Thursday, January 17, 2008

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर


कम्बोडिया के प्राचीन मंदिर अंगकोर वाट को दुनिया का सबसे विशाल मंदिर माना जाता है. ये कम्बोडिया की राजधानी फ्नोम पैन से 192 मील उत्तर पश्चिम में स्थित है. कहते हैं कि एक भारतीय ब्राह्मण कम्बू ने 100 ईसवी में फ़ूनान राज्य की स्थापना की. भारतीय व्यापारी वहां बसने लगे और इस क्षेत्र में भारतीय संस्कृति का प्रभाव बढ़ने लगा. अंगकोर वाट की स्थापना सूर्यवर्मन द्वितीय ने 1131 में की. उनके पचास वर्ष के शासन में ही इस मंदिर का निर्माण हुआ. अंगकोर वाट का मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. ये कोई 81 हैक्टेयर क्षेत्र में बना है और ये भारतीय वास्तुकला का अभूतपूर्व नमूना है. इसकी हर दीवार, दीर्घा और स्तम्भ पर हिन्दू मिथक कथाएं उकेरी गई हैं. सदियों तक ये मंदिर कम्बोडिया के घने जंगलों में सुरक्षित छिपा रहा लेकिन फिर 1860 में इसकी खोज एक फ़्रांसीसी मिशनरी हैनरी महूत ने की और 1992 में संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनैस्को ने इसे विश्व विरासत घोषित कर दिया.

तितली के पंखों की सुंदरता कैसे?


तितलियों के पंखों पर पाउडर जैसा पदार्थ क्या होता है और उसका क्या उपयोग है. ये सवाल पूछा है जगरनाथपुर मधुबनी बिहार से लाल बाबू सिंह.
तितली के पंख बड़ी महीन झिल्ली से बने हैं जिनमें बारीक नसों का जाल सा होता है. ये महीन झिल्ली हज़ारों नन्ही नन्ही पपड़ियों से भरी होती है. हर पपड़ी एक कोशिका का विस्तार है. जब आप तितली को पंख से पकड़ते हैं तो आपके हाथ में जो पाउडर जैसा पदार्थ आता है वो ये पपड़ियां ही हैं. इसके दो उपयोग हैं. पहला ये कि वो पंखों को रंग प्रदान करती हैं और दूसरा उनकी रक्षा करती हैं.

फौजियों का गाँव गहमर


उत्तरप्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले का गहमर गाँव न सिर्फ एशिया के सबसे बड़े गाँवों में गिना जाता है, बल्कि इसकी ख्याति फौजियों के गाँव के रूप में भी है.
इस गाँव के करीब दस हज़ार फौजी इस समय भारतीय सेना में जवान से लेकर कर्नल तक विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि पाँच हज़ार से अधिक भूतपूर्व सैनिक हैं.

यहाँ के हर परिवार का कोई न कोई सदस्य भारतीय सेना में कार्यरत है.

बिहार-उत्तरप्रदेश की सीमा पर बसा गहमर गाँव क़रीब आठ वर्गमील में फैला है.

लगभग 80 हज़ार आबादी वाला यह गाँव 22 पट्टी या टोले में बँटा हुआ है और प्रत्येक पट्टी किसी न किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के नाम पर है.

यहाँ के लोग फौजियों की जिंदगी से इस कदर जुड़े हैं कि चाहे युद्ध हो या कोई प्राकृतिक विपदा यहाँ की महिलायें अपने घर के पुरूषों को उसमें जाने से नहीं रोकती, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित कर भेजती हैं.


ग्राम प्रधान किरण सिंह

गाँव में भूमिहार को छोड़ वैसे सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन सर्वाधिक संख्या राजपूतों की है और लोगों की आय का मुख्य स्रोत नौकरी ही है.

प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध हों या 1965 और 1971 के युद्ध या फिर कारगिल की लड़ाई, सब में यहाँ के फौजियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.

विश्वयुद्ध के समय में अँग्रेजों की फौज में गहमर के 228 सैनिक शामिल थे, जिनमें 21 मारे गए थे. इनकी याद में गहमर मध्य विधालय के मुख्य द्वार पर एक शिलालेख लगा हुआ है.

भूतपूर्व सैनिक

गहमर के भूतपूर्व सैनिकों ने पूर्व सैनिक सेवा समिति नामक संस्था बनाई है.

संयोजक शिवानंद सिंह कहते हैं, "दस साल पहले स्थापित इस संस्था के करीब तीन हज़ार सदस्य हैं और प्रत्येक रविवार को समिति की बैठक कार्यालय में होती है जिसमें गाँव और सैनिकों की विभिन्न समस्याओं सहित अन्य मामलों पर विचार किया जाता है. गाँव के लड़कों को सेना में बहाली के लिए आवश्यक तैयारी में भी मदद दी जाती है."


किरण सिंह के अनुसार पूरा गाँव फौजी मानसिकता को समझता है

गाँव के युवक गाँव से कुछ दूरी पर गंगा तट पर स्थित मठिया चौक पर सुबह–शाम सेना में बहाली की तैयारी करते नजर आ जाएँगे.

शिवानंद सिंह कहते हैं,"यहाँ के युवकों की फौज में जाने की परंपरा के कारण ही सेना गहमर में ही भर्ती शिविर लगाया करती थी. लेकिन 1986 में इस परंपरा को बंद कर दिया गया, और अब यहाँ के लड़कों को अब बहाली के लिए लखनऊ, रूड़की, सिकंदराबाद आदि जगह जाना पड़ता है."

गहमर भले ही गाँव हो, लेकिन यहाँ शहर की तमाम सुविधायें विद्यमान हैं. गाँव में ही टेलीफ़ोन एक्सचेंज, दो डिग्री कॉलेज, दो इंटर कॉलेज, दो उच्च विधालय, दो मध्य विधालय, पाँच प्राथमिक विधालय, स्वास्थ्य केन्द्र आदि हैं.

गहमर की ग्राम प्रधान किरण सिंह कहती हैं, "यहाँ के लोग फौजियों की जिंदगी से इस कदर जुड़े हैं कि चाहे युद्ध हो या कोई प्राकृतिक विपदा यहाँ की महिलायें अपने घर के पुरूषों को उसमें जाने से नहीं रोकती, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित कर भेजती हैं."

गहमर रेलवे स्टेशन पर कुल 11 गाड़ियाँ रूकती हैं और सबसे कुछ न कुछ फौजी उतरते ही रहते हैं लेकिन पर्व-त्योहारों के मौक़े पर यहाँ उतरने वाले फौजियों की भारी संख्या को देख ऐसा लगता है कि स्टेशन सैन्य छावनी में तब्दील हो गया हो.

जमाइयों की जन्नत पीपल्दा कलाँ


राजस्थान का एक गाँव जमाइयों या दामादों को ऐसा पसंद आया है कि वे शादी के बाद वहीं के होकर रह गए.
इन दामादों की संख्या चार सौ से ज़्यादा है.

लोग मध्यप्रदेश की सीमा से सटे कोटा ज़िले के इस पीपल्दा कलाँ गाँव की बस्ती के नाम से जानते हैं.

अब तो दामादों ने वहाँ अपना सगंठन भी बना लिया है.

इस गाँव में बाबुल की दुआओं के साथ बेटियों को बिदाई तो दी जाती है लेकिन उन्हें अपने पालनहारों की आँखों से दूर नहीं जाना पड़ता.

ऐसे सैकड़ों किस्से हैं जब जमाइयों राजा अपनी ससुराल में ही बस गए.

गाँव के गोपाल सैनी से दामादों की संख्या पूछी तो वे अंगुलियों पर गिनने लगे. श्री सैनी हिसाब लगाकर बताते हैं कि वार्ड में 25 से 30 दामाद हैं. वार्ड संख्या 11 में सबसे ज़्यादा यानी 65 हैं.

वैसे दामादों की कुल गिनती 400 से ज़्यादा है.

जाति धर्म नहीं

जमाइयों के ससुराल में बसने का यह चलन किसी ख़ास जाति या धर्म तक सीमित नहीं है. सभी जातियों में इसका चलन है.


पीपल्दा कलां को दामादों या जँवाइयों के गाँव के रुप में जाना जाता है

पीर मोहम्मद को शादी के बाद पीपल्दा ऐसा रास आया कि यहीं बस गए. और अब पीर मोहम्मद के दो दामाद भी यही रहने लगे हैं.

पीर मोहम्मद की बेटी फरीदा अपने शौहर के साथ पीपल्दा में ही रहती है. फरीदा कहती है- "माँ-बाप की आँखों के सामने रहने से दिल खुश रहता है."

दामाद संगठन

पीपल्दा के चंद्रशेखर देशबंधु ने इन दामादों का संगठन खड़ा कर लिया है. दामाद परिवार के अध्यक्ष देशबंधु कहते है, "यहाँ दामादों का बड़ा सम्मान है. इस बार दामाद परिषद सरपंच पद के लिए अपना प्रत्याशी खड़ा करेगी."

यहाँ दामादों का बड़ा सम्मान है. इस बार दामाद परिषद सरपंच पद के लिए अपना प्रत्याशी खड़ा करेगी

60 वर्षीय पुरूषोत्तम शर्मा के दामाद इसी गाँव में आबाद है.

वे कहते हैं, "बेटी और दामाद का आँखों के सामने रहना अच्छा लगता है, लेकिन जब कभी बेटी को तकलीफ में देखते हैं तो दुख भी होता है."

पीपल्दा के राजेन्द्र सिंह आसावत से पूछा कि ऐसा क्या है कि इस गाँव में दामाद यही के होकर रह जाते है? तो उन्होंने कहा, "दरअसल दामादों को इज़्ज़त देकर गाँव के लोग अपनी बेटियों के प्रति भी समान व्यक्त करते हैं, यह पुत्रियों के प्रति माँ-बाप के स्नेह का परिचायक है."

पंचायत के चुनाव आने वाले हैं और दामादों की निगाहें सरपंच की कुर्सी पर टिकी हैं. पर उन्हें नहीं मालूम की सियासत तो भाई-भतीजावाद को ज़्यादा तरजीह देती है, दामादों को कम.

Sunday, January 13, 2008

कामतुष्टि का रहस्य


वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने अंतत: महिलाओं की कामतुष्टि का रहस्य खोज निकाला है.

उनका कहना है कि उन्होंने उस तथाकथित ''जी-स्पॉट'' को ढूँढ निकाला है जो महिलाओं के शरीर में सेक्स का आवेग या ऑर्गैज़्म पैदा करता है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन महिलाओं को ऑर्गैज़्म तक पहुँचने में कठिनाई होती है या जो बिल्कुल ही नहीं पहुँच पातीं उन्हें इस खोज से लाभ होगा.

जी-स्पॉट

वो कहते हैं कि इस खोज से अब ऐसी दवाइयाँ बनाई जा सकेंगी जो ''जी-स्पॉट'' को सक्रिय कर सकेंगी.

ये स्पॉट या बिंदु योनि के कुछ सेंटीमीटर अंदर महिलाओं के पेट से लगे भाग की ओर होता है.



ये हास्यास्पद लग सकता है लेकिन सच है कि महिलाओं के शरीर के बारे में जानने के लिए हम लोग अब तक इंतज़ार करते रहे


डॉक्टर इमैनुएल जनीनी
अरनेस्ट ग्रैफ़नबर्ग नामक वैज्ञानिक ने 1950 में इसे ''जी-स्पॉट'' का नाम दिया था.

इस बिंदु के इर्द गिर्द स्कीन नामक ग्रंथियाँ पाई जाती हैं और समझा जाता है कि संभोग के दौरान महिलाओं के शरीर से निकलने वाले द्रव्य में इनकी अहम भूमिका होती है.

डॉक्टर इमैनुएल जनीनी और उनके साथियों ने पहले कुछ ऐसे पदार्थों को खोजने की कोशिश की जो ''जी-स्पॉट'' के आसपास सेक्स की प्रक्रिया में सहायक होते हैं.

शुरूआत पीडीआई5 नामक प्रोटीन की खोज से की गई.

यह प्रोटीन पुरूषों के लिए भी मायने रखता है क्योंकि आवश्यकता से अधिक होने पर यह नपुंसकता जैसी स्थिति पैदा करता है.

कामतुष्टि संभव

डॉक्टर जनीनी ने पाँच महिलाओं को इस प्रयोग में शामिल किया और उनकी योनि में इस प्रोटीन के अंश मिले.

यही खोज 14 मृत महिलाओं में किए जाने पर पता चला कि ये प्रोटीन ''जी-स्पॉट'' के आसपास जमा था लेकिन इनमें दो ऐसे मामले थे जिनमें इसकी मात्रा बहुत कम थी.

साथ ही ये भी पाया गया कि उनमें स्कीन ग्रंथियाँ भी नहीं थीं.

जनीनी ने इससे अनुमान लगाया कि ये महिलाएँ सेक्स के आवेग या ऑर्गैज़्म तक पहुँचने में अक्षम थीं.

उन्होंने कहा कि जिन महिलाओं में इस प्रोटीन और स्कीन ग्रंथियों की प्रचुर मात्रा होती है उनकी कामतुष्टि संभव होती है.

और उनका मानना है कि वायग्रा जैसी दवाइयाँ महिलाओं पर सबसे ज़्यादा कारगर हो सकती हैं.

एक साइंस पत्रिका से बात करते हुए उन्होंने कहा, ''ये हास्यास्पद लग सकता है लेकिन सच है कि महिलाओं के शरीर के बारे में जानने के लिए हमलोग अब तक इंतज़ार करते रहे.''

महिलाओं के लिए वायग्रा बनाने की दिशा में फ़ाइज़र नामक कंपनी भी काम कर रही है.

उनकी प्रवक्ता का कहना है कि अभी तक के परिणाम आशाजनक हैं लेकिन अभी महिलाएं इस दवा को न लें.

उन्होंने कहा कि इसका इस्तेमाल तभी किया जाए जब डॉक्टर इसकी सलाह दें.

यौन क्रिया से सिरदर्द?


यदि कोई पुरुष किसी 'कमज़ोर क्षण' में अपनी महिला साथी से कहे 'आज नहीं प्रिय, मेरे सिर में बहुत दर्द है', तो मान लीजिए कि वह सच ही बोल रहा है बहाना नहीं बना रहा है.

जर्मनी के कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने इस तरह के सिरदर्द की जाँच शुरू कर दी है जिन्हें 'ऑर्गैस्मिक सिफ़ालगिया' का नाम दिया गया है.



आधे मरीज़ों का मानना था कि यदि वे यौन उत्तेजना बढ़ाने में जल्दबाज़ी न करें तो इससे बच सकते हैं


डॉक्टर फ़्रीस
उन्हें पता चला है कि इसका असर महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों में तीन गुना ज़्यादा होता है.

यह सिरदर्द आमतौर पर चरमसीमा के आसपास शुरु होता है और कई बार तो यह भयंकर होता है.

शोधकर्ताओं का मानना है कि सौ में से एक व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी इस स्थिति से गुज़रना पड़ता है और कुछ लोगों के लिए तो यह सामान्य सी बात है.

अभी तक इसका सही कारण तो पता नहीं चल पाया है लेकिन लगता है कि यौनक्रिया के दौरान ख़ून का प्रवाह तेज़ हो जाने से यह स्थिति पैदा हो सकती है.

जर्मनी का यह दल इस रहस्य को सुलझाने की पूरी कोशिश में जुटा हुआ है.

वे इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि इसका किसी विशिष्ट पार्टनर या यौन संबंधी आदतों से कोई संबंध नहीं है.

उन्होंने यह भी देखा है कि यह तकलीफ़ युवाओं को ज़्यादा होती है और आमतौर पर 20 से 25 वर्ष की आयु के बीच पहली बार महसूस होती है.

मंस्टर विश्विद्यालय के डॉक्टर फ़्रीस और डॉक्टर ईवर्स ने ऐसे कई लोगों का परीक्षण किया जो यौनक्रिया के दौरान सिरदर्द से परेशान रहते हैं.

डॉक्टर फ़्रीस का कहना है, "लगभग आधे मरीज़ों का मानना था कि यदि वे यौन उत्तेजना बढ़ाने में जल्दबाज़ी न करें तो इससे बच सकते हैं".

कुछ लोगों को दर्द निवारक गोलियाँ दी गईं लेकिन आम तौर पर पाया गया कि यह परेशानी समय के साथ अपने आप ही दूर हो जाती है.

'अकेलापन पुरुषों के लिए ख़तरनाक'


अकेलापन पुरुषों के लिए ख़तरनाक हो सकता है. अमरीका में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि जो पुरुष अकेले होते हैं, उन्हें दिल का रोग होने का ख़तरा ज़्यादा होता है.
शोधकर्ताओं की सलाह है कि समाज में अन्य लोगों से मेल-जोल दिल के लिए अच्छा है.

अध्ययन से पता चला है कि जिन पुरुषों के दोस्त नहीं होते और परिवार से क़रीबी संबंध नहीं होते, उनके ख़ून में एक विशेष अणु की मात्रा ज़्यादा होती है.

अब इस अध्ययन से प्राप्त जानकारी को 'अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन' के सामने रखा जा रहा है.

ब्रिटेन में दिल के रोग के विशेषज्ञों का कहना है कि जो रोग सामाजिक तौर पर कटे हुए होते हैं उनकी खेल-कूद में दिलचस्पी कम और सिगरेट पीने की संभावना ज़्यादा होती है.

विशेषज्ञों का मानना है कि ये दोनो ही कारण दिल के रोग के ख़तरे को बढ़ाते हैं.

शोधकर्ताओं ने पूरे अमरीका में 62 वर्ष की औसत उम्र के 3267 पुरुषों और महिलाओं पर अध्ययन किया.

इन लोगों पर 1998 से 2001 के बीच परीक्षण किए गए.

इन लोगों से इनकी शादी, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ-साथ धार्मिक बैठकों इत्यादि में भाग लेने जैसी जानकारी भी ली गई.

शोधकर्ताओं ने पाया कि अकेलेपन का महिलाओं के दिल पर इस तरह का असर नहीं दिखा.

दिल के लिए क्यों अच्छा है लहसन


वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने यह रहस्य सुलझा लिया है कि क्यों लहसन खाने से हृदय स्वस्थ्य बना रहता है.
उनका कहना है कि मूल तत्व है, एलीसिन.

एलीसिन से ही सल्फ़र के यौगिक बनते हैं जिससे तेज़ गंध आती है और जिससे साँस में भी दुर्गंध बस जाती है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि सल्फ़र के ये यौगिक लाल रक्त कोशिकाओं के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और हाइड्रोजन सल्फ़ाइड बनाते हैं.

उनका कहना है कि हाइड्रोजन सल्फ़ाइड रक्त वाहिनियों को आराम पहुँचाता है और इससे रक्त का प्रवाह आसान हो जाता है.

यह शोध बर्मिंघम के 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ अलाबामा' में किया गया है और 'नेशनल अकैडेमी ऑफ़ साइंसेस' के प्रकाशन में प्रकाशित हुआ है.

हालांकि ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि लहसन की अतिरिक्त मात्रा खाने से साइट इफ़ेक्ट हो सकते हैं.

उल्लेखनीय है कि हाइड्रोजन सल्फ़ाइड वही रसायन है जिससे सड़े हुए अंडों जैसी गंध आती है और इस रसायन का उपयोग दुर्गंध फैलाने वाले बम बनाने में किया जाता है.

लेकिन जब इसकी सांद्रता कम होती हैं तो यह शरीर की कोशिकाओं के आपस में संपर्क क़ायम करने में अहम भूमिका निभाता है.

यह रक्त वाहिनियों की भीतरी सतह को आराम पहुँचाता है जिससे वाहिनियाँ नरम पड़ जाती हैं.

इसका असर यह होता है कि रक्तचाप या ब्लड प्रेशर कम हो जाता है और शरीर को कई अंगों तक ख़ून को ज़्यादा मात्रा में ऑक्सीजन ले जाने में सहायता मिलती है और इसके चलते हृदय पर दबाव कम हो जाता है.

प्रयोग

अलाबामा के वैज्ञानिकों ने चूहे की रक्त वाहिनियों को लहसन के रस में डूबोकर देखा.

उनका कहना है कि इसके नतीजे अद्भुत थे क्योंकि वाहिनियों के भीतर तनाव 72 प्रतिशत तक कम हो गया था.


हमारे प्रयोग के परिणाम बताते हैं कि खाने में लहसन को शामिल करना अच्छी बात है


डॉ डेविड क्राउस, प्रमुख शोधकर्ता

शोधकर्ताओं का कहना है कि सुपरमार्केट से ख़रीदे गए लहसन के रस के संपर्क में जब लाल रक्त कोशिकाओं को लाया गया तो वे तत्काल हाइड्रोजन सल्फ़ाइड का निर्माण करने लगे.

आगे किए गए प्रयोगों से पता चला कि यह प्रतिक्रिया रक्त कोशिकाओं के सतह पर ही होती है.

प्रमुख शोधकर्ता डॉ डेविड क्रॉउस का कहना है, "हमारे प्रयोग के परिणाम बताते हैं कि खाने में लहसन को शामिल करना अच्छी बात है."

उनका कहना था कि भूमध्यसागरीय और सुदूर पूर्व के इलाक़ों में, जहाँ लहसन का प्रयोग अधिक होता है, वहाँ हृदय रोग की शिकायतें कम पाई जाती हैं.

हालांकि ब्रिटिश हार्डफ़ाउंडेशन की हृदयरोग विभाग की नर्स जूडी ओ-सूलिवान का कहना है कि इस शोध से पता चलता है कि लहसन से दिल के रोगों में कुछ फ़ायदा हो सकता है.

लेकिन वे चेतावनी देकर कहती हैं कि इस बात के प्रमाण अपर्याप्त हैं कि लहसन का प्रयोग दवा के रुप में करने से हृदय रोग होने का ख़तरा कम हो जाता है.

अधिक काम से दिल का दौरा!


कहते हैं कि कड़ी मेहनत से कभी कोई मरा नहीं.

लेकिन शायद हमेशा यह सही न हो, और ज़रूरत से ज़्यादा काम से जान ही चली जाए, यह कहना है कि कुछ शोधकर्ताओं का.

एक नए शोध के अनुसार जो लोग हफ़्ते में 60 घंटे से अधिक काम करते हैं और पूरी नींद नहीं लेते है उन्हे दिल का दौरा पड़ने की संभावना कहीं अधिक होती है.

लंदन और जापान के शोधकर्ताओं के इस संयुक्त अध्ययन के अनुसार अधिक काम और नींद की कमी से रक्तचाप बढ़ता है और दिल के रोग का कारण बन सकता है.

हालाँकि अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस संबंध को स्थापित करने के लिए अभी बहुत काम किया जाना बाकी है.

लेकिन एक आँकड़ा यह भी है कि पूरे यूरोप में सबसे अधिक समय तक इंग्लैंड के लोग काम करते हैं और वहीं लोग सबसे अधिक दिल के रोग के शिकार होते हैं.

दिल की बीमारी को बढ़ाने वाले कई कारण जाने-माने हैं जैसे धूम्रपान और खान-पीने की ख़राब आदतें.

लेकिन इन कारणों और तनाव, मानसिक दबाव और काम करने की आदतों से क्या संबंध हैं यह अभी पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है.

इस नए शोध में सैकड़ों जापानी पुरूष शामिल थे. इनमें कुछ वे लोग शामिल थे जिन्हें दिल का दौरा पड़ चुका है और कुछ वे जिन को कभी नहीं पड़ा था.

पाया गया कि जिन पुरूषों को दिल का दौरा पड़ा है वे अन्य से कहीं अधिक काम करते थे और कम सोते थे.

हफ़्ते में 60 घंटे से अधिक काम करने वाले पुरूषों को दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा उन पुरूषों के मुक़ाबले दुगना था जो 40 घंटे या उससे कम काम करते थे.

आराम हराम

सप्ताह में केवल दो दिन औसतन पाँच घंटे या उससे कम की नींद से दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा दोगुना या तिगुना तक हो जाता है.

अधिक काम करने का दिल से क्या संबंध है यह अभी निश्चित नही किया जा सका है.लेकिन यह संभव है कि रक्तचाप में बढ़ोत्तरी और नींद की कमी से दौरा पड़ सकता है.

यह पहले ही सिद्ध किया जा चुका है कि दीर्घकालीन तनाव का दिल की कार्यप्रणाली पर असर पड़ता है.

लेकिन ब्रिटेन के एक विशेषज्ञ डॉ हैरी हेमिंग्वे का कहना है कि यह अभी सिद्ध नहीं किया जा सका है कि देर तक काम करने का कैसे प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

शोध आवश्यक

डॉ हेमिंग्वे ने बीबीसी को बताया,"संभव है कि इस शोध में अवसाद को शामिल नहीं किया गया हो जो कि एक कारण हो सकता है".

उन्होंने कहा "अवसाद से भी नींद पर असर पड़ता है और किसी मानसिक बीमारी से भी नींद आने में समस्या होती है".

उन्होंने कहा कि क्योंकि शोध में ह्रदय रोगी रहे लोगों से बाद में सवाल पूछे गए तो हो सकता है कि काम करने के घंटों और नींद के बारे में उनको जो याद हो वो सही न हो.

डॉ हेमिंग्वे ने कहा कि इस सिद्धांत को मानने के लिए अभी और काम किया जाना बाक़ी है.

पति से नोंकझोंक करती है तनाव मुक्त


यदि आप महिला हैं और स्वस्थ रहना चाहती हैं तो विशेषज्ञों की राय है कि आप अपने पति से झगड़ती रहें.
अमरीकी शोधकर्ताओं का कहना है कि जो महिलाएं अपने पति से नोंकझोंक करती हैं, उन्हें दिल के दौरे की कम संभावना रहती है.

अमरीकी हार्ट एसोशिएशन की पत्रिका ने एक शोध छापा है जिसमें कहा गया है कि जो पत्नियां अपने पति से झगड़े के दौरान चुप रहती हैं, उनके दिल के दौरे से मौत होने की चार गुना संभावना रहती है.

लेकिन ब्रितानी विशेषज्ञों का कहना है कि इन निष्कर्षों को सतर्कता के साथ स्वीकार करना चाहिए.

अमरीका में दस वर्षों के दौरान 3,700 लोगों पर यह अध्ययन किया गया.

बोस्टन यूनिवर्सिटी और विस्कोसिन स्थित एकर एपिडेमिलॉजी एंटरप्राइज़ेज के दल ने पाया कि शादी मर्द के लिए फ़ायदे का सौदा होती है.

उनके अनुसार अविवाहित मर्द की तुलना में शादीशुदा मर्द के दिल की बीमारी से मरने के आधी संभावना ही रहती है.

डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने शादी के उन तत्वों का पता लगा लिया है जो लोगों के स्वास्थ्य और जिंदगी को प्रभावित करते हैं.

तनाव

इसी पत्रिका में एक और शोध प्रकाशित हुआ है जिसमें अटलांटा के एक केंद्र ने 35 हज़ार महिलाओं के कामकाज और उसके दिल के संबंध के विषय में अध्ययन किया था.

ह्दय संबंधी समस्या बेरोज़गार महिलाओं में अधिक रहती है क्योंकि उन पर सामाजिक दबाव होता है


शेरी मार्शल विलियम्स, शोधकर्ता

इसमें पाया गया कि बेरोज़गार महिलाओं का स्वास्थ्य सबसे अधिक ख़राब रहता है.

ऐसी एक तिहाई महिलाओं को उच्च रक्तचाप की शिकायत पायी गई जबकि 2 फीसदी को दिल से संबंधित रोग पाए गए.

शोधकर्ता शेरी मार्शल-विलिम्स का कहना है कि ह्दय संबंधी समस्या बेरोज़गार महिलाओं में अधिक पाई गई क्योंकि उन पर नौकरी न ढ़ूंढ़ पाने का सामाजिक दबाव होता है.

ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन की डॉक्टर चार्मिन ग्रिफिथ्स का कहना है कि जीवन में तनाव दिल पर दो तरह से असर डालता है.

काम का भारी दबाव और समाज से कटी ज़िदगी दिल से जुड़ी बीमारियों की संभावना बढ़ा देती है.

दूसरा जिन लोगों में पहले से ही दिल के रोग से जुड़े कारक मौजूद होते हैं, उनमें भावुक कारण और जुड़ने से दिल के दौरे की संभावना बढ़ जाती है.

हालांकि नेशनल हार्ट फोरम के सर अलेक्ज़ेडर मैकारा का कहना है कि विभिन्न शोधों के इन निष्कर्षों पर सावधानी बरतनी चाहिए.

दबाव से बढ़ सकता है रक्तचाप


कार्यालयों में नौकरी करने वाले सावधान हो जाएं क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि काम का अधिक दबाव झेलने वाले लोगों की उच्च रक्तचाप की संभावनाएं अधिक होती हैं.
कनाडा की लवाल यूनिवर्सिटी की टीम का मानना है कि अगर कोई ऐसी जगह काम करता है जहां तय समयसीमा, अधिक काम और कम समर्थन मिलता हो तो उच्च रक्तचाप जैसी बीमारी की संभावना बढ़ जाती है.

इस टीम ने अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ को बताया कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ऐसा अधिक होता है.

दबाव

यह सर्वविदित है कि काम के अधिक दबाव से स्वास्थ्य ख़राब होता है. इससे दिल का दौरा पड़ सकता है, डिप्रेशन हो सकता है और लेकिन अब पता चल रहा है कि इसका असर रक्तचाप पर भी पड़ता है.

उल्लेखनीय है कि उच्च रक्तचाप के कारण दिल का दौरा पड़ने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं.

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च रक्तचाप के कई और कारण हो सकते हैं मसलन अधिक शराब पीना, मोटापा, अधिक नमक का सेवन और व्यायाम नहीं करना.

डॉ चंतल गुईमॉट और उनकी टीम के ताज़ा शोध में कहा गया है कि काम के दबाव के अलावा ये तथ्य भी उच्च रक्तचाप की संभावनाएं बढ़ा देते हैं.

उनका कहना है कि काम का दबाव एक बड़ी परेशानी है जो किसी व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र और ह्दय संबंधी कोशिकाओं को बुरी तरह प्रभावित करता है.

डॉ गुईमॉट का कहना है कि उनके शोध में यह बात बिल्कुल स्पष्ट रुप से सामने आई है कि ऐसे लोगों में परेशानियां अधिक बढ़ती है जहां कार्यालयों में उन्हें समर्थन नहीं मिलता है.

मानसिक दबाव संबंधी कार्यक्रम से जुड़ी क्रिस रो कहती हैं कि अब धीरे धीरे दबाव का शारीरिक पहलू भी सामने आने लगा है. कई लोग बहुत अधिक दबाव में काम करते हैं.

ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन की जून डेविसन भी इस शोध से सहमत हैं और कहती हैं कि लोगों को दबाव में काम करते वक्त अपने स्वास्थ्य की देखभाल ठीक ढंग से करनी चाहिए.

सक्रिय जीवन के साथ थोड़ी सी शराब...


एक बार फिर शोध से यह पता चला है कि स्वस्थ और सक्रिय जीवन शैली के साथ शराब की थोड़ी सी ख़ुराक आपकी आयु को बढ़ा सकती है.
हृदय से संबंधित एक यूरोपीय शोध पत्र के अनुसार इससे हृदय रोगों के कम होने की संभावना रहती है.

डेनिश के शोधार्थियों के एक दल ने पाया कि जो लोग सक्रिय जीवन जीते हैं उनमें हृदय रोगों के होने की संभावना कम रहती है. साथ ही यदि वे शराब का संतुलित मात्रा में सेवन करते हैं तो यह संभावना और भी कम हो जाती है.

हालांकि इंग्लैंड के विशेषज्ञों ने चेताया है कि लोगों को शराब पीने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए क्योंकि ज़्यादा शराब पीना स्वास्थ्य के लिए काफ़ी हानिकारक है.

शोधार्थियों ने क़रीब 12,000 पुरूष और महिलाओं का लगभग 20 वर्षों तक अध्ययन किया. इनमें से 1, 242 लोगों की मौत शोध के दौरान हृदय रोग से हो गई.

सक्रिय जीवन

उन्होंने पाया कि जो लोग किसी तरह का व्यायाम नहीं करते हैं या शराब नहीं पीते हैं उनमें हृदय रोगों के होने की संभावना उन लोगों से 49 प्रतिशत ज़्यादा रहती है जो लोग शराब पीते हैं या व्यायाम करते हैं या दोनों ही अपने जीवन में अपनाते हैं.


पहले के अध्ययन में यह बात उभर कर आई थी कि शराब का सेवन करने से कोलेस्टेरोल की मात्रा में वृद्धि होती है. साथ ही संभवतः रक्त के गाढेपन में कमी आती है जिससे हृदय रोगों के होने की संभावना कम होती है.

शोध निर्देशक और कोपेनहेगन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑव पब्लिक हेल्थ के प्रो मोरटोन ग्रोनबेक ने कहा, "हमारे अध्ययन से यह पता चला है कि शारीरिक रूप से सक्रिय होने के साथ संतुलित शराब का सेवन करने से हृदय संबंधी रोगों के होने का ख़तरा कम हो जाता है."

Friday, January 11, 2008

काबुल का बब्बर शेर मौत से हारा


अफ़ग़ानिस्तान में काबुल चिड़ियाघर के मशहूर शेर- मरजान-की मौत हो गई है.

कई लोगों के लिए अफ़ग़ानिस्तान के संघर्ष का प्रतीक माने जाने वाला यह बूढ़ा शेर वर्षों इस देश में चले गृहयुद्ध का गवाह रहा और कुछ ही सप्ताह पहले पेशेवर पशु चिकित्सकों ने इसका इलाज शुरु किया था.

मगर दिन-ब-दिन कमज़ोर पड़ते जा रहे इस शेर ने पांच दिन पहले खाना पीना छोड़ दिया और शनिवार को उसने आखिरी सांस ली.

मरजान की मौत 'वर्ल्ड सोसायटी फ़ॉर दी प्रोटेक्शन ऑफ़ ऐनिमल्स' के पशुचिकित्सक प्रतिनिधियो के लिए बिल्कुल अप्रत्याशित थी जो तीन हफ्ते पहले काबुल चिड़ियाघर के पुनर्निर्माण के लिए पहुंचे थे.

पुनर्निर्माण के लिए विश्व के अनेक चिड़ियाघरों ने पांच लाख डॉलर इस चिड़ियाघर को देने की घोषणा की है.

मौत की वजह

इस संस्था के प्रोजेक्ट मैनेजर जॉन वॉल्श ने बताया कि लंबी बीमारी ने मरजान की जान ली.

मरजान का जिगर कमज़ोर पड़ता जा रहा था और उसकी अंतड़ियों से ख़ून निकल रहा था.

वॉल्श ने बताया कि वो छह साल पहले भी यहां आए थे जब मरजान बुज़ुर्ग, बहादुर लेकिन बीमार था.

लोग उसका बड़ा सम्मान करते थे.

सम्मान


मरजान की मौत की ख़बर जल्दी ही काबुल में फैल गई और लोग तुरत उसे श्रद्धांजलि देने पहुंचने लगे.

तीन औरतों ने अपना बचपन याद किया जब वो मरजान को देखने चिड़ियाघर आई थीं.

छह साल पहले अपने बाड़े में फेंके गए एक हथगोले को छेड़ते समय हुए विस्फोट से मरजान का चेहरा ख़राब हो गया था.

हथगोले को एक तालेबान सैनिक ने मरजान से बदला लेने के लिए फेंका था क्योंकि मरजान ने उसके भाई को मार डाला था, जब वह उसके बाड़े मे घुस आया था.

मरजान को चिड़ियाघर में दफ़ना दिया गया है.

मौत से काबुल चिड़ियाघर में मातम का माहौल था. लेकिन इसके एक और हिस्से में खुशी भी नज़र आ रही थी.


भालू के इलाज में सफलता

इसी चिड़ियाघर में दोनाटेला नामक एक एशियाई काले भालू के दुख के दिन दूर होते लग रहे हैं क्यों कि इसका सफलतापूर्वक इलाज किया गया है.

एक तालेबान सैनिक ने दोनाटेला की नाक काट दी थी क्योंकि उसने उस सैनिक को नोच लिया था.

दोनाटेला का इलाज कर रहे पशुचिकित्सक हुआन कार्लोस मोरियो के अनुसार पिछले कुछ हफ्तों में भालू का व्यवहार काफ़ी बदला है.

जल्दी ही वह एक बड़े और खुले परिसर में चला जाएगा जहां बिजली और गर्मी के अलावा उसके लिए ज़रूरी पेड़ भी होंगे जिनपर वो चढ़ भी सकता है.

सबसे प्रदूषित शहरों में भारत का रानीपेट भी


दुनिया के 10 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में भारतीय राज्य तमिलनाडु का रानीपेट भी शामिल है. अमरीका के एक पर्यावरणवादी संस्थान ब्लैकस्मिथ इंस्टीच्यूट ने सर्वेक्षण के बाद इन शहरों की सूची जारी की है.
इनमें भारत के अलावा रूस, चीन और ज़ाम्बिया के शहर भी हैं. संस्था का कहना है कि इन जगहों पर प्रदूषण का स्तर इतना ज़्यादा है कि लोगों का स्वास्थ्य ख़तरे में है.

इस संस्था ने सर्वेक्षण के लिए 300 जगहों की पड़ताल की. इन 300 जगहों का चुनाव आम लोगों में कराए गए सर्वे के बाद किया गया था.

सर्वेक्षण में हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय और इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी (आईआईटी) के विशेषज्ञों ने इस संस्था की मदद की.

ब्लैकस्मिथ इंस्टीच्यूट का मानना है कि विकासशील देशों में होने वाली कुल मौतों में से 20 फ़ीसदी प्रदूषण जनित समस्याओं से होती हैं.

औसत आयु

संस्था का कहना है कि दुनिया में कई इलाक़े ऐसे हैं जहाँ औसत आयु मध्यकालीन दौर का है और जन्म के समय होने वाली शारीरिक विकृतियाँ आम हैं.

इन इलाक़ों में सीसा और पारा को प्रदूषण का मुख्य स्रोत माना गया है. इस संस्था का कहना है कि उसने जिन 10 जगहों की सूची बनाई है, वहाँ ज़हरीले और दूषित पदार्थों के कारण लोगों का स्वास्थ्य ख़तरे में है.

संस्था के मुताबिक़ यहाँ के लोगों में कैंसर और फेफड़े की बीमारी फैलने का ख़तरा है. ब्लैकस्मिथ इंस्टीच्यूट ने 10 सर्वाधिक प्रदूषित जगहों में रूस के पाँच जगहों को शामिल किया है.

इनमें रूस का ज़शिंस्क भी है. जहाँ सारिन और मस्टर्ड गैस बनाने में लगे रसायनों को खेतों में फेंक दिया जाता है. और यहीं से यहाँ के लोगों को पीने का पानी मिलता है.

संस्था ने रूस के एक अन्य शहर नॉरिल्स्क की भी आलोचना की है. संस्था का कहना है कि यहाँ प्रदूषण नियंत्रण के बिना ही धातुओं को गलाने का काम होता है. इस कारण यहाँ की हवा में सल्फर पाए जाते हैं और बर्फ काला होता है.

चीन के लिनफ़ेन शहर के बारे में कहा गया है कि यहाँ वायु प्रदूषण के कारण लोगों को साँस लेने में परेशानी होती है.

रानीपेट

ब्लैकस्मिथ इंस्टीच्यूट ने भारत के रानीपेट को भी 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल किया है. तमिलनाडु के वेल्लौर ज़िले में स्थित रानीपेट में कई कारखाने हैं जहाँ चमड़े को साफ़ किया जाता है.


लेकिन इसके लिए इस्तेमाल होने वाले रसायन के कारण यहाँ पीने के पानी में काफ़ी प्रदूषण है. सूची में ज़ाम्बिया का काब्वे शहर भी शामिल है.

यहाँ ताँबे का खनन होता है. संस्था का कहना है कि इस शहर में रहने वाले बच्चों के ख़ून में ताँबे का स्तर पाँच से दस गुना ज़्यादा है जिसकी अमरीका में अनुमति है.

यह संस्था इन दस में से पाँच शहरों के साफ़-सफ़ाई कार्यक्रम में शामिल है. संस्था को उम्मीद है कि इस सर्वेक्षण के बाद बाक़ी के पाँच शहरों में भी सफ़ाई का काम शुरू हो पाएगा.

'दो तिहाई आबादी को होगी पानी की किल्लत'


संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी ने चेतावनी दी है कि अगले बीस वर्षों में दुनिया की दो तिहाई आबादी को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ेगा.
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन का कहना है कि दुनिया की आबादी जिस गति से बढ़ रही है, उससे दोगुनी दर से पानी की खपत बढ़ रही है.

यह चेतावनी संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन में जलस्रोत विकास और प्रबंधन विभाग की ज़िम्मेदारी संभाल रहे विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर जारी की गई है.

विभाग के प्रमुख पास्कल स्टेदुटो ने जलस्रोतों के संरक्षण के लिए स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करने की अपील की है.

अभी दुनिया में एक अरब से अधिक आबादी को रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त स्वच्छ पानी नहीं मिल पा रहा है.

साथ ही ढ़ाई अरब से अधिक लोगों को पर्याप्त साफ सफाई की सुविधा नहीं मिल रही है.

तालाबों, नदियों और भूमिगत जलस्रोतों से मिल रहे स्वच्छ पानी का दो तिहाई से अधिक हिस्सा खेती में ही इस्तेमाल हो रहा है.

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया के कई हिस्सों में किसान उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे ज़्यादा से ज़्यादा पानी हथियाने की मुहिम भी शुरू हो गई है.

किसानों को सलाह दी गई है कि वे बारिश के पानी का इकठ्ठा रखने पर ज़ोर दें और सिंचाई के दौरान पानी की बर्बादी रोकें.

ग्लेशियर ही नहीं तो कौन सी गंगा...


गंगोत्री ग्लेशियर के लिए दिल्ली से निकला तो उम्मीद थी कि पहाड़ों पर जाते ही सुहाना मौसम मिलेगा. बर्फ़ ही बर्फ़ होगी और टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होते हुए पहाड़ी सौंदर्य का आनंद लूंगा लेकिन अफसोस...ऐसा हो न सका.
उत्तरकाशी से गंगोत्री की सौ किलोमीटर की यात्रा में कितने स्थानों पर कार से उतर कर पत्थर हटाने पड़े याद करना मुश्किल है. कारण सड़क चौड़ा करने का काम चल रहा था विस्फोट किए जा रहे थे. टेढ़ी मेढ़ी सड़कें टूटी हुई भी थीं.

रास्ते में मेलारी बाँध पड़ता है जो संभवत लोहारीनाग पाला पनबिजली परियोजना का हिस्सा है. इस परियोजना के तहत पूरे रास्ते में चार स्थानों पर पहाड़ों में सुरंगें बनाई जा रही है जिससे गंगा के पानी को लाया जाएगा.

अब सोचिए इनके लिए कितने और विस्फोट हो रहे होंगे. एक-एक विस्फोट से पहाड़ों की पूरी श्रृंखला हिल हिल जाती थी. जगह जगह यह संदेश पढ़कर डर भी लगता कि दांई तरफ देखकर चलें पत्थर गिरने का ख़तरा है.

सड़कों की छोड़िए तो दिन में यात्रा करते समय भारी गर्मी का भी सामना करना पडा.....ऐसी धूप कि महिलाएँ छाते लेकर घूम रही थी और मुझे कार में एसी चलाने को कहना पडा...

इन मुश्किलों को पार करते हुए जब गंगोत्री के पास पहुंचा और बर्फ़ से ढँकी चोटियाँ दिखी तो थोड़ा चैन मिला लेकिन पता चला कि रास्ते में ग्लेशियर गिरा हुआ है और गोमुख तक जाने की अनुमति नहीं है.

गंगोत्री में स्थानीय लोग बढ़ते प्रदूषण से न केवल चिंतित थे बल्कि नाराज़ भी थे. उनकी ख़ास नाराजगी कांवड़ियों से थी जो कि गोमुख के पास नहाने के बाद कपड़े नदी में फेंक देते हैं या फिर वहीं शौच करते हैं.

गंगोत्री में बरसों से रह रहे कई साधु तो गुस्से में थे और उनका कहना था कि अधिक लोगों के आने पर प्रतिबंध लगे. यहीं पर मुझे कुछ विदेशी भी मिले कनाडाई, अमरीका, जर्मन ...ये बरसों से भारत में घूम रहे हैं क्योंकि उनके शब्दों में उन्हें यहाँ आत्मिक शांति मिलती है.

प्रदूषण के मुद्दे पर उनका गुस्सा पूरी दुनिया से था और बात करने पर वो उत्तरी ध्रुव और सुंदरबन में पर्यावरण के विनाश की बात भी करते थे.

लौटते समय हरिद्वार भी गया जहाँ गंगा का पानी गंगोत्री की गंगा से थोड़ा गंदा था लेकिन अब मेरे मन में गंगा के प्रदूषण की बात थी ही कहां.

मन में केवल एक ही बात थी... गंगोत्री ग्लेशियर न रहा तो कौन सी गंगा कैसी गंगा.

लखपति होना अब बड़ी बात नहीं रही


मेरे बचपन में लखपति होना बड़ी बात समझी जाती थी. अकसर मैंने अपने घर के लोगों को किसी का ज़िक्र यह कहते हुए सुना कि वे तो बड़े लोग हैं, लखपति हैं.
भारत में अब लखपतियों की संख्या कम नहीं है. कोई भी व्यक्ति जिसका अपना मकान या दुकान या कार है, लखपति है.

और अब लाख टके की नैनो के आने के बाद तो लखपतियों की तादाद और भी बढ़ जाएगी.

लोग उधार लेंगे, हो सकता है कुछ गिरवी रखें, लेकिन घरवालों की मांग होगी, अब हमारे पास भी कार होनी चाहिए.

कार के अपने फ़ायदे भी हैं. लू, बारिश, आँधी के थपेड़ों में पूरे परिवार को बाहर निकलना हो तो स्कूटर या मोटरसाइकिल से तो बहुत बेहतर है कार.

लेकिन हाँ तब जब उसके लिए पैसा आसानी से मुहैया हो.

संशय भरी प्रतिक्रिया

मेरे एक परिचित की नैनो पर प्रतिक्रिया थी-अब लोग दहेज में स्कूटर नहीं नैनो कार की मांग करेंगे.

लेकिन इस तरह के संशय को देखते हुए क्या एक अच्छे और सकारात्मक क़दम का स्वागत भी न किया जाए.


स्कूटर की जगह नैनो की मांग बढ़ेगी

यहाँ विदेशों में एक घर में दो-तीन कारें होना आम बात है. यह विलासिता नहीं है बल्कि मजबूरी है.

घर के सभी लोग काम कर रहे हैं और घर रेलवे स्टेशन से दूर है तो क्या करें.

हालाँकि यहाँ की सड़कों पर भी इतनी भीड़भाड़ है कि कम ही लोग कार ले कर शहर जाते हैं.

वे सुबह घर से कार में निकलते हैं. उसे क़रीब के ट्रेन स्टेशन पर पार्क करते हैं और ट्रेन से काम करने की जगह जाते हैं.

शाम को लौट कर वहीं से कार में बैठते हैं और घर आ जाते हैं.

पार्किंग की फ़ीस वैसे यहाँ लंदन में और दिल्ली में भी आसमान छू रही है.

तो यह मान कर चलिए कि कार के लिए एक लाख रुपया जुटाने से ही इति नहीं हो जाती.

पार्किंग सस्ती बनानी होगी. लोग कार ले कर बाहर निकलें और पार्किंग में ही पचास रुपये ख़र्च करदें तो उससे तो बस या टैक्सी ही भली.

और फिर पेट्रोल की क़ीमत...मध्यवर्ग के लोगों की तो पहुँच से बाहर है जल्दी टंकी भरवाना.

तो एक लाख रुपये क़ीमत की कार की घोषणा से ख़ुश होने वालों को यह मान कर चलना होगा कि यह कार अपने साथ और ख़र्चे भी ले कर आएगी.

दस-पंद्रह हज़ार रुपये महीने के वेतन से चलने वाले एक आम परिवार को बहुत सोच-समझ कर फ़ैसला करना होगा.

लेकिन इसके साथ यह भी अपनी जगह सही है कि चादर देख कर पाँव पसारा जाए तो कुछ भी महंगा नहीं है.