Friday, December 7, 2007

छोटी उम्र में ही बड़ा कारनामा


प्रवासी भारतीय दिवस कार्यक्रम के दौरान एक नौ साल के बच्चे से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए और उन्होंने इस बच्चे की विशेष रूप से पीठ थपथपाई.
नौ साल के इस चमत्कारी बच्चे अजय पुरी की ख़ासियत यह है कि इसने तीन साल की उम्र में अपनी वेवसाइट तैयार कर ली थी.

मनमोहन सिंह ने उससे कहा,” तुम भारत का नाम रोशन करोगे, मुझे तुम पर गर्व है.”

अजय पुरी पैदा तो हैदराबाद में हुआ है लेकिन बैंकॉक के एक स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ता है और उसके पिता आदित्य बिरला ग्रुप की एक कंपनी में काम करते हैं.

जब वो तीन साल का था तो उसने माइक्रोसॉफ्टकिड डॉट कॉम नाम की एक वेबसाइट डिज़ाइन की.

पत्रकारों से बातचीत में उसने बताया कि यह वेबसाइट मेरे बारे में है. मैं किनसे मिला और मैं कंप्यूटर के बारे में क्या जानता हूँ आदि.

अजय बिल गेट्स से लेकर नारायण मूर्ति तक से मिल चुका है. बिल गेट्स तो उससे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अजय को अपनी साइट के नाम में माइकोसॉफ्ट लगाने की इज़ाजत दे दी.

अजय के दादा बीएन पुरी उसके साथ आए हुए थे.

उसने बताया कि उसका छोटा भाई थोड़ा तगड़ा है इसलिए उसे लोग 'हार्डवेयर' और मुझे 'सॉफ्टवेयर' कहते हैं.

हालांकि उसकी दिलचस्पी क्रिकेट और फ़ुटबॉल में भी है लेकिन पहला प्यार कंप्यूटर से है.

अखबार वाला वो लड़का!


अख़बार बेच कर पढ़ाई कर रहे कोलकाता के सौरभ बोदक ने दसवीं कक्षा में 92 फ़ीसदी से अधिक अंक हासिल किए हैं. पढ़िए होनहार छात्र की कहानी उसी की जुबानी...
''मैंने जबसे होश संभाला अपने पिता समीर बोदक को अख़बार बेचते ही देखा. वे हमारी नींद टूटने के पहले ही घर से निकल जाते थे और सूरज चढ़ने पर घर लौटते थे.

बचपन से उनकी मेहनत देख कर ही मैंने तय किया कि जीवन में कुछ बन कर ही मैं पिता की इस मेहनत का फल दे सकता हूं. इसी लगन ने तमाम अभावों के बीच मुझमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी.

बड़े भाई भी घर का खर्च चलाने के लिए अख़बार बेचते हैं. कुछ बड़ा हुआ तो मैंने भी अतिरिक्त आमदनी के लिए अख़बार बेचने का फ़ैसला किया.

मैं सियालदह रेलवे स्टेशन से अख़बार ख़रीद कर साल्टलेक और बालीगंज इलाके में घर-घर बाँटता हूँ. उसके बाद लौट कर तैयार होकर स्कूल पहुंचता हूं.

मैं जिस बेलियाघाटा देशबंधु स्कूल में पढ़ता हूँ, वहां के तमाम शिक्षक और छात्र मुझे बहुत मानते हैं.

स्कूल ने मेरी लगन और परीक्षा के नतीजों को देख कर फ़ीस तो माफ़ कर ही दी है, मुझे मुफ़्त में किताबें भी मुहैया करा दी हैं.

घर की ख़ुराकी

मेरे पिता बीते 25 वर्षों से रोजाना मीलों साइकिल चलाते रहे हैं. इस वजह से अब उनकी तबियत ठीक नहीं रहती. ऐसे में मेरी आय से किसी तरह घर का खर्च भी चलता है.


मेरे पिता बीते 25 वर्षों से रोजाना मीलों साइकिल चलाते रहे हैं. इस वजह से अब उनकी तबियत ठीक नहीं रहती. ऐसे में मेरी आय से किसी तरह घर का खर्च भी चलता है


सौरभ बोदक

घर में माता-पिता के अलावा हम दो भाई हैं. मेरे घरवालों को उम्मीद है कि मैं पढ़-लिख कर एक दिन बड़ा आदमी बनूंगा और उनकी तक़लीफें दूर हो जाएंगी. मैं उनके सपने को साकार करने का भरसक प्रयास कर रहा हूँ.

सपने मैंने भी देखे हैं. मेरा सपना इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर बनने का है. इसके लिए मैं भारतीय तकनीकी संस्थान यानी आईआईटी और राज्य की साझा प्रवेश परीक्षा में बैठूंगा.

मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि आईआईटी की प्रवेश परीक्षा के लिए कहीं से कोचिंग कर सकूं. लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी है. स्कूल के शिक्षकों ने प्रवेश परीक्षा की तैयारी में मदद का भरोसा दिया है.

स्कूल के शिक्षक दूसरे छात्रों को मेरी मिसाल देते हैं. लेकिन यह अच्छा नहीं लगता है. आख़िर जीवन में कुछ पाने के लिए मेहनत तो करनी ही होती है.

मैं चाहता हूं कि एक दिन बढ़िया नौकरी हासिल कर अपने मां-बाप को सुकून और आराम पहुँचा सकूं.

लेकिन उससे पहले अभी लंबा रास्ता तय करना है. आगे की पढ़ाई के लिए भी और घर-घर अख़बार पहुंचाने के लिए भी.''

Wednesday, December 5, 2007

भारत को अंग्रेज़ी में इंडिया क्यों कहते हैं


भारत को इंडिया इसलिए कहते हैं क्योंकि स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माताओं ने इस शब्द को अंग्रेज़ों की विरासत के रूप में देश का दूसरा नाम स्वीकार किया. अंग्रेज़ों के भारत पर शासन काल में इंडिया नाम प्रचलित और रूढ़ हो चुका था. जहाँ तक इंडिया शब्द के अंग्रेज़ी में आने की बात है इसके लिए ज़रा पीछे जाना होगा.

भारत का जिन विदेशी व्यापारियों, आक्रमणकारियों, विजेताओं और यात्रियों आदि से संपर्क हुआ, उनके ज़रिए भारत के पुराने नाम सिंधु का उनके देशों में अपने ढंग से प्रचार हुआ. इसके लिए मुख्य रूप से दो स्रोतों का नाम लिया जा सकता है, ईरानी और यूनानी. ईरानी या पुरानी फ़ारसी में सिंधु शब्द का परिवर्तन हिंदू के रूप में हुआ और उससे बना हिंदुस्तान, जबकि यूनानी में ए बना इंडो या इंडोस. बस ए शब्द किसी तरह लेटिन भाषा में जा पहुँचा और इसी से बना इंडिया.

गंगाजल ख़राब नहीं होता, क्यों?


गोमुख से निकली भागीरथी, देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलती है. यहाँ तक आते-आते इसमें कुछ चट्टानें घुलती जाती हैं जिससे इसके जल में ऐसी क्षमता पैदा हो जाती है जो पानी को सड़ने नहीं देती. हर नदी के जल की अपनी जैविक संरचना होती है, जिसमें ख़ास तरह के घुले हुए पदार्थ रहते हैं जो कुछ क़िस्म के बैक्टीरिया को पनपने देते हैं कुछ को नहीं. बैक्टीरिया दोनों तरह के होते हैं, वो जो सड़ाते हैं और जो नहीं सड़ाते. वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि गंगा के पानी में ऐसे बैक्टीरिया हैं जो सड़ाने वाले कीटाणुओं को पनपने नहीं देते, इसलिए पानी लंबे समय तक ख़राब नहीं होता.

अल जज़ीरा एक सैटलाइट टैलीविज़न


अल जज़ीरा एक सैटलाइट टैलीविज़न नैटवर्क है जो 1996 में शुरू हुआ था. इसका मुख्यालय मध्यपूर्व के देश क़तर की राजधानी दोहा में है और इसके अध्यक्ष हैं शाहज़ादा हमद बिन थामेर अल थानी. इसे शुरू करने के लिए क़तर के अमीर ने 15 करोड़ डॉलर की राशि दी थी. इस चैनल के आने से पहले मध्यपूर्व के दर्शक सरकारी टेलिविज़न ही देखा करते थे. अल जज़ीरा ने स्पष्ट पत्रकारिता और विवादास्पद विषय उठाकर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का परिचय दिया जिसकी वजह से वह कई बार मुश्किल में भी पडा. अल जज़ीरा का खेल चैनल, बच्चों का चैनल और अंग्रेज़ी चैनल भी है. अल जज़ीरा का सबसे लोकप्रिय संवाददाता कौन है यह कहना तो मुश्किल है लेकिन तयस्सिर अलूनी इसके एक लोकप्रिय संवाददाता थे, जिन्होंने 11 सितम्बर को अमरीका पर हुए हमलों से पहले अल क़ायदा के नेता ओसामा बिन लादेन का इंटरव्यू किया था. लेकिन सीरिया में जन्मे और स्पेन के नागरिक अलूनी को आतंकवादी संगठन से सांठ-गांठ के लिए सात साल की जेल की सज़ा दी गई.

ख़ासा पौष्टिक है 'ग़रीब का मेवा'


मूंगफली को ग़रीब की मेवा कहा जाता है. इसमें प्रोटीन और मोनो सैच्युरेटेड चर्बी बड़ी मात्रा में पाई जाती है. इसके अलावा कुछ ऐसे रसायन भी पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं. सौ ग्राम मूंगफली में 22 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 50 ग्राम चर्बी और 24 ग्राम प्रोटीन होता है. यूं तो 50 ग्राम चर्बी बहुत हुई लेकिन इसमें सैच्युरेटिड चर्बी मात्र 7 ग्राम होती है, जबकि मोनो सैच्युरेटिड चर्बी 25 ग्राम और पॉली सैच्युरेटिड 16 ग्राम होती है. सैच्युरेटेड चर्बी दिल के लिए नुकसानदेह है क्योंकि इससे ख़राब कोलैस्टरॉल बढ़ता है जबकि मोनो सैच्युरेटिड और पॉली सैच्युरेटिड चर्बी अच्छा कोलैस्टरॉल बढ़ाती है.

Tuesday, December 4, 2007

आकर्षित करते हैं होंठ


वैज्ञानिकों के शोध में पता चला है कि व्यक्ति विशेष के होंठ इस बात का निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाते हैं कि वह सामने वाले को कितना आकर्षित कर पाता है.

होंठों के बारे में इतना तो कहा ही जा सकता है कि- जितने भरे-पूरे, उतने अच्छे.
लेकिन प्लास्टिक सर्जरी के ज़रिए होंठों का आकार बढ़ाने के इच्छुक लोगों के लिए चेतावनी कि ज़रूरत से ज़्यादा बड़े न हो जाएँ होंठ.

जहाँ पुरुषों को भरे होंठ भाते हैं, वहीं यह आवश्यक नहीं कि उनके बड़े होंठ महिलाओं को पसंद आएँ ही.

लुइसविले विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर माइकल कनिंघम ने बीबीसी को बताया, "सीधे शब्दों में कहें तो बड़ा आकार छोटे से बेहतर होता है."

लेकिन पुरुषों के मामले होंठों का आकर्षण इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह महिलाओं जैसा न दिखे.

हालाँकि कनिंघम के अनुसार पुरुषों के होंठों में भी उदारता और गर्माहट तो दिखनी ही चाहिए.

उन्होंने कहा, "पुरुषों के चेहरे पर मध्यम आकार के होंठ सटीक लगते हैं. न ज़्यादा बड़े, न ज़्यादा छोटे."

दूसरी ओर महिलाओं की बात करें तो कनिंघम के अनुसार रसीले गुलाबी होंठों का कोई जवाब नहीं.

व्यापक अनुसंधान

प्रोफ़ेसर कनिंघम और उनकी टीम ने ये देखने के लिए कई प्रयोग किए कि चेहरे में थोड़े से भी बदलाव से यौन आकर्षण किस हद तक प्रभावित होता है.



जब कोई व्यक्ति आपको देखकर वास्तव में ख़ुश होता है तो उसके होंठों की लाली बढ़ती है और होंठों का आकार भी बढ़ता है
प्रोफ़ेसर कनिंघम
शोध में पाया गया कि बढ़िया होंठ एक आकर्षक चेहरे को जहाँ और आकर्षक बना सकता है, वहीं किसी अनाकर्षक चेहरे को बढ़िया होंठ भी कोई ख़ास मदद नहीं दे सकते.

कनिंघम कहते हैं, "होंठों से भाव व्यक्त होते हैं. जब कोई व्यक्ति आपको देखकर वास्तव में ख़ुश होता है तो उसके होंठों की लाली बढ़ती है और होंठों का आकार भी बढ़ता है."

उनके अनुसार होंठों से आपका यौन आकर्षण, आपकी गर्माहट ज़ाहिर होती है.

वैसे भी वैज्ञानिकों के अनुसार होंठ की सेक्स की दृष्टि से अहमियत है.

शेफ़िल्ड विश्वविद्यालय के मनोविज्ञानी रॉय लेविन कहते है, "होंठ इतने संवेदनशील होते हैं कि आप तुरंत जान जाएँ कि आपको मिला चुंबन किसी प्रेमी का है या किसी मित्र का."
कुल मिलाकर ताज़ा अनुसंधान से ज़ाहिर हुआ है कि पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए यौन आकर्षण के केंद्र किसी चेहरे के अवयव हैं: छोटी नाक, बड़ी आँखें और भरे होंठ

लंबी उंगलियों वाले होते हैं आक्रामक

कनाडा के वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी व्यक्ति की उंगलियों की लंबाई के आधार पर बताया जा सकता है कि वह शारीरिक रुप से कितना आक्रामक है.
एक शोध के आधार पर कहा गया है कि यदि अंगूठे के बाद वाली उंगली 'तर्जनी' की लंबाई अंगूठी पहनने वाली उंगली 'अनामिका' से जितनी छोटी होगी वह व्यक्ति उतना ही तेज़ या उधमी होगा.

अलबर्टा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सिद्धांत बोलने में तेज़ या लड़ाकू किस्म के लोगों के बारे में लागू नहीं होती.

कोई तीन सौ लोगों की उंगलियों का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह गर्भावस्था के दौरान टेस्टोस्टेरॉन की उपलब्धता से प्रभावित हो सकता है.

टेस्टोस्टेरॉन ऐसा हारमोन होता है जो शरीर में विकास और मांसपेशियों की गतिविधियों को नियंत्रित करता है और आमतौर पर जिसे पुरुषों का सेक्स हारमोन कहा जाता है.

यह कुछ समय पहले ही मालूम हो चुका है कि गर्भावस्था के दौरान टेस्टोस्टेरॉन मिलने का संबंध उंगलियों की लंबाई से होता है.

महिलाओं में तो तर्जनी और अनामिका की लंबाई बराबर होती है लेकिन पुरुषों में अनामिका की लंबाई तर्जनी के मुकाबले ज़्यादा होती है.

दूसरे शोधों के आधार उगलियों के बारे में कहा गया था कि जिन पुरुषों की अनामिका लंबी होती है और दोनों हाथ एक जैसे होते हैं उनकी प्रजनन क्षमता अच्छी होती है. और महिलाओं के बारे में कहा जाता है कि यदि उनकी तर्जनी लंबी है तो उनकी प्रजनन क्षमता अच्छी हो सकती है.
कहा जाता है कि टेस्टोस्टेरॉन की वजह से ही यदि किसी व्यक्ति की अनामिका छोटी होती है तो उसे कम उम्र में ही दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा होता है.

यूनिवर्सिटी के तीन सौ स्नातक छात्रों के अध्ययन के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुँचे कि अनामिका की लंबाई का संबंध शारीरिक आक्रामकता से होता है.

अब वे हॉकी खिलाड़ियों का अध्ययन करके देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या उंगलियों का संबंध उनके पेनाल्टी को गोल में तब्दील करने की क्षमता या मैच के दौरान ग़लतियाँ करने से भी होता है.

शोध में इस बात का भी परीक्षण हो रहा है कि क्या महिलाओं की तरह उंगलियों वाले पुरुषों को मानसिक अवसाद ज़्यादा जल्दी होता है.

डॉ पीटर हर्ड का कहना है कि बहुत सारी चीज़े तभी तय हो जाती हैं जब हम गर्भ में होते हैं.
और उनका कहना है कि उंगलियों की लंबाई से किसी के व्यक्ति के बारे में सबसे अधिक जाना जा सकता है.

तिरूपति के वेंकटेश्वर मंदिर


तिरूपति के वेंकटेश्वर मंदिर का निर्माण किसने और कब किया इसके बारे में कोई एकमत नहीं है. लेकिन 500 वर्ष ईसापूर्व से लेकर सन 300 के बीच, तमिल भाषा के संगम साहित्य में, इसका ज़िक्र मिलता है. सन् 500 तक यह, वैष्णव संतों का केंद्र बन चुका था और चोला, होएसाला और विजयनगर राजघरानों ने इस मंदिर को दान करके बहुत संपन्न बनाया. आज यह दुनिया का सबसे धनी हिंदू मंदिर है और प्रतिदिन कोई पचास हज़ार तीर्थयात्री भगवान विष्णु के दर्शन करने आते हैं. यह मंदिर आंध्रप्रदेश की तिरुमाला पहाड़ियों में से वैंकटचलम पहाड़ी पर स्थित है.yaha mannat mangne par bhagwan unki manokamna puri karte hai. Log apne hair bhi yahi pe chadhate hai. yaha ka famous prashad laddu bhog tast me best hai

पुलिस की वर्दी ख़ाकी क्यों


भारतीय पुलिस की वर्दी ख़ाकी क्यों है. इसे चुनने के पीछे क्या कारण है. क्या इसलिए कि इसमें गंदगी छिप जाती है. ख़ाकी शब्द फ़ारसी भाषा के ख़ाक शब्द से बना है जिसका मतलब है धूल या मिट्टी. इसके पीछे बड़ी रोचक कहानी है. सन 1846 में सर हैरी लम्सडैन ने फ़्रन्टियर सेवा की मदद के लिए पेशावर में एक गाइड दल बनाया. इनके लिए ढीले-ढाले कपड़े बनवाए गए जो मटमैले रंग के थे. जब 1857 में गदर हुआ तो बहुत सी ब्रिटिश रैजिमैंटों ने अपनी गर्मियों की सफ़ेद पोशाक को ख़ाकी रंग में रंग लिया. अब तक इस रंग के फ़ायदे समझ में आने लगे थे कि यह जल्दी गंदी नहीं होती इसलिए 1880 तक इस क्षेत्र में अधिकांश रैजिमैंटों ने अपनी पोशाकें ख़ाकी रंग में रंगवानी शुरू कर दीं. यहाँ तक कि 1899 में दक्षिण अफ़्रीका में हुई ऐंग्लो बोर लड़ाई में भी ब्रिटिश सेना ने ख़ाकी पोशाक अपनाई. उधर अमरीका में 1898 में हुई स्पेनी अमरीकी लड़ाई में अमरीकी सेना ने ख़ाकी वर्दी अपनाई और एक समय ऐसा आया जब दुनिया के कई देशों की सेना और पुलिस दल की वर्दी का रंग ख़ाकी हो गया.

डेजर्ट एलोविरा अब एड्स रोगियों के लिए फायदेमंद

रानीवाड़ा(भास्कर)
मारवाड़ में उगने वाली डेजर्ट एलोविरा(मीठा ग्वारपाठा) और मशरुम(खुम्बी) अब एड्स रोगियों के लिए फायदेमंद साबित होने लगी है। मानव कल्याण संस्थान के निदेशक और सेवानिवृत चिकित्साधिकारी डॉ गंगासिंह चौहान ने काजरी के रिटायर्ड सांइन्सिटक डॉ ए पी जैन के सहयोग से एलोविरा व मशरुम के कैप्सूल तैयार किए हैं। एड्स रोगियों पर इनका परीक्षण करने पर अभूतपूर्व और चौंकाने वाले सुधार नजर आए। सफलता से उत्साहित डॉ चौहान पायलट प्रोजेक्ट के तहत इस रिसर्च का दायरा बढ़ाते हुए एड्स रोगियों पर बड़े स्तर पर कैप्सूल से इलाज करना शुरु कर दिया है।
क्या हुआ फायदाः-
कैप्सूल से रोगियों के प्रमुख बायोलॉजिकल पैरामीटर्स न केवल थम गए, बल्कि उनका वजन भी बढ़ने लगा। सीडी टी कोशिका गणक में ६१ फिसदी की वृद्धि देखी गई। ९० फिसदी रोगियों की सीडी कोशिका में बढ़ोतरी के साथ शारीरिक वजन भी १० फिसदी बढ़ता नजर आया। इसी तरह उनमें प्रथर एडेप्टोजन का खात्मा होना भी सामने आया।
पहले चूर्ण, फिर कैप्सूलः-
पहले एलोविरा व मशरुम को मिलाकर एक चूर्ण तैयार किया गया। सादड़ी में एड़्स रोगियों का इलाज करने वाली मानव कल्याण संस्थान ने कुछ एड्स रोगियों को यह चूर्ण दिया तो उनकी हालत में सुधार नजर आया। बाद में चूर्ण से कैप्सूल तैयार किए गए।
फायदा दिखा, शोध जारीः-
डॉ चौहान ने एड्स रोगियों पर किए गए इस शोध के बारे में हाल ही डेजर्ट मेडिसिन रिचर्स सेंटर में पत्रवाचन किया। उन्होंने बताया कि एलौविरा व मशरुम के मिश्रण से तैयार इस कैप्सूल से एड्स रोगियों में काफी सुधार आया। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ने लगी है। अभी इस पर रिचर्स जारी है। इसलिए रोगियों को मेडिसिन के साथ कैप्सूल दे रहे है।
गुणों की खानः-
डॉ जैन के अनुसार एलोविरा व मशरुम में ८ आवश्यक एमीनो एसीड़, १० से १२ वसीय अम्ल और सभी आवश्यक विटामिन होते है। आधुनिक साईन्स ने इन मेंसे २०० तत्व खोज निकाले है, जो न केवल पौषक, बल्कि रोगोपचार में सहायक है। इसके प्रयोग से एड्स रोगियों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। महिने भर तक इन कैप्सूलों को लेने से ४ सौ रुपए का खर्चा आता है। साईड़ इफेक्ट अभी तक नजर नही आया हैं।

Monday, December 3, 2007

गालों में 'सेक्स अपील'


ख़ूबसूरत दिखने और दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए लोग क्या नहीं करते. ऐसे में यदि उन्हें पता चल जाए कि आकर्षण कहाँ है तो फिर क्या कहने.

लोगों की समस्या हल करने की कोशिश की है एक नए शोध ने जिसका कहना है कि पुरुषों में 'सेक्स अपील' गालों में होती है.

यानी पुरुष अगर गालों की चिंता करके उसे ठीक रखें तो महिलाएँ उनकी ओर आकर्षित होंगी ही और गालों में अगर गड्ढे या डिंपल पड़ते हों तब तो कहना ही क्या.

शोधकर्ताओं को इस बात के सबूत मिले हैं कि पुरुषों के गाल पर एक नज़र डालते ही महिलाएँ ये अनुमान लगा लेती हैं कि पुरुष कितना आकर्षक है.
शोध का ये भी कहना है कि पुरुषों का वर्ण या रंग इस बात का संकेत भी देता है कि उसके 'जीन्स' अच्छे हैं या नहीं और महिलाएँ शायद अनजाने में ही सही, मगर इसका ध्यान भी रखती हैं.


अध्ययन


प्रोफ़ेसर मॉरिस गॉस्लिंग और उनके सहयोगियों ने ये परिणाम 90 महिलाओं के अध्ययन के बाद निकाले हैं.

उनसे 76 पुरुषों के चेहरे में आकर्षण के बारे में पूछा गया.

इसके बाद महिलाओं को इन पुरुषों के चेहरे का छोटा हिस्सा दिखाया गया और आकर्षण के अनुसार उनका आकलन करने के लिए कहा गया.

दोनों ही परीक्षणों में परिणाम एक जैसे ही थे.

इसके बाद शोधकर्ताओं ने उन पुरुषों के डीएनए परीक्षण किए.

पता ये चला कि जिन पुरुषों के जीन अच्छे थे उन्हें महिलाओं ने अधिक आकर्षक भी पाया.

प्रोफ़ेसर गॉस्लिंग ने बीबीसी को बताया कि परिणामों के अनुसार ये पता चला कि महिलाएँ अधिक स्वस्थ साथी चाहती हैं

महिलाओं ने निकट संबंधियों को पसंद नहीं किया जिसकी वजह शायद अच्छा जीन संतुलन पाने की चाह थी.

प्रोफ़ेसर गॉस्लिंग के अनुसार, "महिलाओं ने स्वस्थ पुरुष शायद इसलिए चुने क्योंकि उन्हें लगता है कि वे लंबे समय तक जिएँगे और बच्चों को पालने-पोसने में उनकी मदद करेंगे."

इसके अलावा ये लोग बीमारियों का प्रतिरोध भी आसानी से कर सकेंगे और बच्चों पर इसका असर कम होगा.

अवसाद दूर करने की 'कसरती' गोली

वैज्ञानिकों का कहना है कि डिप्रेशन यानी अवसाद दूर करने में नियमित कसरत जितनी असरदार होती है, जल्द ही वही लाभ दवा की एक गोली से हो सकेगा.
येले विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों का कहना है कि चूहों पर किए प्रयोग से पता चला है कि नियमित व्यायाम से अवसादग्रस्त लोगों को मदद मिलती है.

‘नेचर मेडिसिन’ में प्रकाशित शोध में वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नतीज़े से कारगर दवा तैयार करने में सहायता मिलेगी.

ब्रिटेन की मानसिक स्वास्थ्य चैरिटी पहले ही अवसादग्रस्त लोगों के लिए व्यायाम करने की सलाह का समर्थन कर चुकी हैं.

शोध की ज़रूरत

हालाँकि यह सभी जानते हैं कि नियमित व्यायाम से ‘मूड’ भी अच्छा रहता है, लेकिन इसकी वजह क्या है, यह अभी तक पता नहीं चल सका है.

मस्तिष्क के एक ख़ास हिस्से ‘हिप्पोकैंपस’ पर किए गए ताज़ा शोध से भी पता चला है कि अवसाद दूर करने के लिए दी जाने वाली दवाओं का लक्ष्य भी यही होता है.

वैज्ञानिकों ने ये पता लगाने की कोशिश की कि व्यायाम के दौरान ऐसे कौन से जीन होते हैं, जो ज़्यादा सक्रिय हो जाते हैं.

यह शोध वैज्ञानिकों के उस सिद्धांत को भी मज़बूती देता है जिसके मुताबिक अवसाद दूर करने के लिए सिर्फ़ मस्तिष्क कोशिकाओं में रासायनिक बदलाव काफ़ी नहीं हैं, बल्कि कोशिकाओं की संरचना और उनके आपसी संबंधों में बदलाव भी ज़रूरी है.

वैज्ञानिकों का अगला क़दम अब यह रसायन तैयार करना और इसे चूहों पर आजमाना होगा.