Friday, April 11, 2008

बारिश बुलाने के टोटके


भयंकर सूखे की चपेट में आए भारत के कई राज्यों में लोग अब अंधविश्वासों का सहारा ले रहे हैं.
वर्षा पर आधारित है भारतीय कृषिख़बरों के अनुसार उत्तर प्रदेश के कई गाँवो में औरतें रात में बग़ैर कपड़े पहने खेतों में हल चला रही हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से देवता ख़ुश होकर धरती की प्यास बुझा देंगे
. किंवदंतियो में एक राजा को ऐसा ही करते हुए बताया गया है.पूर्वी उड़ीसा में किसानों ने मेढको के नाच का आयोजन किया जिसे स्थानीय भाषा में 'बेंगी नानी नाचा ' के नाम से जाना जाता है.गाजे-बाजे के बीच लोग एक मेंढक को पकड़ कर आधे भरे मटके में रख देते है जिसे दो व्यक्ति उठा कर एक जुलूस के आगे-आगे चलते हैं.कुछ इलाक़ों में तो दो मेढकों की शादी कर उन्हें एक ही मटके से निकालकर स्थानीय तालाब में छोड़ दिया जाता है.कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों से वर्षा के लिए यज्ञ कराए जाने की ख़बर मिली है.और कहीं तो मेढकों को गधों पर उछाला जाता है.बस....कैसे भी हो.....मेह बरस जाए!!!!दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर हरबंस मुखिया के अनुसार जब परिस्थितयाँ मानव के नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, तभी ऐसी प्रथाओं को अपनाया जाता है.उन्होंने कहा कि ग्रामीणों को शिक्षित किए जाने पर भी ये प्रथाएँ बंद नहीं होने वालीं, क्योंकि परंपराएँ उनके रग-रग में समाई हुई हैं.

इंटरनेट यूजर्स को 'टाइम' का सलाम


जानी-मानी पत्रिका टाइम ने दुनियाभर के इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों का अपने तरीक़े से अभिनंदन किया है. टाइम ने इस वर्ष 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' का पुरस्कार इन लोगों के नाम किया है.
सोमवार को आने वाले टाइम का विशेष अंक इन्हीं इंटरनेट यूजर्स को समर्पित है. पत्रिका के मुख्यपृष्ठ पर लिखा है- यू यानी आप...हम.. वो सभी लोग जो इंटरनेट क्रांति में डूबे हुए हैं.
आप यानी हर वो आम या ख़ास जिन्होंने इंटरनेट के माध्यम से ख़बरों और ख़बरों के स्रोतों का विकेंद्रीकरण कर दिया है और शक्ति के संतुलन में व्यापक बदलाव ला दिया है.
पत्रिका ने उन लोगों का सम्मान किया है जिन्होंने इंटरनेट पर सामग्री तैयार करने में भूमिका निभाई है और आज यूजर्स की सामग्री का इस्तेमाल कर कई वेबसाइटें लोकप्रियता के शिखर पर हैं.
टाइम ने यू ट्यूब, माई स्पेस जैसी वेबसाइटों का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया है.
वर्ष 1927 से 'टाइम' पत्रिका 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' का ख़िताब ख़बरों में साल भर बने रहने और ख़बरों और आम जनजीवन पर सबसे ज़्यादा प्रभाव डालने वाले व्यक्ति को देती है.
ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद, चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ और उत्तर कोरिया के किम जोंग इल इस साल उपविजेता रहे.
माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स, उनकी पत्नी मिलिंडा और रॉक स्टार बोनो ने पिछले साल ये ख़िताब जीता था.
'टाइम' पत्रिका के हिसाब से 2004 में पर्सन ऑफ़ द ईयर अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश थे और 2003 में ये ख़ुशनसीबी अमरीकी सैनिकों को हासिल हुई थी.
इंटरनेट
पत्रिका ने कहा कि किसी एक व्यक्ति की जगह 'आम जन' का पर्सन ऑफ़ द ईयर चुना जाना दिखाता है कि कैसे इंटरनेट ने ब्लॉग, वीडियो और सोशल नेटवर्क का उपयोग करते हुए मीडिया में अपनी दख़ल बढ़ाई है और मीडिया के शक्ति-संतुलन में बदलाव लाया है.
'टाइम' ने कहा कि यू-ट्यूब, फ़ेसबुक, माई स्पेस और विकीपीडिया जैसी वेबसाइटों की सहायता से लोगों के बीच संपर्क कई गुना बढ़ रहा है और अब लोग अपने विचारों, चित्रों और वीडियो को सभी तक आसानी से पहुँचा सकते हैं.
'टाइम' पत्रिका के लेव ग्रॉसमन कहते हैं, "ये कुछ के हाथ से ताक़त बहुतों के हाथों में पहुँचने जैसा है. ये सिर्फ़ दुनिया को नहीं बदलेगा बल्कि दुनिया बदलने के तरीक़े को भी बदलेगा."
'टाइम' ने वेब तकनीक की जमकर तारीफ़ की जिसने ख़बरों को सभी तक पहुँचाना इतना आसान बना डाला.
ग्रॉसमन ने कहा कि वेब लाखों लोगों की छोटी-छोटी कोशिशों को एक साथ ला रहा है और उन्हें मूल्यवान बना रहा है.
1938 में हिटलर और 1979 में ईरान के आयतुल्ला ख़ामेनेई जैसे लोगों को 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' चुनने पर विवाद भी हो चुका है.

'इंटरनेट की सेंसरशिप ज़ोर पर'


इंटरनेट पर नज़र रखने वाली एक ग़ैर सरकारी एजेंसी का कहना है कि दुनिया भर में सरकारें इंटरनेट पर सेंसरशिप बढ़ा रही हैं.
ओपेन नेट इनिशिएटिव की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में 25 देश ऐसे हैं जिन्होंने राजनीतिक, सामाजिक और सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए कई वेबसाइटों को अपने देश में ब्लॉक कर दिया है.
एजेंसी का कहना है कि वे यह देखकर हैरत में पड़ गए हैं कि कितने बड़े पैमाने पर इंटरनेट की सेंसरशिप जारी है.
ओपेन नेट इनिशिएटिव का कहना है कि कई देशों की सरकारें इंटरनेट को ख़तरे के रूप में देखती हैं.
41 देशों का एक विस्तृत अध्ययन करने पर पता चला कि 25 ऐसे देश हैं जो या तो बेवसाइटों को पूरी तरह ब्लॉक कर रहे हैं या फिर सामग्री को लोगों तक पहुँचने से रोकने के लिए फिल्टरों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
ऐसा करने की तीन प्रमुख वजहें हैं- राजनीतिक विपक्ष को मज़बूत होने से रोकना, राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर संवेदनशीलता और अश्लील सामग्री को जनता पहुँचने से रोकने की कोशिश.
रिपोर्ट तैयार करने वाले जॉन पॉलफेरी का कहना है कि इंटरनेट सेंसरशिप बढ़ रही है जो चिंता का विषय है क्योंकि इससे लोगों की नागरिक स्वतंत्रता और निजता हनन हो रहा है.
यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है और ओपेन नेट इनिशिएटिव का कहना है कि वे अपने अध्ययन का दायरा व्यापक करेंगे तो सेंसरशिप की और घटनाओं का पता चलेगा.
जो देश बहुत बड़े पैमाने पर राजनीतिक सेंसरशिप लागू कर रहे हैं उनमें चीन, ईरान, बर्मा और ट्यूनिशिया शामिल हैं.
पाकिस्तान और दक्षिण कोरिया भी कई वेबसाइटों को जनता तक पहुँचने से रोक रहे हैं.
कई वेबसाइटों को अश्लील बताकर सऊदी अरब, यमन और ट्यूनिशिया जैसे देश रोक रहे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब ये देश एक बार वेबसाइटों को रोकना शुरू करते हैं तो उनकी संख्या बढ़ाते ही जाते हैं, कभी कम नहीं करते.

इसी जीवन में जी सकते हैं 'दूसरा जनम'


कभी आपने सोचा है कि काश हमारी एक और ज़िंदगी होती. इस जीवन की सच्चाइयाँ कभी-कभी कुछ ज़्यादा ही कड़वे सच के रूप में सामने आती हैं और आप सोचते हैं कि काश एक दूसरा जीवन भी होता जहाँ चीज़ें अपने मुताबिक़ होतीं.
आजकल इंटरनेट पर एक ज़बरदस्त दौर सा चल रहा है और उसे यही नाम दिया गया है, 'सेकेंड लाइफ़' यानी दूसरा जीवन.
यह दूसरा जीवन मिलता है कंप्यूटर के माध्यम से. वर्चुअल वर्ल्ड या कंप्यूटर जनित दुनिया, इंटरनेट का वो हिस्सा है जिनके बारे में बहुत लोगों को जानकारी नहीं है.
इसमें होता ये है कि असली लोग, डिजिटल अवतार के रूप में दिखाए जाते हैं. आप ख़ुद को अपने कंप्यूटर के पर्दे पर, एक कम्प्यूटर जनित व्यक्ति के रूप में, चलता-फिरता देख सकते हैं.
इस वर्चुअल दुनिया के लोग भी असली लोगों की तरह घर बनाते हैं, व्यापार करते हैं, ज़मीन ख़रीदते-बेचते हैं, प्रेम संबंध जोड़ते हैं लेकिन यह सब कुछ होता है आभासी दुनिया में. यानी असल में आप ये सब नहीं कर रहे लेकिन आपको महसूस होता है कि ऐसा कर रहे हैं.
सेकेंड लाइफ़ यानी दूसरी ज़िंदगी, सबसे बड़ी और लोकप्रिय कंप्यूटर जनित दुनिया है और इसकी बड़ी चर्चा हो रही है लेकिन अभी एक महीने में कोई दस लाख लोग इस वेबसाइट का इस्तेमाल कर रहे हैं.
सेकेंड लाइफ़ के संस्थापक फ़िलिप रोज़डेल का कहना है कि जैसे-जैसे टेक्नॉलॉजी में प्रगति होगी ये संख्या बढ़ती जाएगी. "अभी तक इसमें नब्बे लाख लोगों ने अपने आपको रजिस्टर किया है लेकिन हमारे सामने चुनौती ये है कि इसे बढ़ाया जाए और करोड़ों लोग इसका नियमित इस्तेमाल करें. मैं समझता हूं कि ऐसा हो सकता है और होगा."
वे कहते हैं, "कंप्यूटर जनित दुनिया की स्थिति आज वैसी ही है जैसी नब्बे के दशक के आरंभिक वर्षों में इंटरनेट की थी. लेकिन यह तेज़ी से बढ़ेगा."
वे बताते हैं कि कुछ तकनीकी समस्याएँ भी हैं, "अभी स्थिति यह है कि 50 अवतार से ज़्यादा एक जगह इकट्ठा नहीं हो सकते हैं वरना कंप्यूटर प्रोग्राम ठप हो जाता है."
दूसरी मुश्किल यह है कि इसका इस्तेमाल करने वाले आम लोगों के पास वह तकनीकी क्षमता नहीं है कि वे अपने अवतार की सूरत शक्ल बदल सकें.
रोज़डेल का कहना है कि जल्दी ही इन तकनीकी मुद्दों को सुलझा लिया जाएगा