Friday, January 11, 2008

ग्लेशियर ही नहीं तो कौन सी गंगा...

Posted on 6:59 AM by Guman singh


गंगोत्री ग्लेशियर के लिए दिल्ली से निकला तो उम्मीद थी कि पहाड़ों पर जाते ही सुहाना मौसम मिलेगा. बर्फ़ ही बर्फ़ होगी और टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होते हुए पहाड़ी सौंदर्य का आनंद लूंगा लेकिन अफसोस...ऐसा हो न सका.
उत्तरकाशी से गंगोत्री की सौ किलोमीटर की यात्रा में कितने स्थानों पर कार से उतर कर पत्थर हटाने पड़े याद करना मुश्किल है. कारण सड़क चौड़ा करने का काम चल रहा था विस्फोट किए जा रहे थे. टेढ़ी मेढ़ी सड़कें टूटी हुई भी थीं.

रास्ते में मेलारी बाँध पड़ता है जो संभवत लोहारीनाग पाला पनबिजली परियोजना का हिस्सा है. इस परियोजना के तहत पूरे रास्ते में चार स्थानों पर पहाड़ों में सुरंगें बनाई जा रही है जिससे गंगा के पानी को लाया जाएगा.

अब सोचिए इनके लिए कितने और विस्फोट हो रहे होंगे. एक-एक विस्फोट से पहाड़ों की पूरी श्रृंखला हिल हिल जाती थी. जगह जगह यह संदेश पढ़कर डर भी लगता कि दांई तरफ देखकर चलें पत्थर गिरने का ख़तरा है.

सड़कों की छोड़िए तो दिन में यात्रा करते समय भारी गर्मी का भी सामना करना पडा.....ऐसी धूप कि महिलाएँ छाते लेकर घूम रही थी और मुझे कार में एसी चलाने को कहना पडा...

इन मुश्किलों को पार करते हुए जब गंगोत्री के पास पहुंचा और बर्फ़ से ढँकी चोटियाँ दिखी तो थोड़ा चैन मिला लेकिन पता चला कि रास्ते में ग्लेशियर गिरा हुआ है और गोमुख तक जाने की अनुमति नहीं है.

गंगोत्री में स्थानीय लोग बढ़ते प्रदूषण से न केवल चिंतित थे बल्कि नाराज़ भी थे. उनकी ख़ास नाराजगी कांवड़ियों से थी जो कि गोमुख के पास नहाने के बाद कपड़े नदी में फेंक देते हैं या फिर वहीं शौच करते हैं.

गंगोत्री में बरसों से रह रहे कई साधु तो गुस्से में थे और उनका कहना था कि अधिक लोगों के आने पर प्रतिबंध लगे. यहीं पर मुझे कुछ विदेशी भी मिले कनाडाई, अमरीका, जर्मन ...ये बरसों से भारत में घूम रहे हैं क्योंकि उनके शब्दों में उन्हें यहाँ आत्मिक शांति मिलती है.

प्रदूषण के मुद्दे पर उनका गुस्सा पूरी दुनिया से था और बात करने पर वो उत्तरी ध्रुव और सुंदरबन में पर्यावरण के विनाश की बात भी करते थे.

लौटते समय हरिद्वार भी गया जहाँ गंगा का पानी गंगोत्री की गंगा से थोड़ा गंदा था लेकिन अब मेरे मन में गंगा के प्रदूषण की बात थी ही कहां.

मन में केवल एक ही बात थी... गंगोत्री ग्लेशियर न रहा तो कौन सी गंगा कैसी गंगा.

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