Wednesday, September 12, 2007

क्यूँ मेरी अंगुलियाँ

Posted on 11:03 AM by Guman singh


क्यूँ मेरी अंगुलियाँ थकने लगी है?
क्यूँ मेरे लब थरथरा रहे है?


मै अपने गीतो से शर्मा रहा हूँ,ओर
मेरे गीत मुझसे शर्मा रहे है..
वों गीत मुझे आज बेज़ान लगते है....
कि मेरे दिल के जज़्बात थे,
जिन्हे कोरे कागज़ पर मैने उकेरा था,
और उस क़लम को भी तोड देना चाहता हूँ,
जिसने लोगो के दिल के तारो को छेडा था,
आज मेरे हाथो मे क्रांति की मशाल दे दो...
जिसकी रोशनी से,मै हटा दूँ घने स्याह अँधेरो को,
और अपने इस दिल की तडप से आज फिर,
उगा दूँ नई सुबह और सवेरो को...
अब तो दिल का आलम यही है...
कि सारे आलम पे छा जाना चाहता हूँ,
करके क़ुर्बान ये जीवन इस ज़मी के लिये,
इक नई रोशनी जलाना चाहता हूँ...!!!!

No Response to "क्यूँ मेरी अंगुलियाँ"