Wednesday, June 18, 2008

'स्पेलिंग चैम्पियनशिप' में भारतीय दबदबा

Posted on 12:11 AM by Guman singh

Marwar News!
भारतीय मूल के कृष्ण मिश्र और अल्का मिश्र पिछले सात वर्षो से अपने बच्चों को अमरीका में होने वाली वर्तनी प्रतियोगिता- 'नेशनल स्पेलिंग बी' में भाग लेने के लिए इंडियाना से वाशिंगटन डीसी ले जाते रहे हैं.
वे दिल्ली से 15 वर्ष पहले अमरीका आए थे. इस बार उनके पुत्र 13 वर्षीय समीर ने इस प्रतियोगिता में पहला स्थान जीतकर उनका सपना पूरा कर दिया है. .
समीर को 40 हज़ार डॉलर यानी क़रीब 16 लाख रुपए से भी ज़्यादा की राशि पुरस्कार में मिली है.
सबसे पहले उनकी बड़ी पुत्री श्रुति ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था.
अमरीका में यह प्रतियोगिता काफ़ी लोकप्रिय है. इसके लिए बच्चे महीनों तैयारी करते हैं. प्रतियोगिता के राष्ट्रीय स्तर के फ़ाइनल में पहुँचने से पहले उन्हें स्थानीय और प्रांतीय स्तर पर जीत हासिल करनी पड़ती है.
समीर ने 'guerdon' शब्द की सही स्पेलिंग बता कर यह प्रतियोगिता जीती है. इस बहुत कम प्रचलित शब्द का मतलब पुरस्कार होता है.
लाल कालीन पर चलना आपको एक सेलिब्रिटी होने का एहसास देता है. मेरी पत्नी चाहती थी कि समीर भी सेलिब्रिटी की तरह लाल कालीन पर ले चले

कृष्ण मिश्र, समीर के पिता
इस वर्ष दक्षिण एशिया के बच्चे इस प्रतियोगिता में छाए रहे. दूसरे स्थान पर इस प्रतियोगिता में मिशीगन के 12 वर्ष के सिद्धार्थ चांद रहे जबकि कैनसस की काव्या शिवशंकर को चौथा और पेन्सिलवेनिया की जाह्नवी अय्यर को आठवाँ स्थान मिला.
लगन और इच्छाशक्ति
समीर को परिवार का पूरा सहयोग मिला
न्यूयॉर्क में रहने वाले आठ वर्षीय श्रीराम हथवार ने इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सबसे कम उम्र का प्रत्याशी बनकर सबको चौंका दिया.
स्पेलिंग प्रतियोगिता में भारतीय परिवार के बच्चों के वर्चस्व की असली वजह उनका पारिवारिक माहौल है.
वर्ष 1985 में 'स्पेलिंग बी' प्रतियोगिता में जीतने वाले और इस वर्ष के निर्णायकों में से एक, डॉक्टर बालू नटराजन का कहना है कि जो बात सभी जीतने वाले प्रतियोगियों में दिखती है वह है उनका इस प्रतियोगिता के प्रति लगन और परिवार का सहयोग.
वे कहते हैं, "यह ऐसी प्रतियोगिता नहीं है जिसे बच्चे सिर्फ़ अपनी प्रतिभा के बूते जीत लें. मुझे लगता है कि दक्षिण एशियाई परिवारों की इच्छा और सहयोग काफ़ी मायने रखता है."
कृष्ण मिश्र कहते हैं कि 'स्पेलिंग बी' प्रतियोगिता उनके बच्चों के लिए एक अच्छा शैक्षणिक अनुभव रहा है और इससे बेहतरीन अंग्रेजी सीखने में भी मदद मिलती है.
वे हँसते हुए कहते हैं, "लाल कालीन पर चलना आपको एक सेलिब्रिटी होने का एहसास देता है. मेरी पत्नी चाहती थी कि समीर भी सेलिब्रिटी की तरह लाल कालीन पर ले चले."
समीर कहते हैं कि उन्होंने इस प्रतियोगिता के लिए काफ़ी मेहनत किया था. वे कहते हैं, "मैंने सीखा कि कैसे लगातार मेहनत किया जाए और उसे बरकरार रखा जाए."
वर्तनी प्रतियोगिता में दक्षिण एशिया मूल के लोगों की सफलता को देख कर न्यू जर्सी के राहुल वालिया 'दक्षिण एशिया स्पेलिंग बी' प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं.
वे कहते हैं इन प्रतियोगिताओं से बच्चों के अंदर विश्वास बढ़ेगा और उनकी प्रतिभा निखरेगी.

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