Monday, June 1, 2009

दाढ़ी और बाल कटवाए तो नहीं मिलेगा आरक्षण

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने शनिवार को कहा कि केश सिख की मुख्य पहचान है। जो सिख अपने केश और दाढ़ी कटवाता है, वह अल्पसंख्यक संस्थान में प्रवेश के लिए किसी लाभ का हकदार नहीं है। अदालत ने इस मामले को लेकर दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। छात्रा गुरलीन कौर ने एक याचिका के माध्यम से 1925 के सिख गुरुद्वारा कानून में दर्ज सिख की परिभाषा की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। क्योंकि उसे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की निगरानी में संचालित अमृतसर स्थित श्रीगुरु रामदास इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल एजूकेशन एंड रिसर्च में एमबीबीएस कोर्स में सिखों के लिए आरक्षित सीटों में प्रवेश नहीं दिया गया था। तर्क दिया गया था कि वह अपनी भौहें बनवाती है और बाल काटवाती है। इसलिए वह सिख की परिभाषा में न आने के कारण अयोग्य है। इस मामले में हाईकोर्ट के तीन जजों की फुल बेंच ने एसजीपीसी, दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और सिख धर्म से जुड़े विद्वानों के विचार सुने थे। एसजीपीसी ने इस मामले में सहजधारी सिख की परिभाषा के संबंध में अदालत में एक अतिरिक्त संशोधित शपथ पत्र दायर किया था। इसमें बताया गया था कि जो सिख रीति के अनुसार धर्मानुष्ठान करता हो, केश रखता हो, भाव पतित न हो, तंबाकू , कत्था, हलाल मीट नहीं खाता हो और सिख धर्म के मूल मंत्र का पालन करता हो वह सहजधारी सिख है। लेकिन अगर दाढ़ी कटवाता या शेव करता है तो पतित सिख है। सिख गुरुद्वारा एक्ट 1925 के अनुसार बाल सिख की मुख्य पहचान है।