Wednesday, October 15, 2008

हाथ मिलाने से ही रोग का पता

Posted on 1:40 AM by Guman singh

Dingal Times!

ज़रा कल्पना कीजिए कि आप अपने डॉक्टर के पास जाते हैं, उससे हाथ मिलाते हैं और बस आपकी बीमारी के बारे में सारी जानकारी उसे मिल जाती है.
इतना ही नहीं डॉक्टर के शरीर से यह जानकारी अपने आप ही कंप्यूटर में दाख़िल हो जाती है.
यानी अभी आप कुर्सी पर बैठे भी नहीं हैं कि आपके शरीर का अंदरूनी हाल डॉक्टर के पास पहुँच जाता है.
शरीर में तरह-तरह के संवेदनशील सूचक यानी चिप लगाए जा सकते हैं जिनमें आपकी नब्ज़ की रफ़्तार, पसीने में पाए जाने वाले तत्व और चिकित्सा संबंधी अन्य जानकारी मौजूद होगी.
इन चिपों के ज़रिए यह संभव हो सकता है कि आप अपने डॉक्टर से सिर्फ़ हाथ मिलाएँ और आपकी तबियत क्यों ख़राब है, इसकी जानकारी डॉक्टर को मिल जाए. आपको डॉक्टर को कुछ भी बताने की ज़रूरत न पड़े.
अब शायद ये बातें सच हो सकती हैं.
कंप्यूटर की अमरीकी फ़र्म माइक्रोसॉफ़्ट ने इसी क्षेत्र में पेटेंट हासिल किया है. यानी इन्सान के हाथ की उँगलियों से ले कर पैर के अँगूठे तक इन्सानी शरीर को कंप्यूटर में बदलने का पेटेंट.
अमरीकी पेटेंट संख्या 6754472 का शीर्षक है - 'मानवीय शरीर को इस्तेमाल करते हुए ऊर्जा और डाटा संचारित करने का तरीक़ा और मशीन.'
शरीर एक मशीन
इन्सानी शरीर में नसों और धमनियों का एक जाल बिछा हुआ है. इस जाल को इलेक्ट्रॉनिक सूचना के संचार के लिए आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है.
हमारे शरीर की त्वचा में बिजली की तरंग दौड़ाने की क्षमता है और यही क्षमता शरीर को कंप्यूटर की तरह इस्तेमाल करने में मददगार साबित होगी.
मिसाल के तौर पर आप का मोबाइल फ़ोन कमर की पेटी में लटका हुआ है, जिसमें घंटी बजती है जो किसी और को सुनाई नहीं देगी बल्कि आप के कानों में ठुसे हुए छोटे-छोटे स्पीकर उस घंटी की आवाज़ आपके कानों में पहुँचा देंगे.
आप एक ख़ास तरह की ऐनक पहने हुए हैं, उस टेलीफ़ोन के साथ अगर कोई तस्वीर आ रही है तो उस ऐनक पर वो तस्वीर आप को ख़ुद बा ख़ुद नज़र आ जाएगी.
ये मत समझिए कि ये सब कल्पना है. अब से छह साल पहले ब्रिटेन के रीडिंग विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर केविन वॉर्क ने अपनी बाँह में एक कंप्यूटर चिप दाख़िल कर ली थी.
वो जब किसी दरवाज़े के नज़दीक होते तो वो दरवाज़ा ख़ुद ब-ख़ुद खुल जाता और कमरे में उनके दाख़िल होते ही बत्ती जल जाती थी.
मशहूर पत्रिकार न्यू साइंटिस्ट ने अब से दो साल पहले लिखा था कि एक मरीज़ के धड़ का एक तरफ़ का हिस्सा फालिस से बेकार हो गया था और उसकी एक टाँग काम नहीं करती थी.
उसकी विकलाँग टाँग में एक छोटी सी चिप लगा दी गई जो उसकी सही टाँग से सिगनल लेकर बिल्कुल उसी तरह काम करने लगी जैसी सही टाँग काम करती है.
स्विट्ज़रलैंड के वैज्ञानिकों ने विकलांग लोगों के लिए एक ऐसा आला बना लिया था जिसकी मदद से उनकी विकलांगों वाली गाड़ी उनकी अपनी सोच का कहना मानते हुए चल सकती थी.
कंप्यूटर और तकनालॉजी की कंपनी आईबीएम ने बताया है कि आठ साल पहले उसने एक आला बनाकर उसे एक नुमाइश में पेश किया था जिसकी मदद से दो आदमी जब एक दूसरे से हाथ मिलाएँ तो अपने कार्डों की जानकारी बिजली की तरंगों के ज़रिए एक दूसरे को दे सकते हैं.
कुछ मानवाधिकार संगठनों ने इस पर ऐतराज किया है कि माइक्रोसॉफ़्ट को इसका पेटेंट क्यों दिया गया है.
उनका कहना है कि शरीर या इन्सान की त्वचा ऐसी चीज़ नहीं है जिसे कोई कंपनी अपने नाम पेटेंट करा ले.

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