Friday, April 25, 2008

तितली आसन से शांत रहता है मन

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आसन को परिभाषित करते हुए महर्षि पतंजलि ने कहा है, "स्थिरं सुखम् आसनम्." इसका अर्थ यह है कि आसन वह है जिसके करने से मन एवं शरीर में स्थिरता आए और सुख का अनुभव हो.
शुरू-शुरू में शरीर में इतनी लचक नहीं होती कि हम स्थिरतापूर्वक बैठकर ध्यान कर सकें. अब तक हमनें जोड़ों से संबंधित छोटे-छोटे आसन सीखें हैं.जिससे हमें मुख्य आसन सीखने में कोई परेशानी न हो.
आसन का लक्ष्य भी यही है कि हम अपने आप को ध्यान के लिए तैयार कर सकें.
इसे प्राप्त करने के लिए हमें सतत प्रयास करते रहना चाहिए. आसन हमें आध्यात्मिक रूप से भी तैयार करता है.
तितली आसन
तितली आसन और पदमासन एक दूसरे के पूरक हैं. जो लोग पदमासन नहीं कर सकते हैं उन्हें तितली आसन का अभ्यास करना चाहिए. जिससे की बाद में वे पदमासन का अभ्यास आसानी से कर सकें.
कैसे लगाएं आसन
कंबल को ज़मीन पर दोहरा बिछाकर उस पर बैठ जाएं. दोनों पैरों को सामने की ओर फैला लें. दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ें और दोनों तलवों को आपस में मिला लें.
इस स्थिति में हाथों से पैरों की अंगुलियों को उसके पास से पकड़ें और एड़ी को ज़्यादा से ज़्यादा शरीर के क़रीब लाने का प्रयास करें.
यह करते हुए कोशिश करें कि हाथ सीधे रहें और शरीर को भी पूरी तरह सीधा रखें. जिससे रीढ़ की हड्डी भी सीधी हो जाए.
सांस को सामान्य रहने दें और दोनों पैरों के घुटनों को एक साथ ऊपर की ओर लाएं और नीचे लाते हुए प्रयास करें कि ज़मीन को न छूने पाए.
इस तरह अपने पैरों को लगातार 20-25 बार ऊपर-नीचे की ओर ले जाएं, ध्यान रखें की झटका न लगे.
इसके बाद पैरों को धीरे-धीरे सीधा कर लें और कुछ समय तक शरीर को ढीला छोड़ दें.
यह तितली आसन का एक क्रम है. आप चाहें तो इसे दो-तीन बार कर सकते हैं.
ऐसा न करें
ज़्यादा जोर न लगाएं. इस आसन को करने की जो विधि बताई गई है उसी के अनुसार अभ्यास करें. सांस को सामान्य रखें.
जिन लोगों को साइटिका की बीमारी हो या कमर के नीचले हिस्से में दर्द हो वे लोग तितली आसन का अभ्यास न करें.
तितली आसन के फ़ायदे
इसे करने से पैरों की मांसपेशियां इस तरह हो जाती हैं कि हम पदमासन या पालथी मारकर बैठ सकें.
इसे करने से जांघों की मांसपेशियों में आया तनाव या खिंचाव कम होता है. अधिक देर तक खड़े रहने या चलने के बाद तितली आसन करने से थकान दूर हो जाती है.
पदमासन
कंबल को ज़मीन पर इस प्रकार बिछाकर बैठें की दोनों पैर सामने की ओर रहे.
एक पैर को घुटने से मोड़ें और पैर के तलवे को दूसरे पैर की जांघ के ऊपर रखें.
इसके लिए आप हाथों का सहारा ले सकते हैं. पैर के तलवे को ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब लाने का प्रयास करें.
इसी तरह दूसरे पैर को भी मोड़कर जांघ पर रखें. इस स्थिति में दोनों पैरों के घुटने ज़मीन से न छूने नहीं चाहिए, अगर छू भी जाएं तो कोई बात नहीं है.
पदमासन के अभ्यास से शरीर और मन शांत होता है. लगातार अभ्यास से एकाग्राता भी बढ़ती है
इस आसन को करते समय कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीध रखें और कंधों को ढीला. दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखें ज्ञान या चिन्न की मुद्रा में.आंखें बंद कर लें और पूरे शरीर में शिथिलता महसूस करें.
इस दौरान शरीर को न ज़्यादा आगे की ओर झुकाएं और न पीछे की ओर. इस तरह बैठें की शरीर का संतुलन बना रहे.
सावधानियां बरतें
जो लोग साइटिका से पीडि़त हों, कमर दर्द हो, घुटने कमजोर हों या किसी तरह की चोट लगी हुई हो वे पदमासन का अभ्यास न करें.
घुटनों के जोड़ और मांसपेशियों को ढीला करने के लिए पहले जानू आसन का अभ्यास कर सकते हैं.
पदमासन के लाभ
पदमासन एक ध्यानात्मक आसन है. इसके अभ्यास से शरीर और मन शांत होता है. पदमासन का लगातार अभ्यास करने से एकाग्राता भी बढ़ती है.
चूंकि सांस धीरे-धीरे स्थिर हो जाती है, जिससे पूरे शरीर में स्थिरता आती है. इस आसन को करने से ब्लड प्रेशर भी सामान्य होता है.
पाचन तंत्र को ठीक करने में भी पदमासन सहायक हो सकता है.क्योंकि खून का संचार पैर की ओर कम रहता है. इसका केंद्र नाभी के पास ज़्यादा रहता है.
पदमासन एक पारंपरिक आसन है. प्राणायाम के अभ्यास के लिए पदमासन को प्रथम श्रेणी में रखा गया है. इसलिए अगर देखा जाए तो पदमासन हर तरह से एक उपयोगी आसन है.