Sunday, March 23, 2008

उत्तर प्रदेश की आबादी पाकिस्तान से ज़्यादा


भारत की जनगणना के ताज़े आँकड़ों के अनुसार हर तीसरा भारतीय निरक्षर है. आबादी के लिहाज़ से उत्तर प्रदेश पहला राज्य है, जबकि लक्षद्वीप में सबसे कम लोग रहते हैं.
भारत के महापंजीयक जेके बाँठिया ने 2001 की जनगणना के विस्तृत आँकड़े जारी करते हुए शनिवार को दिल्ली में यह जानकारी दी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार उन्होंने बताया कि 1991 से 2001 के बीच भारत की जनसंख्या में 18 करोड़ से भी ज़्यादा की वृद्धि हुई, यानी ब्राज़ील की अनुमानित जनसंख्या से भी ज़्यादा.

उल्लेखनीय है कि ब्राज़ील का स्थान आबादी की दृष्टि से दुनिया में पाँचवाँ है.

बंथिया ने कहा कि उत्तर प्रदेश में साढ़े सोलह करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं, यानी पाकिस्तान की अनुमानित आबादी से भी ज़्यादा.

दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है जिसकी आबादी 9.7 करोड़ है, जबकि बिहार में सवा आठ करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं.

दूसरी ओर लक्षद्वीप में मात्र 61 हज़ार लोग रहते हैं.

पूर्ण साक्षरता की राह पर

बाँठिया ने बताया कि साक्षरता के क्षेत्र में भारत ने हाल के वर्षों में भारी प्रगति की है.

भारत की मौजूदा साक्षरता दर 64.8 प्रतिशत है.

अलग-अलग देखा जाए तो भारत में पुरुष साक्षरता 75.3 प्रतिशत, और महिला साक्षरता दर 53.7 प्रतिशत है.

यदि साक्षरता दरों की तुलना 1991 के आंकड़ों से की जाए तो पुरुष साक्षरता दर में 11 प्रतिशत और महिला साक्षरता दर में 14.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

जनगणना के चिंताजनक आंकड़ों में से एक है लैंगिक अनुपात का असंतुलन बढ़ना.

भारत में 2001 के आंकड़ों के अनुसार 1000 पुरुषों पर 927 महिलाएँ हैं. जबकि 1991 के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं का अनुपात 945 था.

जनगणना के 'संशोधित आँकड़े' जारी


भारत में मुसलमानों की आबादी तेज़ी से बढ़ने संबंधी आँकड़ों को लेकर उठे विवाद के बाद अब जनगणना आयोग ने 'संशोधित आँकड़े' जारी किए हैं और अब कहा गया है कि वृद्धि दर कम हुई है.
इन आँकड़ों के अनुसार मुसलमानों की आबादी 1991 की जनगणना के आँकड़ों के मुक़ाबले 29.3 प्रतिशत बढ़ी है.

पहले ये प्रतिशत 36 बताया गया था. इसके अनुसार मुसलमानों की आबादी बढ़ने की दर में लगभग डेढ़ प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी क्योंकि इससे पहले 1991 के आँकड़ों के अनुसार ये वृद्धि दर 34.5 बताई गई थी.

मगर अब आयोग ने इन आँकड़ों में संशोधन करते हुए जम्मू-कश्मीर और असम के वर्ष 2001 की जनगणना के आँकड़े निकालकर प्रतिशत निकाला है.

ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि 1991 में जम्मू-कश्मीर में और 1981 में असम में जनगणना नहीं हो सकी थी.

इस तरह अब जो आँकड़े आए हैं वे दिखाते हैं कि मुसलमानों की आबादी की दर बढ़ने के बजाए घटी ही है.

आयोग ने अब 'संशोधित' और 'बिना संशोधित' दो आँकड़े जारी किए हैं. आयोग के प्रमुख जेके बंठिया ने कहा है कि ये संशोधन किसी दबाव में नहीं किए गए हैं.

विवाद

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू ने बंगलौर में यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि मुसलमानों की तेज़ी से बढ़ती आबादी भारत की राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए गंभीर चिंता का कारण है.

इसके बाद इस बात पर विवाद तेज़ हो गया था कि क्या धर्म के आधार पर अलग-अलग समुदायों के आँकड़ों का विश्लेषण ठीक है.

जनसंख्या से जुड़े मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला इतना सरल नहीं है जितना दिखता है, इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, जागरूकता और आर्थिक स्तर जैसे पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाना ज़रूरी है.

वर्ष 2001 के आँकड़े दिखाते हैं कि हिंदुओं की जनसंख्या में 2.8 प्रतिशत की गिरावट रही जबकि सिखों की आबादी में 8.6 फ़ीसदी की गिरावट आई है.

नसबंदी कराओ, बंदूक पाओ!


मध्यप्रदेश के चंबल इलाके में बंदूक आन-बान और शान का प्रतीक मानी जाती है. लेकिन आजकल इसी शान को पाने के लिए यहाँ लोग नसबंदी करवा रहे है.
दरअसल, भिंड के ज़िला प्रशासन ने इन दिनों परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए एक योजना चला रखी है. जिसके मुताबिक़ नसबंदी कराने वाले पुरुषों को बंदूक का लाइसेंस हासिल करने में प्राथमिकता दी जा रही है.

भिंड जिले में ज़्यादा से ज़्यादा मर्द इस साल नसबंदी करवाने के लिये आगे आ रहे हैं. इस उम्मीद के साथ की उन्हें बंदूक का लाइसेंस आसानी से मिल जायेगा.

पिछले साल मात्र आठ पुरुषों ने नसबंदी कराई थी. लेकिन, इस साल अब तक 175 से भी ज़्यादा लोग नसबंदी करवा चुके हैं.

भिंड के ज़िलाधिकारी मनीष श्रीवास्तव कहते हैं, "इस साल अच्छे नतीजे सामने आए हैं. बंदूक के लाइसेंस की उम्मीद में काफी लोगों ने नसबंदी करवाई है."

चंबल के इलाक़े में लोगों के बंदूक-प्रेम का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भिंड ज़िले में 23 हज़ार लाइसेंसी बंदूके हैं.

जबकि, 11 हज़ार शिवपुरी ज़िले में और 15 हज़ार लाइसेंसी बंदूकें मुरैना ज़िले में हैं.

बंदूक है तो शान है
चंबल इलाक़े में सड़क पर चलते हुये आप आसानी से ऐसे दर्जनों लोगों को देख सकते है, जिनके कंधे पर बंदूक टंगी होती है.


चंबल का बंदूक प्रेम
भिंड ज़िले में 23,000 बंदूकें
शिवपुरी में 11,000 बंदूकें
मुरैना में 15,000 बंदूकें
यहां के सुमेर पटेल कहते हैं, "हर परिवार की पहली कोशिश यही होती है कि उनके पास एक बंदूक हो. अगर दो हो तो भी कोई बुराई नही है."

वहीं, अमर सिंह कहते हैं कि बंदूक उनकी इज़्ज़त से जुड़ा हुआ मामला है. यही वजह है कि हर किसी की कोशिश होती है कि उनके पास कम से कम एक बंदूक तो हो.

नसबंदी करवा चुके संजीव डागा कहते हैं, "जिला प्रशासन का ये फैसला अच्छा है. मुझे बंदूक हासिल करने के लिए नसबंदी रिपोर्ट लगानी पड़ी. उम्मीद है कि लाइसेंस जल्द ही मिल जाएगा."

नसबंदी का ऑपरेशन करवा कर बंदूक हासिल करने वाले पंकज भी कहते हैं कि ज़िला प्रशासन की पहल अच्छी है.

लेकिन, इस इलाक़े में समाज सेवा करने वाले केएस मिश्रा इस मामले में कुछ अलग सोचते हैं. उनका कहना है "बंदूक के लिये यहाँ के लोग कुछ भी कर सकते है. मगर परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के इस तरीके को सही नहीं कहा जा सकता."

वो कहते हैं कि प्रशासन को दूसरे तरीक़े आज़माना चाहिए न कि इस तरह बंदूक के लाइसेंस देने की बात करनी चाहिये.

इन सब के बीच यहां के लोग खुश हैं कि आखिर उन्हें बंदूक का लाइसेंस बिना किसी दिक़्क़त के मिल रहा है. वो भी एक छोटे से ऑपरेशन के बाद.