गुजरात दंगों पर तहलका की ताज़ा रिपोर्ट के बाद एक बार फिर राजनीति गरमा गई है. कांग्रेस सहित कई पार्टियों ने तहलका टेप में दिखाए गए लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है.
लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गुजरात सरकार पर लगाए गए आरोपों को ख़ारिज करते हुए इसे कांग्रेस की साज़िश बताया है.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर गुजरात दंगों की सीबीआई जाँच का अनुरोध किया है.
भाजपा ने उन दावों को ख़ारिज कर दिया है कि गुजरात सरकार ने वर्ष 2002 में दंगों के दौरान मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा का समर्थन किया.
तहलका पत्रिका ने ख़ुफ़िया तरीक़े से फ़िल्माए गए वीडियो के आधार पर ये आरोप लगाए हैं. उस समय भी गुजरात में भाजपा की सरकार थी और मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे.
तहलका के आरोपों वाले वीडियो को टेलीविज़न चैनल पर भी दिखाया गया. भाजपा ने इन आरोपों को सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी की साज़िश बताया है. गुजरात में दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
भाजपा के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने तहलका की रिपोर्ट को ऐसा चुनावी स्टंट कहा है जिसे कांग्रेस ने तैयार कराया.
उन्होंने कहा कि यह अफ़वाहों और सुनी-सुनाई बातों पर आधारित एक स्टिंग ऑपरेशन था. तहलका की रिपोर्ट में कई ख़ुफ़िया वीडियो दिखाए गए हैं.
दावा
तहलका का दावा है कि पिछले छह महीने के दौरान फ़िल्माए गए इन वीडियो में कई कट्टरपंथी हिंदू नेताओं ने बताया है कि कैसे उन्होंने मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा की. इन हिंदू नेताओं में कई भाजपा के भी नेता थे.
गुजरात दंगों पर कई मामले अभी भी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है. तहलका टेपों को इस मामले में सबूत के तौर पर पेश किया जाना चाहिए. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार मानवाधिकार के उल्लंघन की दोषी है
सीपीएम का बयान
तहलका साप्ताहिक के संपादक संकर्षण ठाकुर कहते हैं, "गोधरा के बारे में कई लोग कहते आ रहे हैं कि साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग एक सुनियोजित साज़िश का परिणाम थी और उसके बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा एक प्रतिक्रिया. पर हमारी तफ़्तीश यह कहती है कि दरअसल साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में लगी आग एक सोची समझी साज़िश नही थी और उसके बाद के दंगे एक सुनियोजित साज़िश का परिणाम थे."
भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद इस रिपोर्ट के इस समय आने पर संदेह ज़ाहिर किया क्योंकि गुजरात में विधानसभा चुनाव केवल डेढ़ महीने दूर हैं.
उन्होंने कहा, "आज ऐसे समय पर जब गुजरात में चुनाव विकास के मुद्दे पर केंद्रित हों तो सांप्रदायिक तनाव फैलाने की इस कोशिश की हम भर्त्सना करते हैं.
दूसरी ओर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है वो दंगो से जुड़े मामलों को जल्द से जल्द निपटाए. पार्टी प्रवक्ता जयंती नटराजन ने एक बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का इस्तीफ़ा मांगा है.
उन्होंने कहा, "हम फिर यह कहते हैं की नरेंद्र मोदी गुजरात मे मुख्यमंत्री रहने का नैतिक अधिकार खो चुके हैं. अगर भारत में संविधान का कोई अर्थ है और मानव जीवन का कोई मूल्य है तो नरेंद्र मोदी को कुर्सी छोड़ देनी चाहिए."
गोधरा के बारे में कई लोग कहते आ रहे हैं कि साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग एक सुनियोजित साज़िश का परिणाम थी और उसके बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा एक प्रतिक्रिया. पर हमारी तफ़्तीश यह कहती है कि दरअसल साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में लगी आग एक सोची समझी साज़िश नही थी और उसके बाद के दंगे एक सुनियोजित साज़िश का परिणाम थे
संकर्षण ठाकुर, संपादक, तहलका
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में अहमदाबाद के स्थानीय संपादक भरत देसाई कहते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जान-बूझ कर चुप हैं और उनकी पार्टी विरोधियो पर तीखे प्रहार कर रही है.
देसाई का मानना है कि गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी ने भारी सफलता हासिल की थी और इस ताज़ा रिपोर्ट के कारण एक बार फिर उन्हें फ़ायदा हो सकता है.
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ वर्ष 2002 में गुजरात में हुए दंगों के दौरान एक हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे जिनमें अधिकतर मुसलमान थे. हालाँकि कई स्वतंत्र एजेंसियाँ मरने वालों की संख्या दो हज़ार तक बताती हैं.
गुजरात के गोधरा में एक ट्रेन में लगी आग में 59 हिंदुओं के मारे जाने के बाद दंगे भड़क उठे थे. आरोप है कि मुसलमानों की उग्र भीड़ ने इस ट्रेन में आग लगाई थी.
सुप्रीम कोर्ट और कई मानवाधिकार संगठनों ने गुजरात सरकार पर आरोप लगाया कि वह दंगों को रोकने में नाकाम रही. इस दंगों के लिए कई लोगों को दोषी ठहराया गया लेकिन अभी भी कई लोगों की भूमिका कठघरे में हैं.
आलोचना
वर्ष 2002 के दंगों के लिए गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने कहा है कि तहलका के टेपों को सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
गुजरात दंगों के दौरान बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे
पार्टी की पोलित ब्यूरो की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "गुजरात दंगों पर कई मामले अभी भी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है. तहलका टेपों को इस मामले में सबूत के तौर पर पेश किया जाना चाहिए. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार मानवाधिकार के उल्लंघन की दोषी है."
दूसरी ओर केंद्रीय रेल मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने तहलका टेपों के मद्देनज़र गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ़्तारी की मांग की है.
उन्होंने कहा, "तहलका टेपों ने गुजरात दंगों में मोदी सरकार की भूमिका को उजागर किया है. नरेंद्र मोदी को लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी का वरदहस्त मिला हुआ है. इसलिए आडवाणी भी इससे बच नहीं सकते."
लालू प्रसाद यादव ने इन दोनों नेताओं के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज करने और उन्हें गिरफ़्तार करने की मांग की. उन्होंने कहा कि गुजरात दंगे भारतीय लोकतंत्र और मानवता पर एक 'कलंक' हैं.
लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गुजरात सरकार पर लगाए गए आरोपों को ख़ारिज करते हुए इसे कांग्रेस की साज़िश बताया है.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर गुजरात दंगों की सीबीआई जाँच का अनुरोध किया है.
भाजपा ने उन दावों को ख़ारिज कर दिया है कि गुजरात सरकार ने वर्ष 2002 में दंगों के दौरान मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा का समर्थन किया.
तहलका पत्रिका ने ख़ुफ़िया तरीक़े से फ़िल्माए गए वीडियो के आधार पर ये आरोप लगाए हैं. उस समय भी गुजरात में भाजपा की सरकार थी और मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे.
तहलका के आरोपों वाले वीडियो को टेलीविज़न चैनल पर भी दिखाया गया. भाजपा ने इन आरोपों को सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी की साज़िश बताया है. गुजरात में दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
भाजपा के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने तहलका की रिपोर्ट को ऐसा चुनावी स्टंट कहा है जिसे कांग्रेस ने तैयार कराया.
उन्होंने कहा कि यह अफ़वाहों और सुनी-सुनाई बातों पर आधारित एक स्टिंग ऑपरेशन था. तहलका की रिपोर्ट में कई ख़ुफ़िया वीडियो दिखाए गए हैं.
दावा
तहलका का दावा है कि पिछले छह महीने के दौरान फ़िल्माए गए इन वीडियो में कई कट्टरपंथी हिंदू नेताओं ने बताया है कि कैसे उन्होंने मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा की. इन हिंदू नेताओं में कई भाजपा के भी नेता थे.
गुजरात दंगों पर कई मामले अभी भी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है. तहलका टेपों को इस मामले में सबूत के तौर पर पेश किया जाना चाहिए. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार मानवाधिकार के उल्लंघन की दोषी है
सीपीएम का बयान
तहलका साप्ताहिक के संपादक संकर्षण ठाकुर कहते हैं, "गोधरा के बारे में कई लोग कहते आ रहे हैं कि साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग एक सुनियोजित साज़िश का परिणाम थी और उसके बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा एक प्रतिक्रिया. पर हमारी तफ़्तीश यह कहती है कि दरअसल साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में लगी आग एक सोची समझी साज़िश नही थी और उसके बाद के दंगे एक सुनियोजित साज़िश का परिणाम थे."
भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद इस रिपोर्ट के इस समय आने पर संदेह ज़ाहिर किया क्योंकि गुजरात में विधानसभा चुनाव केवल डेढ़ महीने दूर हैं.
उन्होंने कहा, "आज ऐसे समय पर जब गुजरात में चुनाव विकास के मुद्दे पर केंद्रित हों तो सांप्रदायिक तनाव फैलाने की इस कोशिश की हम भर्त्सना करते हैं.
दूसरी ओर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है वो दंगो से जुड़े मामलों को जल्द से जल्द निपटाए. पार्टी प्रवक्ता जयंती नटराजन ने एक बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का इस्तीफ़ा मांगा है.
उन्होंने कहा, "हम फिर यह कहते हैं की नरेंद्र मोदी गुजरात मे मुख्यमंत्री रहने का नैतिक अधिकार खो चुके हैं. अगर भारत में संविधान का कोई अर्थ है और मानव जीवन का कोई मूल्य है तो नरेंद्र मोदी को कुर्सी छोड़ देनी चाहिए."
गोधरा के बारे में कई लोग कहते आ रहे हैं कि साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग एक सुनियोजित साज़िश का परिणाम थी और उसके बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा एक प्रतिक्रिया. पर हमारी तफ़्तीश यह कहती है कि दरअसल साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में लगी आग एक सोची समझी साज़िश नही थी और उसके बाद के दंगे एक सुनियोजित साज़िश का परिणाम थे
संकर्षण ठाकुर, संपादक, तहलका
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में अहमदाबाद के स्थानीय संपादक भरत देसाई कहते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जान-बूझ कर चुप हैं और उनकी पार्टी विरोधियो पर तीखे प्रहार कर रही है.
देसाई का मानना है कि गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी ने भारी सफलता हासिल की थी और इस ताज़ा रिपोर्ट के कारण एक बार फिर उन्हें फ़ायदा हो सकता है.
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ वर्ष 2002 में गुजरात में हुए दंगों के दौरान एक हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे जिनमें अधिकतर मुसलमान थे. हालाँकि कई स्वतंत्र एजेंसियाँ मरने वालों की संख्या दो हज़ार तक बताती हैं.
गुजरात के गोधरा में एक ट्रेन में लगी आग में 59 हिंदुओं के मारे जाने के बाद दंगे भड़क उठे थे. आरोप है कि मुसलमानों की उग्र भीड़ ने इस ट्रेन में आग लगाई थी.
सुप्रीम कोर्ट और कई मानवाधिकार संगठनों ने गुजरात सरकार पर आरोप लगाया कि वह दंगों को रोकने में नाकाम रही. इस दंगों के लिए कई लोगों को दोषी ठहराया गया लेकिन अभी भी कई लोगों की भूमिका कठघरे में हैं.
आलोचना
वर्ष 2002 के दंगों के लिए गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने कहा है कि तहलका के टेपों को सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
गुजरात दंगों के दौरान बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे
पार्टी की पोलित ब्यूरो की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "गुजरात दंगों पर कई मामले अभी भी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है. तहलका टेपों को इस मामले में सबूत के तौर पर पेश किया जाना चाहिए. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार मानवाधिकार के उल्लंघन की दोषी है."
दूसरी ओर केंद्रीय रेल मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने तहलका टेपों के मद्देनज़र गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ़्तारी की मांग की है.
उन्होंने कहा, "तहलका टेपों ने गुजरात दंगों में मोदी सरकार की भूमिका को उजागर किया है. नरेंद्र मोदी को लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी का वरदहस्त मिला हुआ है. इसलिए आडवाणी भी इससे बच नहीं सकते."
लालू प्रसाद यादव ने इन दोनों नेताओं के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज करने और उन्हें गिरफ़्तार करने की मांग की. उन्होंने कहा कि गुजरात दंगे भारतीय लोकतंत्र और मानवता पर एक 'कलंक' हैं.