Saturday, September 22, 2007

खेतों में घुसी विदेशी कंपनियां, कलेक्टर अनजान

रानीवाड़ा-प्रदेश के 400 से ज्यादा गांवों में विदेशी कंपनियों ने शराब बनाने के लिए जौ की खेती शुरू कर दी है, लेकिन जिला कलेक्टरों को इसकी जानकारी ही नहीं है। ये कंपनियां किसानों से जबानी जमा खर्च करके खेती करवा रही हैं, जिसमें कोई लिखित कागज तक नहीं है।
जानकारों का कहना है कि राज्य सरकार ने दो साल पहले किसानों के हितों की रक्षा का दावा करते हुए कान्ट्रेक्ट फार्मिंग का कानून बनाया था, लेकिन विदेशी कंपनियों ने जवाबदेही तय होने के कारण किसी किसान से कांट्रेक्ट नहीं किया। इन कंपनियों ने कांट्रेक्ट फार्मिंग की काट निकाली और कोलेबोरेटिव फार्मिग से धंधा शुरू कर दिया। इसमें घाटा होने पर कंपनियों की कोई जिम्मेदारी नहीं रहती। कांट्रेक्ट फार्मिंग से कोलेबोरेटिव नुकसानदायक बताई जा रही है।
अधिकारियों के अनुसार हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिलों के 300 गांवों में पेप्सी ने जौ की कोलेबोरेटिव फार्मिंग शुरू की है, जबकि सीकर और जयपुर के 125 गांवों में कारगिल और सैबमिलर ने। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ से जौ पंजाब के बठिंडा में पेप्सी की ब्रेवरी फैक्ट्री खरीदेगी, जबकि जयपुर-सीकर का जौ दिल्ली रोड स्थित सैबमिलर की ब्रेवरी।
कृषि अधिकारियों का कहना है कि ये कंपनियां जौ से शराब बनाने में इस्तेमाल होने वाला माल्ट तैयार करेंगी। कोलेबोरेटिव फार्मिंग की शुरुआत करने के लिए माल्ट, मफिन और कुकीज तैयार करने वाली कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां जौ की खेती के लिए प्रदेश में आ चुकी हैं। इन कंपनियों के प्रतिनिधि इन दिनों कई जिलों के किसानों पर डोरे डाल रहे हैं। वे किसानों से सीधे बात कर रहे हैं। इसकी जानकारी न तो जिला कलेक्टरों को है और न ही जनप्रतिनिधियों को।
जानकारों का कहना है कि प्रदेश में कारगिल, सैब मिलर, पेप्सी जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिनिधि बेहतरीन गुणवत्ता का जौ हासिल करने के लिए किसानों को अपने साथ जोड़ रही हैं। किसान संगठनों ने आशंका जताई है कि बड़ी कंपनियों की महंगी खेती राजस्थान के किसानों को महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और पंजाब की तरह कर्ज के फंदे में फंसा सकती हैं।
कृषि विभाग के जानकारों के अनुसार विदेशी कंपनियों के राजस्थान में आने की वजह उद्योग एवं वाणिज्य संगठन (एसोचेम) की रिपोर्ट से जाहिर हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार मफिन्स, माल्ट, कुकीज, पैनकेक्स, शराब आदि की सालाना वृद्धि दर 22 फीसदी है। इन चीजों की खपत बढ़ने से जौ की मांग बढ़ रही है।
कोलेबोरेटिव फार्मिंग के खतरेभारतीय किसान संघ के प्रांतीय संगठन महामंत्री राजवीरसिंह का कहना है कि विदेशी कंपनियां राजस्थान के किसानों को शुरू में लालच दे रही हैं। इनका असली मकसद किसानों की जमीनों को हड़पना है। पहले ये महंगी खेती करवाकर किसानों को कर्जदार बनाएंगी। बाद में उनकी जमीनें छीन लेंगी। यह गहरा षड्यंत्र है। संघ इसके खिलाफ आंदोलन करेगा।
दुगुना रकबा, तिगुना उत्पादन 2005-06 202000 हैक्टेयर- 458000 टन2006-07 335000 हैक्टे.- 898000 टन2007-08 400000 हैक्टे.- 1200000 टन
जौ का गणितसमर्थन मूल्य : 650 रुपए प्रति क्विंटलइन दिनों : 1000 से 1100 रुपए प्रति क्विंटल
* मुझे जानकारी नहीं कि जयपुर में कोलेबोरेटिव फार्मिंग हो रही है।अखिल अरोड़ा, जिला कलेक्टर, जयपुर
* मुझे जानकारी नहीं कि मेरे जिले में किसी तरह की कंपनियों ने खेती शुरू की है।भवानीसिंह देथा, जिला कलेक्टर, श्रीगंगानगर
* जिले में बड़ी कंपनियों के खेती करने की सूचना मुझे नहीं है।मुग्धा सिन्हा, जिला कलेक्टर, हनुमानगढ़
* जिले में जौ की खेती तो होती है, लेकिन बड़ी कंपनियां ऐसा कर रही हैं। ये जानकारी नहीं है।मंजू राजपाल, जिला कलेक्टर, सीकर
* अनुबंध खेती के भी खतरे हैं, लेकिन वह कम से कम कानूनी तो है। कोलेबोरेटिव खेती में तो किसी तरह का कानून ही नहीं है। इससे किसानों का अहित हो सकता है।अमराराम, विधायक माकपा व प्रदेश अध्यक्ष, अखिल भारतीय किसान सभा
कृषि विभाग के आयुक्त मनोज शर्मा से बातचीत* क्या राजस्थान के खेतों में कोलेबोरेटिव फार्मिंग शुरू की गई है?-प्रदेश के चार जिलों के 425 गांवों में कोलेबोरेटिव फार्मिंग शुरू की गई है।
* कांट्रेक्ट फार्मिंग और कोलेबोरेटिव फार्मिंग में फर्क क्या है?-कांट्रेक्ट फार्मिंग में लिखित कांट्रेक्ट होता है। कोलेबोरेटिव फार्मिंग में किसान और कंपनी के बीच आपसी सहमति होती है।
* कोलेबोरेटिव फार्मिंग में किसानों के हित कैसे सुरक्षित रहेंगे?-कांट्रेक्ट फार्मिंग वाली कंपनियों पर सरकार की नजर है। किसान पूरी तरह सुरक्षित हैं। अलबत्ता, किसानों को बाजार से अधिक कीमतें मिलेंगी।

संड़े स्पेशियल


एक कथा है-

राव गुमानसिंह ईराणी

एक मनुष्य को अपने जीवन से विरक्ति हो गई। उसे लगता था कि वह जीवन में सफल नहीं है। औरों की तरह वह न तो उतना धन कमा पाया, न ही किसी बड़े पद को प्राप्त कर सका और न ही उसे कोई सम्मान प्राप्त हुआ। इसी विचार के साथ उसने जीवन त्यागने का निर्णय ले लिया। उसने सोचा जीवन त्यागने से पहले वह ईश्वर से बात जरुर करेगा। यही सोचकर वह जंगल पहुंचा और ईश्वर को आवाज दी। फिर उसने सवाल किया कि "है ईश्वर! तुम सब जानते हो, अब मुझे सिर्फ एक कारण बताओ कि मैं तुम्हारी इस दुनिया में क्यों जिऊं? उसे जवाब मिला, 'जरा अपने आस-पास देखो। एक तरफ लहलहाती हरियाली घास और उसी के साथ ये लंबे-लंबे बांस, दिखाई देते हैं न?' ।

उसने कहां कि 'हां'।

ईश्वर ने कहां, "जब मैंने इन दोनों को बोया, तो इनकी देखभाल भी मैंने बराबर की। बराबर धूप, बराबर पानी। सब कुछ। देखते-देखते यह घास चारों तरफ फैल गई। दूसरी ऒर बांस का बीज जस का तस। वह जरा भी विकसित नहीं हुआ। दूसरे साल भी वो ही बात। घास फैलती गई और बांस लगभग वैसा का वैसा। लेकिन मैंने बांस को फिर भी उसी तरह का प्यार किया। उसी तरह खाद-खुराक देता रहा।चार साल तक ऐसा ही चलता रहा, मैंने कभी भी इस बांस को अकेला नहीं छोडा। उसी तरह उसको सब कुछ देता रहा। पांचवें साल में इस बीज से एक शाख फूटी। हालांकि वह घास के मुकाबले कुछ भी नहीं था। तो क्यां।धीरे-धीरे इस बीज ने उक शाख के सहारे अपना विकास जारी रखा। अब हर दिन इसका आश्चर्यजनक रुप से विकास होने लगा।अगले कुछ महिनों में ही उसने इस जंगल में सबसे ऊंचाई हासिल कर ली। पांच साल के भीतर ही उसने अपनी जड़ें इतनी गहरी कर ली किवह १०० फुट की ऊंचाई पर पहुंचकर भी बेखौफ, सीना ताने, मजबूती से खड़ा हैं। अपनी बात को जारी रखते हुए उन्होंने कहा, "मेरे बच्चे, एक बात याद रखो, जिस समय तुम्हें लग रहा है कि तुम सिर्फ जीने के लिए संघर्ष कर रहें हो, दरअसल उस समय तुम सिर्फ अपनी जडो को मजबूत कर रहे हो।यह हमेशा याद रखो कि मैंने अगर इस बांस की अनदेखी नहीं की, तो फिर तुम्हारे साथ कैसे करुंगा। बस एक बात हमेशा याद रखना, दूसरों से अपनी तुलना कभी मत करो। दुनिया में हर इंसान को अलग-अलग काम के लिए भेजा गया है। सबकी अपनी-अपनी भूमिका है। इसलिए किसी और को देखकर अपने बारे में फैसला मत करना, क्योंकि घास और बांस दो अलग-अलग उद्देश्यों के लिए पैदा हुए हैं।


सबकः-

"अपने अस्तित्व और उसके अर्थ को जानने के लिए दूसरों को नहीं ख़ुद को देखना ज़रुरी है।अपने अंतर से बात होती रहें, तो जीवन का उद्देश्य और अपनी भूमिका का पता भी चलता रहता है!"