Sunday, August 31, 2008

चींटियों की एकजुटता...


(मारवाड़ न्यूज़)चींटियों के बारे में यह कहा जाता है कि वो बड़े संगठित रूप से बस्तियों में रहती हैं. कहीं जाती हैं तो एक साथ जाती हैं लेकिन वो सीधी क़तार में कैसे चल पाती हें! यह चमत्कार होता है फ़ैरोमोंस से. चींटियों में कुछ ग्रंथियाँ होती हैं जिनसे फ़ैरोमोंस नामक रसायन निकलते हैं. इन्हीं के ज़रिए वो एक दूसरे के संपर्क में रहती हैं. चींटियों के दो स्पर्शश्रंगिकाएं या ऐंटिना होते हैं जिनसे वो सूंघने का काम करती हैं. रानी चींटी भोजन की तलाश में निकलती है तो फ़ैरोमोंस छोड़ती जाती है. दूसरी चीटियाँ अपने ऐंटिना से उसे सूंघती हुई रानी चींटी के पीछे-पीछे चली जाती हैं. जब रानी चींटी एक ख़ास फ़ैरोमोन बनाना बंद कर देती है तो चीटियाँ, नई चींटी को रानी चुन लेती हैं. फ़ैरोमोंस का प्रयोग और बहुत सी स्थितियों में होता है. जैसे अगर कोई चींटी कुचल जाए तो चेतावनी के फ़ैरोमोन का रिसाव करती है जिससे बाक़ी चींटियाँ हमले के लिए तैयार हो जाती हैं. फ़ैरोमोंस से यह भी पता चलता है कि कौन सी चींटी किस कार्यदल का हिस्सा है.

कोहिनूर हीरा कहाँ रखा है?


लंदन टॉवर, ब्रिटेन की राजधानी लंदन के केंद्र में टेम्स नदी के किनारे बना एक भव्य क़िला है जिसे सन् 1078 में विलियम द कॉंकरर ने बनवाया था. इसके लिए पत्थर फ़्रांस से मंगाए गए थे. इस परिसर में और भी कई इमारतें हैं. यह शाही महल तो था ही, साथ ही यहां राजसी बंदियों के लिए कारागार भी था और कई को यहां मृत्यु दंड भी दिया गया. हैनरी अष्टम ने अपनी रानी ऐन बोलिन का 1536 में यहीं सर क़लम कराया था और कहते हैं कि अब भी वो अपना सिर बगल में लिए क़िले में घूमती दिखाई दे जाती हैं. हां, इस क़िले की एक विशेषता और है कि यहां हमेशा से काले कौवे रहते आए हैं और यह किम्वदन्ती है कि जिस दिन ये कौवे टावर ऑफ़ लंडन छोड़ कर चले जाएंगे बस तभी राजशाही समाप्त हो जाएगी. राजपरिवार इस क़िले में नहीं रहता है लेकिन शाही जवाहरात इसमें सुरक्षित हैं जिनमें कोहिनूर हीरा भी शामिल है.

आयुर्वेदिक दवाएँ संदेह के घेरे में

(मारवाड़ न्यूज़)
हाल के वर्षों में विदेशों में आयुर्वेदिक दवाओं का प्रचलन बढ़ा है
इंटरनेट पर बेचे जाने वाली भारतीय आयुर्वेदिक दवाइयों में से हर पाँचवें में ऐसे तत्व पाए गए हैं जो स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक हो सकते हैं.
अमरीका की बोस्टन यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है. शोधार्थियों ने भारत और अमरीका में बनने वाली दवाओं की जाँच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है.
शोध में इंटरनेट पर बिकने वाली 193 आयुर्वेदिक दवाओं की जाँच की गई जिनमें से क़रीब 20 प्रतिशत दवाओं में सीसा, पारा और आर्सेनिक पाया गया.
शोधार्थियों का कहना है कि कुछ दवाओं में तय सीमा से बहुत अधिक मात्रा में ऐसे पदार्थ पाए गए जो स्वास्थ्य के लिए घातक हैं.
हज़ारों वर्षों से भारत में प्रचलित आयुर्वेदिक औषधियाँ हाल के वर्षों में विदेशों में भी ख़ूब इस्तेमाल की जा रही है.
आयुर्वेदिक औषधि बनाने वालों का कहना है कि जब धातुओं और जड़ी-बूटियों का ठीक से मिश्रण कर उसे कुशलतापूर्वक तैयार किया जाता है तब वह स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होता है.
कड़े नियम जरुरी
शोध के निर्देशक डॉक्टर रॉबर्ट सैपर का कहना है कि इस जाँच के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि इन दवाओं के सेवन को लेकर कड़े नियम बनाने की ज़रुरत है.
उन्होंने कहा कि यह भी तय किया जाना चाहिए कि कितनी मात्रा में प्रति दिन इन पदार्थों का सेवन किया जा सकता है और उत्पादकों को स्वतंत्र रुप से इन दवाओं की जाँच करनी चाहिए.
सैपर का कहना था कि पिछले 30 वर्षों में इन औषधियों के इस्तेमाल के कारण 80 ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें सीसा का इस्तेमाल जानलेवा साबित हुआ.
ब्रिटेन ने पंजीकरण व्यवस्था की शुरुआत कर दी है. वहाँ अगले तीन वर्षों में उन आयुर्वेदिक दवाओं को बेचने पर प्रतिबंध होगा जिन्हें लाइसेंस नहीं मिला है.
हालांकि ब्रिटेन के बाहर आयुर्वेदिक दवा बनाने वालों पर इस तरह के नियम लागू नहीं होते हैं.