Sunday, March 30, 2008

गीत गुमसुम है ग़ज़ल चुप है.....

दुनिया भर में उर्दू की शायराना परंपरा के लिए मश्हूर शंकर-शाद मुशायरे में हिंदी के प्रसिद्ध कवि गोपालदास नीरज ने जब ये शेर पढ़ा...मेरा मक़सद है कि महफ़िल रहे रौशन यूं हीख़ून चाहे मेरा दीपों में जलाया जाए तो उससे जहां मुशायरे का तेवर तय हुआ वहीं उस वक़्त उर्दू मुशायरे में एक और नया पहलू भी जुड़ गया जब उन्होंने यह शेर पढ़ा...गीत गुमसुम है, ग़ज़ल...