाहजहाँपुर जाऊँ और वहीं पर ही मौत आ जाए.”


शाहजहाँपुर में घर छोड़ा ज़मीन छोड़ी, पर यहाँ आने के बाद भी फ़क़ीर ही रहे

अयूब का कहना है, "पाकिस्तान में हमारी युवा पीढ़ी के लिए कोई रोज़गार की सुविधा उपलब्ध नहीं है. हमारे नौजवान सारा दिन गलियों में घूमते रहते हैं. सरकार को चाहिए कि उन्हें कम से कम कोई नौकरी तो दे."

इन मैली-कुचैली गलियों में इधर-उधर चक्कर लगाने वाले अधिकतर नौजवान भारतीय फ़िल्मी हीरो, हीरोईनों के प्रशंसक हैं. एक नौजवान, आसिफ़ ने कहा कि उन्हें शाहरुख़ ख़ान बहुत पसंद हैं और वह भारत जाकर फ़िल्मों में काम करना चाहते हैं.

आसिफ़ ने बताया, “बीए पास किए दो साल हो गए पर आज तक नौकरी नहीं मिली, सफ़ारिश है नहीं, हम ग़रीब लोग हैं इसलिए गलियों में धक्के खा रहे हैं.”

कराची के जाने-माने प्रोफ़ेसर तौसीफ़ अहमद ने बताते हैं कि विभाजन के बाद भारत से पलायन करके आने वाले लोगों में काफ़ी लोग निम्न-मध्यम वर्ग के भी थे.

तौसीफ़ अहमद ने कहा कि भारत से आने वाले लोग सांप्रदायिक हिंसा को झेलते हुए पाकिस्तान पहुँचे थे और उनके हाथ में कुछ भी नहीं था लेकिन जिन लोगों को कुछ नहीं मिल सका वह आज तक ग़रीबी में जी रहे हैं.

कराची के इन मुहाजिरों की एक पीढ़ी ने जहाँ विभाजन का दर्द और सांप्रदायिक दंगों की पीड़ा झेली तो दूसरी ओर इनकी युवा पीढ़ी आज ग़रीबी से जूझ रही है.

पाकिस्तान से अलग होने की माँग

पाकिस्तान के विवादास्पद बल्तिस्तान इलाक़े की रानी ने कहा है कि बल्तिस्तान को पाकिस्तान से आज़ादी दी जानी चाहिए.
इसकी वजह बताते हुए रानी ने कहा कि पिछले साठ साल में वहाँ के लोगों को न तो उनके हक़ मिले हैं और न ही उनसे किए वादे पूरे हुए हैं.

पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने आज बल्तिस्तान सहित उत्तरी पहाड़ी इलाक़ों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की है.

एक तरफ़ बल्तिस्तान को भारत जम्मू कश्मीर का हिस्सा बताता है तो दूसरी ओर, पाकिस्तान उसको अपना अटूट हिस्सा होने का दावा करता है.

बल्तिस्तान की सीमा एक तरफ़ भारत प्रशासित कश्मीर के कारगिल से लगती है तो दूसरी तरफ़ चीन से.


पहले तो हम बहुत समय तक प्रांत की माँग करते रहे, फिर आज़ाद कश्मीर की तरह और अब हमने सब कुछ छोड़ दिया है, अब हम माँग करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार बल्तिस्तान को पाकिस्तान से अलग किया जाए


बल्तिस्तान की रानी

पाकिस्तान में बल्तिस्तान, गिलगित और चित्राल को 'नॉर्थर्न एरियाज़' के नाम से जाना जाता है और ये इलाक़े आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान का हिस्सा नहीं हैं बल्कि विवादास्पद कश्मीर का हिस्सा हैं.

बल्तिस्तान की रानी मलिका बल्तिस्तानी ने बुधवार कराची में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि पहले बल्तिस्तान एक स्वतंत्र राज्य था लेकिन विभाजन के बाद हमने भारत के साथ जुड़े रहने के बजाए मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व पाकिस्तान में रहने का फैसला किया.

उन्होंने कहा, “हम कभी भी कश्मीर का हिस्सा नहीं रहे, पाकिस्तान ने एक अलग राज्य बनाकर आज़ाद कशमीर का नाम दिया और भारत ने कश्मीर को अपने संविधान और संसद में जगह दी.”

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सरकार ने बल्तिस्तान को एक प्रांत की हैसियत देने के बजाए सीधे राजधानी इस्लामाबाद से चला रही है जिससे हमारे लोगों को कोई अधिकार नहीं मिल रहे.

उन्होंने कहा, “सरकार ने बल्तिस्तानियों को नौकरियों से दूर रखा है और बल्तिस्तान में जो भी सरकारी नौकरी में है इन में कोई भी बल्तिस्तानी नहीं है.”

माँग

पाकिस्तान बनने के बाद बल्तिस्तान के लोगों की माँग रही है कि बल्तिस्तान को प्रांत बना दिया जाए लेकिन सरकार ने इस मांग को हमेशा ठुकरा दिया है.


बल्तिस्तान के एक तरफ़ कारगिल है और दूसरी ओर चीन

मलिका बल्तिस्तानी ने बताया, “पहले तो हम बहुत समय तक प्रांत की माँग करते रहे, फिर आज़ाद कश्मीर की तरह और अब हमने सब कुछ छोड़ दिया है, अब हम माँग करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार बल्तिस्तान को पाकिस्तान से अलग किया जाए.”

उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने बल्तिस्तान के लिए एक विशेष संविधानिक पैकैज की जो घोषणा की है, उन्होंने तो बल्तिस्तान की जनता को बेवकूफ़ बनाया है. सरकार ने बल्तिस्तानियों को 50 साल पीछे धकेल दिया है.”

मलिका ने कहा कि जो भी हमारी प्रगति और ख़ुशहाली के लिए काम करेगा, हम उसके साथ रहेंगे. पाकिस्तान अगर बल्तिस्तानियों को अधिकार नहीं देना चाहते तो हम पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं.

राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने बुधवार को देश के उत्तरी इलाक़ों और बल्तिस्तान के लिए एक विशेष संविधानिक पैकैज की घोषणा की है. इस घोषणा के तहत बल्तिस्तान की हैसियत पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर जैसी हो जाएगी और बलतिस्तान के लिए एक अलग विधानसभा की स्थापना की जाएगी.