Sunday, April 6, 2008

भारतीय नर्सें विदेशों की तरफ़

Posted on 8:20 AM by Guman singh


मेलोडी डी ज़ा बहुत ख़ुश हैं क्योंकि उनकी बरसों की तमन्ना या यूँ कहें कि एक बड़ा ख़्वाब पूरा हो गया है.मेलोडी दरअसल एक नर्स हैं और उनका कहना है कि वह भारत में कम तनख़्वाह और आमदनी की अनिश्चितता की वजह से बहुत चिंतित रहती थीं.मगर अब उनकी चिंता दूर हो गई है क्योंकि उन्हें अमरीका में नर्स का काम मिल गया है और वहाँ जाते हुए उनके चेहरे की ख़ुशी आसानी से महसूस की जा सकती है.निश्चित रूप से वे अमरीका में एक बेहतर ज़िंदगी की उम्मीद के साथ अमरीका जा रही हैं.
एक भारतीय नर्स "मैं हमेशा से ही विदेश जाने का ख़्वाब देखती थी. अब मैं अमरीका में एक नई ज़िंदगी जीने की उम्मीद लगाए हुए हूँ."मेलोडी उन सैकड़ों नर्सें में से एक हैं जिन्हें अपनी ट्रेनिंग की बदौलत अमरीका जाने का मौक़ा मिल रहा है.मेलोडी की ही तरह एक अन्य नर्स ग्लोरिया मोहिननी भी अमरीका जाते हुए खुश थीं, ख़ास तौर इसलिए भी कि उनके पति और बच्चा भी उनके साथ अमरीका जा रहे हैं."वहाँ पैसा ख़ूब है इसलिए हम एक बेहतर ज़िंदगी गुज़ार सकेंगे."मेलोडी का कहना है, "हमें अमरीका में 30 डॉलर प्रति घंटा के हिसाब से वेतन मिलेगा जबकि भारत में सिर्फ़ छह हज़ार महीने के हिसाब से ही तनख़्वाह मिल पाती थी."अच्छी साखमोटे अनुमान के मुताबिक़ अमरीका में भारतीय नर्सों को तीन हज़ार डॉलर के आसपास तक वेतन मिलता है.अमरीका के अलावा ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया भी नर्सों के लिए भारत की तरफ़ देखते हैं क्योंकि इन देशों में नर्सों की बहुत कमी है.इस कमी को पूरा करने के लिए भारत के दक्षिणी राज्यों में नर्सों को प्रशिक्षण देने के लिए बहुत से संस्थान खुल गए हैं.ख़ास तौर से बंगलौर, मुंबई, कोच्चि कोयंबटूर और हैदराबाद में नर्सों को बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
भारतीय नर्सें विदेशों में काफ़ी लोकप्रिय हैं वैसे तो भारत में विभिन्न संस्थान नर्सों का प्रशिक्षण देते हैं लेकिन बंगलौर का नर्सेज़ एनीटाइम नाम का संस्था प्रशिक्षण के साथ-साथ उन्हें विदेश भेजने का भी इंतज़ाम करता है.इस संस्थान की निदेशक रेवती सुनकरा कहती हैं, "भारत में नर्सें कम तनख़्वाह से ख़ासी परेशान हैं. विदेशों में उन्हें एक नई ज़िंदगी गुज़ारने का मौक़ा मिल रहा है.""भारतीय नर्सें अपने पेशे की जानकारी और कुशलता की वजह से बहुत अच्छी समझी जाती हैं."जो नर्स विदेश जाने की शर्तें पूरी कर देती हैं उन्हें ग्रीन कार्ड, किराया और मकान के साथ-साथ कुछ और सुविधाएँ भी मिलती हैं.इन संस्थानों में नर्सों को विदेश जाने के लिए तैयार करने के लिए 200 से 300 डॉलर लिए जाते हैं.एक अनुमान के अनुसार अनेक यूरोपीय और खाड़ी के देशों के अलावा सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में भारतीय नर्सें बड़ी संख्या में काम कर रही हैं.ख़ास तौर से अमरीका ने नर्सों के लिए भारत की तरफ़ तब देखना शुरु किया था जब कनाडा, आयरलैंड और फ़िलीपींस से नर्सों का आना बंद हो गया था.अनुमान लगाया जाता है कि अमरीका में क़रीब पाँच लाख नर्सों की सख़्त ज़रूरत है और भारतीय नर्सों को इसीलिए बहुत अच्छा समझा जाता है क्योंकि वे अपने पेशे में कुशल और जानकार होती हैं, साथ ही अँगरेज़ी भी अच्छी तरह जानती हैं.ब्रिटेन में भी भारतीय नर्सों की माँग तेज़ी से बढ़ रही है और पिछले साल ब्रिटेन की स्वास्थ्य सेवा एनएचएस में भारत से क़रीब 1800 नर्सों की भर्ती की गई थी.

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