Monday, April 14, 2008

मुठ्ठी में होंगी हज़ारों घंटे की फ़िल्में

Posted on 8:02 PM by Guman singh

GoodNews(New Delhi)

कंप्यूटर की दुनिया की महारथी कंपनी आईबीएम के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई तो आने वाले दिनों में एक ऐसा उपकरण उपलब्ध हो सकेगा जिसके ज़रिए हज़ारों घंटे लंबी फ़िल्में सहेजना संभव होगा.
आईबीएम के शोधकर्ता 'रेसट्रैक टेक्नोलॉजी' नाम की एक तकनीक पर काम कर रहे हैं जो छोटे चुंबकीय घेरों की मदद से सामग्री या आंकड़ों (डाटा) को जमा करती है.
विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में छपी एक रिपोर्ट में आईबीएम की कैलीफोर्निया स्थित अल्मादन प्रयोगशाला में इस तकनीक पर काम कर टीम ने बताया है कि वह किस तरह से इस अनूठे उपकरण को तैयार कर रही है.
इसके तैयार हो जाने के बाद एमपी3 प्लेयरों की मौजूदा क्षमता को सौ गुना बढ़ाया जा सकता है लेकिन रेसट्रैक टेक्नोलॉजी पर काम कर रही इस टीम का कहना है कि इसके बाज़ार में आने में अभी सात से आठ साल लगेंगे.
यादाश्त की दुनिया
इस समय ज़्यादातर डेस्कटॉप कंप्यूटर में डाटा को जमा रखने के लिए फ़्लैश मेमोरी और हार्ड ड्राइव का इस्तेमाल होता है.
इन दोनों के अपने-अपने फ़ायदे हैं तो नुक़सान भी हैं.
हार्ड ड्राइव सस्ती होती हैं लेकिन अपनी बनावट के कारण वे बहुत लंबे समय तक काम नहीं कर पातीं. डाटा को सामने लाने में भी ये कुछ समय लेती हैं.
इसके उलट फ़्लैश मेमोरी ज़्यादा विश्वसनीय हैं और इनमें सुरक्षित रखे हुए डाटा को ज़ल्दी से देखा जा सकता है. हालाँकि इसकी ज़िंदगी सीमित है और यह महँगे भी हैं.
रेसट्रैक टेक्नोलॉजी पर डॉ. स्टुअर्ट पार्किन और उनकी टीम काम कर रही है. इससे तैयार याद्दाश्त वाले उपकरण सस्ते, टिकाऊ और तेज़ साबित हो सकते हैं.
डॉ. पार्किन कहते हैं कि रेसट्रैक टेक्नोलॉजी याद्दाश्त की दोनों तकनीकों - फ़्लैश मेमोरी और हार्ड ड्राइव की जगह ले सकती है.
वह बताते हैं, "हमने रेसट्रैक मेमोरी में काम आ रही सामग्रियों और तकनीक को सामने रखा है. हालाँकि अभी तक हम ऐसा एक भी उपकरण नहीं बना सके हैं लेकिन इसे बनाना अब संभव नज़र आता है."

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