Friday, June 27, 2008

पहले फ़ील्ड मार्शल सैम बहादुर नहीं रहे

Posted on 5:04 AM by Guman singh

भारत के पूर्व सेना प्रमुख और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के हीरो माने जाने वाले फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का गुरुवार रात निधन हो गया. वो 94 वर्ष के थे.
कई दिनों से उनकी हालत नाज़ुक बनी हुई थी. मानेकशॉ तमिलनाडु के वेलिंग्टन सेना अस्पताल में भर्ती थे.
समाचार एजेंसियों के अनुसार गुरुवार की सुबह डॉक्टरों ने कह दिया था उनकी हालत लगातार बिगड़ रही है.
भारत के सबसे ज़्यादा चर्चित और कुशल सैनिक कमांडर माने जाने वाले 94 वर्षीय मानेकशॉ का जीवन उपलब्धियों से भरा रहा. उन्होंने भारत के लिए कई महत्वपूर्ण जंगों में निर्णायक भूमिका निभाई.
उनकी सबसे बड़ी कामयाबी मानी जाती है- 1971 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जंग में जीत.
उस समय पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में करीब 93 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों फ़ौज ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था.
तब से सैम बहादुर के नाम से लोकप्रिय फ़ील्ड मार्शल मानेकशॉ को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में देखा जाता रहा है.
मानेकशॉ का बचपन
फ़ील्ड मार्शल मानेकशॉ का पूरा नाम सैम होर्मुशजी फ़्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ है. उनका जन्म तीन अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ था.
उनका परिवार पारसी है. उनके पिता डॉक्टर एचएफ मानेकशॉ एक चिकित्सक थे और पंजाब में जाकर बस गए थे. सैम मानेकशॉ ने प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में ही पाई. बाद में वो नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए.
स्कूली शिक्षा के बाद वो उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड जाना चाहते थे. लेकिन उनके पिता ने उन्हें बहुत छोटा जानकर विदेश नहीं भेजा.
बाद में उन्होंने अमृतसर के हिंदू सभा कॉलेज में दाख़िला लिया. उन दिनों 'ब्रिटिश इंडियन आर्मी' में भारतीयों को सीधा कमीशन मिलने लगा था और देहरादून में 'इंडियन मिलिट्री एकेडमी' की स्थापना की गई थी.
सैम ने भी एकेडमी के पहले बैच में प्रवेश के लिए आवेदन किया और सफल हो गए.
मानेकशॉ पर डॉक्यूमेंट्री
फ़ील्ड मार्शल मानेकशॉ पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म 'इन वार एंड पीस: द लाइफ़ ऑफ़ फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ' भी बन चुकी है.
दिल्ली की ग़ैरसरकारी संस्था 'परज़ोर' ने इस डॉक्यूमेंट्री को तैयार किया था.
भारत-पाकिस्तान की 1971 की जंग के दौरान मानेकशॉ भारतीय सेनाध्यक्ष थे
ये फ़िल्म एक दादा द्वारा अपने पोते को बताए गए किस्सों पर आधारित थी. जिसमें दादा सैम मानेकशॉ ने अपने पोते को भारत के कुछ यादगार ऐतिहासिक पलों के बारे में बताया था.
फ़िल्म की निर्देशक जेसिका गुप्ता ने वर्ष 2003 में डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म के उदघाटन समारोह के दौरान बीबीसी को बताया था, "सैम बहादुर का जो मज़ाक करने का अंदाज़ है, जो अपनापन है, उससे आपको इस बात का एहसास हो जाता है कि आप किसी हीरो के पास बैठे हुए हैं."
इस डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म में एक जगह सैम याद करते हैं कि कैसे 1971 की लड़ाई के बाद तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें तलब किया और कहा कि ऐसी चर्चा है कि सैम तख़्ता पलटने वाले हैं.
सैम ने मज़ाक करते हुए अपने जाने-माने अंदाज़ में कहा, "क्या आप ये नहीं समझतीं कि मैं आपका सही उत्तराधिकारी साबित हो सकूँगा? क्योंकि आपकी नाक लंबी है और मेरी भी नाक लंबी ही है."
और फिर सैम ने कहा, "लेकिन मैं अपनी नाक किसी के मामले में नहीं डालता और सियासत से मेरा दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है."
फिल्म में सैम को ये भी कहते हुए दिखाया गया है कि शिमला समझौते के दौरान भारत ने कश्मीर समस्या सुलझाने का सुनहरा मौक़ा ख़ो दिया.

No Response to "पहले फ़ील्ड मार्शल सैम बहादुर नहीं रहे"