Wednesday, April 30, 2008

Anti-Child Labour Day (To-day)

Good News !
From a poor, hungry, illiterate child labourer to an enthusiastic and happy schoolgirl, Mini has come a long way!
Mini was hardly eight when she lost her parents and was sent off by her relatives to work in a house, far away from her hometown. Alone and friendless in a strange town, Mini endured harshness, beatings and hunger. Worst of all, she was never paid.
She desperately wanted to leave her job, but she had no choice, as she had no one to care for her or help her. Alone and friendless, Mini’s life at the age of eight was the life of a slave…until someone reached out a helping hand to her.
Through World Vision’s child sponsorship programme, a kind-hearted person came forward to sponsor her. Today, because of a person she had never met, Mini looks forward to a life of hope and dignity. Thanks to her sponsor, Mini can be a child again…going to school, playing with friends and enjoying life.
Once caught up in a cycle of poverty, hunger and exploitation, Mini today looks forward to a life of opportunity, hope and dignity!
For just Rs 600 per month, you too can become a child sponsor! Your sponsorship will send your sponsored child to school and provide him/her with access to clean drinking water and good health. You can even write and visit your child.
Help a needy child celebrate life! Sponsor a child and experience the joy of bringing promise to a needy life!

बूढ़े लोगों को मुफ़्त वायग्रा

Good News !
चिली की राजधानी सेंटियागो के निकट एक शहर के मेयर ने शहर में बूढ़े लोगों को रिझाने का एक नया तरीक़ा निकाला है और वो है उन्हें मुफ़्त वायग्रा बाँटने का.
ग़ौरतलब है कि वायग्रा यौन उत्तेजना बढ़ाने वाली एक दवा है.
मेयर गोंज़ालो नावारेट्टी मुनोज़ का कहना है कि वे बूढ़े लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना चाहते हैं इसलिए वे इन लोगों को मुफ़्त वायग्रा देने की मंशा रखते हैं.
मेयर की योजना है कि साठ साल से ऊपर की उम्र के उन लोगों को वायग्रा मुफ़्त दी जाए जो कामकाजी हैं और ख़ासतौर से लोप्रादो बस्ती में रहते हैं लेकिन आलोचकों का कहना है कि करदाताओं की क़ीमत पर कुछ गिने-चुने लोगों को मुफ़्त वायग्रा बाँटना सही नहीं कहा जा सकता.
मेयर का कहना है कि जब वे एक डॉक्टर के रूप में काम कर रहे थे तो उम्रदराज़ लोगों के सेक्स जीवन की समस्याओं को सुन कर इस क़दम को उठाने के लिए प्रेरित हुए हैं.
मुनोज़ का कहना है, "यह उम्रदराज़ लोगों को बेहतर जीवन मुहैया कराने की कोशिशों के तहत एक क़दम के रूप में किया जा रहा है."
वे हर महीने चार बार वायग्रा उन लोगों के बीच बाँटना चाहते हैं जो इसकी माँग करेंगे और अगले कुछ दिनों में डॉक्टर अपनी डिंसपेंसरियों से वायग्रा मुफ़्त बाँटना शुरू कर देंगे.
मुफ़्त वायग्रा पाने के लिए उम्रदराज़ लोगों की चिकित्सा जाँच भी की जाएगी.
ऐसे क़रीब 1500 लोगों की पहले ही सूची बना ली गई है जिन्होंने वायग्रा लेने के लिए दिलचस्पी दिखाई है.
वायग्रा के बिल का भुगतान मेयर के ऑफ़िस से किया जाएगा.
अनुमान है कि इस कार्यक्रम में पहले साल में क़रीब बीस हज़ार डॉलर यानी लगभग आठ लाख रुपए खर्च होंगे.
आलोचको का कहना है कि मुनोज़ की यह तरक़ीब महज़ चुनाव में फिर से जीत हासिल करने की एक क़वायद है लेकिन मेयर का कहना है कि वे एक सामाजिक सेवा कर रहे हैं और यदि यह कार्यक्रम सफ़ल रहा तो इसे वे पूरे चिली में लागू करेंगे.

Sunday, April 27, 2008

एक साथ प्रक्षेपित होंगे दस उपग्रह

Good News!
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ( इसरो ) के नए अभियान के तहत सोमवार को उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी9 के ज़रिए 10 उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जाएगा.
श्रीहरिकोटा से होने वाला ये प्रक्षेपण 16 मिनट में पूरा कर लिया जाएगा.
लॉन्च किए जाने वाले दस उपग्रहों में भारत का आधुनिक रिमोट सेसिंग उपग्रह शामिल है.
इसका अलावा आठ विदेशी नैनो उपग्रहों को छोड़ा जाएगा.
पिछले वर्ष अप्रैल में एक रूसी यान से 16 उपग्रहों को छोड़ा गया था. लेकिन ये यान 300 किलोग्राम के आस-पास वज़न लेकर गया था.
जबकि 230 टन वज़न वाला पोलर सेटेलाइट लॉन्च वीहकल (पीएसएलवी-सी9) कुल 824 किलो भार लेकर जाएगा.
एक साथ दस उपग्रह
अधिकारियों का कहना है कि आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा केंद्र में तैयारियां ठीक-ठाक चल रही हैं.
प्रक्षेपण सोमवार सुबह नौ बजकर 23 मिनट पर होगा.
करीब 70 करोड़ की लागत वाले पीएसएलवी-सी9 की ये 13वीं उड़ान है.
रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट कार्टोसेट-2ए का वज़न 690 किलोग्राम है और इसमें आधुनिक पैनक्रोमैटिक कैमरा लगा हुआ है जो बेहत उच्च स्तर की तस्वीरें खींच सकता है.
इसके ज़रिए ऐसे तथ्य मिल सकेंगे जिनका इस्तेमाल शहरी और ग्रमीण इलाक़ों में आधारभूत ढाँचे के प्रबंधन में हो सकता है.
पिछले वर्ष भारत के पीएसएलवी-सी7 से पहली बार चार उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित किया गया था. इनमें दो उपग्रह अर्जेंटीना और इंडोनेशिया के थे.

अपना हाथ-जगन्नाथ लेकिन कौन सा?

Good News!
चिकित्सा विज्ञान ये मानता है कि हमारा मस्तिष्क बाएँ और दाएँ दो भागों में बंटा हुआ है और बांया हिस्सा दाएँ की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली है. सभी जानते हैं कि मस्तिष्क हमारे शरीर का नियंत्रण करता है. मस्तिष्क से नाड़ियां शरीर के अलग अलग हिस्सों में जाती हैं और शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करती हैं. बाएँ हिस्से से निकलने वाली नाड़ियां गरदन पर आकर शरीर के दाएँ हिस्से में चली जाती हैं जबकि दाएँ हिस्से से आने वाली नाड़ियां शरीर के बाएँ भाग में. यानी शरीर के विभिन्न अंग मस्तिष्क के विपरीत हिस्सों से जुड़े होते हैं.
आमतौर पर लोगों के मस्तिष्क का बायाँ हिस्सा अधिक शक्तिशाली होता है लेकिन कुछ लोगों में दायाँ हिस्सा ज़्यादा प्रमुख रहता है और ऐसे लोग बाएँ हाथ से काम करते हैं. दुनिया में कोई चार प्रतिशत लोग बाएँ हाथ से काम करते हैं. लेकिन इन चार प्रतिशत में बहुत से नामी गिरामी लोग आते हैं जैसे अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी और बिल क्लिंटन, महारानी विक्टोरिया, वैज्ञानिक और कलाकार लियोनार्डो डा विंची, फ़िल्म निर्देशक चार्ली चैपलिन, क्यूबा के राष्ट्रपति फ़िदेल कास्त्रो, अमिताभ बच्चन और सौरव गांगुली.

वाल्मीकि रामायण, तुलसी रामायण!

Good News!
तुलसी रामायण का नाम रामचरित मानस है और इसकी रचना सोलहवीं शताब्दी के अंत में गोस्वामी तुलसीदास ने अवधि बोली में की. जबकि वाल्मीकि रामायण कोई तीन हज़ार साल पहले संस्कृत में लिखी गई थी. इसके रचयिता वाल्मीकि को आदि कवि भी कहा जाता है. क्योंकि उन्होंने अपने इस अदभुत ग्रंथ में दशरथ और कौशल्या पुत्र राम जैसे एक ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम की जीवन गाथा लिखी जो उसके बाद के कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी. उसके बाद अलग-अलग काल में और विभिन्न भाषाओं में रामायण की रचना हुई. लेकिन प्रत्येक रामायण का केंद्र बिंदु वाल्मीकि रामायण ही रही है. बारहवीं सदी में तमिल भाषा में कम्पण रामायण, तेरहवीं सदी में थाई भाषा में लिखी रामकीयन और कम्बोडियाई रामायण, पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी में उड़िया रामायण और कृतिबास की बँगला रामायण प्रसिद्ध हैं लेकिन इन सबमें तुलसी दास की रामचरित मानस सबसे प्रसिद्ध रामायण है.

Saturday, April 26, 2008

टी आर पी रेटिंग क्या होती है.

Good News!
टी आर पी का मतलब है टेलिविज़न रेटिंग पौइन्ट्स. एक तरह से ये टेलिविज़न कार्यक्रमों की लोकप्रियता मापने का तरीक़ा है जिसमें विभिन्न कार्यक्रमों को अंक दिये जाते हैं. ये काम टेलिविज़न ऑडिएन्स मैज़रमैंट संस्था करती है. होता ये है कि टैम देश भर में कई छोटे बड़े शहरों का चयन करके उसमें विभिन्न वर्ग के लोगों के घर तलाश करती है और फिर उनके टेलिविज़न पर एक मीटर लगाती है. ये एक छोटा सा काला बक्सा होता है जो ये नोट करता है कि आपने कब कितनी देर कौन से टेलिविज़न चैनल का कौन सा कार्यक्रम देखा. महीने के अंत में ये आंकडे जुटाकर उनका विश्लेषण किया जाता है और उससे पता चलता है कि कौन सा कार्यक्रम कितना लोकप्रिय है.

बाटा शू कंपनी के संस्थापक कौन थे


Good News! बाटा शू कंपनी की स्थापना 1894 में तोहमहश बाहत्याह ने ज़्लिन में की थी जो अब चैक रिपब्लिक का शहर है. अगर इनका नाम रोमन लिपि में लिखा जाए तो टॉमस बाटा पढ़ा जाएगा. शायद इसीलिए दुनिया भर में यह बाटा के नाम से मशहूर हुआ. टॉमस बाटा के परिवार में कई पीढ़ियों से जूते बनाने का काम होता था. लेकिन जब पहला विश्व युद्ध छिड़ा तो सेना को भारी संख्या में जूतों की ज़रूरत पड़ी. बाटा ने इस ज़रूरत को समझा और औद्योगिक स्तर पर जूते बनाने का काम शुरू किया. इस कंपनी का मुख्यालय अब स्विट्ज़रलैंड के लौज़ैन शहर में है, 26 देशों में जूते बनाने की फ़ैक्टरियाँ हैं और 50 से भी अधिक देशों में इसके जूतों की दुकानें हैं.

हँसी का क्या मोल!

GoodNews!
मंद-मंद हँसी यानी मुस्कुराहट तो व्यक्तित्व में ख़ुशमिज़ाजी लाती ही है, अनेक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ज़ोर-ज़ोर से हँसना भी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है. जब हम हँसते हैं तो हमारे चेहरे की कई मांसपेशियां इसमें क्रियाशील होती हैं, हमारी भंवे चढ़ती हैं, हमारे कान हिलते हैं, आंखे मिचती हैं, नथुनें फूलते हैं, ऊपर का होंठ फैलता है, नीचे का होंठ हिलता है, ठोड़ी हिलती है, गाल पीछे होते हैं... कुल मिलाकर हमारे चेहरे की 53 मांसपेशियों का हँसने में कुछ न कुछ योगदान रहता है. हँसने में चेहरे की ही नहीं बल्कि जबड़े, गले, पेट और डाएफ़्राम की माँसपेशियाँ भी काम करती हैं. और अगर बहुत ज़ोर ज़ोर से हँसा जाए तो शायद शरीर की और माँसपेशियाँ भी क्रियाशील हो जाती होंगी.

याहू का पूरा नाम क्या है?


GoodNews! याहू डॉटकॉम की स्थापना अमरीका के स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालय में इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे दो छात्रों, डेविड फ़िलो और जैरी यांग ने 1994 में की थी. यह वेबसाइट जैरी ऐन्ड डेविड्स गाइड टू द वर्ल्ड-वाइड-वैब के नाम से शुरु हुई थी लेकिन फिर उसे एक नया नाम मिला, यट अनदर हाइरार्किकल ऑफ़िशियस ओरैकिल. जिसका संक्षिप्त रूप बनता है याहू. जैरी और डेविड ने इसकी शुरुआत इंटरनेट पर अपनी व्यक्तिगत रुचियों के लिंकों की एक गाइड के रूप में की थी लेकिन फिर वह बढ़ती चली गई. फिर उन्होंने उसे श्रेणीबद्ध करना शुरु किया. जब वह भी बहुत लम्बी हो गई तो उसकी उप-श्रेणियां बनाईं. कुछ ही समय में उनके विश्वविद्यालय के बाहर भी लोग इस वेबसाइट का प्रयोग करने लगे. अप्रैल 1995 में सैकोया कैपिटल कम्पनी की माली मदद से याहू को एक कम्पनी के रूप में शुरू किया गया. इसका मुख्यालय कैलिफ़ोर्निया में है और यूरोप, एशिया, लातीनी अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमरीका में इसके कार्यालय हैं.

Friday, April 25, 2008

तितली आसन से शांत रहता है मन

GoodNews!
आसन को परिभाषित करते हुए महर्षि पतंजलि ने कहा है, "स्थिरं सुखम् आसनम्." इसका अर्थ यह है कि आसन वह है जिसके करने से मन एवं शरीर में स्थिरता आए और सुख का अनुभव हो.
शुरू-शुरू में शरीर में इतनी लचक नहीं होती कि हम स्थिरतापूर्वक बैठकर ध्यान कर सकें. अब तक हमनें जोड़ों से संबंधित छोटे-छोटे आसन सीखें हैं.जिससे हमें मुख्य आसन सीखने में कोई परेशानी न हो.
आसन का लक्ष्य भी यही है कि हम अपने आप को ध्यान के लिए तैयार कर सकें.
इसे प्राप्त करने के लिए हमें सतत प्रयास करते रहना चाहिए. आसन हमें आध्यात्मिक रूप से भी तैयार करता है.
तितली आसन
तितली आसन और पदमासन एक दूसरे के पूरक हैं. जो लोग पदमासन नहीं कर सकते हैं उन्हें तितली आसन का अभ्यास करना चाहिए. जिससे की बाद में वे पदमासन का अभ्यास आसानी से कर सकें.
कैसे लगाएं आसन
कंबल को ज़मीन पर दोहरा बिछाकर उस पर बैठ जाएं. दोनों पैरों को सामने की ओर फैला लें. दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ें और दोनों तलवों को आपस में मिला लें.
इस स्थिति में हाथों से पैरों की अंगुलियों को उसके पास से पकड़ें और एड़ी को ज़्यादा से ज़्यादा शरीर के क़रीब लाने का प्रयास करें.
यह करते हुए कोशिश करें कि हाथ सीधे रहें और शरीर को भी पूरी तरह सीधा रखें. जिससे रीढ़ की हड्डी भी सीधी हो जाए.
सांस को सामान्य रहने दें और दोनों पैरों के घुटनों को एक साथ ऊपर की ओर लाएं और नीचे लाते हुए प्रयास करें कि ज़मीन को न छूने पाए.
इस तरह अपने पैरों को लगातार 20-25 बार ऊपर-नीचे की ओर ले जाएं, ध्यान रखें की झटका न लगे.
इसके बाद पैरों को धीरे-धीरे सीधा कर लें और कुछ समय तक शरीर को ढीला छोड़ दें.
यह तितली आसन का एक क्रम है. आप चाहें तो इसे दो-तीन बार कर सकते हैं.
ऐसा न करें
ज़्यादा जोर न लगाएं. इस आसन को करने की जो विधि बताई गई है उसी के अनुसार अभ्यास करें. सांस को सामान्य रखें.
जिन लोगों को साइटिका की बीमारी हो या कमर के नीचले हिस्से में दर्द हो वे लोग तितली आसन का अभ्यास न करें.
तितली आसन के फ़ायदे
इसे करने से पैरों की मांसपेशियां इस तरह हो जाती हैं कि हम पदमासन या पालथी मारकर बैठ सकें.
इसे करने से जांघों की मांसपेशियों में आया तनाव या खिंचाव कम होता है. अधिक देर तक खड़े रहने या चलने के बाद तितली आसन करने से थकान दूर हो जाती है.
पदमासन
कंबल को ज़मीन पर इस प्रकार बिछाकर बैठें की दोनों पैर सामने की ओर रहे.
एक पैर को घुटने से मोड़ें और पैर के तलवे को दूसरे पैर की जांघ के ऊपर रखें.
इसके लिए आप हाथों का सहारा ले सकते हैं. पैर के तलवे को ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब लाने का प्रयास करें.
इसी तरह दूसरे पैर को भी मोड़कर जांघ पर रखें. इस स्थिति में दोनों पैरों के घुटने ज़मीन से न छूने नहीं चाहिए, अगर छू भी जाएं तो कोई बात नहीं है.
पदमासन के अभ्यास से शरीर और मन शांत होता है. लगातार अभ्यास से एकाग्राता भी बढ़ती है
इस आसन को करते समय कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीध रखें और कंधों को ढीला. दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखें ज्ञान या चिन्न की मुद्रा में.आंखें बंद कर लें और पूरे शरीर में शिथिलता महसूस करें.
इस दौरान शरीर को न ज़्यादा आगे की ओर झुकाएं और न पीछे की ओर. इस तरह बैठें की शरीर का संतुलन बना रहे.
सावधानियां बरतें
जो लोग साइटिका से पीडि़त हों, कमर दर्द हो, घुटने कमजोर हों या किसी तरह की चोट लगी हुई हो वे पदमासन का अभ्यास न करें.
घुटनों के जोड़ और मांसपेशियों को ढीला करने के लिए पहले जानू आसन का अभ्यास कर सकते हैं.
पदमासन के लाभ
पदमासन एक ध्यानात्मक आसन है. इसके अभ्यास से शरीर और मन शांत होता है. पदमासन का लगातार अभ्यास करने से एकाग्राता भी बढ़ती है.
चूंकि सांस धीरे-धीरे स्थिर हो जाती है, जिससे पूरे शरीर में स्थिरता आती है. इस आसन को करने से ब्लड प्रेशर भी सामान्य होता है.
पाचन तंत्र को ठीक करने में भी पदमासन सहायक हो सकता है.क्योंकि खून का संचार पैर की ओर कम रहता है. इसका केंद्र नाभी के पास ज़्यादा रहता है.
पदमासन एक पारंपरिक आसन है. प्राणायाम के अभ्यास के लिए पदमासन को प्रथम श्रेणी में रखा गया है. इसलिए अगर देखा जाए तो पदमासन हर तरह से एक उपयोगी आसन है.

Wednesday, April 23, 2008

दृष्टिहीन लोगों के लिए इलेक्ट्रॉनिक आँखें


जापान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक आँख बनाई है, जिसकी मदद से दृष्टिहीन बिना किसी परेशानी के घूम-फिर सकेगें.
भौतिकविज्ञान संस्थान में किए गए एक शोध के अनुसार यह आँख चश्मे पर जड़ी होगी, जिसे पहन कर बिना किसी की सहायता के सड़क पार की जा सकेगी.
इस इलेक्ट्रॉनिक आँख में एक कैमरा और कम्पयूटर लगा होगा जो ट्रैफिक लाईट के बदलते रंगों को बताने और सड़क की चौड़ाई नापने जैसे काम कर सकेगा.
इस तरह से इक्कठा की गई जानकारी को ध्वनि आधारित व्यवस्था के ज़रिए पहनने वाले तक पहुँचाया जाएगा.
क्योटो प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक तादायोशी शिओयामा का कहना है, “ कैमरा आँखों के पास लगा होगा और एक बहुत छोटा कम्पयूटर उससे जुड़ा रहेगा, जो सारी सूचनाएँ और निर्देश कान के नज़दीक लगे स्पीकर पर दृष्टिहीनों को देगा.“
यह आँख इतनी उन्नत है कि इससे न सिर्फ़ पैदल पार-पथ या ज़ैब्रा क्रॉसिंग का पता लगाया जा सकेगा बल्कि सड़क की चौड़ाई को भी पूरी तरह से नापा जा सकेगा, इसके साथ ही यह आँख, लाल से हरी होती हुई ट्रैफिक लाईट के बारे में भी बता सकेगी.
पैदल पार-पथ की लम्बाई नापने के लिए यह आँख प्रक्षेपीय रेखागणित का सहारा लेती है.
कैमरे का कमाल
कैमरा आँखों के पास लगा होगा और एक बहुत छोटा कम्पयूटर उससे जुड़ा रहेगा, जो सारी सूचनाएँ और निर्देश कान के नज़दीक लगे स्पीकर पर दृष्टिहीनों को देगा

तादायोशी शिओयामा, वैज्ञानिक

इस आँख में लगा हुआ कैमरा ज़ैब्रा क्रॉसिंग की सफेद पट्टियों के चित्र उतारता है और फिर चित्र के ज्यामितिक आकार के आधार पर वास्तविक दूरी का पता लगा लिया जाता है.
सड़क पर ज़ैब्रा क्रॉसिंग है भी या नहीं यह जानने के लिए चित्र में सफेद पट्टियों की चौड़ाई और उनके बीच की दूरी की गणना की जाती है.
शोधकर्ताओं द्वारा इलेक्ट्रॉनिक आँख पर किए गए परीक्षणों के दौरान,पाँच प्रतिशत से भी कम की ग़लती सामने आई.196 बार किए गए परीक्षणों के दौरान यह तरीका केवल दो बार ही ग़लत साबित हुआ, जब इलेक्ट्रॉनिक आँख ने ज़ैब्रा क्रॉसिंग के होते हुए भी यह बताया कि वहाँ ज़ैब्रा क्रॉसिंग नहीं है.
दृष्टिहीनों के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट की कैथरीन फिप्पस का मानना है, "दृष्टिहीनों और आंशिक रुप से अंधे व्यक्तियों के लिए चलना फिरना एक गंभीर समस्या है, और इस तरह के नए उपकरण हमेशा ही स्वागतयोग्य होते हैं जिनकी मदद से ऐसे लोग बिना परेशानी घूम-फिर सकें.".

'मोबाइल घटा रहा है मर्दानगी'


शोधकर्ताओं का कहना है कि मोबाइल फ़ोन का अधिक इस्तेमाल करने वाले पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या घट रही है जो सीधे तौर पर प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है.
मुंबई के अस्पतालों में संतानोत्पति में नाकाम होने के बाद अपना इलाज़ करा रहे 364 पुरूषों पर हुए अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है.
यह शोध ओहियो के क्लीवलैंड क्लिनिक फाउंडेशन की ओर से हुआ है और इसके निष्कर्ष अमरीका के 'सोसाइटी ऑफ रिप्रोडक्टिव मेडिसिन' को सौंप दिए गए हैं.
शोधकर्ताओं के मुताबिक एक दिन में चार घंटे या इससे अधिक देर तक मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या कम पाई गई और बचे हुए शुक्राणुओं की हालत भी ठीक नहीं थी.
हालाँकि ब्रिटेन के एक विशेषज्ञ का कहना है कि प्रजनन क्षमता में कमी के लिए मोबाइल को दोष देना ठीक नहीं है क्योंकि वह पुरूषों के जननांगों के निकट नहीं होता.
शोध
शोध के मुताबिक जो लोग दिन में चार घंटे से अधिक मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करते थे उनमें शुक्राणुओं की संख्या प्रति मिलीलीटर पाँच करोड़ पाई गई जो सामान्य आँकड़े से काफी कम है.
जो लोग दो से चार घंटे तक मोबाइल फ़ोन से बात करते थे उनमें प्रति मिलीलीटर शुक्राणुओं की संख्या लगभग सात करोड़ आँकी गई.
जिन लोगों ने बताया कि वे मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल ही नहीं करते हैं, उनमें यह संख्या लगभग साढ़े आठ करोड़ थी और उनके शुक्राणु काफी स्वस्थ हालत में सक्रिय पाए गए.
चेतावनी
शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व करने वाले डॉ अशोक अग्रवाल कहते हैं कि अभी इस मामले पर और अध्ययन किए जाने की ज़रूरत है.
वो कहते हैं, "लोग मोबाइल का इस्तेमाल बेधड़क करते जा रहे हैं. बिना ये सोचे कि इसके परिणाम क्या होंगे."
डॉ अग्रवाल का कहना है कि मोबाइल से होने वाला विकिरण डीएनए पर बुरा असर डालता है जिससे शुक्राणु भी प्रभावित होते हैं.

लैपटॉप से पुरुषों को ख़तरा!


लैपटॉप का इस्तेमाल करने वाले पुरुष सावधान. जानकारों का मानना है कि लैपटॉप का इस्तेमाल करने वाले पुरुष अनजाने में अपनी प्रजनन क्षमता को नुक़सान पहुँचा रहे हैं.
स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क में हुए शोध के बाद विशेषज्ञों का कहना है कि अपनी गोद में इस कंप्यूटर को रखने के कारण अंडकोष का तापमान बढ़ जाता है और इससे शुक्राणु निर्माण पर नकारात्मक असर पड़ता है.
यह शोध ह्यूमन रिप्रोडक्शन नामक पत्रिका में छपा है. अमरीकी शोधकर्ताओं का कहना है कि लैपटॉप की बढ़ती लोकप्रियता के कारण इस पर और शोध की आवश्यकता है.
इस समय दुनियाभर में क़रीब 15 करोड़ लोग लैपटॉप का इस्तेमाल करते हैं.
स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क के शीर्ष शोधकर्ता डॉक्टर येफ़िम शेईकिन ने इस शोध के बारे में बताया, "लैपटॉप के अंदर का तापमान 70 डिग्री सेंटीग्रेड से भी ज़्यादा तक पहुँच जाता है."
उन्होंने बताया कि लैपटॉप को संतुलित ढंग से रखने के लिए लोग अपनी दोनों जांघों को काफ़ी क़रीब लाते हैं और इस स्थिति में पुरुषों का अंडकोष जांघों के बीच दब जाता है.
अंडकोष लैपटॉप के काफ़ी क़रीब होता है और इस कारण लैपटॉप का तापमान सीधा अंडकोष तक पहुँचता है.
शोध
इस शोध में 21 से 35 वर्ष की आयु के बीच के 29 स्वस्थ पुरुषों ने हिस्सा लिया. शोधकर्ताओं ने एक घंटे के दौरान लैपटॉप के कारण अंडकोष के तापमान में बदलाव को रिकॉर्ड किया.
इस दौरान कई बार उनके बैठने का तरीक़ा बदला गया. शोधकर्ताओं ने पाया कि अपनी जांघों के बीच लैपटॉप को संतुलित रखने के दौरान उनके अंडकोष का तापमान 2.1 सेंटीग्रेड बढ़ गया.
जब इन पुरुषों ने अपनी जांघ के बीच लैपटॉप रखा तो उनके बाएँ अंडकोष का तापमान 2.6 डिग्री सेंटीग्रेड और दाएँ अंडकोष का तापमान 2.8 डिग्री सेंटीग्रेड औसतन बढ़ा पाया गया.
डॉक्टर शेईकिन ने बताया कि सामान्य तौर पर शुक्राणु के निर्माण और विकास के लिए शरीर को अंडकोष में एक उपयुक्त तापमान की ज़रूरत होती है.
उन्होंने कहा कि अभी इसकी जानकारी नहीं है कि कितने समय और कितने बार इस तरह के तापमान बदलाव से शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया पर असर पड़ता है.
हालाँकि डॉक्टर शेईकिन ने यह स्पष्ट किया कि पहले के अध्ययन बताते हैं कि उपयुक्त तापमान से एक डिग्री सेंटीग्रेड तक की बढ़ोत्तरी से कोई ख़ास असर नहीं होता लेकिन लगातार तापमान में होने वाले बदलाव के कारण मुश्किलें पेश आ सकतीं हैं.
उनका कहना है कि लैपटॉप को अपनी जांघों के बीच रखकर बार-बार इस्तेमाल करने से स्थायी रूप से नुक़सान हो सकता है.
डॉक्टर शेईकिन ने सलाह दी कि जब तक इस विषय पर और शोध नहीं होते बच्चों और युवकों को अपनी गोद में रखकर इनके इस्तेमाल से बचना चाहिए.

माँ के खान-पान का असर बच्चे पर




गर्भकाल में माँ के खानपान की आदतें संतान के लिंग निर्धारण में अहम भूमिका निभा सकती है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि ज़्यादा कैलोरी वाले भोजन के साथ ही नियमित अंतराल पर नाश्ता करते रहने से लड़का पैदा की संभावना बढ़ सकती है.
विकसित देशों में गर्भवती महिलाएँ कम कैलरी वाले भोजन को अपना रही हैं जिसे लड़कियों की बढ़ती आबादी से जोड़कर देखा जा रहा है.
अध्ययन के लिए ब्रिटेन की 740 ऐसी महिलाओं को चुना गया जो पहली बार माँ बनने जा रही थीं.
शोधकर्ताओं ने इन महिलाओं से गर्भधारण के पहले और उसके शुरुआती दौर में खानपान की उनकी आदतों के बारे में जानकारी माँगी.
शोधकर्ताओं ने पाया कि गर्भकाल में अधिक कैलोरी वाला भोजन लेने वाली 56 फ़ीसदी महिलाओं को लड़का हुआ जबकि कम कैलोरी के आहार लेने वाली मात्र 46 फ़ीसदी महिलाओं को लड़का पैदा हुआ.
घटते लड़के
जिन महिलाओं के लड़के हुए उन्होंने आम तौर पर पोटाशियम, कैल्शियम, विटामिन सी, ई और बी12 जैसे तत्वों से भरे कई तरह के पोषक आहारों की ज़्यादा मात्रा ली थी.
देखा
gayaa है कि औरतों के खानपान में थोड़ा सा बदलाव भी औलाद की पूरी ज़िदगी के स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है इसलिए गर्भधारण और गर्भकाल के दौरान समुचित आहार लेना महत्वपूर्ण है

इन महिलाओं ने नियमित रूप से नाश्ते में अनाज भी लिया था.
पहले के अध्ययनों में भी यह बात सामने आई थी कि विकसित देशों में लोग कम कैलरी वाले भोजन ले रहे हैं. इन देशों में ऐसे लोगों की तादाद काफ़ी अधिक है जो नाश्ता करते ही नहीं हैं.
वैज्ञानिकों ने यह पहले से पता लगा रखा है कि जानवरों में भी अगर माँ को प्रचुर भोजन मिले तो नर संतान पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है.
खाना
शोधों से यह भी ज्ञात है कि ग्लूकोज की ज़्यादा मात्रा नर भ्रूण के विकास में मदद पहुँचाता है लेकिन मादा भ्रूण के विकास को रोकता है.
नाश्ता न करने से ग्लूकोज का स्तर घटता है और इसका असर बच्चे पर भी पड़ सकता है.
शेफ़ील्ड यूनिवर्सिटी के डॉ. एलेन पैसी कहते हैं कि इस बात के काफ़ी सबूत हैं कि बदली हुई परिस्थितियों में प्रकृति के पास किसी आबादी में लिंग अनुपात बदलने के कई तरीक़े हैं.
हालाँकि वे कहते हैं, "महिलाओं से मेरी अपील है कि वो अपने होने वाले बच्चे के लिंग को प्रभावित करने के लिए भूखे रहने या अधिक खाने की शरुआत न करें."
पैसी बताते हैं, "कुछ जानवरों के अध्ययन में देखा गया है कि औरतों के खानपान में थोड़ा सा बदलाव भी औलाद की पूरी ज़िदगी के स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है. इसलिए गर्भधारण और गर्भकाल के दौरान समुचित आहार लेना महत्वपूर्ण है."

Friday, April 18, 2008

ख़ूँख़ार लकड़बग्घों का हमनिवाला !

क्या इंसान और लकड़बग्घों का साथ मुमकिन है?आप कहेंगे कि नामुमकिन तो शायद कुछ भी नहीं है. बात भी ठीक है क्योंकि इथियोपिया के एक युवक ने लकड़बग्घों से न सिर्फ़ दोस्ती गाँठ ली है बल्कि वह रोज़ाना शाम को उन्हें अपने हाथ से माँस भी खिलाता है.
शाम ढलते ही दावत शुरु होती हैहरार शहर में रहने वाले 26 साल के मुलुगेता वोल्ड मरियम के घर के आसपास अँधेरा घिरते ही देश विदेश के पर्यटकों और स्थानीय लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो जाती है.मुलुगेता अपने गले से अजीब सी आवाज़ें निकालता है और कुछ ही मिनटों में अँधेरों में कुछ जोड़ी ख़ौफ़नाक आँखें चमकने लगती हैं.धीरे-धीरे कार की हेडलाइटों के धूमिल उजाले में कुछ जानवरों के आकार नज़र आते हैं.मुलुगेता आवाज़ें निकालना जारी रखता है और आनन फानन में शहर के आस पास के जंगलों में रहने वाले कुछ डरावने लकड़बग्घे वहाँ इकट्ठा हो जाते हैं. उनके तीखे दाँत और चमकदार आँखें देखकर आस पास छुपे लोगों की साँस हलक़ में ही अटक कर रह जाती है और वे एक दूसरे को कस कर पकड़ लेते हैं.मुलुगता ने इन लकड़बग्घों को प्यार के नाम दे रखे हैं और जब वह उन्हें उनके नाम से बुलाता है तो उनमें से हर एक इसे पहचानता है.मुलुगता कहते हैं:"मैंने इन सबके नाम रखे हुए हैं और इन्हें इसका अच्छी तरह पता है."प्यार की इंतहालकड़बग्घों के वहाँ इकट्ठा होने पर मुलुगता अपने पास रखे प्लास्टिक के थैले से माँस के टुकड़े निकाल कर उनके सामने बढ़ाता है.अचानक अँधेरे से कुछ और लकड़बग्घे सामने आते हैं और बिलकुल पालतू जानवरों की तरह अपने मालिक का कहना मानते हुए माँस झपटते हैं.और फिर शुरु होता है मुलुगता का असली तमाशा यानी प्यार और विश्वास की इंतहा.वह अपने दाँतों में माँस का एक बड़ा सा टुकड़ा दबा लेते हैं और फिर उनके मुँह से माँस झपटने में लकड़बग्घों में होड़ शुरू हो जाती है.बड़े बड़े तीखे दाँत निकाले लकड़बग्घे अपने दोस्त के दाँतों में दबा माँस झपटते हैं और कुछ क़दम पीछे हटकर उसे चाव से खाते हैं.हिम्मतवरमुलुगेता बहुत हिम्मतवर युवक है और उनका दावा है कि इन ख़ूँख़ार माँसभक्षियों को मुँह से माँस खिलाने में कोई ख़तरा नहीं है.
लकड़बग्घों का साथ आसान नहींउन्होंने बताया: "मैं पिछले 11 साल से यह काम कर रहा हूँ. मुझे लकड़बग्घों से दोस्ती करना मेरे एक दोस्त ने सिखाया जो उम्र में मुझसे बड़े और अनुभवी हैं." उनका कहना है कि "अगर आप डरते नहीं हैं तो कोई ख़तरा नहीं होता क्योंकि लकड़बग्घों को डर का पता लग जाता है."पुरानी परंपराअफ़्रीक़ा में लकड़बग्घों को भोजन करवाने की परंपरा 19 वीं शताब्दी के दौरान पड़े भीषण अकाल के वक़्त शुरू हुई थी.लोक परंपरा में माना जाता है कि लकड़बग्घों को अच्छे वक़्त में खाना खिलाया जाना चाहिए ताकि अकाल और दूसरी मुसीबतों के दौरान वे आदमियों की बस्तियों पर हमला न करें.आजकल, हरार में लकड़बग्घों को भोजन खिलाकर पर्यटकों और स्थानीय जिज्ञासुओं को आकर्षित किया जाता है.मुलुगेता का कहना है,"इससे बहुत कमाई तो नहीं होती लेकिन आप जीवित रह सकते हैं और मुझे जंगली जानवरों के साथ रहना पसंद है." लेकिन हरार में बहुत लोग नहीं बचे हैं जो लकड़बग्घों से दोस्ती रख सकते हों. मुलुगेता के अलावा उनके कुछ दोस्त ही यह करिश्मा कर सकते हैं.मुलुगेता को डर है कि कहीं इंसान और जानवर का यह अद्भुत संबंध भविष्य में ख़त्म न हो जाए इसलिए आजकल वे नए लड़कों को लकड़बग्घों से मित्रता का हुनर सिखा रहे हैं.

भारतीय भेड़िया सबसे पुराना जानवर?


डीएनए टेस्ट से पता चला है कि भारत में पाया जाने वाला भेड़िया दुनिया का सबसे पुराना जानवर हो सकता है.
लुप्त होने के कगार पर पहुँच चुके इस भेड़िए के जीन के विश्लेषण से पता चला है कि इसकी नस्ल आठ लाख साल पुरानी है.
हिमालय पर पाए जाने वाले ये भेड़िए अन्य सलेटी रंग के भेड़ियों की नस्ल 'केनिस लुपस' में शामिल किए जाते हैं.
लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि ये भेड़िए जीन के आधार पर इतने अलग हैं कि इनकी नस्ल को अलग नाम दिया जाना चाहिए.
देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश के एक भेड़िए के डीएनए पर शोध किया है.
अमरीका और यूरोप के भेड़ियों की नस्ल केवल डेढ़ लाख साल पुरानी है जबकि भारतीय भेड़िया आठ लाख साल पुराना है

वन्यजीव विभाग प्रमुखकोशिका के डीएनए पर शोध करते हुए वैज्ञानिक ये पता लगा पाए कि भेड़िए की नस्ल कब शुरु हुई थी.
हिमाचल प्रदेश के वन्यजीव विभाग के प्रमुख एके गुलाटी कहते हैं, "इस शोध से पहले माना जाता था कि भारतीय प्रायद्वीप के मैदान में पाई जाने वाली भेड़िए की नस्ल दुनिया में सबसे पुरानी है. ये चार लाख साल पुरानी है. अमरीका और यूरोप के भेड़ियों की नस्ल केवल डेढ़ लाख साल पुरानी है."
शोधकर्ताओं ने पूरे भारत और दुनिया में अलग-अलग जगह पाए जाने वाले भेड़ियों और कुत्तों के 700 डीएनए नमूनों पर शोध किया.
जूली नाम के भेड़िए के डीएनए की जाँच से यह परिणाम सामने आया, उसे 14 साल पहले भारत-तिब्बत सीमा पर स्पिति घाटी में पकड़ा गया था.
हिमालय में शिकार और जंगलों के काटे जाने के कारण इन भेड़ियों का संख्या बहुत घटी है और एक अनुमान के अनुसार पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में केवल 350 भेड़िए ही बचे हैं.

वैज्ञानिकों ने दुनिया का 'सबसे बूढ़ा पेड़' खोजा

स्वीडन में क़रीब दस हज़ार साल पुराना देवदार का एक पेड़ मिला है जिसके बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह दुनिया का सबसे बुजुर्ग पेड़ है.
कार्बन डेटिंग पद्धति से गणना के बाद वैज्ञानिकों ने इसे धरती का सबसे पुराना पेड़ कहा है.
यूमेआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को दलारना प्रांत की फुलु पहाड़ियों में यह पेड़ वर्ष 2004 में मिला था.
उस समय वैज्ञानिक पेड़-पौधों की प्रजातियों की गिनती में लगे हुए थे.
फ़्लोरिडा के मियामी की एक प्रयोगशाला में कुछ दिनों पहले ही कार्बन डेटिंग पद्धति की मदद से इस पेड़ के आनुवांशिक तत्वों का अध्ययन किया गया है.
वैज्ञानिक इससे पहले तक उत्तरी अमरीका में मिले चार हज़ार साल पुराने देवदार के ही एक पेड़ को दुनिया का सबसे पुराना पेड़ मानते थे.
गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स के मुताबिक़ अभी तक का सबसे पुराना पेड़ कैलीफ़ोर्निया की सफ़ेद पहाड़ियों में है जिसकी उम्र 4,768 साल आँकी गई है.
क्लोनिंग...
माना जा रहा है कि वर्ल्ड रिकार्ड अपने नाम करने का दावेदार यह पेड़ हिमयुग के तुरंत बाद का है.
फुलु की पहाड़ियों में 910 मीटर की ऊँचाई पर यह पेड़ जहाँ पर मिला है, उसके आसपास में कोणीय पत्तियों वाले लगभग 20 और पेड़ के समूह पाए गए हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है बाक़ी पेड़ भी आठ हज़ार साल से ज़्यादा पुराने हैं.
यूमेआ यूनिवर्सिटी का कहना है कि इन पेड़ों का बाहरी हिस्सा तो अपेक्षाकृत नया है लेकिन पत्तियों और शाखाओं की चार पीढ़ियों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि इनकी जड़ें 9,550 साल पुरानी हैं.
यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर लेफ़ कुलमैन कहते है कि इनके तने का जीवन लगभग छह सौ साल का होता है लेकिन एक की मौत के बाद जड़ से दूसरा 'क्लोन' तना निकल सकता है.
कुलमैन कहते हैं कि हर साल बर्फ़बारी के बाद जब कुछ तने नीचे झुक जाते हैं तो वे जड़ पकड़ लेते हैं.
वैज्ञानिक इस खोज से ख़ासे चकित हैं क्योंकि अभी तक कोणीय पत्तों वाले पौधों की इन नस्लों को अपेक्षाकृत नया माना जाता था.
कुलमैन कहते हैं, "परिणाणों ने बिल्कुल उल्टे नतीजे दिए हैं. कोणीय पत्तों वाले पेड़ पहाड़ियों में सबसे पुराने ज्ञात पौधों में एक हैं."
उन्होंने कहा कि इन पौधों के मिलने से अनुमान है कि उस समय यह इलाक़ा आज की तुलना में ज़्यादा गर्म रहा होगा.

Tuesday, April 15, 2008

आलिंगन स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी

GoodNews!क्या आप जानते हैं कि आलिंगन कई रोगों का इलाज है? ख़ासतौर पर उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियों का?हालाँकि इसका असर महिलाओं पर ज़्यादा देखा गया है.अमरीका के नॉर्थ कैरोलाइना विश्विद्यालय में किए गए एक अध्ययन के अनुसार आलिंगन से ऑक्सीटोसिन नाम के एक हार्मोन में बढ़ौतरी होती है जो इन बीमारियों से बचाता है. विश्विद्यालय ने 38 दम्पत्ति पर शोध करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला है.अध्ययन के दौरान महिलाएँ और पुरुष अलग-अलग कमरों में ले जाए गए जहाँ उनका रक्तचाप और ऑक्सीटोसिन का स्तर नापा गया.उसके बाद उन्हें एक साथ बिठा कर उनसे कहा गया कि वे उन दिनों के बारे में बात करें जब वे बहुत ख़ुश रहे थे.फिर उन्हें पाँच मिनट की एक रोमांटिक फ़िल्म दिखाई गई और दस मिनट के लिए अकेला छोड़ दिया गया ताकि वे एक-दूसरे से बात कर सकें.इसके बाद हर दम्पत्ति से कहा गया कि वे बीस सेकंड तक एक-दूसरे को बाँहों में लें.प्रेम संबंध होने से ज़्यादा असर पड़ता हैआलिंगन के बाद देखा गया कि उनके ऑक्सीटोसिन का स्तर पहले से ज़्यादा हो गया था.ये भी पाया गया कि जिन पुरुषों और महिलाओं में प्रेम संबंध थे उनके हार्मोन का स्तर अन्य लोगों से ज़्यादा था.ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन की प्रवक्ता डॉक्टर शार्मेन ग्रिफ़िथ्स का कहना है, वैज्ञानिक इस बात की जाँच करने को उत्सुक हैं कि सकारात्मक भावनाएँ स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव डालती हैं.उन्होंने कहा कि इस बात से यह साबित हो जाता है कि सामाजिक सुरक्षा सभी के लिए कितनी ज़रूरी है.

Monday, April 14, 2008

सबसे बड़ा है तो बुद्धिमान भी होगा


New Dehi। बच्चा पहला है तो ज्यादा देखभाल होगी ही। जब ज्यादा देखभाल होगी तो इसका फायदा भी मिलना चाहिए। यह मिलता भी है। एक शोध से साबित हुआ है कि किसी माता-पिता का पहला बच्चा अपने बाकी भाई-बहनों के मुकाबले ज्यादा तेज और चतुर होता है।
यूरोप के वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि बच्चों की बौद्धिकता पर पैदाइशी क्रम का बुनियादी प्रभाव होता है। परिवार के सबसे बड़े बच्चे का आईक्यू [बुद्धि लब्धि यानी मानसिक उम्र और वास्तविक उम्र का अनुपात] लेबल अपने अन्य भाई-बहनों के मुकाबले काफी ऊपर होता है। पूर्व के अध्ययनों में यह बात सामने आई थी कि पहले पैदा हुए बच्चे स्वच्छंदता और अगुवाई के मामले में पीछे होते हैं, लेकिन शैक्षिक स्तर पर ज्यादा कामयाब होते हैं। हालिया अध्ययन बताता है कि पहले पैदा हुए बच्चों का बौद्धिक स्तर बाद के भाई-बहनों के मुकाबले काफी ऊंचा होता है।
इस अध्ययन में एक हजार बच्चों को शामिल किया गया और उनके बचपन से लेकर किशोरावस्था तक के आईक्यू का परीक्षण किया गया। खास बात यह है कि पैदाइश के क्रम में दूसरे नंबर पर रहने वाले बच्चों के आईक्यू का स्तर भी अपने से छोटे भाई-बहनों की अपेक्षा ज्यादा ऊंचा पाया गया। लड़का हो या लड़की, दोनों पर यह बात समान रूप से लागू पाई गई।
एम्स‌र्ट्डम की व्रिजे यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता डारेट बूम्समा के मुताबिक सबसे बड़े बच्चे का आईक्यू स्तर उन बच्चों के मुकाबले ज्यादा ऊपर पाया गया जिनसे कोई एक बड़ा भाई या बहन है। दो भाई या बहनों से छोटे बच्चों में आईक्यू स्तर कुछ ज्यादा ही कम पाया गया। इसके पीछे कारण क्या हैं, वैज्ञानिक निश्चित तौर कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन इनका मानना है कि देखरेख का स्तर और परवरिश के प्रति मां-बाप का उत्साह बौद्धिक विकास में सहायक साबित होता है।

मुठ्ठी में होंगी हज़ारों घंटे की फ़िल्में

GoodNews(New Delhi)
कंप्यूटर की दुनिया की महारथी कंपनी आईबीएम के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई तो आने वाले दिनों में एक ऐसा उपकरण उपलब्ध हो सकेगा जिसके ज़रिए हज़ारों घंटे लंबी फ़िल्में सहेजना संभव होगा.
आईबीएम के शोधकर्ता 'रेसट्रैक टेक्नोलॉजी' नाम की एक तकनीक पर काम कर रहे हैं जो छोटे चुंबकीय घेरों की मदद से सामग्री या आंकड़ों (डाटा) को जमा करती है.
विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में छपी एक रिपोर्ट में आईबीएम की कैलीफोर्निया स्थित अल्मादन प्रयोगशाला में इस तकनीक पर काम कर टीम ने बताया है कि वह किस तरह से इस अनूठे उपकरण को तैयार कर रही है.
इसके तैयार हो जाने के बाद एमपी3 प्लेयरों की मौजूदा क्षमता को सौ गुना बढ़ाया जा सकता है लेकिन रेसट्रैक टेक्नोलॉजी पर काम कर रही इस टीम का कहना है कि इसके बाज़ार में आने में अभी सात से आठ साल लगेंगे.
यादाश्त की दुनिया
इस समय ज़्यादातर डेस्कटॉप कंप्यूटर में डाटा को जमा रखने के लिए फ़्लैश मेमोरी और हार्ड ड्राइव का इस्तेमाल होता है.
इन दोनों के अपने-अपने फ़ायदे हैं तो नुक़सान भी हैं.
हार्ड ड्राइव सस्ती होती हैं लेकिन अपनी बनावट के कारण वे बहुत लंबे समय तक काम नहीं कर पातीं. डाटा को सामने लाने में भी ये कुछ समय लेती हैं.
इसके उलट फ़्लैश मेमोरी ज़्यादा विश्वसनीय हैं और इनमें सुरक्षित रखे हुए डाटा को ज़ल्दी से देखा जा सकता है. हालाँकि इसकी ज़िंदगी सीमित है और यह महँगे भी हैं.
रेसट्रैक टेक्नोलॉजी पर डॉ. स्टुअर्ट पार्किन और उनकी टीम काम कर रही है. इससे तैयार याद्दाश्त वाले उपकरण सस्ते, टिकाऊ और तेज़ साबित हो सकते हैं.
डॉ. पार्किन कहते हैं कि रेसट्रैक टेक्नोलॉजी याद्दाश्त की दोनों तकनीकों - फ़्लैश मेमोरी और हार्ड ड्राइव की जगह ले सकती है.
वह बताते हैं, "हमने रेसट्रैक मेमोरी में काम आ रही सामग्रियों और तकनीक को सामने रखा है. हालाँकि अभी तक हम ऐसा एक भी उपकरण नहीं बना सके हैं लेकिन इसे बनाना अब संभव नज़र आता है."

Friday, April 11, 2008

बारिश बुलाने के टोटके


भयंकर सूखे की चपेट में आए भारत के कई राज्यों में लोग अब अंधविश्वासों का सहारा ले रहे हैं.
वर्षा पर आधारित है भारतीय कृषिख़बरों के अनुसार उत्तर प्रदेश के कई गाँवो में औरतें रात में बग़ैर कपड़े पहने खेतों में हल चला रही हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से देवता ख़ुश होकर धरती की प्यास बुझा देंगे
. किंवदंतियो में एक राजा को ऐसा ही करते हुए बताया गया है.पूर्वी उड़ीसा में किसानों ने मेढको के नाच का आयोजन किया जिसे स्थानीय भाषा में 'बेंगी नानी नाचा ' के नाम से जाना जाता है.गाजे-बाजे के बीच लोग एक मेंढक को पकड़ कर आधे भरे मटके में रख देते है जिसे दो व्यक्ति उठा कर एक जुलूस के आगे-आगे चलते हैं.कुछ इलाक़ों में तो दो मेढकों की शादी कर उन्हें एक ही मटके से निकालकर स्थानीय तालाब में छोड़ दिया जाता है.कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों से वर्षा के लिए यज्ञ कराए जाने की ख़बर मिली है.और कहीं तो मेढकों को गधों पर उछाला जाता है.बस....कैसे भी हो.....मेह बरस जाए!!!!दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर हरबंस मुखिया के अनुसार जब परिस्थितयाँ मानव के नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, तभी ऐसी प्रथाओं को अपनाया जाता है.उन्होंने कहा कि ग्रामीणों को शिक्षित किए जाने पर भी ये प्रथाएँ बंद नहीं होने वालीं, क्योंकि परंपराएँ उनके रग-रग में समाई हुई हैं.

इंटरनेट यूजर्स को 'टाइम' का सलाम


जानी-मानी पत्रिका टाइम ने दुनियाभर के इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों का अपने तरीक़े से अभिनंदन किया है. टाइम ने इस वर्ष 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' का पुरस्कार इन लोगों के नाम किया है.
सोमवार को आने वाले टाइम का विशेष अंक इन्हीं इंटरनेट यूजर्स को समर्पित है. पत्रिका के मुख्यपृष्ठ पर लिखा है- यू यानी आप...हम.. वो सभी लोग जो इंटरनेट क्रांति में डूबे हुए हैं.
आप यानी हर वो आम या ख़ास जिन्होंने इंटरनेट के माध्यम से ख़बरों और ख़बरों के स्रोतों का विकेंद्रीकरण कर दिया है और शक्ति के संतुलन में व्यापक बदलाव ला दिया है.
पत्रिका ने उन लोगों का सम्मान किया है जिन्होंने इंटरनेट पर सामग्री तैयार करने में भूमिका निभाई है और आज यूजर्स की सामग्री का इस्तेमाल कर कई वेबसाइटें लोकप्रियता के शिखर पर हैं.
टाइम ने यू ट्यूब, माई स्पेस जैसी वेबसाइटों का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया है.
वर्ष 1927 से 'टाइम' पत्रिका 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' का ख़िताब ख़बरों में साल भर बने रहने और ख़बरों और आम जनजीवन पर सबसे ज़्यादा प्रभाव डालने वाले व्यक्ति को देती है.
ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद, चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ और उत्तर कोरिया के किम जोंग इल इस साल उपविजेता रहे.
माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स, उनकी पत्नी मिलिंडा और रॉक स्टार बोनो ने पिछले साल ये ख़िताब जीता था.
'टाइम' पत्रिका के हिसाब से 2004 में पर्सन ऑफ़ द ईयर अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश थे और 2003 में ये ख़ुशनसीबी अमरीकी सैनिकों को हासिल हुई थी.
इंटरनेट
पत्रिका ने कहा कि किसी एक व्यक्ति की जगह 'आम जन' का पर्सन ऑफ़ द ईयर चुना जाना दिखाता है कि कैसे इंटरनेट ने ब्लॉग, वीडियो और सोशल नेटवर्क का उपयोग करते हुए मीडिया में अपनी दख़ल बढ़ाई है और मीडिया के शक्ति-संतुलन में बदलाव लाया है.
'टाइम' ने कहा कि यू-ट्यूब, फ़ेसबुक, माई स्पेस और विकीपीडिया जैसी वेबसाइटों की सहायता से लोगों के बीच संपर्क कई गुना बढ़ रहा है और अब लोग अपने विचारों, चित्रों और वीडियो को सभी तक आसानी से पहुँचा सकते हैं.
'टाइम' पत्रिका के लेव ग्रॉसमन कहते हैं, "ये कुछ के हाथ से ताक़त बहुतों के हाथों में पहुँचने जैसा है. ये सिर्फ़ दुनिया को नहीं बदलेगा बल्कि दुनिया बदलने के तरीक़े को भी बदलेगा."
'टाइम' ने वेब तकनीक की जमकर तारीफ़ की जिसने ख़बरों को सभी तक पहुँचाना इतना आसान बना डाला.
ग्रॉसमन ने कहा कि वेब लाखों लोगों की छोटी-छोटी कोशिशों को एक साथ ला रहा है और उन्हें मूल्यवान बना रहा है.
1938 में हिटलर और 1979 में ईरान के आयतुल्ला ख़ामेनेई जैसे लोगों को 'पर्सन ऑफ़ द ईयर' चुनने पर विवाद भी हो चुका है.

'इंटरनेट की सेंसरशिप ज़ोर पर'


इंटरनेट पर नज़र रखने वाली एक ग़ैर सरकारी एजेंसी का कहना है कि दुनिया भर में सरकारें इंटरनेट पर सेंसरशिप बढ़ा रही हैं.
ओपेन नेट इनिशिएटिव की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में 25 देश ऐसे हैं जिन्होंने राजनीतिक, सामाजिक और सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए कई वेबसाइटों को अपने देश में ब्लॉक कर दिया है.
एजेंसी का कहना है कि वे यह देखकर हैरत में पड़ गए हैं कि कितने बड़े पैमाने पर इंटरनेट की सेंसरशिप जारी है.
ओपेन नेट इनिशिएटिव का कहना है कि कई देशों की सरकारें इंटरनेट को ख़तरे के रूप में देखती हैं.
41 देशों का एक विस्तृत अध्ययन करने पर पता चला कि 25 ऐसे देश हैं जो या तो बेवसाइटों को पूरी तरह ब्लॉक कर रहे हैं या फिर सामग्री को लोगों तक पहुँचने से रोकने के लिए फिल्टरों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
ऐसा करने की तीन प्रमुख वजहें हैं- राजनीतिक विपक्ष को मज़बूत होने से रोकना, राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर संवेदनशीलता और अश्लील सामग्री को जनता पहुँचने से रोकने की कोशिश.
रिपोर्ट तैयार करने वाले जॉन पॉलफेरी का कहना है कि इंटरनेट सेंसरशिप बढ़ रही है जो चिंता का विषय है क्योंकि इससे लोगों की नागरिक स्वतंत्रता और निजता हनन हो रहा है.
यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है और ओपेन नेट इनिशिएटिव का कहना है कि वे अपने अध्ययन का दायरा व्यापक करेंगे तो सेंसरशिप की और घटनाओं का पता चलेगा.
जो देश बहुत बड़े पैमाने पर राजनीतिक सेंसरशिप लागू कर रहे हैं उनमें चीन, ईरान, बर्मा और ट्यूनिशिया शामिल हैं.
पाकिस्तान और दक्षिण कोरिया भी कई वेबसाइटों को जनता तक पहुँचने से रोक रहे हैं.
कई वेबसाइटों को अश्लील बताकर सऊदी अरब, यमन और ट्यूनिशिया जैसे देश रोक रहे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब ये देश एक बार वेबसाइटों को रोकना शुरू करते हैं तो उनकी संख्या बढ़ाते ही जाते हैं, कभी कम नहीं करते.

इसी जीवन में जी सकते हैं 'दूसरा जनम'


कभी आपने सोचा है कि काश हमारी एक और ज़िंदगी होती. इस जीवन की सच्चाइयाँ कभी-कभी कुछ ज़्यादा ही कड़वे सच के रूप में सामने आती हैं और आप सोचते हैं कि काश एक दूसरा जीवन भी होता जहाँ चीज़ें अपने मुताबिक़ होतीं.
आजकल इंटरनेट पर एक ज़बरदस्त दौर सा चल रहा है और उसे यही नाम दिया गया है, 'सेकेंड लाइफ़' यानी दूसरा जीवन.
यह दूसरा जीवन मिलता है कंप्यूटर के माध्यम से. वर्चुअल वर्ल्ड या कंप्यूटर जनित दुनिया, इंटरनेट का वो हिस्सा है जिनके बारे में बहुत लोगों को जानकारी नहीं है.
इसमें होता ये है कि असली लोग, डिजिटल अवतार के रूप में दिखाए जाते हैं. आप ख़ुद को अपने कंप्यूटर के पर्दे पर, एक कम्प्यूटर जनित व्यक्ति के रूप में, चलता-फिरता देख सकते हैं.
इस वर्चुअल दुनिया के लोग भी असली लोगों की तरह घर बनाते हैं, व्यापार करते हैं, ज़मीन ख़रीदते-बेचते हैं, प्रेम संबंध जोड़ते हैं लेकिन यह सब कुछ होता है आभासी दुनिया में. यानी असल में आप ये सब नहीं कर रहे लेकिन आपको महसूस होता है कि ऐसा कर रहे हैं.
सेकेंड लाइफ़ यानी दूसरी ज़िंदगी, सबसे बड़ी और लोकप्रिय कंप्यूटर जनित दुनिया है और इसकी बड़ी चर्चा हो रही है लेकिन अभी एक महीने में कोई दस लाख लोग इस वेबसाइट का इस्तेमाल कर रहे हैं.
सेकेंड लाइफ़ के संस्थापक फ़िलिप रोज़डेल का कहना है कि जैसे-जैसे टेक्नॉलॉजी में प्रगति होगी ये संख्या बढ़ती जाएगी. "अभी तक इसमें नब्बे लाख लोगों ने अपने आपको रजिस्टर किया है लेकिन हमारे सामने चुनौती ये है कि इसे बढ़ाया जाए और करोड़ों लोग इसका नियमित इस्तेमाल करें. मैं समझता हूं कि ऐसा हो सकता है और होगा."
वे कहते हैं, "कंप्यूटर जनित दुनिया की स्थिति आज वैसी ही है जैसी नब्बे के दशक के आरंभिक वर्षों में इंटरनेट की थी. लेकिन यह तेज़ी से बढ़ेगा."
वे बताते हैं कि कुछ तकनीकी समस्याएँ भी हैं, "अभी स्थिति यह है कि 50 अवतार से ज़्यादा एक जगह इकट्ठा नहीं हो सकते हैं वरना कंप्यूटर प्रोग्राम ठप हो जाता है."
दूसरी मुश्किल यह है कि इसका इस्तेमाल करने वाले आम लोगों के पास वह तकनीकी क्षमता नहीं है कि वे अपने अवतार की सूरत शक्ल बदल सकें.
रोज़डेल का कहना है कि जल्दी ही इन तकनीकी मुद्दों को सुलझा लिया जाएगा

Tuesday, April 8, 2008

सोडा, कॉफ़ी, मसाज शब्द कहां से आए


क्या आप जानते हैं कि अलकोहल (alcohol), अलजेबरा (algebra), कॉफ़ी (coffee), कॉटन (cotton), जिराफ़ (giraffe), लेमन (lemon), मसाज (massage), मॉनसून (monsoon), सोफ़ा (sofa), सोडा (soda), ज़ीरो (zero) और रैकेट (racket) में क्या बात समान है.
ये सारे शब्द हमारे जाने पहचाने हैं और हम अपने दैनिक जीवन में इन शब्दों का प्रयोग आम तौर पर इसी रूप में करते हैं लेकिन इनमें से कई का हिंदी अनुवाद भी है जो आप ज़रूर जानते हैं.
और हम आप को यह भी बता दें कि यह सारे शब्द एक ही भाषा से अंग्रेज़ी भाषा में आए और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समझे और बोले जाने लगे. यह दाहिनी ओर से लिखी जाने वाली भाषा में से एक भाषा से आने वाले शब्द हैं. अब तो आप बहुत ही क़रीब पहुंच गए होंग. क्या यह अरबी है, या फ़ारसी है, दरी है, पश्तो है या उर्दू है.
जी हां आप ने पहचान ही लिया लेकिन हम फिर भी बता देते हैं कि यह सारे शब्द कहीं और से नहीं बल्कि अरबी भाषा से आए हैं जो दुनिया की बड़ी भाषाओं में से एक है.
जिराफ़ शब्द भी अरबी से आया
आज की बैठक में हमें इन शब्दों से कुछ लेना देना नहीं है बल्कि आज हम अरबी भाषा से अंग्रेज़ी में आने वाले कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण शब्दों के बारे में बात करेंगे और आप को हर बार यह जान कर आश्चर्य होगा कि अच्छा यह शब्द भी अरबी भाषा से आया है.
वैसे अरबी से आने वाले और भी बहुत से शब्द हैं जिन से आप भलिभांति परिचित हैं जैसे ऐडमीरल, आलकेमी, असासिन, हिना, हशीश, मैटरेस, केमिस्ट्री, हरम, सैफ़रन, ख़लीफ़ा, इत्यादि. सूची बहुत लंबी है.
ज़रा ध्यान से देखें इनमें से किन शब्दों से आप परिचित हैं. आज के हमारे शब्द हैं, आरसेनल, कैलिबर, साइफ़र, क्रिमसन, एलिक्सिर, मसकारा, मसलिन, नादिर, ज़ेनिथ, टैमारिंड और ज़ेनिथ.
आरसेनल (arsenal): A governmental establishment for the storing, development, manufacturing, testing, or repairing of arms, ammunition, and other war materiel; A stock of weapons; A store or supply: an arsenal of retorts. अस्लेहा ख़ाना, शस्त्रगार, आयुधशाला. यह शब्द अरबी भाषा के शब्द सिन्-आ से आया है जिसका मतलब होता है बनाना, उद्योग, पैदा करना इत्यादि. यह संज्ञा है.
कैलिबर (caliber): The diameter of the inside of a round cylinder, such as a tube. The diameter of the bore of a firearm, usually shown in hundredths or thousandths of an inch and expressed in writing or print in terms of a decimal fraction: .45 caliber. Degree of worth; quality: a school of high caliber; an executive of low caliber. व्यास, अंतर्व्यास, अंशांकन, आम तौर पर इस का प्रयोग चरित्रबल, महत्त्व और योग्यता के रुप में होता है. यह अरबी के शब्द क़ालिब और क़ल्ब से बना है जिसका अर्थ होता है, ढ़ालना, मोड़ना, और क़ल्ब का मतलब दिल और जड़ भी होता है.
लेमन भी लेमू का ही रूप है
साइफ़र (cipher): The mathematical symbol (0) denoting absence of quantity; zero; An Arabic numeral or figure; a number; one having no influence or value; a nonentity शुन्य, सिफ़र, ज़ीरो, बीजांक, संकेताक्षर, मामूली चीज़ या आदमी इत्यादि,क्रिया के रुप में इसका अर्थ हिसाब या गणित लगाना, बीजांक में लिखना, संकेत में लिखना. इसका उल्टा होता है डीसाईफ़र (decipher) जिसका अर्थ गुत्थी सुलझाना, गूढ़ लिपि का अर्थ निकालना, अर्थ निकालना इत्यादि. अरबी का मूल शब्द सिफ़र संस्कृत के शब्द शुन्य का अनुवाद है, बाकी आप यह तो जानते ही हैं कि शुन्य का अविष्कार भारत में हुआ था.
क्रिमसन (crimson): संज्ञा के तौर पर A deep to vivid purplish red to vivid red. क्रिया के रूप में crimsoned, crimson•ing, crimsons और इस का अर्थ है To make or become deeply or vividly red. अंग्रेज़ी भाषा का यह ख़ूबसूरत शब्द और कविता की जान का अर्थ है गहरा लाल यानी, लाल भभूका, क्रिया के रुप में इस का अर्थ लाल करना या लाल होना है. यह अरबी बाषा के शब्द क़िरमिज़ी या क़िरमिज़ से आया है जोकि किर्म से आया है जिस का अर्थ कीड़ा होता है. एक ऐसा कीड़ा जो गहरी लाल रौशनी छोड़ता है उसे क़िरमिज़ कहते हैं और उस रंग को क़िरमिज़ी. यह शब्द अरबी से प्राचीन लातीनी में क्रीमेसीनस बन कर आया फिर वहां से प्राचीन हस्पानवी में आकर क्रीमेसिन बना और फिर मध्यकाल की अंग्रेज़ी में उसी रूप में आया.
एलिक्सिर (elixir): A sweetened aromatic solution of alcohol and water, serving as a vehicle for medicine. A substance believed to maintain life indefinitely. Also called elixir of life जिस का अर्थ है अमृत. A substance or medicine believed to have the power to cure all ills. इसे philosophers' stone (फ़िलॉसिफ़र्स स्टोन) भी कहा जाता है. इसका अर्थ अकसीर है, पारस पत्थर को भी कहा जाता है जिसके स्पर्श से सारे रोग दूर होजाते हैं. हर दुख की दवा भी कहा जाता है.
कॉफी शब्द की उत्पत्ति भी वहीं से हुई
मसकारा (mascara): A cosmetic applied to thicken, lengthen, and usually darken the eyelashes. अंजन, पलकों को संवारने के लिए लगाया जाने वाला पदार्थ.क्रिया के रुप में mascar•aed, mascar•a•ing, mascar•as. जिसका अर्थ होता है To apply mascara to यानी मसकारा लगाना.
मसलिन (muslin): Any of various sturdy cotton fabrics of plain weave, used especially for sheets मलमल को कहते हैं. यह अरबी के शब्द मोवस्ल से आया है जो कि वस्ल से बना है और जिसका अर्थ होता है मिलना, मुलाक़ात, उस से बना मिला हुआ, एक दूसरे में गुंधा हुआ शायद कि मलमल भी वहीं से उर्दू होते हुए हिंदी में आया है. अरबी से यह शब्द अतालवी में गया और वहां से फ़्रांसीसी में और वहां से फिर अंग्रेज़ी में.
नादिर (nadir): Astronomy. A point on the celestial sphere directly below the observer, diametrically opposite the zenith; the lowest point: the nadir of their fortunes. यह शब्द खगोलविज्ञान में एक ऐसे स्थान को कहते हैं जो देखने वाले के बिल्कुल नीचे हो, इसे अधोबिन्दू, पादबिंदू कहा जाता है. सबसे नीची जगह या स्तर को भी नादिर कहते हैं. अरबी के शब्द नज़र से लिया गया है जिसका अर्थ होता है देखना.
टैमारिंड (tamarind): इमली को कहते हैं. अरबी में इसे समरे-हिंद कहा जाता है जिसका अर्थ है हिंदुस्तान (हिंद) का फल (समर), इमली के पेड़ और फल दोनों को टैमारिंड कहा जाता है.
ज़ेनिथ (zenith): The point on the celestial sphere that is directly above the observer; the upper region of the sky; the point of culmination; the peak: the zenith of her career शिरोबिंदू, खमध्य, चरम बिंदू, शिखर इत्यादि, यह अरबी के शब्द समतुर्रास से आया है जिसका अर्थ है सीधे सिर के ऊपर, summit, pinnacle इसके पर्याय हैं और नादिर (Nadir) इसका विपरीत है.
आप को आश्चर्य होता होगा कि किस प्रकार यह शब्द एक भाषा से दूसरी भाषा में आते जाते रहते हैं और किस प्रकार बदलते हैं. अगले लेख में हम इसी लेन देन की प्रक्रिया को समझेंगे.

दुनिया के सात महापाप (deadly sins) क्या हैं?

GoodNews(Vikram Irani)
आप में से अकसर लोगों ने दुनिया के सात आश्चर्य के बारे में सुना पढ़ा और देखा होगा इन अजूबों में अब भारत का ताजमहल भी शामिल है, लेकिन क्या आप सात महापाप के बारे में भी जानते हैं?
नए साल से गले मिलने और साथ ही पुराने साल को अलविदा कहने का समय आ गया है. पूरे भारत में इस वक़्त मस्ती और एक प्रकार के जश्न का माहौल है और लोग न जाने कितने प्रकार के संकल्प और प्रतिज्ञा के बारे में सोच रहे होंगे...
इस मौक़े पर हम लेकर आए हैं दुनिया के सात महापाप. क्या होते हैं ये सात महापाप? अंग्रेज़ी भाषा और पश्चिमी साहित्य एवं संस्कृति में इसे किस प्रकार देखा जाता है?
अंग्रेज़ी में इन्हें सेवेन डेडली सिंस (Seven deadly sins) या कैपिटल वाइसेज़ (Capital vices) या कारडिनल सिंस (Cardinal sins) भी कहा जाता है.
जब से मनुष्य ने होश संभाला है तभी से उनमें पाप-पुण्य, भलाई-बुराई, नैतिक-अनैतिक जैसे आध्यात्मिक विचार मौजूद हैं. सारे धर्म और हर क्षेत्र में इसका प्रचलन किसी न किसी रूप में ज़रूर है.
यह सेवेन डेडली सिंस (Seven deadly sins) या कैपिटल वाइसेज़ (Capital vices) या कारडिनल सिंस (Cardinal sins) इस प्रकार हैं:
लस्ट (Lust)ग्लूटनी (Gluttony)ग्रीड (Greed)स्लौथ (Sloth)रैथ (Wrath)एनवी (Envy)प्राइड (Pride)
यह सारे शब्द भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun) के रूप हैं लेकिन इनमें से कई का प्रयोग क्रिया और विशेषण के रूप में भी होता है. अगर इन्हें ग़ौर से देखें तो पता चलता है कि इन सारे महापाप की हर जगह भरमार है और हम में से हर एक इसमें से किसी न किसी पाप से ग्रसित है.
पुराने ज़माने में इन सब को बड़े पाप में शामिल किया जाता था और उनसे बचने की शिक्षा दी जाती थी. पुराने ज़माने में ईसाई धर्म में इन सबको घोर पाप की सूची में रखा गया था क्यों की इनकी वजह से मनुष्य सदा के लिए दोषित ठहरा दिया जाता था और फिर बिना कंफ़ेशन के मुक्ति का कोई चारा नहीं था.
लस्ट (Lust) यानी उत्कंठा, लालसा, कामुकता, कामवासना (Intense or unrestrained sexual craving) यह मनुष्य को दंडनिय अपराध की ओर ले जाते हैं और इनसे समाज में कई प्रकार की बुराईयां फैलती हैं. विशेषण में इसे लस्टफुल (lustful) कहते हैं
ग्लूटनी (Gluttony) यानी पेटूपन. इसे भी सात महापापों में रखा गया है. जी हां दुनिया भर में तेज़ी से फैलने वाले मोटापे को देखें तो यह सही लगता है की पेटूपन बुरी चीज़ हैं और हर ज़माने में पेटूपन की निंदा हुई है और इसका मज़ाक़ उड़ाया गया है. ठूंस कर खाने को महा पाप में इस लिए रखा गया है कि एक तो इसमें अधिक खाने की लालसा है और दूसरे यह ज़रूरतमंदों के खाने में हस्तक्षेप का कारण है.
मध्यकाल में लोगों ने इसे विस्तार से देखा और इसके लक्षण में छह बातें बताईं जिनसे पेटूपन साबित होता है. वह इस प्रकार हैं.
eating too sooneating too expensivelyeating too much
eating too eagerlyeating too daintilyeating too fervently
ग्रीड (Greed) यानी लालच, लोभ. यह भी लस्ट और ग्लूटनी की तरह है और इसमें में अत्यधिक प्रलोभन होता है. चर्च ने इसे सात महापाप की सूची में अलग से इस लिए रखा है कि इस से धन-दौलत की लालच शामिल है (An excessive desire to acquire or possess more than what one needs or deserves, especially with respect to material wealth)
स्लौथ (Sloth) यानी आलस्य, सुस्ती और काहिली (Aversion to work or exertion; laziness; indolence). पहले स्लौथ का अर्थ होता था उदास रहना, ख़ुशी न मनाना और इसे महापाप में इसलिए रखा गया था कि इस से ख़ुदा की दी हुई चीज़ से परहेज़ करना. इस अर्थ का पर्याय आज melancholy, apathy, depression, और joylessness होगा. बाद में इसे इसलिए पाप में शामिल रखा गया क्योंकि इस की वजह से आदमी अपनी योग्यता और क्षमता का प्रयोग नहीं करता है.
रैथ (Wrath) ग़ुस्सा, क्रोध, आक्रोश. इसे नफ़रत और ग़ुस्से का मिला जुला रूप कहा जा सकता है जिस में आकर कोई कुछ भी कर जाता है. यह सात महापाप में अकेला पाप है जिसमें हो सकता है कि आपका अपना स्वार्थ शामिल न हो (Forceful, often vindictive anger)
एनवी (Envy) यानी ईर्ष्या, डाह, जलन, हसद. यह ग्रीड यानी लालच से इस अर्थ में अलग है कि ग्रीड में धन-दौलत ही शामिल है जबकि यह उसका व्यापक रूप है. यह महापाप इस लिए है कि कोई गुण किसी में देख कर उसे अपने में चाहना और दूसरे की अच्छी चीज़ को देख न पाना.
प्राइड (Pride) यानी घमंड, अहंकार, अभिमान को सातों माहापाप में सबसे बुरा पाप समझा जाता है और किसी भी धर्म में इसकी कठोर निंदा और भर्त्सना की गई है. इसे सारे पाप की जड़ समझा जाता क्योंकि सारे पाप इसी के पेट से निकलते हैं. इसमें ख़ुद को सबसे महान समझना और ख़ुद से अत्यधिक प्रेम शामिल है.
अंग्रेज़ी के सुप्रसिद्ध नाटककार क्रिस्टोफ़र मारलो ने अपने नाटक डॉ. फ़ॉस्टस में इन सारे पापों का व्यक्तियों के रूप में चित्रण किया है. उनके नाटक में यह सारे महापाप इस क्रम pride, greed, envy, wrath, gluttony, sloth, lust में आते हैं.
अब जबकि आपने सात अजूबों के साथ सात महापाप भी देख लिया तो ज़रा सात महापुण्य भी देख लें. यह इस प्रकार हैं.
लस्ट (Lust)ग्लूटनी (Gluttony)ग्रीड (Greed)स्लौथ (Sloth)रैथ (Wrath)एनवी (Envy)प्राइड (Pride)
Chastity पाकीज़गी, विशुद्धताTemperance आत्म संयम, परहेज़Charity यानी दान, उदारता,Diligence यानी परिश्रमी,Forgiveness यानी क्षमा, माफ़ीKindness यानी रहम, दया,Humility विनम्रता, दीनता, विनय
तो फिर क्या सोच रहे हैं. चलिए इस बार के रिज़ोल्युशन यानी संकल्प में इन महापापों से बचना और सदगुणों को अपनाना भी शामिल कर सकते हैं. वैसे जश्न के माहौल में कुछ ज़्यादा खाने से मना करने पर कहीं आप नाराज़ न हो जाएं. नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ विदा लेते हैं....

Monday, April 7, 2008

हेलो शब्द कहाँ से आया?


जिस तरह एक शरीर में कोशिकाएं बनती-बिगड़ती रहती हैं उसी तरह एक जीवित भाषा में भी शब्द बनते बिगड़ते और बाहर होते रहते हैं.
जीवित भाषा से आशय है वह भाषा जिसे लोग विचार व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल करते हैं जबकि मृत भाषा वह है जिसका रोज़मर्रा का इस्तेमाल अब ख़त्म हो चुका है और लोग लिखने-पढ़ने के लिए उन्हें इस्तेमाल नही करते.
मिसाल के तौर पर संस्कृत और लेटिन भाषाएँ पुराने समय में ज्ञान और साहित्य की भाषाएं थीं और इन्हीं भाषाओं में प्राचीन विधा के बहुत से महत्वपूर्ण ख़ज़ाने सुरक्षित हैं
यूरोप की जीवित भाषाओं में बहुत से ऐसे शब्द हैं जिनकी जड़ें हमें लेटिन या प्राचीन यूनानी भाषाओं में मिलती हैं.
हर जीवित भाषा जहाँ अपनी प्राचीन भाषा से जीवन रस लेती है वहीं वह अपने आस-पास की भाषाओं से भी प्रभावित होती हैं, मिसाल के तौर पर उर्दू भाषा में प्राचीन लोक भाषाओं और संस्कृत के शब्दों का सुराग़ मिलता है, वहीं उसने फारसी और अरबी से भी फ़ायदा उठाय़ा है.
आज की पकिस्तानी उर्दू में पंजाबी और दूसरी लोक भाषाओं के शब्द भी मिलते हैं.
अंगरेज़ी भी एक जीवित भाषा है, जिसके ज्ञान और साहित्य का भंडार हालांकि यूरोप की क्लासिकी भाषाओं से आया है लेकिन दुनिया भर में अंगरेजों की हुकुमत होने के कारण अंगरेज़ी का दुनिया की विभिन्न भाषाओं से वास्ता पड़ता रहा और यूं कई भाषाओं के शब्द अंगरेज़ी में शामिल होते रहे.
लेखों के इस नए सिलसिले में हम अंगरेज़ी के कुछ शब्दों का इतिहास खंगालेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि आधुनिक रूप लेने से पहले यह शब्द प्रगति की किन-किन मंज़िलों से गुज़रे हैं.
क्या आप बता सकते है कि आजकल अंगरेजी का सबसे ज्यादा बोला जाने वाला शब्द कौन सा है? जी हाँ, 'Hello'.
तो आइए हम अपनी खोज की शुरूआत इसी शब्द से करते हैं.
कुछ लोगों का कहना है कि यह प्राचीन फ्रांसीसी शब्द Hola से निकला है जिसका मतलब है 'कैसे हो' और यह फ्रांसीसी शब्द 1066 ईसवी के नारमन हमले के समय इंगलिस्तान पहुंचा था.
लेकिन दो तीन सदियों में इस शब्द का रूप काफ़ी बदल गया है.
हाथ मिलाते समय भी सबसे पहले बोलते हैं हेलो
अंगरेजी भाषा के कवि चॉसर के ज़माने तक यानी 1300 के बाद यह शब्द Hallow का रूप ले चुका था.
फिर शेक्सपियर के ज़माने में यानी दो सौ साल बाद यही शब्द Halloo के रूप में ढल गया और शिकारियों और मल्लाहों के हत्थे चढ़ा तो इसके कई रूप सामने आए जैसे: Hallloa, Hallooa, Hollo.
वर्ष 1800 तक इस शब्द का एक विशेष रूप तय हो चुका था और वह था Hullo.
कुछ अरसे बाद जब टेलिफ़ोन का अविष्कार हुआ तो इस शब्द को नयी पहचान मिली. शुरूआत में लोग फोन पर हेलो कहने के बजाए पूछा करते थे Are you there?
क्योंकि तब उन्हें यह विश्वास नहीं था कि उनकी आवाज़ दूसरी ओर पहुंच रही है.
लेकिन अमेरिकी अविष्कारक थॉमसन एडिसन को इतना लंबा शब्द पसंद नहीं था. उन्होंने जब पहली बार फ़ोन किया तो उन्हें य़कीन था कि दूसरी ओर उनकी आवाज़ पहुंच रही है. चुनांचे उन्होंने सिर्फ इतना कहा Hello. तब से आज तक दुनिया भर में टेलिफोन पर बात-चीत की शुरूआत इसी शब्द से होती है.

जीप का प्रचलन कैसे हुआ?


‘जीप’ (JEEP)
जी हाँ, यह वही गाड़ी है जो आज से पहले सबसे अधिक दिखने वाले वाहनों में आती थी और जिसे आज भी नागरिक जीवन और सेना में फ़ौजियों और सामानों को लाने ले जाने में बड़ी हद तक प्रयोग में लाया जाता है लेकिन फ़ौजियों को ढोने से पहले इसके बारे में कई रोचक बातें भी प्रचलित हुईं.

जब यह अजीब सा बक्सानुमा वाहन (मानो जैसे माचिस की खुली डिब्बिया में पहिया लगा दिया गया हो) अपनी उत्पत्ति के दौर से गुज़र रहा था उसी दौरान यह शब्द ‘जीप’ अपने नए नए अर्थों में सामने आ रहा था.
चार पहियों वाली इस आधा टन भारी गाड़ी को अमरीकी फ़ौज के ख़ास उद्देश्य के लिए सितंबर 1940 में तैयार किया गया लेकिन इस के डिज़ाइन की तैयारी और इसके नाम की शुरुआत 30 के दशक में ही शुरू हो चुकी थी.
वास्तव में इसी प्रकार की एक गाड़ी का डिज़ाइन एक टैंक कैप्टेन ने 1932 में तैयार किया था लेकिन उसने उसका कोई नाम नहीं रखा था. उसके बाद से इस पूरे दशक में इसकी तैयारी में कम से कम तीन विभिन्न निर्माता शामिल रहे. इसी बीच शब्द जीप भी अपने विकास के चरणों से गुज़रता रहा.
लड़ाई के दिनों में भी काम आता है यह वाहन
पहले-पहल फ़ौजी शब्दावली में इसका अर्थ ‘रंगरूट’ लिया गया, फिर इसे एक बेढ़ब और अनुपयुक्त या न फ़िट होने वाले कोट के अर्थ में लिया जाने लगा, और फिर इसे थोड़े दिनों तक पाइलटों के सह-प्रशिक्षको के लिए भी इस्तेमाल किया गया.
उसी ज़माने में 16 मार्च 1936 में ‘यूजीन दी जीप’ (Eugene the Jeep) का पात्र पोपाइ कॉमिक्स (Popeye Comics) में शामिल किया गया. यह पात्र यूजीन देखने में यूं तो छोटा था लेकिन वह बहुत शक्तिशाली प्राणी था जोकि ‘जीप जीप’ चिल्लाया करता था.
शब्द जीप की इस पृष्ठभूमि और इसके विभिन्न अर्थों में प्रयोग ने फ़ौजी और आम जनता के इस नए वाहन को जीप का नाम दे दिया जोकि आने वाली नई नसल के लिए दुनिया भर में एक ही अर्थ में प्रयोग होने वाला शब्द बन गया.
और दूसरे विश्व-युद्ध में अमरीकी फ़ौजियों ने जीप और उसके अर्थ को पूरे विश्व में फैला दिया. विश्व-युद्ध के बाद जीप ने सामान्य नागरिक में अपनी पकड़ बनाई और इस डब्बे-नुमा चार पहिया वाहन (जो चारों ओर से खुली हुई होता था) का सामान्य और जोखिम भरे कार्यों के लिए प्रयोग में होने लगा.
यहाँ तक कि इस शब्द को बड़े अक्षरो में लिख कर इस ट्रेड मार्क के तौर पर प्रयोग में लाया गया. आज यह गाड़ी आधी शताब्दी पहले से कहीं अधिक पसंद की जाती है और इसका प्रयोग अधिकतर भारी कामों और दुर्गम रास्तों पर अधिक होता है.

'orange' और 'jungle' में क्या समानता है?


क्या आप को मालूम है कॉट (cot), औरेंज (orange), पजामा (pajama) , ठग (thug) , बैंगल्स (bangles) और जंगल (jungle) में क्या समान है. यह सारे शब्द भारतीय भाषाओं से अंग्रेज़ी में आए हैं. आप इन सब के अर्थ जानते ही होंगे.
कॉट यानी खाट से आया है, इसे कहीं कहीं खटिया भी कहते हैं. औरेंज संस्कृत भाषा से अरबी भाषा में आया और फिर स्पेन होते हुए अंग्रेज़ी में इसने अपना सबसे अलग स्थान बनाया.
आज की बैठक में हम बात करेंगे भारतीय भाषा से अंग्रेज़ी में शामिल होने वाले कुछ शब्दों की. वैसे आप को तो यह मालूम ही है कि भारत में अंग्रेज़ी बोलने वालों की संख्या अच्छी ख़ासी है.
अंग्रेज़ी में भारतीय शब्द
हर वर्ष अंग्रेज़ी भाषा में भारतीय भाषाओं से कोई न कोई शब्द शामिल किया जा रहा है, यह जहां इन भाषाओं की अहमियत को दर्शाता है वहीं अंग्रेज़ी भाषा के लचीलेपन और उसके अंतरराष्ट्रीय किरदार को भी दिखाता है.
बैंगल्स वास्तव में हिंदी के शब्द बांगड़ी का रूप है जिसका अर्थ शीशा होता है
पिछले साल अंग्रेज़ी भाषा की ऑक्सफ़ोर्ड कंसाइज़ डिक्शनरी ने अपने 11वें संस्करण में भारत से पचास से भी अधिक शब्दों को शामिल किया. हाल ही में यह दावा भी किया गया है कि भारत में अंग्रेज़ी बोलने वालों की संख्या सबसे ज़्यादा है.
ऑक्सफ़ोर्ड के नए संस्करण में जो शब्द शामिल हैं वे हैं, बदमाश (badmash), ढाबा (dhaba), हवाला (hawala), बंद (bandh), भेलपूरी (bhelpuri), चमचा (chamcha) वग़ैरह. इन सारे शब्दों के अलावा योगा (yoga), मंत्र (mantra), पंडित (pundit), कर्मा (karma) वग़ैरह काफ़ी पहले से अंग्रेज़ी में प्रचलित हैं.
भारत का नाम दुनिया में मसालों के लिए काफ़ी मशहूर रहा है और अब व्यंजन की दुनिया में भारतीय खानों में लोगों की रुचि इस बात से भी झलकती है कि अंग्रेज़ी में कुछ नाम यहां से भी आए हैं, जैसे चटनी (chutney), तंदूर (tandoor) , करी (curry), वग़ैरह
औरेंज (orange)
औरेंज यानी नारंगी. संस्कृत में इस फल को नारंज कहते थे, यहां से यह शब्द अरबी भाषा में गया जहां वह नारंजह हो गया. अरबों का जब स्पेन पर अधिपत्य क़ायम हुआ तो वहां से यह शब्द स्पेनी भाषा में नारनहा के उच्चारण के साथ चला आया.
स्पैनिश से यह अंग्रेज़ी में a naraj के रूप में चला आया, चूंकि अंग्रेज़ी में ‘जे’ अक्षर पर मुश्किल से ही कोई शब्द ख़त्म होता हो इस लिए इसकी स्पेलिंग narange हो गई और लोग इसे a narange कहने लगे.
इस चमचे के लिए अंग्रेज़ी में स्पून का प्रयोग करते हैं लेकिन जो चमचा अब अंग्रेज़ी में आया है वह चमचा चापलूस के लिए प्रयोग किया जाता है
फिर यह a narange से बोलते बोलते an arange हो गया और फिर arange के शुरू के ‘ए’ ने ‘ओ’ का उच्चारण ले लिया और इस तरह यह an orange बन गया. यानी नारंगी को रंग लाने में काफ़ी लंबा सफ़र तय करना पड़ा.
इस शब्द के बारे में यह भी याद रहना चाहिए कि इस प्रकार का अंग्रेज़ी में कोई दूसरा शब्द नहीं है यानी इसके तुक पर दूसरा शब्द नहीं है. इसी प्रकार सिल्वर के तुक का भी कोई दूसरा शब्द नहीं है.
चीज़ (cheese)
एक चीज़ है जिसे हम पनीर के रूप में जानते हैं और सारी दुनिया में इसका प्रचलन है लेकिन पिछली एक सदी से चीज़ शब्द का प्रयोग उर्दू भाषा के चीज़ शब्द के रूप में भी हो रहा है. जैसे he is a big cheese वह बहुत बड़ी चीज़ यानी हस्ती है.
मैंगो (Mango)
आम के लिए दुनिया भर में मशहूर यह शब्द मलयालम के मांगा से आया है, स्पेनी में भी मैंगा मैंगो के लिए प्रयुक्त है.
बैंगल्स (bangles)
यह शब्द हिंदी से आया है जिस का अर्थ है चूड़ियां या कड़े. वास्तव में यह हिंदी के शब्द बांगड़ी का रूप है जिसका अर्थ शीशा होता है.
शैम्पू (Shampoo)
यह लोकप्रिय शब्द चम्पू से आया है और उसी से हम चम्पी भी जानते हैं.
ठग (Thug)
यानी चोर भी भारत से ही लिया गया है. हम अपनी लोक कथाओं में ठगों के बहुत सारे क़िस्से पढ़ते हैं. इसी से बना है शब्द ठगी, अंग्रेज़ी में इसका भी कई जगह प्रयोग देखा गया है.
कुछ और शब्द
Sentry यानी संतरी
Teapoy यानी तिपाई
Sepoy यानी सिपाही
Toddy यानी ताड़ी
Pukka यानी पक्का, ईंट का पक्का मकान के लिए प्रयुक्त
Chai यानी चाय
Bidi यानी बीड़ी
Khaki यानी ख़ाकी
भारत की विभिन्न भाषाओं के सैंकड़ों शब्द अंग्रेज़ी के शब्द कोश में मौजूद हैं और यह काम बहुत पहले से जारी है.

Sunday, April 6, 2008

भारतीय नर्सें विदेशों की तरफ़


मेलोडी डी ज़ा बहुत ख़ुश हैं क्योंकि उनकी बरसों की तमन्ना या यूँ कहें कि एक बड़ा ख़्वाब पूरा हो गया है.मेलोडी दरअसल एक नर्स हैं और उनका कहना है कि वह भारत में कम तनख़्वाह और आमदनी की अनिश्चितता की वजह से बहुत चिंतित रहती थीं.मगर अब उनकी चिंता दूर हो गई है क्योंकि उन्हें अमरीका में नर्स का काम मिल गया है और वहाँ जाते हुए उनके चेहरे की ख़ुशी आसानी से महसूस की जा सकती है.निश्चित रूप से वे अमरीका में एक बेहतर ज़िंदगी की उम्मीद के साथ अमरीका जा रही हैं.
एक भारतीय नर्स "मैं हमेशा से ही विदेश जाने का ख़्वाब देखती थी. अब मैं अमरीका में एक नई ज़िंदगी जीने की उम्मीद लगाए हुए हूँ."मेलोडी उन सैकड़ों नर्सें में से एक हैं जिन्हें अपनी ट्रेनिंग की बदौलत अमरीका जाने का मौक़ा मिल रहा है.मेलोडी की ही तरह एक अन्य नर्स ग्लोरिया मोहिननी भी अमरीका जाते हुए खुश थीं, ख़ास तौर इसलिए भी कि उनके पति और बच्चा भी उनके साथ अमरीका जा रहे हैं."वहाँ पैसा ख़ूब है इसलिए हम एक बेहतर ज़िंदगी गुज़ार सकेंगे."मेलोडी का कहना है, "हमें अमरीका में 30 डॉलर प्रति घंटा के हिसाब से वेतन मिलेगा जबकि भारत में सिर्फ़ छह हज़ार महीने के हिसाब से ही तनख़्वाह मिल पाती थी."अच्छी साखमोटे अनुमान के मुताबिक़ अमरीका में भारतीय नर्सों को तीन हज़ार डॉलर के आसपास तक वेतन मिलता है.अमरीका के अलावा ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया भी नर्सों के लिए भारत की तरफ़ देखते हैं क्योंकि इन देशों में नर्सों की बहुत कमी है.इस कमी को पूरा करने के लिए भारत के दक्षिणी राज्यों में नर्सों को प्रशिक्षण देने के लिए बहुत से संस्थान खुल गए हैं.ख़ास तौर से बंगलौर, मुंबई, कोच्चि कोयंबटूर और हैदराबाद में नर्सों को बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
भारतीय नर्सें विदेशों में काफ़ी लोकप्रिय हैं वैसे तो भारत में विभिन्न संस्थान नर्सों का प्रशिक्षण देते हैं लेकिन बंगलौर का नर्सेज़ एनीटाइम नाम का संस्था प्रशिक्षण के साथ-साथ उन्हें विदेश भेजने का भी इंतज़ाम करता है.इस संस्थान की निदेशक रेवती सुनकरा कहती हैं, "भारत में नर्सें कम तनख़्वाह से ख़ासी परेशान हैं. विदेशों में उन्हें एक नई ज़िंदगी गुज़ारने का मौक़ा मिल रहा है.""भारतीय नर्सें अपने पेशे की जानकारी और कुशलता की वजह से बहुत अच्छी समझी जाती हैं."जो नर्स विदेश जाने की शर्तें पूरी कर देती हैं उन्हें ग्रीन कार्ड, किराया और मकान के साथ-साथ कुछ और सुविधाएँ भी मिलती हैं.इन संस्थानों में नर्सों को विदेश जाने के लिए तैयार करने के लिए 200 से 300 डॉलर लिए जाते हैं.एक अनुमान के अनुसार अनेक यूरोपीय और खाड़ी के देशों के अलावा सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में भारतीय नर्सें बड़ी संख्या में काम कर रही हैं.ख़ास तौर से अमरीका ने नर्सों के लिए भारत की तरफ़ तब देखना शुरु किया था जब कनाडा, आयरलैंड और फ़िलीपींस से नर्सों का आना बंद हो गया था.अनुमान लगाया जाता है कि अमरीका में क़रीब पाँच लाख नर्सों की सख़्त ज़रूरत है और भारतीय नर्सों को इसीलिए बहुत अच्छा समझा जाता है क्योंकि वे अपने पेशे में कुशल और जानकार होती हैं, साथ ही अँगरेज़ी भी अच्छी तरह जानती हैं.ब्रिटेन में भी भारतीय नर्सों की माँग तेज़ी से बढ़ रही है और पिछले साल ब्रिटेन की स्वास्थ्य सेवा एनएचएस में भारत से क़रीब 1800 नर्सों की भर्ती की गई थी.

Thursday, April 3, 2008

ऊँट पर चलता 'मोबाइल बैंक'


राजस्थान में एक ऐसा अदभुत बैंक है जो ऊँट की पीठ से चलता है.
एटीएम और इंटरनेट बैंकिंग के ज़माने में ऊँट पर स्थापित ये बैंक जैसलमेर की जनता और पर्यटकों को काफ़ी भा रहा है.
भारत के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थापित ये बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर और जयपुर की एक शाखा है और पिछले बारह साल से चल रही है.
बैंक के प्रबंधक डी एस चौहान ने गुड़ मॉर्निग इंड़िया के संवाददाता को बताया कि ये व्यवस्था विदेशी सैलानियों के हितों को ध्यान में रखकर शुरु की गई थी और उपयोगी साबित हो रही है.
ये बैंक इस तरह काम करता है कि इस सजे हुए ऊँट पर बैंक के दो कर्मचारी सवार रहते हैं और शहर के पर्यटन स्थलों की फेरी लगाते रहते हैं.
मेरे लिए ते यह कल्पना से भी परे की बात है. ऊँट पर बैंकिंग सेवा मज़ेदार और उपयोगी है

एक अमरीकी पर्यटक
ये बैंक विदेशी मुद्रा के लेन-देन का कारोबार करता है और मौके पर ही पर्यटकों की पाऊँड, डॉलर और यूरो जैसी मुद्राएँ परिवर्तित कर देते हैं.
बैंक के प्रबंधक डी एस चौहान के अनुसार इस बैंक ने चार फरवरी को पौने तीन लाख रुपए का लेन-देन किया और पाँच फ़रवरी को दो लाख रुपए से भी ज़्यादा का लेन-देन किया.
अमरीका से आई पर्यटक रामी विहेली का कहना था, "मेरे लिए तो यह कल्पना से भी परे की बात है. ऊँट पर बैंकिंग सेवा मज़ेदार और उपयोगी है."
जैसलमेर के जाने-माने मरू महोत्सव के दौरान भी ऐसे ही 'कैमेल मोबाइल बैंक' शहर में चलते फिरते देखे जा सकते हैं.
इस प्रयोग की सफलता को देखते हुए बैंक ऑफ़ बड़ौदा ने भी ऐसा ही 'कैमेल मोबाइल बैंक' शुरु किया है.

Wednesday, April 2, 2008

अबूधाबी की 'ऊँटपटाँग' सौंदर्य प्रतियोगिता


कहा जाता है कि सुंदरता देखने वालों की आँखों में होती है, आम तौर पर बदसूरत माने जाने वाले जानवर ऊँट की सुंदरता को संयुक्त अरब अमीरात में परखा जाएगा.
दस हज़ार ऊँट अंतरराष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए अबूधाबी पहुँच रहे हैं.
अबूधाबी की यह प्रतियोगिता अपनी तरह की बहुत बड़ी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा है जिसमें 90 लाख डॉलर के इनाम बाँटे जाएँगे और सौ बेहतरीन ऊँटों के मालिकों को इनाम में कार दिए जाएँगे.
रेगिस्तान का जहाज़ कहे जाने वाले ऊँट बहरीन, कुवैत, ओमान, क़तर और सऊदी अरब से इस बड़े आयोजन में हिस्सा लेने के लिए बन-ठनकर पहुँच रहे हैं.
आयोजकों का कहना है कि ऊँट सौंदर्य प्रतियोगिता के बहाने वे रेगिस्तान की संस्कृति की झलक पेश कर सकेंगे.
यह सौंदर्य प्रतियोगिता मज़ायिन दाफ़रा उत्सव का हिस्सा है जो बुधवार से शुरू हो रहा है और आयोजकों का कहना है कि यह खाड़ी क्षेत्र में अपनी तरह का सबसे बड़ा आयोजन है.
ऊँटों के विशेषज्ञों का पैनल अलग-अलग आयु वर्ग से विजेता ऊँटों का चुनाव करेगा.
यह प्रतियोगिता हर उस ऊँट के लिए खुली है जो अच्छी नस्ल का हो, संक्रामक रोगों से मुक्त हो और उसमें किसी तरह की विकलांगता न हो.
इस ऊँट सौंदर्य प्रतियोगिता के प्रायोजक अबूधाबी के शेख़ ख़लीफ़ा बिन ज़ायद हैं.
ख़लीफ़ा के प्रवक्ता ने कहा कि अरब संस्कृति के केंद्र में रहे ऊँट के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए इस आयोजन के ज़रिए राष्ट्रीय पहचान को कायम रखने की कोशिश की जा रही है.
संयुक्त अरब अमीरात में छह वर्ष पहले ऊँटों की सौंदर्य प्रतियोगिता पहली बार आयोजित की गई थी.
खाड़ी के देशों में ऊँटों की दौड़ एक लोकप्रिय खेल है जिसमें लोग लाखों डॉलर दाँव पर लगाते हैं.
सदियों से अरब जगत में संपत्ति का मुख्य पैमाना यही रहा है कि किस शेख़ के पास ऊँटों का कितना बड़ा काफ़िला है.

Tuesday, April 1, 2008

दिल के कितने क़रीब हैं मुहावरे?


दिल का मामला है, दिल में फूल खिलना, दिल वाले, आँख से दूर दिल से दूर, दिल में चोर होना, दिल दहलना, दिल हिला देना... इन सबको हम अक्सर अपनी बातचीत में शामिल करते हैं. इनमें ‘दिल’ का मतलब अक्सर हृदय से नहीं है, बल्कि कुछ और है.
आज हम आपके पास ‘दिल’ वाले मुहावरे लेकर आए हैं. यहां दिल वाले का मतलब शाब्दिक है क्योंकि मुहावरे में ‘दिल वाले’ का मतलब ऐसा आदमी है जिसके दिल में प्रेम और हिम्मत हो.
वैसे हर मनुष्य के पास एक दिल होता है लेकिन उनको दिल वाला नहीं कहते हैं लेकिन कभी-कभी मुहावरे में कहते हैं. जैसे उसके सीने में दिल नहीं पत्थर है, यानी वह बहुत कठोर, निर्दयी, निष्ठुर है.
आज हम अंग्रेज़ी भाषा में प्रचलित कुछ ऐसे ही मुहावरे लेकर आए हैं जो दिल से तो हिंदी भाषा के मुहावरे से मेल रखते हैं लेकिन अपनी संस्कृति के हिसाब से अलग भी है. जैसे-
Absence makes the heart grow fonder. यानी अनुपस्थिति से प्यार और बढ़ता है लेकिन हमारे यहा कहा जाता है कि आंख से दूर तो दिल से दूर. अंग्रेज़ी में इसके लिए एक और मुहावरा है आउट ऑफ़ साइट आउट ऑफ़ माइन्ड (out of sight out of mind). इस मुहावरे का यहां मतलब यह है कि जिससे आपको प्रेम है वह अपनी अनुपस्थिति में और अधिक याद आता है. इसे इस प्रकार कहेंगे- My boyfriend is going to US and I won't see him for six months. Ah! Absence makes the heart grow fonder.
Someone after your own heart का अर्थ है आप ही के जैसा, आप की तरह सोचने वाला, आपकी पसंद वाला, हम अपने यहां कहते हैं कि दिल को दिल से राह है या दिल की बात सुने दिल वाला. अंग्रेज़ी में इसे इस तरह इस्तेमाल किया जाता है. I was delighted to know your views on movies and Cricket—you are really a man after my own heart.
कभी कभी इसे इस प्रकार भी प्रयोग करते हैं- She's a cook after my own heart. यानी वह मेरी पसंद का खाना बनाती है.
At heart (ऐट हार्ट) का अर्थ है वास्तव में, बुनियादी तौर पर अंदर-अंदर, दिल से, हम आम तौर पर कहते हैं न कि वह दिल से हीरा है यानी उसकी बातों का बुरा न मानो और ऊपरी चीज़ों को न देखो, वह अंदर से अच्छा है. इसे यूं कह सकते हैं. He is a gem at heart या the government should have the interest of the nation at heart.
Bare your heart/soul (बेयर योर हार्ट/सोल) किसी से अपने दिल की बात कहना, अपना हमराज़ बनाना, दिल खोल कर रख देना, हमारे पास इसके काफ़ी पर्याय हैं. अंग्रेज़ी में हम इसका प्रयोग इस तरह करते हैं. We don't know each other that well. I certainly wouldn't bare my heart to her. अक्सर इसके साथ to (टू) का प्रयोग होता है.
Be all heart (बी ऑल हार्ट) यानी बहुत दयालू, मेहरबान होना, हम अपने यहां इसके लिए कभी कभी दिलदार, दिलेर, वग़ैरह का भी इस्तेमाल करते हैं. Karuna can't bear to see anyone upset - she's all heart.
दिल से जुड़े कई दिलचस्प मुहावरे कई भाषाओं में इस्तेमाल होते हैं
Bleeding heart (ब्लीडिंग हार्ट) हर किसी के लिए बहुत अधिक दया दिखाना, हम अपने यहां कहते हैं किसी का दर्द देखकर दिल रो पड़ता है, इसी प्रकार अंग्रेज़ी में भी कहते हैं The anti-hunting campaigners are just a bunch of bleeding hearts who don't understand the problem of the people from villages.
Break someone's heart (ब्रेक समवन्स हार्ट) यानी दिल तोड़ना, आप को जो चाहे उसे उदास कर देना ख़ास तौर से यह कहकर कि आप उसे नहीं चाहते. हिंदी फ़िल्मों के आधे गीतों में दिल के टूटने का ज़िक्र होता है. अंग्रेज़ी में इसका प्रयोग अलग अलग है, जैसे He broke my heart, but I'll never forget him. या It breaks my heart to think about all those poor sleeping on the pavements in the month of December when it is very cold. अक्सर to do something के साथ प्रयोग होता है.
By heart (बाई हार्ट) याद रखना, दिमाग़ से, हाफ़्ज़े से, Mr. Sharma knows the telephone number of all his colleague by heart. He is a genius. इसका प्रयोग आम तौर पर know, learn, recite, और play के साथ होता है जैसे: I studied piano for two years, and all I learned to play by heart was ‘Twinkle Twinkle Little Star.’
A change of heart (ए चेन्ज ऑफ़ हार्ट) यानी मन बदल जाना, विचार बदल जाना, Manju was going to sell her house but had a change of heart at the last minute. इसमें अक्सर कुछ अच्छे के लिए मन बदल जाता है.
Chicken-hearted (चिकन हार्टेड) यानी डरपोक, बुज़दिल, I will go straight to your father for your hand. I’m not a chicken-hearted. या These chicken-hearted bosses always seem to give in at the first sign of a strike.
Lion hearted (लॉयन हार्टेड) यानी बहादुर शेर दिल, निडर, इसका प्रयोग देखें.Don’t try to challenge him even when he is alone. He’s a lion-hearted and would never show his back.
दिल से जुड़े कुछ और मुहावरे
cry/sob your heart out (क्राइ/सॉब योर हार्ट आउट) दिल-खोल कर रोना, दिल भर के रोना, फूट-फूट कर रोना
eat your heart out (ईट योर हार्ट आउट) अपने किए पर पछताना
from the bottom of your heart (फ़्रॉम द बॉटम ऑफ़ योर हार्ट ) दिल से, सच में
from the heart (फ़्रॉम द हार्ट ) दिल से, वास्तव में
half-hearted (हाल्फ़- हार्टेड) आधे-अधूरे मन से
hand on heart (हैन्ड ऑन हार्ट ) दिल पर हाथ रख कर, सच में
harden your heart (हार्डेन योर हार्ट ) दिल कठोर कर लेना, दिल पत्थर कर लेना
have a heart (हैव ए हार्ट ) मानी रहम करो, दया करो, कठोर या निष्ठुर न बनो
have a heart of gold (हैव ए हार्ट ऑफ़ गोल्ड) सोने के दिल वाला यानी बहुत दयालू, बहुत मेहरबान
have a heart of stone (हैव ए हार्ट ऑफ़ स्टोन) पत्थर दिल होना
heart and soul (हार्ट एण्ड सोल) पूरे तन-मन से, पूरी निष्ठा से, पूरी तरह से
your heart bleeds (for someone) योर हार्ट ब्लीड्स ( फ़ॉर समवन) किसी के लिए दिल पिघलना
someone's heart is in their boots, उदास और परेशान
someone's heart is in their mouth बहुत घबराया हुआ होना
the heart rules the head, दिमाग़ के बजाए दिल की मानना
someone's heart sinks, दिल बैठना, दिल डूबना
a heart-to-heart दो व्यक्तियों के बीच खुल कर ईमानदारी के साथ संजीदा बातचीत होना
Home is where the heart is. जहां दिल लगा हो वही घर होता है.
lose heart दिल छोटा करना, हिम्मत हार बैठना
lose your heart to someone किसो को दिल दे बैठना, किसी को दिल हार जाना
not have the heart (to do something) हिम्मत नहीं होना
put your heart and soul into something/doing something किसी चीज़ में अपना सब कुछ लगा देना
sick at heart दिल से बीमार
steal someone's heart दिल चुराना
strike at the heart of something किसी चीज़ की जड़ में मारना, निशाने पर मारना
wear your heart on your sleeve, दिल की बात ज़बान पर लिए फिरना.