अमरीकी पत्रिका टाइम ने दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय काम कर रहे लोगों की एक सूची जारी की है जिसमें दो भारतीयों - तुलसी ताँती और डीपी डोभाल ने भी जगह पाई है.
तुलसी ताँती भारत की पवन ऊर्जा कंपनी सुज़लॉन के प्रमुख हैं और डीपी डोभाल वाडिया हिमालय भूगर्भीय संस्थान से संबंधित हैं. इन दोनों को टाइम ने ‘हीरोज़ ऑफ़ इनवायरनमेंट’ सूची में शामिल किया है.
टाइम पत्रिका ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि 'सूची में शामिल लोग वो हैं जिन्होंने दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पर्यावरण चिंता को लेकर छाई ख़ामोशी को ख़त्म किया है.'
पत्रिका लिखती है, "पर्यावरण के मसले उठा रहे इन लोगों ने पृथ्वी को आवाज़ दी है. इस आवाज़ को सुनकर हमें उनका साथ देना चाहिए."
तुलसी ताँती की कहानी
टाइम में ताँती पर छपे लेख में बताया गया है कि दुनिया की चौथी सबसे बड़ी पवन ऊर्जा टर्बाइन कंपनी के प्रमुख 49 वर्षीय इंजीनियर ताँती की जिंदगी में दो ऐसे मोड़ आए जब वे पर्यावरण की चिंता से जुड़ते चले गए.
वर्ष 1995 में ताँती कपड़े की कंपनी चला रहे थे. तमाम प्रयोग के बावजूद बिजली की क़ीमत और आपूर्ति के कारण उनकी कंपनी मुनाफ़ा नहीं दे पा रही थी.
ताँती ने पवन ऊर्जा की दो टर्बाइन लीं और कंपनी ने धीरे-धीरे लाभ देना शुरू कर दिया.
अगर भारत के लोग अमरीका की तरह बिजली की खपत करने लगें तो दुनिया में संसाधनों की कमी हो जाएगी. ऐसी स्थिति में या तो भारत को विकसित होने से रोक दिया जाए या दूसरे विकल्पों को आज़माया जाए
तुलसी ताँती
दूसरी बार वर्ष 2000 की शुरुआत में उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग पर एक रिपोर्ट पढ़ी.
इससे उन्हें मालूम चला कि अगर वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने में भारी कमी नहीं लाई गई तो वर्ष 2050 तक कई देश पानी में डूब जाएँगे. इन देशों में मालदीव जैसे देश का भी नाम था, जहाँ घूमने जाना उन्हें बहुत भाता है.
तांती के अनुसार, "अगर भारत के लोग अमरीका की तरह बिजली की ख़पत करने लगें तो दुनिया में संसाधनों की कमी हो जाएगी. ऐसी स्थिति में या तो भारत को विकसित होने से रोक दिया जाए या दूसरे विकल्पों को आज़माया जाए."
2001 तक ताँती ने अपनी कपड़े वाली कंपनी बेच दी और पवन ऊर्जा टर्बाइन बनाने की कंपनी सुज़लॉन एनर्जी को शुरू किया. आज चार देशों में कंपनी के कारख़ाने हैं और यह सालाना करीब 85 करोड़ डॉलर का कारोबार करती है.
ग्लेशियर के अध्ययन में जुटे डोभाल
टाइम पत्रिका के लेख के मुताबिक आर्कटिक और अन्य जगहों के ग्लेशियर का अध्ययन तो कई वैज्ञानिकों ने किया है लेकिन दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला हिमालय के ग्लेशियर पिघलने पर उतना काम नहीं हुआ है.
टाइम पत्रिका के अनुसार यही कारण है कि डोभाल का काम इतना महत्वपूर्ण है.
भारत सरकार के वाडिया हिमालय भूगर्भ संस्थान के 45 वर्षीय भूगर्भशास्त्री डोभाल हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने पर शोध करते-करते अब एक तरह से ग्लेशियरशास्त्री बन गए हैं.
जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से ग्लेशियर सबसे संवेदनशील हैं. क्या-क्या असर हो रहा है, यह जानने का सबसे बेहतरीन ज़रिया ग्लेशियर हैं
डीपी डोभाल
डीपी डोभाल के अनुसार, "जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से ग्लेशियर सबसे संवेदनशील हैं. क्या-क्या असर हो रहा है, यह जानने का सबसे बेहतरीन ज़रिया ग्लेशियर हैं."
डोभाल के अनुसार दूसरे क्षेत्र के ग्लेशियरों का लंबे समय का 'डाटा' उपलब्ध है लेकिन हिमालय के ग्लेशियरों के बारे में हम अब भी बहुत कम जानते हैं. वे कहते हैं कि हमने बहुत देर से इस पर काम शुरू किया.
पिछले 15 सालों से हिमालय के एक ग्लेशियर के आकार का सही और लगातार आंकड़ा लिया जा रहा है. कुछ और आंकड़ें भी हैं लेकिन इनका आकलन और भी बाद में शुरू हुआ है.
अन्य पर्यावरणविद
टाइम की सूची में शामिल दूसरे देशों के 'पर्यावरण नायक' भी लाजवाब हैं. आर्थक रूप से पिछड़े बांग्लादेश के रसायनशास्त्री अबुल हुसाम ने प्रदूषित पानी को साफ़ करने की तरकीब निकाली है.
चीन के शी झेंगरोंग भी इस सूची में हैं. झेंगरोंग ने सौर ऊर्जा के व्यवसाय को अपनाया और आज देश के सबसे अमीर लोगों में एक हैं.
तुलसी ताँती भारत की पवन ऊर्जा कंपनी सुज़लॉन के प्रमुख हैं और डीपी डोभाल वाडिया हिमालय भूगर्भीय संस्थान से संबंधित हैं. इन दोनों को टाइम ने ‘हीरोज़ ऑफ़ इनवायरनमेंट’ सूची में शामिल किया है.
टाइम पत्रिका ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि 'सूची में शामिल लोग वो हैं जिन्होंने दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पर्यावरण चिंता को लेकर छाई ख़ामोशी को ख़त्म किया है.'
पत्रिका लिखती है, "पर्यावरण के मसले उठा रहे इन लोगों ने पृथ्वी को आवाज़ दी है. इस आवाज़ को सुनकर हमें उनका साथ देना चाहिए."
तुलसी ताँती की कहानी
टाइम में ताँती पर छपे लेख में बताया गया है कि दुनिया की चौथी सबसे बड़ी पवन ऊर्जा टर्बाइन कंपनी के प्रमुख 49 वर्षीय इंजीनियर ताँती की जिंदगी में दो ऐसे मोड़ आए जब वे पर्यावरण की चिंता से जुड़ते चले गए.
वर्ष 1995 में ताँती कपड़े की कंपनी चला रहे थे. तमाम प्रयोग के बावजूद बिजली की क़ीमत और आपूर्ति के कारण उनकी कंपनी मुनाफ़ा नहीं दे पा रही थी.
ताँती ने पवन ऊर्जा की दो टर्बाइन लीं और कंपनी ने धीरे-धीरे लाभ देना शुरू कर दिया.
अगर भारत के लोग अमरीका की तरह बिजली की खपत करने लगें तो दुनिया में संसाधनों की कमी हो जाएगी. ऐसी स्थिति में या तो भारत को विकसित होने से रोक दिया जाए या दूसरे विकल्पों को आज़माया जाए
तुलसी ताँती
दूसरी बार वर्ष 2000 की शुरुआत में उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग पर एक रिपोर्ट पढ़ी.
इससे उन्हें मालूम चला कि अगर वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने में भारी कमी नहीं लाई गई तो वर्ष 2050 तक कई देश पानी में डूब जाएँगे. इन देशों में मालदीव जैसे देश का भी नाम था, जहाँ घूमने जाना उन्हें बहुत भाता है.
तांती के अनुसार, "अगर भारत के लोग अमरीका की तरह बिजली की ख़पत करने लगें तो दुनिया में संसाधनों की कमी हो जाएगी. ऐसी स्थिति में या तो भारत को विकसित होने से रोक दिया जाए या दूसरे विकल्पों को आज़माया जाए."
2001 तक ताँती ने अपनी कपड़े वाली कंपनी बेच दी और पवन ऊर्जा टर्बाइन बनाने की कंपनी सुज़लॉन एनर्जी को शुरू किया. आज चार देशों में कंपनी के कारख़ाने हैं और यह सालाना करीब 85 करोड़ डॉलर का कारोबार करती है.
ग्लेशियर के अध्ययन में जुटे डोभाल
टाइम पत्रिका के लेख के मुताबिक आर्कटिक और अन्य जगहों के ग्लेशियर का अध्ययन तो कई वैज्ञानिकों ने किया है लेकिन दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला हिमालय के ग्लेशियर पिघलने पर उतना काम नहीं हुआ है.
टाइम पत्रिका के अनुसार यही कारण है कि डोभाल का काम इतना महत्वपूर्ण है.
भारत सरकार के वाडिया हिमालय भूगर्भ संस्थान के 45 वर्षीय भूगर्भशास्त्री डोभाल हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने पर शोध करते-करते अब एक तरह से ग्लेशियरशास्त्री बन गए हैं.
जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से ग्लेशियर सबसे संवेदनशील हैं. क्या-क्या असर हो रहा है, यह जानने का सबसे बेहतरीन ज़रिया ग्लेशियर हैं
डीपी डोभाल
डीपी डोभाल के अनुसार, "जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से ग्लेशियर सबसे संवेदनशील हैं. क्या-क्या असर हो रहा है, यह जानने का सबसे बेहतरीन ज़रिया ग्लेशियर हैं."
डोभाल के अनुसार दूसरे क्षेत्र के ग्लेशियरों का लंबे समय का 'डाटा' उपलब्ध है लेकिन हिमालय के ग्लेशियरों के बारे में हम अब भी बहुत कम जानते हैं. वे कहते हैं कि हमने बहुत देर से इस पर काम शुरू किया.
पिछले 15 सालों से हिमालय के एक ग्लेशियर के आकार का सही और लगातार आंकड़ा लिया जा रहा है. कुछ और आंकड़ें भी हैं लेकिन इनका आकलन और भी बाद में शुरू हुआ है.
अन्य पर्यावरणविद
टाइम की सूची में शामिल दूसरे देशों के 'पर्यावरण नायक' भी लाजवाब हैं. आर्थक रूप से पिछड़े बांग्लादेश के रसायनशास्त्री अबुल हुसाम ने प्रदूषित पानी को साफ़ करने की तरकीब निकाली है.
चीन के शी झेंगरोंग भी इस सूची में हैं. झेंगरोंग ने सौर ऊर्जा के व्यवसाय को अपनाया और आज देश के सबसे अमीर लोगों में एक हैं.